मौर्यकालीन शिक्षा व साहित्य (Mauryan Education & Literature)

भूमिका

मौर्यकालीन शिक्षा व साहित्य की दृष्टि से भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। सम्राट अशोक के अभिलेख भारतीय उप-महाद्वीप में सर्वत्र मिले हैं जिससे तत्कालीन भाषा व लिपि का ज्ञात मिलता ही साथ ही इनकी ऐतिहासिकता भी निर्विवाद है। साथ ही सूत्र साहित्य, बौद्ध साहित्य, जैन साहित्य के साथ-साथ अर्थशास्त्र व इंडिका जैसी कृतियों का प्रणयन हुआ।

लिपि का प्रचलन

भारत की प्राचीनतम लिपि हड़प्पा लिपि है जिसका कि दुर्भाग्यवश उद्वाचन नहीं हो पाया है। इसके बाद प्राचीनतम लेख पिपरहवा अभिलेख या पिपरहवा बौद्ध कलश अभिलेख (४८३ ई०पू०) मिला है। इसके बाद अशोक के अभिलेख मिलते हैं। कुल मिलाकर सम्राट अशोक के अभिलेखों को ही एक सीमाचिह्न माना जाये तो लिपि का विकास लगभग ३०० वर्ष पहले से हुआ होगा। इस तरह ६०० ई०पू० लिपि के प्रचलन की बात को मानना समीचीन होगा और अगर पिपरहवा अभिलेख को सीमाचिह्न माना जाय तो कम से कम ८वीं शताब्दी ई०पू० तक माना जा सकता है।

इस तरह लिखने की कला से भारतीय परिचित हो चुके थे। इसका प्रमाण अशोक के अभिलेख हैं। कर्टियस भी कहता है कि भारतीय सन के वस्त्र के टुकड़े एवं वृक्षों की छाल का प्रयोग लिखने के लिये करते थे।

भाषा व लिपि

मौर्य काल में राजभाषा प्राकृत थी। शिक्षित ब्राह्मणों की भाषा संस्कृत थी। बौद्ध धर्म के साहित्य पालि भाषा में लिखे जा रहे थे। जैन धर्म की भाषा अर्धमागधी या मागधी (प्राकृत) थी। जनसामान्य की भाषा पालि थी।

सम्राट अशोक के अभिलेखों में चार लिपियों का प्रयोग हुआ है — ब्राह्मी लिपि, अरामाइक लिपि, खरोष्ठी लिपि और यूनानी लिपि।

  • पश्चिमोत्तर मौर्य साम्राज्य को छोड़कर सम्पूर्ण भारतीय उप-महाद्वीप में प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि का प्रयोग किया गया है।
  • शाहबाज़गढ़ी और मानसेहरा का अभिलेख खरोष्ठी लिपि में है। खरोष्ठी लिपि दायीं ओर से बायीं लिखी जाती थी।
  • तक्षशिला से अरामेइक (Aramaic) लिपि से लिखा हुआ एक भग्न लेख मिला है। इसके अलावा लघमान से भी अरामेइक लिपि में लिखा हुआ अभिलेख मिला है।
  • शरेकुना (कंधार) से यूनानी और अरामेइक लिपि में लिखा गया द्विभाषीय अभिलेख मिला है।

साहित्य

मौर्य युग की साहित्यिक कृतियाँ बहुत कम ज्ञात हैं। वेदांगों, गृह्यसूत्रों एवं धर्मसूत्रों की रचना इसी काल में हुई। इसी प्रकार बौद्ध त्रिपिटकों एवं जैनसूत्रों की भी रचना हुई।

  • मौर्यकाल की सबसे महत्त्वपूर्ण साहित्यिक रचना है कौटिल्य का अर्थशास्त्र। इस पुस्तक की तुलना पाश्चात्य दार्शनिक मैकियावेली की पुस्तक प्रिंस से की जा सकती है। यह हिन्दू राज्यतन्त्र उपलब्ध पर प्राचीनतम् रचना है।
  • परम्परा के अनुसार इस समय मोग्गलिपुत्ततिस्स ने ‘कथावत्थु’ नामक ग्रन्थ लिखा जो अभिधम्मपिटक के अन्तर्गत आता है।
  • भद्रबाहु ने ‘कल्पसूत्र’ की रचना की थी।
  • इसी के साथ मेगस्थनीज कृत ‘इंडिका’ इतिहास के प्रमुख स्रोत है। यद्यपि इंडिका अपने मूल स्वरूप में अनुपलब्ध है फिरभी परवर्ती यूनानी-रोमन लेखकों के उद्धरणों में प्राप्त होते हैं।

शिक्षा व्यवस्था

शैक्षणिक और साहित्यिक प्रगति के दृष्टिकोण से भी मौर्य साम्राज्य महत्त्वपूर्ण है। गुरुकुलों में विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करते थे। यद्यपि राज्य स्वयं अपनी तरफ से शिक्षा की व्यवस्था नहीं करता था, तथापि आचार्यों एवं पुरोहितों को आर्थिक सहायता दी जाती थी। राज्य की तरफ से इन्हें ब्रह्मदेय भूमि भी दान में दी जाती थी। समूचे साम्राज्य में अनेक विख्यात शैक्षणिक केंद्र स्थापित हो गये थे। तक्षशिला, वाराणसी, उज्जैन इत्यादि प्रसिद्ध शिक्षा-केंद्र थे, जहाँ दूर-दूर से विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने आते थे।

धार्मिक शिक्षा के अतिरिक्त राजनीतिशास्त्र, धनुर्विद्या, चिकित्साशास्त्र, मंत्रविद्या इत्यादि की शिक्षा भी दी जाती थी। शिल्पी-संघ व्यावसायिक शिक्षा देते थे।

मौर्यकालीन धार्मिक दशा (The Mauryan Religious Life)

मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था (The Mauryan Economy)

मौर्यकालीन समाज

मौर्य प्रशासन

मौर्य साम्राज्य का पतन (Downfall of the Mauryan Empire)

अशोक के उत्तराधिकारी (The Successors of Ashoka)

अशोक के अभिलेख

अशोक शासक के रूप में

अशोक का मूल्यांकन या इतिहास में अशोक का स्थान

अशोक की परराष्ट्र नीति

अशोक का साम्राज्य विस्तार

अशोक का धम्म

कलिंग युद्ध : कारण और परिणाम (२६१ ई०पू०)

अशोक ‘प्रियदर्शी’ (२७३-२३२ ई० पू०)

बिन्दुसार मौर्य ‘अमित्रघात’ ( २९८ ई०पू० – २७२ ई०पू )

मेगस्थनीज और उनकी इंडिका ( Megasthenes and His Indika )

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चन्द्रगुप्त मौर्य ( ३२२/३२१ — २९८ ई०पू० ) : जीवन व कार्य

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