आचार्य चाणक्य

भूमिका

आचार्य चाणक्य भारतीय इतिहास के उन व्यक्तियों में से हैं जिनका प्रभाव किसी काल विशेष तक सीमित न होकर कालातीत है। चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन निर्माण में आचार्य चाणक्य का सर्वप्रमुख हाथ रहा है। वह इतिहास में विष्णुगुप्त और कौटिल्य इन दो नामों से भी जाने जाते हैं।‘चाणक्य नीति’ वर्तमान में भी प्रासंगिक हैं। उनका राज्य से सम्बन्धित ‘सप्तांग सिद्धांत’ की तुलना वर्तमान राज्य के चार अंगों से की जा सकती है। प्रशासन और राजनीति को उनकी कृति ‘अर्थशास्त्र’ एक अनुपम देन है।

विष्णुपुराण, भागवत आदि पुराणों तथा कथासरित्सागर आदि संस्कृत ग्रंथों में तो आचार्य चाणक्य का नाम आया ही है, बौद्ध ग्रंथो में भी इनका उल्लेख बारम्बार आता है। बुद्धघोष द्वारा लिखी गयी विनयपिटक की टीका तथा महानाम स्थविर कृत महावंश की टीका में चाणक्य का वृत्तांत दिया हुआ है।

आचार्य चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य एक दूसरे के पूरक हैं। जहाँ आचार्य चाणक्य ने एक अखण्ड भारत की कल्पना की तो चन्द्रगुप्त मौर्य ने उसे मूर्त रूप प्रदान किया। आचार्य का जीवन अनुकरणीय है क्योंकि विवरण मिलता है कि चाणक्य राजकीय ठाट-बाट से दूर एक छोटी सी कुटिया में रहते थे।

आचार्य के ऐतिहासिक महत्त्व के कारण ही चाणक्य नामक धारावाहिक डॉ० चंद्रप्रकाश द्विवेदी द्वारा लिखित और निर्देशित ४७ भागों दूरदर्शन नेशनल पर प्रसारित हुआ था। इसे मूल रूप से ८ सितंबर १९९१ से ९ अगस्त १९९२ तक प्रसारित किया गया था।

जन्मस्थान

कौटिल्य के जन्मस्थान के सम्बन्ध में अत्यधिक मतभेद रहने के कारण निश्चित रूप से यह कहना कि उनका जन्म स्थान कहाँ था, कठिन है, परन्तु कई सन्दर्भों के आधार पर तक्षशिला को उनका जन्म स्थान मानना समीचीन लगता है।

वी० के० सुब्रमण्यम ने कहा है कि कई सन्दर्भों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सिकन्दर को अपने आक्रमण के अभियान में युवा कौटिल्य से भेंट हुई थी। चूँकि अलेक्जेंडर का आक्रमण अधिकतर तक्षशिला क्षेत्र में हुआ था, इसलिये यह उम्मीद की जाती है कि कौटिल्य का जन्म स्थान तक्षशिला क्षेत्र में ही रहा होगा।

कौटिल्य के पिता का नाम चणक था। वह एक गरीब ब्राह्मण थे और किसी तरह अपना गुजर-बसर करते थे। अतः स्पष्ट है कि कौटिल्य का बचपन गरीबी और दिक्कतों में गुजरा होगा। कौटिल्य की शिक्षा-दीक्षा के सम्बन्ध में कहीं कुछ विशेष विवरण नहीं मिलता है, परन्तु उनकी बुद्धि की प्रखरता और उनकी विद्वता उनके विचारों से परिलक्षित होती है। वह कुरूप होते हुए भी शारीरिक रूप से बलिष्ठ थे। उनके ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ के अवलोकन से उनकी प्रतिभा, बहुआयामी व्यक्तित्व और दूरदर्शिता का पूर्ण परिचय मिलता है।

महावंश टीका में उल्लेख मिलता है कि ‘चाणक्य’ (चाणक्) तक्षशिला निवासी एक ब्राह्मण का पुत्र था। बाल्यकाल में ही उनके पिता की मृत्यु हो गयी थी। उनकी माता ने ही उसका पालन किया। चाणक्य ने तक्षशिला से पाटलिपुत्र तक की लम्बी यात्रा ज्ञान की खोज में तथा साम्राज्य की राजधानी के शास्त्रार्थों में भाग लेने के उद्देश्य से की थी।

कुछ विद्वानों ने चाणक्य को पाटलिपुत्र का ही निवासी बताया है।

बृहत्कथाकोश के अनुसार उसकी पत्नी का नाम यशोमती था।

चाणक्य का जन्म और मृत्यु

चाणक्य के आरम्भिक जीवन की जानकारी अधिकतर अनुमान पर आधृत है। अनुमान स्वरूप उनका जन्म ३७० ई०पू० और मृत्यु २८३ ई०पू० बताया गया है।

चाणक्य की मृत्यु को लेकर कई प्रकार की किंवदंती प्रचलित हैं। परन्तु इनमें से कौन सा सही है कहा नहीं जा सकता है।

  • कहते हैं कि वे अपने सभी कार्यों को पूरा करने के बाद एक दिन रथ पर सवार होकर मगध से दूर जंगलों में चले गये और उसके बाद वे कभी नहीं लौटे।
  • कुछ इतिहासकार मानते हैं कि उन्हें मगथ की ही रानी हेलेना ने जहर देकर मरवा दिया था। कुछ मानते हैं कि हेलेना ने उनकी हत्या करवा दी थी।
  • यह भी कहा जाता है कि बिंदुसार के मंत्री सुबन्धु के षड़यन्त्र के चलते सम्राट बिन्दुसार के मन में यह संदेह उत्पन्न किया गया उनकी माता की मृत्यु का कारण चाणक्य थे। इस कारणवश धीरे-धीरे सम्राट और आचार्य चाणक्य में दूरियाँ बढ़ती गयीं और एक दिन चाणक्य हमेशा के लिये महल छोड़कर चले गये। हालाँकि बाद में बिन्दुसार को इसका पछतावा हुआ था।
  • एक अन्य कहानी के अनुसार बिन्दुसार के मन्त्री सुबन्धु ने आचार्य को जिंदा जलाने का प्रयास किया, जिसमें वह सफल भी हुआ।

हालाँकि आचार्य चाणक्य ने स्वयं प्राण त्यागे थे अथवा वे किसी षड्यन्त्र का शिकार हुए थे, यह स्पष्ट रूप से कहा नहीं जा सकता है।

नामकरण और विवाद

कौटिल्य के अनेक नाम मिलते हैं; यथा – वात्स्यायन, मल्लनाग, द्रमिल, पक्षिल स्वामी, चाणक्य, विष्णुगुप्त, अंगल, वराणक और कात्यायन आदि। नीतिसार में इनके आठ नामों का उल्लेख मिलता है :

‘वात्स्यायनो मल्लनाग: कौटिल्यश्चणकात्मजः॥

द्रमिलः पक्षिलः स्वामी वराणकः गुलोअअपि वा॥

अर्थात् – वात्स्यायन, मल्लनाग, कौटिल्य, चाणक्य, द्रमिल, पक्षिलस्वामी, वराणक और गुल।

कुछ अन्य ऐतिहासिक स्रोत से पता चलता है कि इनका मूल नाम विष्णुगुप्त था, किंतु चणक के पुत्र होने से यह चाणक्य कहलाये और कुटिल नीति के प्रवर्तक एवं पक्षधर होने के कारण कौटिल्य नाम से अधिक प्रसिद्ध हो गये।

विष्णुगुप्त के दो नामों के पीछे विद्वानों ने अपने अपने मत दिये हैं —

  • चाणक्य : विद्वानों के अनुसार वह ऋषि चणक के पुत्र थे इसलिये चाणक्य कहलाये। परन्तु एक अन्य मतानुसार ऋषि चणक उनके पिता नहीं गुरु थे। परन्तु यह तथ्य सर्वविदित है कि उनके प्रारम्भिक गुरु ऋषि चणक ही थे।
  • कौटिल्य : इस नाम के पीछे भी एक अवधारणा है। विद्वानों के अनुसार वे अपनी वक्र और कुटिल नीति में पारंगत थे। अपनी ‘कुटिल’ नीतियों का प्रयोग करके उन्होंने अपने योग्य और प्रिय शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य की सहायता से नन्द वंश का समूल नाश करके अखण्ड भारत का निर्माण करने में योग दिया। इसलिये वे कौटिल्य कहलाये। अतः चाणक्य को कौटिल्य उनके ‘कुटिल व्यवहार’ के कारण यह नाम मिला।

कौटिल्य के नाम के सम्बन्ध में विद्वानों के बीच मतभेद पाया जाता है। कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ के प्रथम अनुवादक डॉ० शामशास्त्री ने कौटिल्य नाम का प्रयोग किया है। कौटिल्य नाम की प्रामाणिकता को सिद्ध करने के लिये डॉ० शामशास्त्री ने विष्णु पुराण का हवाला दिया है जिसमें कहा गया है—

तान्नदान् कौटल्यो ब्राह्मणस्समुद्धरिष्यति।

विवाद यहीं समाप्त नहीं होता कौन सा नाम सही है? नाम के साथ-साथ वर्तनी को लेकर भी विवाद है।

इस सम्बन्ध में एक विवाद और उत्पन्न हुआ है और वह है ‘कौटिल्य’ और ‘कौटल्य’ का। गणपति शास्त्री ने ‘कौटिल्य’ के स्थान पर ‘कौटल्य’ को अधिक प्रामाणिक माना है। उनके अनुसार कुटल गोत्र होने के कारण कौटल्य नाम सही और संगत प्रतीत होता है। कामन्दकीय नीतिशास्त्र के अन्तर्गत कहा गया है—

कौटल्य इति गोत्रनिबन्धना विष्णु गुप्तस्य संज्ञा।

सांबशिव शास्त्री ने कहा है कि गणपति शास्त्री ने सम्भवतः कौटिल्य को प्राचीन संत कुटल का वंशज मानकर कौटल्य नाम का प्रयोग किया है, परन्तु इस बात का कहीं कोई प्रमाण नहीं मिलता है कि कौटिल्य संत कुटल के वंश और गोत्र के थे। ‘कौटिल्य’ और ‘कौटल्य’ नाम का विवाद और भी कई विद्वानों ने उठाया है।

वी० ए० रामास्वामी ने गणपतिशास्त्री के कथन का समर्थन किया है। आधुनिक विद्वानों ने दोनों नामों का प्रयोग किया है। पाश्चात्य लेखकों ने कौटिल्य नाम का ही प्रयोग किया है।

भारत में विद्वानों ने दोनों नामों का प्रयोग किया है, बल्कि ज्यादातर कौटिल्य नाम का ही प्रयोग किया है। इस सम्बन्ध में राधाकांत का कथन भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उसने अपनी रचना शब्दकल्पद्रुम में कहा है —

अस्तु कौटल्य इति वा कौटिल्य इति या चाणक्यस्य गोत्रनामधेयम्।

कौटिल्य के और भी कई नामों का उल्लेख किया गया है। जिसमें चाणक्य नाम प्रसिद्ध है। कौटिल्य को चाणक्य के नाम से पुकारने वाले कई विद्वानों का मत है कि चणक निषाद का पुत्र होने के कारण यह चाणक्य कहलाये। दूसरी ओर कुछ विद्वानों के कथनानुसार उसका जन्म पंजाब के चणक क्षेत्र के निषाद बस्ती में हुआ था जो वर्तमान समय में चंडीगढ़ के मल्लाह नामक स्थान से सूचित किया जाता है, इसलिये उन्हेंचाणक्य कहा गया है, यद्यपि इस सम्बन्ध में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता है। बस एक बात स्पष्ट है कि कौटिल्य और चाणक्य एक ही व्यक्ति है।

शिक्षा-दीक्षा और तक्षशिला का आचार्य बनना

ब्राह्मण तथा बौद्ध ग्रन्थों से उसके जीवन के विषय में जो सूचना मिलती है उससे स्पष्ट होता है कि वह तक्षशिला के ब्राह्मण परिवार में उत्पन्न हुए थे। वे बाल्यकाल से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। आरम्भिक शिक्षा उन्होंने ऋषि चणक से ग्रहण की थी। उन दिनों तक्षशिला भारतवर्ष में शिक्षा का केन्द्र था। उन्होंने वेद, दर्शन व अन्याय लौकिक विषयों में शिक्षा ग्रहण की। तत्पश्चात् वह तक्षशिला में ही शिक्षण का कार्य करने लगे।

इस तरह वह वेदों तथा शास्त्रों का ज्ञाता थे और तक्षशिला के शिक्षा केन्द्र के प्रमुख आचार्य थे। परन्तु वे स्वभाव से अत्यन्त रूढ़िवादी तथा क्रोधी थे। पुराणों में उन्हें ‘द्विजर्षभ’ ( श्रेष्ठ ब्राह्मण ) कहा गया है।

कहा जाता है कि एक बार नन्द राजा धननन्द ने अपनी यज्ञशाला में उन्हें अपमानित किया जिससे क्रोध में आकर उन्होंने नन्द वंश को समूल नष्ट कर डालने की प्रतिज्ञा कर डाली और चन्द्रगुप्त मौर्य को अपना अस्त्र बनाकर उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की।

जब चन्द्रगुप्त मौर्य भारत का एकछत्र सम्राट बने तो कौटिल्य प्रधानमन्त्री तथा प्रधान पुरोहित के पद पर आसीन हुए। जैन ग्रन्थों से पता चलता है कि चन्द्रगुप्त की मृत्यु के बाद बिन्दुसार के समय में भी चाणक्य कुछ काल तक प्रधानमन्त्री बने रहे। बाद में उसने शासन कार्य त्याग कर सन्यास ग्रहण कर लिया तथा वन से तपस्या करते हुये उन्होंने अपने जीवन के अन्तिम दिन व्यतीत किये। वे राजनीतिशास्त्र के प्रकाण्ड पंडित थे और उसने राजशासन के ऊपर ‘अर्थशास्त्र’ नामक अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की। अर्थशास्त्र हिन्दू राजशासन के ऊपर प्राचीनतम् उपलब्ध रचना है।

चन्द्रगुप्त मौर्य से भेंट और नंदवंश का उन्मूलन

आचार्य चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य की भेंट जिसके परिणामस्वरूप नन्दवंश के समूल उन्मूलन से सम्बन्धित कई प्रकार के मत हैं –

  • पाटलिपुत्र के नंद वंश के राजा धनानंद के यहाँ आचार्य चाणक्य एक अनुरोध लेकर गये थे। आचार्य ने अखण्ड भारत की बात की और कहा कि वह पौरव राष्ट्र को यवनों से मुक्त करायें। परन्तु धनानंद ने नकार दिया क्योंकि पौरव राष्ट्र के राजा की हत्या धनानंद ने यवनों से मिलकर षड्यंत्र के तहत करवायी थी। जब यह बात आचार्य को खुद धनानंद ने बोला तब क्रोधित होकर आचार्य ने यह प्रतिज्ञा की कि जब तक मैं नंदों का नाश न कर लूँगा तब तक अपनी शिखा नहीं बाँधूंगा। उन्हीं दिनों राजकुमार चंद्रगुप्त राज्य से निकाले गये थे। चंद्रगुप्त ने चाणक्य से मिलकर राजा पर्वतक की सेना लेकर पाटलिपुत्र पर चढ़ाई की और नंदों को युद्ध में परास्त करके मार डाला।
  • कहीं लिखा है कि चाणक्य ने महानन्द के यहाँ निर्माल्य भेजा जिसका स्पर्श करते ही महानंद और उसके पुत्र मर गये। कहीं विषकन्या भेजने की बात लिखी है।
  • कहा जाता है कि पुष्पपुर में नन्दराज ने एक भुक्तिशाला ( भोजनालय ) बनवायी थी जिसमें ब्राह्मणों को भोजनदान दिया जाता था। चाणक्य भी वहाँ पहुँचे तथा प्रमुख ब्राह्मण के आसन पर बैठ गये। नन्दराज प्रमुख ब्राह्मण के आसन पर एक कुरूप ब्राह्मण को देखकर क्रुद्ध हुए एवं उन्हें आसन से उठा दिया। चाणक्य इस अपमान को सहन नहीं कर सके तथा नन्दवंश के विनाश की प्रतिज्ञा लेकर वहाँ से प्रस्थान कर गये।
  • मुद्राराक्षस में कहा गया है कि राजा धनानन्द ने भरे दरबार में चाणक्य को उसके उस सम्मानित पद से हटा दिया जो उसे राजसभा में दिया गया था। इस पर चाणक्य ने शपथ ली कि “वह उसके परिवार तथा वंश को निर्मूल करके नन्द से बदला लेंगे।” भ्रमण के दौरान आचार्य चाणक्य की चन्द्रगुप्त मौर्य से भेंट हुई। चन्द्रगुप्त एवं चाणक्य के उद्देश्य समान थे। अतः उन्होंने नन्दवंश के उन्मूलन की योजना बनायी।
  • मुद्राराक्षस नाटक के अनुसार नंदों का नाश करने पर भी महानंद के मंत्री राक्षस के कौशल और नीति के कारण चंद्रगुप्त को मगध का सिंहासन प्राप्त करने में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अंत में चाणक्य ने अपने नीतिबल से राक्षस को प्रसन्न किया और चंद्रगुप्त का मंत्री बनाया। बौद्ध ग्रंथो में भी कुछ इसी प्रकार का विवरण मिलता है, हाँ ‘महानंद’ के स्थान पर ‘धनानन्द’ शब्द मिलता है।

आचार्य चाणक्य के अस्तित्व पर प्रश्न

कई विद्वानों ने यह कहा है कि कौटिल्य ने कहीं भी अपनी रचना में मौर्यवंश या अपने मंत्रित्व के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा है, परन्तु अधिकांश स्रोतों ने इस तथ्य की पुष्टि होती है। ‘अर्थशास्त्र’ में कौटिल्य ने जिस विजिगीषु राजा का विवरण प्रस्तुत किया है, वह निश्चित रूप से चन्द्रगुप्त मौर्य के लिये ही सम्बोधित है।

इन विद्वानों में मुख्यतः पाश्चात्य विद्वान आते हैं जिन्होंने आचार्य कौटिल्य के अस्तित्व पर ही प्रश्नवाचक चिह्न लगाया है। विन्टरनित्ज, जॉलीऔर कीथ के मतानुसार कौटिल्य नाम प्रतीकात्मक है, जो कूटनीति का प्रतीक है। ‘पतंजलि’ कृत महाभाष्य में कौटिल्य का प्रसंग नहीं आने के कारण उनके मतों का समर्थन मिला है। जॉली ने तो यहाँ तक कह डाला है कि ‘अर्थशास्त्र’ किसी कौटिल्य नामक व्यक्ति की कृति नहीं है। यह किसी अन्य आचार्य द्वारा रचित ग्रंथ है।

डॉ० शामशास्त्री और गणपतिशास्त्री दोनों ने ही पाश्चात्य विचारकों के मत का खण्डन किया है। दोनों का यह निश्चय मत है कि कौटिल्य का पूर्ण अस्तित्व था, भले ही उसके नामों में मतांतर पाया जाता हो। वस्तुतः इन तीनों पाश्चात्य विद्वानों के द्वारा कौटिल्य के अस्तित्व को नकारने के लिये जो बिंदु उठाये गये हैं, वे अनर्गल एवं महत्त्वहीन हैं।

पाश्चात्य विद्वानों का यह कहना है कि कौटिल्य ने इस बात का कहीं उल्लेख नहीं किया है कि वह चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में अमात्य या मंत्री थे, इसलिये उन्हें अर्थशास्त्र का लेखक नहीं माना जा सकता है। यह बचकाना तर्क है। कौटिल्य के कई सन्दर्भों से यह स्पष्ट हो चुका है कि उन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्य की सहायता से नंदवंश का नाश किया था और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी।

चाणक्य को ‘अर्थशास्त्र’ का रचनाकार नहीं मानने के पीछे का तर्क

इस सम्बन्ध में ऐसे विद्वानों की अच्छी-खासी संख्या है जो यह मानते हैं कि कौटिल्य ‘अर्थशास्त्र’ के रचनाकार नहीं थे। ऐसे विद्वानों में पाश्चात्य विद्वानों की संख्या अधिक है। स्टेन, जॉली, विंटरनित्ज व कीथ इस प्रकार के विचार के प्रतिपादक हैं।

  • Arthashashtra of Kautilya – J. Jolly
  • A History Of Indian Literature — Maurice Winternitz

भारतीय विद्वान भण्डारकर ने भी इसका समर्थन किया है। भण्डारकर ने कहा है कि पतंजलि ने महाभाष्य में कौटिल्य का उल्लेख नहीं किया है। ‘अर्थशास्त्र’ के रचयिता के रूप में कौटिल्य को नहीं मान्यता देनेवालों ने अपने मत के समर्थन में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये हैं —

(१) ‘अर्थशास्त्र’ में मौर्य साम्राज्य या पाटलिपुत्र का कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता है। यदि चन्द्रगुप्त के मंत्री कौटिल्य अर्थशास्त्र के रचनाकार होते तो अर्थशास्त्र में उनका कहीं-न-कहीं कुछ जिक्र अवश्य करते।

(२) इस सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि ‘अर्थशास्त्र’ की विषय-वस्तु जिस प्रकार की है, उससे यह नहीं प्रतीत होता है कि इसका रचनाकार कोई व्यावहारिक राजनीतिज्ञ होगा। निःसन्देह किसी शास्त्रीय पंडित ने ही इसकी रचना की होगी।

(३) चन्द्रगुप्त मौर्य का मंत्री कौटिल्य यदि ‘अर्थशास्त्र’ का रचनाकार होते तो उसके सूत्र एवं उक्तियाँ बड़े राज्यों के सम्बन्ध में होते, परन्तु ‘अर्थशास्त्र’ के उद्धरण एवं उक्तियाँ लघु एवं मध्यम राज्यों के लिये सम्बोधित हैं। अतः स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र के रचनाकार कौटिल्य नहीं थे। डॉ० बेनी प्रसाद के अनुसार ‘अर्थशास्त्र’ में जिस आकार या स्वरूप के राज्य का जिक्र किया गया है, निःसन्देह वह मौर्य, कलिंग या आंध्र साम्राज्य के आधार से मेल नहीं खाता है।

(४) विंटरनित्स ने कहा है कि मेगस्थनीज ने, जो लम्बे समय तक चन्द्रगुप्त के दरबार में रहे और उन्होंने अपनी पुस्तक इंडिका में चन्द्रगुप्त मौर्य की राजसभा के सम्बन्ध में बहुत कुछ लिखा है, परन्तु कौटिल्य के बारे में कुछ नहीं लिखा है और न ही उसकी ‘पुस्तक’ में ‘अर्थशास्त्र’ की कहीं कोई चर्चा की है। यदि ‘अर्थशास्त्र’ जैसे विख्यात शास्त्र का लेखक कौटिल्य चन्द्रगुप्त का मंत्री होता तो मेगस्थनीज की ‘इंडिका’ में उनका उल्लेख अवश्य किया जाता।

(५) मेगस्थनीज और कौटिल्य के कई विवरणों में मेल नहीं खाते। उदाहरणार्थ मेगस्थनीज के अनुसार उस समय भारतीय रासायनिक प्रक्रिया से अवगत नहीं थे, भारतवासियों को केवल पाँच धातुओं की जानकारी थी, जबकि अर्थशास्त्र में इन सभी का वर्णन मिलता है। इसके अतिरिक्त प्रशासकीय संरचना, उद्योग-व्यवस्था, वित्त व्यवस्था आदि के सम्बन्ध में भी मेगस्थनीज और ‘अर्थशास्त्र’ के लेखक चन्द्रगुप्त मौर्य का मंत्री कौटिल्य नहीं हो सकते हैं।

चाणक्य को ही ‘अर्थशास्त्र’ का रचनाकार मानने के पीछे का तर्क

पुस्तक की समाप्ति पर स्पष्ट रूप से लिखा गया है —

“प्राय: भाष्यकारों का शास्त्रों के अर्थ में परस्पर मतभेद देखकर विष्णुगुप्त ने स्वयं ही सूत्रों को लिखा और स्वयं ही उनका भाष्य भी किया। ” ( १५ / १ )

साथ ही यह भी लिखा गया है —

“इस शास्त्र ( अर्थशास्त्र ) का प्रणयन उसने किया है, जिसने अपने क्रोध द्वारा नन्दों के राज्य को नष्ट करके शास्त्र, शस्त्र और भूमि का उद्धार किया।” ( १५ / १ )

विष्णु पुराण में इस घटना की चर्चा इस तरह की गई है —

“महापदम-नन्द नाम का एक राजा था। उसके नौ पुत्रों ने सौ वर्षों तक राज्य किया। उन नन्दों को कौटिल्य नाम के ब्राह्मण ने मार दिया। उनकी मृत्यु के बाद मौर्यों ने पृथ्वी पर राज्य किया और कौटिल्य ने स्वयं प्रथम चन्द्रगुप्त का राज्याभिषेक किया। चन्द्रगुप्त का पुत्र बिन्दुसार हुआ और बिन्दुसार का पुत्र अशोकवर्धन हुआ।” ( ४ / २४ )

‘नीतिसार’ के कर्ता कामन्दक ने भी घटना की पुष्टि करते हुए लिखा है –

“इन्द्र के समान शक्तिशाली आचार्य विष्णुगुप्त ने अकेले ही वज्र-सदृश अपनी मन्त्र-शक्ति द्वारा पर्वत-तुल्य महाराज नन्द का नाश कर दिया और उसके स्थान पर मनुष्यों में चन्द्रमा के समान चन्द्रगुप्त को पृथ्वी के शासन पर अधिष्ठित किया।”

इन उद्धरणों से स्पष्ट है कि विष्णुगुप्त और कौटिल्य एक ही व्यक्ति थे। ‘अर्थशास्त्र’ में ही द्वितीय अधिकरण के दशम अध्याय के अन्त में पुस्तक के रचयिता का नाम ‘कौटिल्य बताया गया है —

“सब शास्त्रों का अनुशीलन करके और उनका प्रयोग भी जान करके कौटिल्य ने राजा (चन्द्रगुप्त) के लिये इस शासन-विधि (अर्थशास्त्र) का निर्माण किया है।” ( २ / १०)

पुस्तक के आरम्भ में ‘कौटिल्येन कृतं शास्त्रम्‘ तथा प्रत्येक अध्याय के अन्त में ‘इति कौटिलीयेऽर्थशास्त्रे‘ लिखकर ग्रन्थकार ने अपने ‘कौटिल्य’नाम को अधिक विख्यात किया है। जहाँ-जहाँ अन्य आचार्यों के मत का प्रतिपादन किया है, अन्त में ‘इति कौटिल्य’ अर्थात् कौटिल्य का मत है – इस तरह कहकर कौटिल्य नाम के लिये अपना अधिक पक्षपात प्रदर्शित किया है।

परन्तु यह सर्वथा निर्विवाद है कि विष्णुगुप्त तथा कौटिल्य अभिन्न व्यक्ति थे। उत्तरकालीन कवि दण्डी ने इन्हें आचार्य विष्णुगुप्त नाम से यदि कहा है, तो बाणभट्ट ने इन्हें ही कौटिल्य नाम से पुकारा है। दोनों का कथन है कि इस आचार्य ने ‘दण्डनीति’ अथवा ‘अर्थशास्त्र’ की रचना की।

पंचतन्त्र में इसी आचार्य का नाम चाणक्य दिया गया है, जो अर्थशास्त्र के रचयिता है। कवि विशाखदत्त कृत सुप्रसिद्ध नाटक ‘मुद्राराक्षस’ में चाणक्य को कभी कौटिल्य तथा कभी विष्णुगुप्त नाम से सम्बोधित किया गया है।

‘अर्थशास्त्र’ की रचना ‘शासन-विधि’ के रूप में प्रथम मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त के लिये की गयी। अतः इसकी रचना का काल वही मानना उचित है, जो सम्राट चन्द्रगुप्त का शासनकाल है। पुरातत्त्ववेत्ता विद्वानों ने यह काल ३१२ ई०पू० से २९८ ई०पू० तक निश्चित किया है।

आचार्य चाणक्य का राष्ट्रप्रेम

कौटिल्य के बारे में यह कहा जाता है कि वह बड़े ही स्वाभिमानी एवं राष्ट्रप्रेमी व्यक्ति थे। एक किंवदंती के अनुसार एक बार मगध के राजा महानंद ने श्राद्ध के अवसर पर कौटिल्य को अपमानित किया था, जबकि तथ्यों से उजागर होता है कि धनानंद की प्रजा विरोधी नीतियों के कारण ब्राह्मण चणक, जो कि विष्णुगुप्त (चाणक्य) के पिता थे, द्वारा विरोध करने पर उन्हें कारागर में बंदी बनाकर उनके, परिवार को देश निकाला दे दिया गया था। तथापि राष्ट्र हित में चाणक्य ने धनानंद से सीमान्त देशों के लिये सैनिक सहायता के लिये विनती की, जिससे बाहरी आततायी भारतीय जन का अशुभ न कर सकें। परन्तु मदांध धनानंद ने उनका अपमान कर उन्हें राजमहल से निकाल दिया। कौटिल्य ने क्रोध के वशीभूत होकर अपनी शिखा खोलकर यह प्रतिज्ञा की थी कि जब तक वह नंदवंश का समूल नाश नहीं कर देंगे तब तक वह अपनी शिखा नहीं बाँधेंगे। कौटिल्य के व्यावहारिक राजनीति में प्रवेश करने का यह भी एक बड़ा कारण था।

नंदवंश के विनाश के बाद उन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्य को राजगद्दी पर बैठने में हर सम्भव सहायता की थी। चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा गद्दी पर आसीन होने के बाद उसे पराक्रमी बनाने और मौर्य साम्राज्य का विस्तार करने के उद्देश्य से उन्होंने व्यावहारिक राजनीति में प्रवेश किया। वह चन्द्रगुप्त मौर्य के मंत्री भी बने।

सादगी से परिपूर्ण जीवन

अति विद्वान और मौर्य साम्राज्य का महामंत्री होते हुए भी चाणक्य का जीवन सादगी से परिपूर्ण था। उनका जीवन ‘सादा जीवन और उच्च विचार’ का पर्याय था। उन्होंने अपने मंत्रित्वकाल में अत्यधिक सादगी भरा जीवन बिताया। वह एक छोटे-से मकान में रहते थे और कहा जाता है कि उनके मकान की दीवारों पर गोबर के उपले थोपे रहते थे।

चाणक्य की मान्यता थी कि राजा या मंत्री अपने चरित्र और ऊँचे आदर्शों के द्वारा लोगों के सामने एक प्रतिमान प्रस्तुत कर सकता है। उन्होंने सदैव मर्यादाओं का पालन किया और कर्मठता की जिंदगी बितायी। कहा जाता है कि बाद में उन्होंने मंत्री पद त्यागकर वानप्रस्थ जीवन व्यतीत किया था। वस्तुतः उन्हें धन, यश और पद का कोई लोभ नहीं था। कुल मिलाकर वह एक वितरागी, तपस्वी, कर्मठ और मर्यादाओं का पालन करनेवाले व्यक्ति थे, जिनका जीवन आज भी अनुकरणीय है।

राजनीति में प्रवेश

भारत पर सिकन्दर के आक्रमण के कारण छोटे-छोटे राज्यों की पराजय से अभिभूत होकर कौटिल्य ने व्यावहारिक राजनीति में प्रवेश करने का संकल्प किया। उनकी सर्वोपरि इच्छा थी भारत को एक गौरवशाली और विशाल राज्य (अखण्ड भारत) रूप में देखना। निश्चित रूप से चन्द्रगुप्त मौर्य उनकी इच्छा के केन्द्र बिन्दु थे। आचार्य कौटिल्य को एक ओर पारंगत और दूरदर्शी राजनीतिज्ञ के रूप में मौर्य साम्राज्य का संस्थापक और संरक्षक माना जाता है, तो दूसरी ओर उन्हें संस्कृति साहित्य के इतिहास में अपनी अतुलनीय एवं अद्भुत कृति के कारण अपने विषय का एकमात्र विद्वान होने का गौरव प्राप्त है। कौटिल्य की विद्वता, निपुणता और दूरदर्शिता की प्रशंसा भारत के शास्त्रों, काव्यों तथा अन्य ग्रंथों में परिव्याप्त है। कौटिल्य द्वारा नंदवंश का विनाश और मौर्यवंश की स्थापना से सम्बन्धित कथा विष्णु पुराण में आती है।

कुशल राजनीतिज्ञ

एक प्रकाण्ड विद्वान तथा एक गम्भीर चिंतक के रूप में कौटिल्य तो विख्यात है ही, एक व्यावहारिक एवं चतुर राजनीतिज्ञ के रूप में भी उन्हें ख्याति मिली है। नंदवंश के विनाश तथा मगध साम्राज्य की स्थापना एवं विस्तार में उनका ऐतिहासिक योगदान है। सालाटोर के अनुसार प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन में कौटिल्य का सर्वोपरि स्थान है। कौटिल्य ने राजनीति को नैतिकता से पृथक कर एक स्वतंत्र शास्त्र के रूप में अध्ययन करने का प्रयास किया है। जैसा कि कहा जाता है चाणक्य एक महान आचार्य थे।

आचार्य चाणक्य की कृतियाँ

कौटिल्य की कृतियों के सम्बन्ध में भी विद्वानों के बीच मतभेद पाया जाता है। कौटिल्य की कितनी कृतियाँ हैं, इस सम्बन्ध में कोई निश्चित सूचना उपलब्ध नहीं है। कौटिल्य की सबसे महत्त्वपूर्ण कृति ‘अर्थशास्त्र’ की चर्चा सर्वत्र मिलती है, किन्तु अन्य रचनाओं के सम्बन्ध में कुछ विशेष उल्लेख नहीं मिलता है।

कामंदक ने अपने ‘नीतिसार’ नामक ग्रंथ में लिखा है कि विष्णुगुप्त चाणक्य ने अपने बुद्धिबल से अर्थशास्त्र रूपी महोदधि को मथकर नीतिशास्त्र रूपी अमृत निकाला।

चाणक्य का ‘अर्थशास्त्र’ संस्कृत में राजनीति विषय पर एक विलक्षण ग्रंथ है। इनके नीति के श्लोक तो घर-घर में प्रचलित हैं। पीछे से लोगों ने इनके नीति ग्रंथों से घटा-बढ़ाकर वृद्धचाणक्य, लघुचाणक्य, बोधिचाणक्य आदि कई नीतिग्रंथ संकलित कर लिये। चाणक्य सब विषयों के विद्वान थे। ‘विष्णुगुप्त सिद्धांत’ नामक इनका एक ज्योतिष पर ग्रंथ भी मिलता है। कहते हैं, आयुर्वेद पर भी इनका लिखा ‘वैद्यजीवन’ नाम का एक ग्रंथ है।

न्याय भाष्यकार वात्स्यायन और चाणक्य को कोई-कोई विद्वान एक ही मानते हैं, इस भ्रम का मूलकारण हेमचंद का यह श्लोक है :

वात्स्यायन मल्लनागः, कौटिल्यश्चणकात्मजः। द्रामिलः पक्षिलस्वामी विष्णु गुप्तोऽगुलश्च सः॥

यों धातुकौटिल्या और राजनीति नामक रचनाओं के साथ कौटिल्य का नाम जोड़ा गया है। कुछ विद्वानों का यह मानना है कि अर्थशास्त्र के अलावा यदि कौटिल्य की अन्य रचनाओं का उल्लेख मिलता है, तो वह कौटिल्य की सूक्तियों और कथनों का संकलन हो सकता है।

मौर्य इतिहास के स्रोत ( Sources for the History of the Mauryas )

मौर्य राजवंश की उत्पत्ति या मौर्य किस वर्ण या जाति के थे?

चन्द्रगुप्त मौर्य ( ३२२/३२१ — २९८ ई०पू० ) : जीवन व कार्य

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