विदेशी आक्रमण का प्रभाव या मध्य एशिया से सम्पर्क का प्रभाव (२०० ई०पू० – ३०० ई०)
भूमिका मौर्योत्तर काल (२०० ई०पू० – ३०० ई०) की एक प्रमुख विशेषता है ‘विदेशी आक्रमण’ जनित भारतीय सभ्यता पर पड़ने वाले...
Read Moreकुषाण-सिक्के (Kushan-Coins)
भूमिका यद्यपि पश्चिमोत्तर भारत में स्वर्ण सिक्कों का प्रचलन यवन राजाओं ने करवाया तथापि इन्हें नियमित एवं पूर्णरूपेण प्रचलित करने का...
Read Moreकौशाम्बी कला शैली
भूमिका मथुरा कला, गान्धार कला इत्यादि की ही तरह ‘कौशाम्बी कला’ शैली के पृथक अस्तित्व की पहचान की गयी है। कुछ...
Read Moreसारनाथ कला शैली; कुषाण काल
भूमिका वाराणसी जनपद में स्थित सारनाथ के दो अन्य नाम ‘ऋषिपत्तन’ और ‘मृगदाव’ भी मिलता है। यहीं पर महात्मा बुद्ध ने...
Read Moreमथुरा कला शैली
भूमिका कुषाण काल में मथुरा भी कला का प्रमुख केन्द्र था जहाँ अनेक स्तूपों, विहारों एवं मूर्तियों का निर्माण करवाया गया।...
Read Moreकुषाणकालीन कला एवं स्थापत्य
भूमिका कुषाणकालीन कला एवं स्थापत्य ने अपनी उपलब्धियों से चमत्कृत कर दिया। अपने पूर्ववर्ती समय की ही तरह कला और स्थापत्य...
Read Moreगान्धार कला शैली
भूमिका ई० पू० प्रथम शताब्दी के मध्य से उत्तर-पश्चिम में गान्धार में कला की एक विशेष शैली का विकास हुआ जिसे...
Read Moreकनिष्क विद्वानों का संरक्षक और उसके समय साहित्यिक प्रगति
भूमिका कनिष्क विद्वानों का संरक्षक का संरक्षक था। उसका शासन-काल साहित्य की उन्नति के लिये भी प्रसिद्ध है। वह विद्या का...
Read Moreबौद्ध धर्म और कनिष्क
भूमिका कुषाण साम्राज्य में मध्य एशिया से पूर्वी भारत तक समाहित था। इस विस्तृत प्रदेश में बौद्ध धर्म का पर्याप्त प्रचार-प्रसार...
Read Moreकुषाणकालीन आर्थिक समृद्धि या कुषाणकाल में व्यापार-वाणिज्य की प्रगति
भूमिका कुषाणकालीन आर्थिक समृद्धि भारतीय इतिहास में अपना विशेष स्थान रखती है। भारत पर लगभग दो शताब्दियों तक कुषाणों का दीर्घकालिक...
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