कुषाण-शासनतंत्र (The Kushan Polity)

भूमिका

कुषाण-शासनतंत्र मौर्यकालीन व्यवस्था से भिन्न थी। इसमें मौर्ययुगीन केंद्रीकरण की कठोर प्रवृत्ति के स्थान पर सत्ता का विकेंद्रीकरण ही स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। कुषाणों की प्रशासनिक व्यवस्था का ज्ञान प्राप्त करने के लिये हमारे पास पर्याप्त सामग्री उपलब्ध नहीं है, फिरभी अभिलेखीय साक्ष्यों और सिक्कों के आधार पर प्रशासनिक व्यवस्था की कुछ मुख्य विशेषताओं का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

राजा की स्थिति

कुषाण-शासनतंत्र में शासन का केन्द्र राजा होता था। कुषाणों ने गौरवपूर्ण एवं आडंबरयुक्त उपाधियाँ धारण कीं। वे अपने-आपको महाराज, राजाधिराज, ‘शाओनानोशाओ’ (शाहानुशाही), महीश्वर, सर्वलोकेश्वर जैसी उपाधियाँ धारण करते थे। इतिहासकारों ने इन भारी-भरकम उपाधियों का यह अर्थ निकाला है कि कुषाणों के अधीन छोटे-छोटे शासक थे, जो कुषाण शासकों की सार्वभौमिकता स्वीकार करते थे। प्रो० रामशरण शर्मा के मतानुसार ये उपाधियाँ सामंती व्यवस्था की ओर संकेत करती हैं। इनसे यह भी ज्ञात होता है कि कुषाणों के अंतर्गत सत्ता का विकेंद्रीकरण हो चुका था।

गौरवपूर्ण उपाधियाँ धारण करने के अतिरिक्त कुषाण-शासकों ने राजत्व के दैवी गुणों पर विशेष बल दिया। उनका ऐसा करना इसलिये आवश्यक था कि कुषाण विदेशी थे। उन्हें भारतीय जनता का समर्थन प्राप्त नहीं था। इसलिये यह समर्थन प्राप्त करने हेतु उन्होंने अपने-आपको ‘देवपुत्र’ के रूप में प्रतिष्ठित करना आरम्भ कर किया।

मृत राजा की पूजा करने की प्रथा चलाकर ‘देवकुल’ की स्थापना कर उन्होंने स्वयं को देवता के रूप में प्रस्तुत किया। इतना ही नहीं, अपने दिव्य स्वरूप को प्रकट करने के लिए कुषाण-राजाओं ने अपने सिक्कों पर अपनी प्रतिमाओं को प्रभामंडल, बादलों या लपटों से विभूषित रूप में अंकित करवाया।

इन कार्यों द्वारा उन्हें अपनी प्रजा का समर्थन प्राप्त करने में सुविधा हुई। कुषाण-शासक भी धर्मशास्त्रों में वर्णित व्यवस्था के अनुकूल ही शासन करते थे। वे प्रजावत्सल थे। कुषाण शासकों और उनके सामंतों (शाही) के बीच कैसा सम्बन्ध था, इस बात को दिखाने का कोई निश्चित प्रमाण उपलब्ध नहीं है; परंतु ये शाही राजा की सैनिक सेवा (सहायता) अवश्य ही करते थे।

कुषाण-शासनतंत्र

क्षत्रपीय व्यवस्था

कुषाणों के प्रांतीय संगठन के विषय में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। प्रो० बैजनाथ पुरी के अनुसार कुषाण साम्राज्य ५ या ७ प्रांतों में विभक्त था। इनके अलावा भी साम्राज्य में अनेक अधीनस्थ क्षेत्र थे जो कुषाणों की अधिसत्ता स्वीकार करते थे, परन्तु उनके प्रत्यक्ष प्रशासनिक नियंत्रण से बाहर थे। ऐसी इकाइयों एवं प्रांतों पर क्षत्रप शासन करते थे।

कुषाणों ने एक ही क्षेत्र में दो शासक को नियुक्त करने की विचित्र प्रथा चलायी। कनिष्क के सारनाथ-अभिलेख से ज्ञात होता है कि वहाँ वनस्पर और खरपल्लन नामक दो क्षत्रप एक ही साथ शासन करते थे। स्पष्टतः ऐसा एक-दूसरे के कार्यों पर नियंत्रण रखने के लिए किया गया था; परंतु बाद में खरपल्लन को महाक्षत्रप बना दिया गया और उसके अधीन वनस्पर को रखा गया।

इन क्षत्रपों की बहाली दो प्रकार से होती थी। कभी-कभी विजित शासकों या सरदारों को क्षत्रप के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया जाता था, तो कभी उन्हें प्रत्यक्ष रूप से नियुक्त भी किया जाता था। साधारणतया राजपरिवार के सदस्यों को ही इन पदों पर नियुक्ति की जाती थी। क्षत्रप सैनिक और नागरिक दोनों ही कार्य करते थे।

पदाधिकारी

अभिलेखों में क्षत्रपों और महाक्षत्रपों के अतिरिक्त दंडनायक और महादंडनायक नामक अधिकारियों का भी उल्लेख मिलता है। क्षत्रप इन्हीं की सहायता से शासन करते थे। ये अर्ध सैनिक अधिकारी थे, जिनके जिम्मे विजित प्रदेशों में प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित करने का कार्य सौंपा गया था। इनसे सैनिक कार्य भी लिये जाते थे।

सेना एवं राजस्व

कुषाण अभिलेखों से सैनिक संगठन या राजस्व व्यवस्था के विषय में पूरी जानकारी नहीं मिलती। दंडनायक और महादंडनायक सैनिक अधिकारी के भी कार्य करते थे। कुषाणों की सेना में घोड़ों का महत्त्व बहुत अधिक था। इसी तरह इस समय में धनुर्धरों का भी महत्त्व बढ़ गया; परंतु सैन्य संगठन, उसका विवरण अथवा उसकी संख्या निश्चित करना कठिन है। यह अनुमान तो लगाया ही जा सकता है कि कुषाणों के पास एक विशाल और कुशल सेना अवश्य रही होगी, जिसके बल पर वे इतना बड़ा साम्राज्य स्थापित कर सके।

कुषाणों की राजस्व-व्यवस्था की निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है और न ही यह प्रमाणित करने का कोई अभिलेखीय प्रमाण है कि कुषाणों ने भी सातवाहनों की तरह भूमिदान किये।

प्रशासनिक इकाइयाँ

समुद्रगुप्त की प्रयाग-प्रशस्ति में कुषाणों की प्रशासनिक इकाइयों के रूप में विषय तथा भुक्ति का उल्लेख किया गया है, लेकिन कुषाणकालीन अभिलेखों में इनका उल्लेख नहीं प्राप्त होता है। नगर प्रशासन में सम्भवतया श्रेणी और निगम महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते थे। ग्राम सबसे छोटी प्रशासनिक इकाई थी, जिसका प्रधान ग्रामिक होता था। मथुरा से प्राप्त वासुदेव के एक अभिलेख में इसका उल्लेख मिलता है। उसका मुख्य काम राजस्व की वसूली था। पद्रपाल गाँव की सामूहिक परती (ऊसर) जमीन की देखभाल करता था।

निष्कर्ष

इस तरह कुषाणों ने भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था में कुछ नये तत्त्वों का समावेश किया। राजा के दैवी गुणों पर इतना अधिक बल पहले कभी नहीं दिया गया था। द्वैध शासन की प्रणाली भी इसी समय विकसित हुई।

प्रो० रामशरण शर्मा के अनुसार, “सबसे महत्त्व की बात तो यह जान पड़ती है कि कुषाण-राजनीतिक ढाँचे की मुख्य विशेषता, अर्थात श्रेणीबद्ध सामंती व्यवस्था, को समुद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य-संगठन के एक स्तंभ के रूप में अपना लिया।”

FAQ

कुषाण-शासनतंत्र की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करें।

(Discus the salient features of the Kushana Polity.)

कुषाणों के शासनतंत्र को जो मौर्यों से भिन्न बनाती है वह है —  विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्ति। कुषाण-शासनतंत्र की प्रमुख विशेषताएँ अधोलिखित हैं।

  • राजा
    • शासन का केंद्र राजा पर था।
    • वह गौरवपूर्ण उपाधियों का धारण करता था।
    • राजत्व में देवत्व का आरोपण देखने को मिलता है।
      • इसके लिये वे स्वयं को ‘देवपुत्र’ के रूप में प्रतिष्ठित करते थे।
      • मृत राजा के सम्मान में ‘देवकुल’ का निर्माण कराते थे।
  • क्षत्रपीय व्यवस्था
    • राज्य को कई प्रांतों में विभाजित किया गया था, जिन पर क्षत्रप शासन किया जाता था।
    • एक साथ दो क्षत्रपों नियुक्ति (द्वैध शासन) की प्रणाली देखने को मिलती है।
  • पदाधिकारी
    • दंडनायक और महादंडनायक नामक पदाधिकारियों के नाम मिलते हैं।
  • सेना एवं राजस्व
    • सेना में घोड़ों का महत्त्व था।
    • सेना में धनुर्धरों का महत्त्वपूर्ण स्थान था।
    • राजस्व की व्यवस्था के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।
  • प्रशासनिक इकाइयाँ
    • ग्राम से लेकर श्रेणी और निगम तक कई प्रशासनिक इकाइयाँ थीं, जो राजस्व की वसूली और प्रशासन के कामों को संभालती थीं।
    • ग्राम सबसे छोटी इकाई था जिसका प्रधान ग्रामिक था।

निष्कर्ष: कुषाणों ने भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था में नए तत्त्व जोड़े; जैसे — विकेन्द्रीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति, इस विकेन्द्रीकरण को नियंत्रित करने के लिये ‘राजत्व में दैवी गुणों का आरोपण’, ‘मृत राजा के लिये ‘देवकुल’ का निर्माण, ‘द्वैध शासन’ की प्रणाली, सेना में अश्व व धनुर्धरों का महत्त्व इत्यादि।

कुषाण राजवंश (The Kushan Dynasty) या कुषाण साम्राज्य (The Kushan Empire)

 

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