पह्लव या पार्थियन (The Pahalavas or the Parthians)

भूमिका

पह्लवों तथा शकों का इतिहास परस्पर उलझा हुआ है। इन दोनों के इतिहास को स्पष्ट रूप से पृथक करना एक दुष्कर कार्य है। पह्लव मूल रूप से पार्थिया (ईरान) के निवासी थे।

पार्थिया, बल्ख (बैक्ट्रिया) के पश्चिम की ओर कैस्पियन सागर के दक्षिण-पूर्व में स्थित सेल्युकसी साम्राज्य का सीमावर्ती प्रान्त था। तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य (२५० ई०पू०) बैक्ट्रिया के साथ ही पार्थिया के यवन क्षत्रप ने भी अपनी स्वतन्त्रता घोषित कर दी। परन्तु शीघ्र ही पूर्व की ओर से आने वाले कुछ व्यक्तियों ने यवन शासन की हत्या कर दी तथा उन्होंने जिस साम्राज्य की नींव डाली वह इतिहास में पार्थियन नाम से जाना गया।

पार्थियन साम्राज्य का राजनीतिक इतिहास

पह्लव राज्य की स्थापना

पार्थियन साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक “मिश्रदात प्रथम” (१७१-१३० ई०पू०) था। पूर्व में उसने जेड्रोसिया, हेरात तथा सीस्तान की विजय की थी।

मिश्रदात प्रथम के पश्चात् “फ्रात द्वितीय” (१३८-१२८ ई०पू०) तथा उसके बाद “आर्तवान” (१२८-१२३ ई०पू०) शासक बना। ये दोनों शकों के विरुद्ध युद्ध में मारे गये।

मिश्रदात द्वितीय (१२३-८८ ई०पू०) इस वंश का सर्वाधिक प्रतापी शासक था। उसने शकों को हराकर सीस्तान और कान्धार पर अधिकार कर लिया।

मिश्रदात द्वितीय के पश्चात् भी पार्थियनों का सीस्तान, आरकोसिया, एरिया तथा काबुल घाटी में अधिकार बना रहा। इन प्रदेशों से प्राप्त हुये सिक्कों से अनेक राजाओं के नाम ज्ञात होते हैं। पहले वे पार्थियन नरेशों के गर्वनर थे, परन्तु बाद में स्वतन्त्र हो गये तथा इण्डो-यूनानियों को परास्त कर उन्होंने भारत के कुछ भागों पर अधिकार भी कर लिया।

भारत पर आक्रमण करने वाले पार्थियन सरदार मूलरुप से सीस्तान तथा आरकोसिया से आये थे। उन्हीं को भारतीय ग्रन्थों में “पह्लव” कहा गया है। उनमें निम्नलिखित शासकों के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं :

वोनोनीज (Vonones) 

वोनोनाज शक राजा मेउस (२० ई०पू० से २० ई०) का समकालीन था अर्थात् जिस समय शक शासक मेउस गन्धार में शासन कर रहा था उसी के लगभग वोनोनीज, सीस्तान, आरकोसिया तथा एरिया का राजा था।

वोनोनीज अपने सिक्कों पर ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि धारण करता है। उसके कुछ सिक्के यवन नरेश यूक्रेटाइडीज के सिक्कों के अनुकरण पर ढाले गये हैं। इस प्रकार के सिक्कों पर यूनानी तथा खरोष्ठी दोनों ही लिपियों मे लेख प्राप्त होते हैं। सिक्कों के पृष्ठभाग पर उसके भाई श्पलहोर तथा भतीजे श्पलगडम (स्पलगद्म) के नाम मिलते हैं। सम्भवतः ये दोनों उसके प्रान्तीय उपराजा या शासक थे।

श्पेलिरस (Spalyris)

वोनोनीज के पश्चात् श्पेलिरस शासक बना। उसके कुछ सिक्कों के मुखभाग पर यूनानी लिपि में श्पेलिरस का नाम तथा पृष्ठभाग पर शक नरेश एजेज का नाम अंकित है। इससे ऐसा निष्कर्ष निकलता है कि संभवतः शक नरेश उसकी अधीनता में उपराजा (वायसराय) था। इससे पार्थियनों का तक्षशिला पर अधिकार सूचित होता है।

गोण्डोफर्नीज (Gondophernes)

गोण्डोफर्नीज पह्लव वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा हुआ। उसके शासन काल का एक अभिलेख तख्ते-बाही (मरदान जिला, खैबर पख्तूनख्वा प्रांत, पाकिस्तान) से प्राप्त हुआ जिस पर १०३ की तिथि दी गयी है। यदि इसे विक्रम संवत् की तिथि स्वीकार की जाय तो ऐसा निष्कर्ष निकलता है कि वह १०३ – ५७ = ४६ ई० में शासन कर रहा था। यह तिथि उसके राज्य-काल के २६वें वर्ष की हैं। अतः उसने २० ई० (४६ – २६) में शासन करना प्रारम्भ किया था।

गोण्डोफर्नीज के सिक्के पंजाब, सिन्ध, कान्धार, सीस्तान तथा काबुल घाटी में पाये गये हैं। इससे उसके साम्राज्य के विस्तार की सूचना मिलती है। ऐसा प्रतीत होता है कि शकों को हराकर उसने पंजाब तथा सिन्ध पर अधिकार कर लिया था। तक्षशिला उसकी राजधानी बनी।

अस्पवर्मन् पहले शक नरेश ‘एजेज द्वितीय’ की अधीनता में क्षत्रप था। वह अब गोण्डोफर्नीज की अधीनता स्वीकार करने लगा।

ईसाई अनुश्रुतियों में उसे ‘सम्पूर्ण भारत का राजा’ बताया गया है जिसके शासन-काल में ईसाई धर्म का प्रचारक ‘सन्त थामस’ (St. Thomas) भारत आया था। उसी के प्रभाव में गोण्डोफर्नीज ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था। लेकिन इस अनुश्रुति की प्रामाणिकता को इतिहासकार संदिग्ध मानते हैं।

तख्तेबाही अभिलेख

पह्लव : गोण्डोफर्नीज का तख्तेबाही अभिलेख

विस्तृत विवरण के लिये देखें — गोण्डोफर्नीज का तख्तेबाही अभिलेख 

गोण्डोफर्नीज के उत्तराधिकारी

गोण्डोफर्नीज के उत्तराधिकारियों के सम्बन्ध में हमें निश्चित रूप से कुछ भी ज्ञात नहीं है। सिक्कों से हमको दो शासकों के नाम मिलते हैं — एब्डगेसस (अब्दगसिस) तथा पकोरिस।

ये दोनों निर्बल शासक सिद्ध हुए। इनके बाद कुषाणों के भारत पर आक्रमण हुए। कुषाणों ने पह्लवों को हराकर कर यहाँ अपना शासन स्थापित कर लिया।

परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि पश्चिमी भारत में द्वितीय शताब्दी ईस्वी तक पह्लव की सत्ता किसी न किसी रूप से बनी रही। सातवाहन नरेश वाशिष्ठीपुत्र पुलुमावि के नासिक गुहालेख में किसी पह्लव राजा को उखाड़ फेंकने का श्रेय दिया गया है।

“सक-यवन-पह्लव निसूदनस …” — वाशिष्ठीपुत्र पुलुमावि का नासिक गुहालेख

अर्थात्

[जिन्होंने] शक, यवन और पहवों का विनाश किया था …

इसी तरह महाक्षत्रप रुद्रदामन के गिरनार अभिलेख में सुविशाख नामक पह्लव का उल्लेख हुआ है जो सुराष्ट्र में शासन करता था।

“सुराष्टानां पालनार्थन्नियुक्तेन पह्लवेन कुलैप-पुत्रेणामात्येन सुविशाखेन …” — रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख

अर्थात्

सुराष्ट्र प्रदेश के राज्यपाल के रूप में [ नियुक्त ] पह्लव कुलैप-पुत्र अमात्य सुविशाख ने …

पार्थियन राजाओं के सिक्कों पर ‘ध्रमिय’ (धार्मिक) उपाधि अंकित मिलती है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि शकों के समान वे भी भारतीय संस्कृति से प्रभावित हुए तथा उन्होंने बौद्ध-धर्म ग्रहण कर लिया था।

इस तरह समय के साथ पह्लव भारतीय राजतंत्र व समाज का अभिन्न अंग बन गये या दूसरे शब्दों में उन्होंने पूरी तरह से भारतीय सभ्यता व संस्कृति को अपना लिया।

सातवाहन राजवंश (The Satavahana Dynasty)

हिन्द-यवन या भारतीय-यूनानी या इंडो-बैक्ट्रियन(The Indo-Greeks or Indo-Bactrians)

शक या सीथियन (The Shakas or the Scythians)

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