सातवाहन राजवंश (The Satavahana Dynasty)

भूमिका सातवाहन शासनकाल का भारतीय इतिहास में विशेष स्थान है। प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में विन्ध्यपर्वत के दक्षिण में दो राजनीतिक शक्तियाँ प्रबल हुईं – १. ऊपरी दकन के सातवाहन राजवंश। २. कलिंग के चेदि राजवंश। इनमें से चेदि राजवंश की शक्ति अल्पकालीन थी परन्तु सातवाहन राजवंश का शासनकाल लगभग उतार-चढ़ाव के रूप में किसी […]

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शुंगकालीन संस्कृति

भूमिका मौर्यों के बाद मगध की सत्ता शुंगों के हाथ में आयी। शुंग राजाओं का शासन-काल भारतीय इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। उन्होंने बिखरते मगध साम्राज्य के केन्द्रीय भाग की विदेशियों से रक्षा की तथा मध्य भारत में शान्ति और सुव्यवस्था की स्थापना करके विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्ति को कुछ समय तक रोके रखा।

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कण्व राजवंश (The Kanva Dynasty)

भूमिका मगध के पुनः सत्ता का परिवर्तन हुआ। इस बार एक ब्राह्मण शासक की हत्या करके दूसरे ब्राह्मण ने सत्ता का अपहरण किया था। इसलिये जो मौर्यों पर आक्षेप करके पुष्यमित्र शुंग के कृत्य को सही ठहराने का प्रयास किया जाता रहा है वही तर्क इस संदर्भ में व्यर्थ सिद्ध हो गया। सत्य तो यह

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शुंग राजवंश (The Shunga Dynasty)

भूमिका जिस महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति ने १८४ ईसा पूर्व में अन्तिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या की वह इतिहास में ‘पुष्यमित्र’ के नाम से जाना जाता है। उसने जिस नवीन राजवंश की स्थापना की वह ‘शुंग’ नाम से जाना जाता है। संस्थापक पुष्यमित्र शुंग वर्ण ब्राह्मण राजधानी पाटलिपुत्र भाषा प्राकृत अंतिम शासक वसुदेव शुंग समय १८४

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मौर्यकालीन कला और स्थापत्य

भूमिका कलात्मक दृष्टि से सैंधव सभ्यता और मौर्यकाल के मध्य लगभग १,५०० वर्षों का अंतराल हैं। इस समयान्तराल के कलात्मक अवशेष में निरंतरता नहीं है। महाकाव्यों और बौद्ध साहित्यों में हाथीदाँत, मिट्टी और धातुओं के काम का विवरण मिलता है। परन्तु मौर्यकाल से पूर्व वास्तुकला और मूर्तिकला के अवशेष बहुत कम मिलते हैं। इसका कारण

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मौर्यकालीन शिक्षा व साहित्य (Mauryan Education & Literature)

भूमिका मौर्यकालीन शिक्षा व साहित्य की दृष्टि से भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। सम्राट अशोक के अभिलेख भारतीय उप-महाद्वीप में सर्वत्र मिले हैं जिससे तत्कालीन भाषा व लिपि का ज्ञात मिलता ही साथ ही इनकी ऐतिहासिकता भी निर्विवाद है। साथ ही सूत्र साहित्य, बौद्ध साहित्य, जैन साहित्य के साथ-साथ अर्थशास्त्र व इंडिका जैसी

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मौर्यकालीन धार्मिक दशा (The Mauryan Religious Life)

भूमिका मौर्य काल में अनेकानेक धर्म एवं सम्प्रदायों का सह-अस्तित्व था। मौर्य सम्राटों की धार्मिक विषयों में सहिष्णुता की नीति से विभिन्न मतों एवं सम्प्रदायों के विकास का सुअवसर प्राप्त हुआ। इस समय के मुख्य धर्म एवं सम्प्रदाय वैदिक, बौद्ध, जैन, आजीवक आदि थे।मौर्यकालीन धार्मिक दशा का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है :- वैदिक धर्म

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मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था (The Mauryan Economy)

भूमिका मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था (The Mauryan Economy) का अध्ययन भारतीय इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण है। यह काल कई मायनों में प्रस्थानबिंदु है क्योंकि पहली बार अखिल भारतीय साम्राज्य की स्थापना हुई। आर्थिक गतिविधियों के लिये मौर्य साम्राटों ने कई नियम-विनियम बनाये। उद्योग-धंधे, शिल्पकारों की सुरक्षा, आंतरिक व बाह्य व्यापारिक गतिविधियों की सुरक्षा इत्यादि पर व्यापक विधि-निषेध

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मौर्यकालीन समाज

भूमिका मौर्यकालीन समाज सम्बन्धित जानकारी के अध्ययन के लिये हमारे पास प्रचुर सामग्री है। इसमें से प्रमुख हैं : कौटिल्य का अर्थशास्त्र, मेगस्थनीज कृत इंडिका तथा सम्राट अशोक के अभिलेख। इन प्राथमिक स्रोतों का ठीक से अर्थ लगाया जाये तो पता चलेगा कि वे एक-दूसरे के विरोधी नहीं अपितु पूरक हैं। वर्ण व्यवस्था व जाति

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मौर्य प्रशासन

भूमिका भारतीय उप-महाद्वीप में पहली बार एक अखिल भारतीय साम्राज्य की स्थापना हुई। मगध साम्राज्यवाद अपनी पराकाष्ठा पर पहुँचा। मौर्य-शासकों ने न सिर्फ एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की वरन् इसे स्थायित्व प्रदान करने के लिये एक सुदृढ़ प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना की जो परवर्ती शासन-प्रशासन के लिये आधार बनने वाले थे। मौर्य प्रशासन व्यवस्था

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