कुषाणकालीन कला एवं स्थापत्य

भूमिका कुषाणकालीन कला एवं स्थापत्य ने अपनी उपलब्धियों से चमत्कृत कर दिया। अपने पूर्ववर्ती समय की ही तरह कला और स्थापत्य का आधार मुख्य रूप से बौद्ध धर्म ही रहा।बौद्ध कला का विकास कुषाण राजाओं के संरक्षण में भी अनवरत होता रहा। प्रसिद्ध कुषाण शासक कनिष्क एक महान् निर्माता था। उसके शासन काल में अनेक […]

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गान्धार कला शैली

भूमिका ई० पू० प्रथम शताब्दी के मध्य से उत्तर-पश्चिम में गान्धार में कला की एक विशेष शैली का विकास हुआ जिसे “गान्धार शैली” कहते हैं। इस शैली को यूनानी-बौद्ध शैली भी कहा जाता है। इसका सर्वाधिक विकास कुषाण काल में हुआ। इस काल की विषयवस्तु बौद्ध परम्परा से ली गयी थी परन्तु निर्माण का ढंग

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कनिष्क विद्वानों का संरक्षक और उसके समय साहित्यिक प्रगति

भूमिका कनिष्क विद्वानों का संरक्षक का संरक्षक था। उसका शासन-काल साहित्य की उन्नति के लिये भी प्रसिद्ध है। वह विद्या का उदार संरक्षक था तथा उसके राजसभा में उच्चकोटि के विद्वान् तथा दार्शनिक निवास करते थे। जिनका विवरण अधोलिखित है। अश्वघोष कनिष्क की राजसभा में निवास करने वाले  विद्वानों में अश्वघोष का नाम सर्वप्रमुख है।

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बौद्ध धर्म और कनिष्क

भूमिका कुषाण साम्राज्य में मध्य एशिया से पूर्वी भारत तक समाहित था। इस विस्तृत प्रदेश में बौद्ध धर्म का पर्याप्त प्रचार-प्रसार हुआ। ईसा पूर्व दूसरी शती से ईस्वी सन् दूसरी शती तक की अवधि में भारत के समस्त धार्मिक अवशेषों में बौद्ध धर्म से सम्बन्धित अवशेषों की संख्या सर्वाधिक है। इस समय बहुसंख्यक चैत्यों एवं

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कुषाणकालीन आर्थिक समृद्धि या कुषाणकाल में व्यापार-वाणिज्य की प्रगति

भूमिका कुषाणकालीन आर्थिक समृद्धि भारतीय इतिहास में अपना विशेष स्थान रखती है। भारत पर लगभग दो शताब्दियों तक कुषाणों का दीर्घकालिक शासन बना रहा। आर्थिक दृष्टि से यह सर्वाधिक समृद्धि का काल माना जा सकता है। कुषाणों ने पहली बार एक “अन्तर्राष्ट्रीय साम्राज्य” (International Empire) की स्थापना की थी। इस साम्राज्य के पूर्व में चीन

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कुषाणों का योगदान (Contribution of the Kushanas)

भूमिका मौर्यों के बाद कुषाणों ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। कई अर्थों में यह साम्राज्य  अपने पूर्ववर्ती मौर्य साम्राज्य से भिन्न था। इस साम्राज्य में एक साथ मध्य एशिया व उत्तरी भारत सम्मिलित था। इसके पूर्व में चीन और पश्चिम में  सासानियन और रोमन साम्राज्य स्थित था। लगभग दो शताब्दियों के दीर्धकालीन शासन

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कुषाण-शासनतंत्र (The Kushan Polity)

भूमिका कुषाण-शासनतंत्र मौर्यकालीन व्यवस्था से भिन्न थी। इसमें मौर्ययुगीन केंद्रीकरण की कठोर प्रवृत्ति के स्थान पर सत्ता का विकेंद्रीकरण ही स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। कुषाणों की प्रशासनिक व्यवस्था का ज्ञान प्राप्त करने के लिये हमारे पास पर्याप्त सामग्री उपलब्ध नहीं है, फिरभी अभिलेखीय साक्ष्यों और सिक्कों के आधार पर प्रशासनिक व्यवस्था की कुछ

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कुषाण राजवंश (The Kushan Dynasty) या कुषाण साम्राज्य (The Kushan Empire)

भूमिका मौर्योत्तर काल में पश्चिमोत्तर से विदेशी आक्रमणकारियों का जो सिलसिला प्रारम्भ हुआ उसमें जो क्रम है वह इस प्रकार है – हिन्द-यूनानी, शक, पार्थियन और कुषाण। इस तरह इतिहास के इस काल में सबसे पहले हिन्द-यूनानी और और सबसे बाद में कुषाण। कुषाण जाति को यूची (Yuechis) और तोखानियन (Tocharians) कहा जाता है। इतिहास

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पह्लव या पार्थियन (The Pahalavas or the Parthians)

भूमिका पह्लवों तथा शकों का इतिहास परस्पर उलझा हुआ है। इन दोनों के इतिहास को स्पष्ट रूप से पृथक करना एक दुष्कर कार्य है। पह्लव मूल रूप से पार्थिया (ईरान) के निवासी थे। पार्थिया, बल्ख (बैक्ट्रिया) के पश्चिम की ओर कैस्पियन सागर के दक्षिण-पूर्व में स्थित सेल्युकसी साम्राज्य का सीमावर्ती प्रान्त था। तृतीय शताब्दी ईसा

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शक या सीथियन (The Shakas or the Scythians)

भूमिका मौर्योत्तर काल में यवनों के बाद पश्चिमोत्तर भारत से दूसरे आक्रमणकारी शक थे। शकों ने यवनों से अधिक विस्तृत भारतीय भूभाग पर अपना आधिपत्य स्थापित किया। शकों (Shaka) को सीथियन (Scythian) भी कहते हैं। इतिहास के साधन शकों के प्रारम्भिक इतिहास की जानकारी के लिये हमें मुख्यरूप से ‘चीनी-स्रोतों’ पर निर्भर रहना पड़ता है।

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