कुषाणों का योगदान (Contribution of the Kushanas)

भूमिका

मौर्यों के बाद कुषाणों ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। कई अर्थों में यह साम्राज्य  अपने पूर्ववर्ती मौर्य साम्राज्य से भिन्न था। इस साम्राज्य में एक साथ मध्य एशिया व उत्तरी भारत सम्मिलित था। इसके पूर्व में चीन और पश्चिम में  सासानियन और रोमन साम्राज्य स्थित था। लगभग दो शताब्दियों के दीर्धकालीन शासन ने भारतीय सभ्यता व संस्कृति को गहरे तक प्रभावित किया। कुषाणों का योगदान बहुआयामी है। इसका विवरण अधोलिखित है।

कुषाणों का योगदान

राजनीतिक योगदान

भारत में कुषाण राज्य की स्थापना ने भारतीय इतिहास एवं संस्कृति को गहरे रूप से प्रभावित किया। राजनीतिक और सांस्कृतिक दोनों ही क्षेत्रों में कुषाणों ने अपनी गहरी छाप छोड़ी। मौर्य साम्राज्य के पतन के पश्चात कुषाणों ने फिर से एक बड़ा साम्राज्य स्थापित कर समस्त उत्तरी भारत को एक राजनीतिक सूत्र में संगठित किया।

साम्राज्य की स्थापना के साथ ही उन्होंने सुचारु प्रशासकीय व्यवस्था स्थापित की। सामंती व्यवस्था के आधार पर ही वे इस विशाल साम्राज्य को बिना विशेष परिश्रम के अपने नियंत्रण में रख सके।

कुषाणों ने राजा के पद एवं गौरव को अत्यंत ऊँचा बना दिया। देवपुत्र की उपाधि धारण कर तथा देवकुलों का निर्माण कर कुषाणों ने भारत में राजत्व के दैवी सिद्धांत को प्रभावशाली बना दिया। बाद में इनका विकास गुप्त-सम्राटों ने भी किया। प्रशासन के क्षेत्र में क्षत्रपीय व्यवस्था, द्वैध शासन की परंपरा भी प्रमुख बन गयी।

सांस्कृतिक योगदान

लंबे समय तक भारत में रहने के कारण कुषाणों ने भारतीय सभ्यता को अपना लिया। फलतः उन्हें अन्य विदेशियों की ही तरह ‘द्वितीय श्रेणी के क्षत्रिय’ के रूप में ‘भारतीय समाज में समाविष्ट कर लिया गया।

कुषाण जब भारत आये तो अपने साथ अपनी वेश-भूषा भी लाये; जैसे — लम्बे कूट (Over Coat), पतलून, पगड़ी, कुरती, बूट इत्यादि। कुषाणों के साथ कुछ सैन्य विधियाँ व उपकरण भारत में आये; यथा – घुड़सवारी के लिये लगाम, व जीन और सिर को बचाने के लिये शिरस्त्राण इत्यादि का व्यवहार। इसके साथ ही कुषाणों की सेना में घोड़ों व धनुर्धरों का विशेष महत्त्व था।

कुषाणों ने भारतीय धर्म को भी अपना लिया। कुषाण शासकों के सिक्कों पर ईरानी-यूनानी देवी-देवताओं के अतिरिक्त भारतीय देवी-देवताओं, मुख्यतः बुद्ध और शिव के चित्रण मिलते हैं। कनिष्क, हुविष्क बौद्धधर्म तथा विम कदफिसस और वासुदेव प्रथम शैव मत से अधिक प्रभावित प्रतीत होते हैं तथापि सभी कुषाण शासकों ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनायी। कनिष्क ने बौद्धधर्म के प्रचार-प्रसार के लिये अनेक प्रयास किये। उसके प्रयासों के परिणामस्वरूप मध्य एशिया में महायान बौद्ध शाखा का प्रचार हुआ।

कुषाणों के संरक्षण में गन्धार-कला और मथुरा-कला शैलियाँ भी विकसित हुईं। इन शैलियों में बुद्ध और महावीर की मनोहारी मूर्तियाँ बनायी गयीं। कुषाणों ने अनेक स्तूप एवं चैत्य, मंदिर एवं देवकुल भी बनवाये। इनमें प्रसिद्ध है कनिष्क द्वारा पेशावर में निर्मित स्तूप एवं मथुरा का देवकुल।

कुषाणों ने भाषा और साहित्य को संरक्षण दिया। संस्कृति भाषा और साहित्य भी कुषाणों के प्रयासों से विकसित हुई।

आर्थिक योगदान

कुषाण भारत की आर्थिक प्रगति में भी सहायक सिद्ध हुए। उनके विशाल साम्राज्य से ही होकर उस समय के दो प्रमुख व्यापारिक मार्ग उत्तरापथ और रेशम-मार्ग गुजरते थे। इन मार्गों की सुरक्षा और शांति-व्यवस्था ने व्यापार-वाणिज्य को प्रभावित किया। फलतः भारत का व्यापारिक सम्बन्ध मध्य एशिया एवं भूमध्यसागरीय संसार से बढ़ा।

रोम के साथ व्यापारिक सम्बन्ध भारत के लिये विशेष लाभदायक सिद्ध हुआ। रोम से प्रचुर मात्रा में सोना भारत आने लगा। कुषाणों के अधीन उद्योग एवं शिल्पों का भी विकास हुआ। कुषाणों ने बड़ी संख्या में सोने और ताँबे के सिक्के ढलवाये।

मथुरा से प्राप्त कुषाणकालीन अभिलेखों में अनेकों शिल्पियों का उल्लेख मिलता है; जैसे — मणिकार, सुवर्णकार, लोहार, गंधिक इत्यादि वाणिज्य-व्यापार के विकास ने मौद्रिक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया।

व्यापार-वाणिज्य के विकास ने अनेक व्यापारिक एवं औद्योगिक नगरों को उन्नत अवस्था में ला दिया। पुराने नगर इस समय पहले की अपेक्षा ज्यादा समृद्ध बन गये। मध्य एशिया से गंगाघाटी तक अनेक नये नगरों का भी अभ्युदय हुआ। इस समय के प्रमुख नगरों में तक्षशिला (सिरसुख), पुरुषपुर, मथुरा, श्रावस्ती, कौशांबी, वाराणसी, पाटलिपुत्र, वैशाली इत्यादि का उल्लेख किया जा सकता है। इन स्थलों से कुषाणकालीन भवनों के अवशेष और अन्य सामान मिले हैं।

वस्तुतः कुषाणकाल में नगरों की जितनी अधिक उन्नति हुई, उतनी न तो कुषाणों के पहले कभी हुई थी और न भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना के पूर्व ही। इन नगरों ने भारत की समृद्धि को बढ़ाया। इसलिये प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो० रामशरण शर्मा, कुषाणकाल को ही भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग मानना अधिक उपयुक्त मानते हैं।

FAQ

भारतीय संस्कृति में कुषाणों के योगदान का मूल्यांकन करें।

(Assess the contributions of the Kushanas to Indian culture.)

राजनीतिक योगदान:

  • मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद, कुषाणों ने मध्य एशिया से लेकर उत्तरी भारत को एकजुट करके एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया।
  • उन्होंने सुव्यवस्थित प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की।
  • कुषाण राजव्यवस्था में विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्ति मिलती है।
  • इस विकेन्द्रीकरण के नियंत्रण करने के लिये कुषाणों ने ‘राजत्व में देवत्व का आरोपण’, ‘भारी भरकम उपाधियाँ धरण करना’, ‘मृत राजाओं के लिये देवकुल का निर्माण’ इत्यादि कदम उठाये।
  • कुषाण राजव्यवस्था में क्षत्रपीय प्रणाली, एक ही प्रांत में दो शासकों की सह-नियुक्ति (द्वैध शासन प्रणाली) का प्रयोग भी कुषाणों का राजनीतिक योगदान था।

सांस्कृतिक योगदान:

  • भारतीय संस्कृति व सभ्यता को अपनाकर, कुषाण भारतीय समाज का हिस्सा बन गये।
  • कुषाण अपने साथ जो वेशभूषा, घुड़सवारी का ज्ञान, शस्त्र-संधान, सैन्य ज्ञान लाये वह भारतीय संस्कृति का अंग बन गये।
  • कुषाणों ने बौद्ध धर्म अपनाया और कनिष्क ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया।
  • गन्धार और मथुरा कला शैलियों का विकास कुषाणों के शासनकाल में फली-फूली।
  • संस्कृत भाषा और साहित्य को भी कुषाणों का संरक्षण प्राप्त हुआ।

आर्थिक योगदान:

  • कुषाणों के नियंत्रण में उत्तरापथ और रेशम मार्ग थे। इससे राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा मिला।
  • भारत का रोम के साथ व्यापारिक सम्बन्ध दृढ़ हुआ, जिससे सोने का आयात बढ़ा।
  • उद्योगों और शिल्पों का विकास हुआ, जिसके प्रमाण मथुरा के अभिलेखों में मिलते हैं।
  • मौद्रिक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये सोने और तांबे के सिक्के ढाले गये।
  • व्यापार-वाणिज्य के विकास से अनेक नगरों का उदय हुआ, जैसे तक्षशिला, पुरुषपुर, मथुरा, आदि।

निष्कर्ष:

कुषाणों ने राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक क्षेत्रों में भारत को महत्वपूर्ण योगदान दिया।

कुषाण राजवंश (The Kushan Dynasty) या कुषाण साम्राज्य (The Kushan Empire)

कुषाण-शासनतंत्र (The Kushan Polity)

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