धर्म और दर्शन

भारतीय धर्म और दर्शन में ईश्वर की अवधारणा या ईश्वर-विचार ( The concept of God in Indian Religion and Philosophy )

परिचय भारतीय दर्शन पर धर्म की अमिट छाप है इसलिए ईश्वर का महत्वपूर्ण स्थान है। सामान्यतः ईश्वर में विश्वास को धर्म कहा जाता है। धर्म-प्रभावित भारतीय दर्शन में ईश्वर की चर्चा पर्याप्त रूप से मिलती है। चाहे वे ईश्वरवादी दर्शन हों या अनीश्वरवादी अपनी-अपनी बातों को प्रमाणित करने हेतु वे अनेकानेक युक्तियों का प्रयोग करते […]

भारतीय धर्म और दर्शन में ईश्वर की अवधारणा या ईश्वर-विचार ( The concept of God in Indian Religion and Philosophy ) Read More »

भारतीय दर्शनों की सामान्य विशेषताएँ

भूमिका भारतीय दर्शनों को सामान्यतः दो वर्गों में रखा गया है — आस्तिक और नास्तिक। चार्वाक, बौद्ध और जैन दर्शन को छोड़कर शेष छः दर्शन आस्तिक वर्ग में रखे गये हैं। इन दर्शनों में परस्पर विभिन्नताएँ होते हुए भी सर्व-निष्ठता पायी जाती है। कुछ सिद्धान्तों की प्रामाणिकता को सभी मान्यता देते हैं। एक जैसी भौगोलिक

भारतीय दर्शनों की सामान्य विशेषताएँ Read More »

भक्ति आन्दोलन

भक्ति आन्दोलन का उद्भव भूमिका ऐतिहासिक दृष्टि से भक्ति-आन्दोलन के विकास को ‘दो चरणों’ में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम चरण के अन्तर्गत दक्षिण भारत में भक्ति के आरम्भिक प्रादुर्भाव से लेकर १३वीं शताब्दी तक के काल को रखा जा सकता है दूसरे चरण में १३वीं से १६वीं शताब्दी तक के काल को रख

भक्ति आन्दोलन Read More »

वल्लभाचार्य का शुद्धाद्वैतवाद

परिचय शंकर के अद्वैतवाद का भक्ति-मार्ग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। भक्ति के लिए आराधक ( भक्त ) और आराध्य में द्वैत आवश्यक है जबकि शंकर के अनुसार पारमार्थिक दृष्टि से दोनों एक ही हैं। शंकर व्यावहारिक स्तर पर भक्ति को स्वीकार करते हैं परन्तु ज्ञान-मार्ग के सहायक के रूप में। शंकर का स्पष्ट मत है

वल्लभाचार्य का शुद्धाद्वैतवाद Read More »

रामानुजाचार्य का विशिष्टाद्वैतवाद

परिचय शंकराचार्य के अद्वैतवाद का भक्ति-मार्ग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। भक्ति के लिए आराधक ( भक्त ) और आराध्य में द्वैत आवश्यक है, जबकि शंकर के अनुसार पारमार्थिक दृष्टि से दोनों एक ही हैं। शंकराचार्य व्यावहारिक स्तर पर तो भक्ति को स्वीकार करते हैं, परन्तु ज्ञान-मार्ग के सहायक के रूप में। शंकर का स्पष्ट मत

रामानुजाचार्य का विशिष्टाद्वैतवाद Read More »

शंकराचार्य और उनका दर्शन

शंकराचार्य और उनका दर्शन परिचय भारतीय दर्शन में जिस तत्त्व चिंतन की शुरुआत ऋग्वैदिक काल से हुई थी वह उपनिषदों में अपने पूर्णता को प्राप्त हुई। उपनिषद्, गीता और ब्रह्मसूत्र प्रस्थानत्रयी कहलाते हैं। इनकी व्याख्या हर दार्शनिक अपनी-२ तरह से करता है। किसी को इसमें कर्म-मार्ग सूझती है तो किसी को भक्ति-मार्ग और किसी को

शंकराचार्य और उनका दर्शन Read More »

श्रीमद्भगवद्गीता

श्रीमद्भगवद्गीता परिचय श्रीमद्भगवद्गीता या भगवद्गीता या गीता का भारतीय विचारधारा के इतिहास में लोकप्रियता की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है। यह हिन्दुओं का सबसे पवित्र और सम्मानित ग्रंथ है। यह महाभारत के छठवें पर्व अर्थात् भीष्मपर्व का भाग है। इसमें महाभारत युद्ध के समय कर्त्तव्यविमुख अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिये गये उपदेशों का

श्रीमद्भगवद्गीता Read More »

वेदान्त दर्शन

वेदान्त दर्शन परिचय वेदान्त का शाब्दिक अर्थ है — वेद का अन्त। वेदों का ज्ञानमार्गी अंश ( उपनिषद ) वेदान्त कहा जाता है। उपनिषद्, गीता और ब्रह्मसूत्र इस दर्शन के आधार ग्रंथ हैं। इसके आधार पर वेदान्त की विभिन्न शाखाओं का विकास हुआ। सामान्यतः इसकी दो शाखायें मानी जाती हैं :— (१) अद्वैतवाद — इसमें

वेदान्त दर्शन Read More »

चार्वाक दर्शन या लोकायत दर्शन

भूमिका चार्वाक दर्शन के संस्थापक वृहस्पति माने जाते हैं। इस दर्शन को लोकायत दर्शन भी कहते हैं। लोकायत का अर्थ है सामान्य लोगों से प्राप्त विचार। इसमें लोक के साथ गहरे लगाव को महत्व दिया गया है और परलोक में अविश्वास व्यक्त किया गया है। इसमें मोक्ष, आत्मा, परमात्मा को महत्वहीन बताया गया है। भारतीय दर्शनों की एक विशेषता है

चार्वाक दर्शन या लोकायत दर्शन Read More »

मीमांसा दर्शन

परिचय मीमांसा दर्शन के प्रणेता महर्षि जैमिनि हैं। यह छः आस्तिक दर्शनों में से एक है। यह विचारधारा न सिर्फ वेदों की प्रामाणिकता को स्वीकार करती है, बल्कि वेदों पर आधारित भी है। मीमांसा शब्द का शब्दकोशीय अर्थ है – गंभीर मनन और विचार। आँग्ल भाषा में इसका अर्थ है – investigation, consideration. अर्थात् किसी विषय

मीमांसा दर्शन Read More »

Index
Scroll to Top