कुमारगुप्त प्रथम ‘महेन्द्रादित्य’ (≈ ४१५-४५५ ईस्वी)

भूमिका  चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ के बाद कुमारगुप्त प्रथम ‘महेन्द्रादित्य’ गुप्त-साम्राज्य की गद्दी पर बैठा। वह चन्द्रगुप्त की पत्नी ध्रुवदेवी से उत्पन्न उसका सबसे बड़ा पुत्र था।१ उसका गोविन्दगुप्त नामक एक छोटा भाई भी था जो कुमारगुप्त के समय में बसाढ़ (वैशाली) का राज्यपाल था। कुछ विद्वानों का विचार है कि गोविन्दगुप्त तथा कुमारगुप्त प्रथम के […]

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चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ (३७५ ई० – ४१५ ई०)

भूमिका समुद्रगुप्त के पश्चात् चन्द्रगुप्त द्वितीय शासक बने। चन्द्रगुप्त द्वितीय की माता का नाम दत्तदेवी था और वे समुद्रगुप्त की प्रधान महिषी थीं। चन्द्रगुप्त द्वितीय गुप्त राजवंश का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं शक्तिशाली शासक सिद्ध हुए। उसके शासनकाल में गुप्त-साम्राज्य अपनी पराकाष्ठा पर जा पहुँचा। सामान्य परिचय नाम चन्द्रगुप्त द्वितीय उपाधि अप्रतिरथ, चक्रविक्रम, देवगुप्त, देवराज, देवश्री,

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अंकाई-तंकाई (Ankai-Tankai) | अणकिटणकी

भूमिका अंकाई-तंकाई या अंकाई-टंकाई (Ankai-Tankai) का एक अन्य नाम अणकिटणकी है। यह स्थल जैन धर्म से सम्बन्धित है। यहाँ पर ७ गुफाएँ एक पहाड़ी में काटकर बनायी गयी। यहाँ पर आमने-सामने युगल गिरि-दुर्ग स्थिति है, जिनके नाम अंकाई दुर्ग और तंकाई दुर्ग है। सामान्य परिचय प्राचीन नाम अणकिटणकी वर्तमान नाम अंकाई-तंकाई (अंकाई-टंकाई) तालुका येओला (Yeola)

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अंकलेश्वर (Ankleshwar)

सामान्य परिचय देश भारत राज्य गुजरात जनपद भरूच उल्लेख महाभारत में भौगोलिक स्थिति अंकलेश्वर भरूच से लगभग ८ किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। प्राचीन समय में नर्मदा के तट पर यह स्थित था परन्तु वर्तमान में यह नदी लगभग ५ किलोमीटर उत्तर में प्रवाहित हो रही है। प्राचीन उल्लेख यह कथा हमें महाभारत के आदि

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रामगुप्त (३७५ ई०)

भूमिका प्रारम्भ में विद्वानों का ऐसा विचार था कि समुद्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात् चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य गुप्त साम्राज्य की गद्दी पर बैठे। परन्तु बाद में कुछ ऐसे साहित्यिक एवं पुरातात्त्विक प्रमाण प्रकाश में आये जिनके फलस्वरूप विद्वानों को अपनी धारणा बदलनी पड़ी तथा अब यह स्वीकार कर लिया गया कि समुद्रगुप्त तथा चन्द्रगुप्त द्वितीय

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समुद्रगुप्त ‘परक्रमांक’ (३३५-३७५ ईस्वी)

भूमिका समुद्रगुप्त न केवल गुप्त राजवंश के वरन् सम्पूर्ण प्राचीन भारतीय इतिहास के महानतम शासकों में स्थान रखता है। समुद्रगुप्त एक कुशल सेनानायक, प्रशासक, और विद्वानों के संरक्षक थे। निःसन्देह उसका काल राजनीतिक तथा सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से गुप्त साम्राज्य के उत्कर्ष का काल माना जा सकता है। प्रयाग प्रशस्ति में उसका नाम “महाराजाधिराज

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चंद्रगुप्त प्रथम (लगभग ३१९-३२० से ३३५ ईसवी)

भूमिका महाराज घटोत्कच का पुत्र और उत्तराधिकारी चंद्रगुप्त प्रथम हुआ। वह प्रारम्भिक गुप्त शासकों में सर्वाधिक शक्तिशाली था। राज्यारोहण के पश्चात् उसने अपनी महत्ता सूचित करने के लिये अपने पूर्वजों के विपरीत ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि ग्रहण की। प्रयाग प्रशस्ति में उसे “महाराजाधिराज श्री चंद्रगुप्त” () कहा गया है। संक्षिप्त परिचय नाम चंद्रगुप्त प्रथम (चन्द्रगुप्त प्रथम)

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घटोत्कच | महाराज श्री घटोत्कच (३०० – ३१९ ई०)

भूमिका श्रीगुप्त का पुत्र और उत्तराधिकारी घटोत्कच था। इसने सम्भवतः ३०० से ३१९-२० ई० तक राज्य किया। इसके शासनकाल की किसी भी घटना की जानकारी नहीं मिलती। इसने भी “महाराज” की उपाधि धारण की। प्रयाग प्रशस्ति में इन्हें “महाराज श्री घटोत्कच” () कहा गया है। संक्षिप्त परिचय घटोत्कच — द्वितीय गुप्त शासक नाम घटोत्कच पिता

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श्रीगुप्त (२७५ – ३०० ईसवी)

भूमिका गुप्त राजवंश की स्थापना लगभग २७५ ईसवी में महाराज श्रीगुप्त () द्वारा की गयी थी। हमें यह निश्चित रूप से पता ज्ञात नहीं है कि उनका नाम श्रीगुप्त था अथवा केवल गुप्त। संक्षिप्त परिचय नाम श्रीगुप्त शासनकाल २७५ से ३०० ईसवी स्रोत उसके उत्तराधिकारियों के अभिलेख; जैसे— प्रयाग प्रशस्ति, भीतरी अभिलेख, प्रभावती गुप्ता का

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गुप्तवंश : प्रथम शासक | गुप्त-राजवंश का प्रथम शासक

गुप्तवंश : प्रथम शासक पर इतिहासकारों में कुछ विवाद है। इस सम्बन्ध में दो मत हैं— स्कन्दगुप्त के सुपिया (रीवा) के लेख में भी गुप्तों की वंशावली घटोत्कच के समय से ही प्रारम्भ होती है। इस आधार पर कुछ विद्वानों का सुझाव है कि वस्तुतः घटोत्कच ही इस वंश का संस्थापक था तथा गुप्त या

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