आभीर राजवंश (Abhira dynasty)

भूमिका आभीर राजवंश (Abhira dynasty) ने पश्चिमी दक्कन पर शासन किया। यह राजवंश सातवाहनों के ध्वंशावशेष पर स्थापित हुआ। गुप्त-पूर्व काल में आभीरों ने एक स्वतंत्र राज्य महाराष्ट्र, कोंकण, गुजरात और दक्षिणी मध्य प्रदेश के हिस्सों में था। उद्भव यद्यपि प्राचीन भारतीय साहित्य में आभीरों का उल्लेख मिलता है, तथापि उनकी उत्पत्ति अस्पष्ट है। महाभारत […]

आभीर राजवंश (Abhira dynasty) Read More »

मघ राजवंश

भूमिका नागों की राजधानी प‌द्मावती (ग्वालियर) के दक्षिण-पूर्व में मघों का राज्य स्थित था। पहले उसका राज्य केवल बघेलखण्ड (रीवाँ मंडल) तक ही सीमित था। मघवंश के राजाओं का क्रमबद्ध इतिहास तथा उनके काल की घटनाओं के विषय में हमारा ज्ञान अत्यल्प है। कौशाम्बी में २५० ई० तक मघ राजवंश ने शासन किया। विवरण इस

मघ राजवंश Read More »

बड़वा का मौखरि वंश (Maukhari Dynasty of Barwa)

भूमिका मौखरियों की उत्पत्ति तथा प्रारम्भिक इतिहास अभी तक अंधकारपूर्ण है। ऐसा प्रतीत होता है कि मौखरि लोग पूर्व-गुप्तकाल की राजनीतिक शक्तियों में से  एक थे। प्राचीन भारत में कई मौखरि कुल हुए जो विभिन्न भागों में शासन करते थे। इन्हीं में से एक शाखा बड़वा में शासन करती थी इसलिए उन्हें ‘बड़वा का मौखरि

बड़वा का मौखरि वंश (Maukhari Dynasty of Barwa) Read More »

नागवंश

भूमिका नागवंश का इतिहास रूपकों के रूप में हमारे धार्मिक साहित्यों में भरा पड़ा है जिसका सावधानी से प्रयोग करके हम इतिहास का निर्माण कर सकते हैं। पौराणिक आख्यान एक प्राचीन ऋषि थे – कश्यप। इन्हीं कश्यप ऋषि के नाम पर भारतवर्ष के एक राज्य का नाम कश्मीर पड़ा है। कश्यप ऋषि की दो पत्नियाँ

नागवंश Read More »

मौर्योत्तर काल : एक सर्वेक्षण (२०० ई०पू० – ३०० ई०)

भूमिका मौर्य साम्राज्य के पतन (१८४ ई० पूर्व) से लेकर गुप्त साम्राज्य के उदय (३१९ ई०) का समय सामान्यतया मौर्योत्तर काल के रूप में जाना जाता है। लगभग ५०० वर्ष का यह काल राजनीतिक विशृंखलता का युग था। इन पाँच शताब्दियों में क्षेत्रीय और छोटे राज्यों का उदय हुआ। मौर्य साम्राज्य के ध्वंसावशेषों पर गंगा

मौर्योत्तर काल : एक सर्वेक्षण (२०० ई०पू० – ३०० ई०) Read More »

संगमकाल (The Sangam Age)

भूमिका सुदूर दक्षिण भारत का इतिहास संगमकाल (The Sangam Age) से प्रारम्भ होता है। सुदूर दक्षिण में संगम संस्कृति और सभ्यता का विकास कृष्णा और तुंगभद्रा नदी के दक्षिण में हुआ। ‘संगम’ संस्कृत भाषा का शब्द है। ‘संगम’ शब्द का अर्थ है— मेल, मिलाप, मिलन और संगम। भारतीय उपमहाद्वीप के सुदूर दक्षिण में मौर्योत्तर काल

संगमकाल (The Sangam Age) Read More »

संगमकालीन धर्म, आस्था व विश्वास: संक्षिप्त विश्लेषण (Religion, faith and belief of the Sangam age: Brief analysis)

भूमिका संगम साहित्य के अनुशीलन से ज्ञात होता है कि सुदूर दक्षिण में स्थानीय धर्म का उत्तर भारतीय धार्मिक मान्यताओं से सुन्दर समन्वय स्थापित हुआ। संगमकालीन धर्म, आस्था व विश्वास का संक्षिप्त विश्लेषण अधोलिखित है। उत्तर भारतीय प्रभाव और पारस्परिक समन्वय धर्म और नैतिकता के क्षेत्र में हम उत्तर भारतीय प्रभाव स्पष्ट रूप देखते हैं;

संगमकालीन धर्म, आस्था व विश्वास: संक्षिप्त विश्लेषण (Religion, faith and belief of the Sangam age: Brief analysis) Read More »

संगमकालीन आर्थिक दशा

भूमिका संगमकालीन आर्थिक दशा का ज्ञान संगम साहित्य के साथ-साथ क्लासिकल लेखकों और पुरातत्त्व से होती है। संगमकालीन तमिल क्षेत्र आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध था। इसकी समृद्धि के प्रमुख आधार कृषि तथा व्यापार-वाणिज्य थे। कृषि संगम साहित्य से ज्ञात होता है कि दक्षिण भारत की भूमि अत्यन्त उपजाऊ थी जिसमें अनाज की बड़ी अच्छी

संगमकालीन आर्थिक दशा Read More »

संगमकालीन सामाजिक दशा

भूमिका संगम साहित्य के अध्ययन से हम तत्कालीन तमिल क्षेत्र की सामाजिक दशा के विषय में अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। इस समय तक सुदूर दक्षिण का आर्यीकरण हो चुका था। यह साहित्य हमारे सामने आर्य तथा द्रविड़ संस्कृतियों के समन्वय का चित्र उपस्थित करता है अथवा दूसरे शब्दों में संगमकाल की एक सामाजिक

संगमकालीन सामाजिक दशा Read More »

संगमकालीन शासन व्यवस्था (Sangam Age Governance System)

भूमिका मौर्योत्तर काल में सुदूर दक्षिण में संगमकालीन तीन प्रमुख राज्यों का विवरण हमें मिलता है जिनकी सभ्यता और संस्कृति उत्तर भारत से प्रभावित होते हुए भी भिन्न थी| इस दृष्टि से संगमकालीन शासन व्यवस्था भी भिन्न नहीं थी। राज्यों का ‘कुल-संघ’ होना, उत्तराधिकार युद्ध, शासन में ब्राह्मणों की नियुक्ति, चक्रवर्ती अवधारणा आदि संगमकालीन शासन

संगमकालीन शासन व्यवस्था (Sangam Age Governance System) Read More »

Scroll to Top