मेगस्थनीज और उनकी इंडिका ( Megasthenes and His Indika )

भूमिका

मेगस्थनीज ( Megasthenes) यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर के राजदूत के रूप में पाटलिपुत्र आये और लगभग ५ या ६ वर्षों ( ३०४ ई०पू० से २९९ ई०पू० ) तक यहाँ रहे थे। इसके पूर्व मेगस्थनीज आरकोसिया के क्षेत्र के राजसभा में सेल्युकस ( Seleucus ) के राजदूत रह चुके थे। उसने चंद्रगुप्त मौर्य के विषय में तथा तात्कालिक राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक अवस्था का आँखों-देखा विवरण अपनी पुस्तक इंडिका (Indika) में प्रस्तुत किया है। इंडिका मूलतः यूनानी भाषा में लिखी गयी थी।

मूल ‘इंडिका’ अनुपलब्ध है

मेगस्थनीज ने बहुत समय तक मौर्य राजसभा में निवास किया। भारत में रहकर उसने जो कुछ भी देखा-सुना उसे उसने ‘इण्डिका’ (Indica) नामक अपनी पुस्तक में लिपिबद्ध किया है।

दुर्भाग्यवश ‘इण्डिका’ ग्रन्थ अपने मूल रूप में आज उपलब्ध नहीं है तथापि उसके अंश उद्धरण स्वरूप में बाद के अनेक यूनानी रोमीय (Greco- Roman) लेखकों; यथा – एरियन ( Arrian ), स्ट्रैबो ( Strabo ), प्लिनी ( Pliny ), प्लूटार्क ( Plutarch ), जस्टिन ( Justine ), डियोडोरस ( Diodorus ) आदि की रचनाओं में मिलते हैं। यद्यपि स्ट्रैबो ने मेगस्थनीज के वृतान्त को पुर्णतया असत्य एवं अविश्वसनीय कहा है

कालान्तर में सन् १८४६ ई० में डॉ० स्वानबेग ने इन उद्धरणों को संग्रहित करके प्रकाशित किया। १८९१ ई० में मैक्रिण्डल महोदय ने इसका अँग्रेजी भाषा में अनुवाद किया।

यह बात ध्यान देने की है कि ‘इंडिका’ नाम से ही एक अन्य यूनानी लेखक एरियन ने भी एक पुस्तक लिखी है।

मेगस्थनीज की इण्डिका के वर्ण्य विषय

मेगस्थनीज की ‘इंडिका’ की कुछ महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक बातें

कहीं-कहीं पर तो मेगास्थनीज कृत ‘इंडिका’ एवं कौटिल्य कृत ‘अर्थशास्त्र’ में समानता भी मिलती है। यह सच है कि इंडिका में बहुधा अतिशयोक्तिपूर्ण बातें लिखी गयी हैं, फिर भी चंद्रगुप्त मौर्य के प्रशासन पर इस ग्रंथ से अच्छा प्रकाश पड़ता है।

  • इंडिका में चन्द्रगुप्त के लिये ‘सैंड्रोकोटस’ नाम प्रयुक्त किया गया है।
  • इंडिका के अनुसार सम्राट अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा का विशेष ध्यान रखता था। ‘सैंड्रोकोटस’ की सुरक्षा सशस्त्र अंगरक्षिकाएँ करती थीं।
  • इंडिका में सैंड्रोकोटस की राजधानी पोलिब्रोथा ( पाटलिपुत्र ) का विवरण मिलता है। वह चन्द्रगुप्त की राजधानी पाटलिपुत्र की काफी प्रशंसा की है। इसके अनुसार पोलिब्रोथा गंगा और सोन नदियों के संगम पर स्थित थी। यह पूर्वी भारत का सबसे बड़ा नगर था। सैन्ड्रोकोटस ( चन्द्रगुप्त मौर्य ) का राजप्रासाद लकड़ी का बना था और सुरक्षा के लिये इसके चारों ओर गहरी खाईं थी। वह लिखता है कि गंगा तथा सोन नदियों के संगम पर स्थित यह पूर्वी भारत का सबसे बड़ा नगर था। यह ८० स्टेडिया (१६ किलोमीटर) लम्बा तथा १५ स्टेडिया (३ किलोमीटर) चौड़ा था। इसके चारों ओर १८५ मीटर चौड़ी तथा ३० हाथ गहरी खाईं थी। नगर चारों ओर से एक ऊँची दीवार से घिरा था जिसमें ६४ तोरण (द्वार) तथा ५७० बुर्ज थे।
  • मेगस्थनीज नगर के प्रमुख अधिकारी का नाम ‘एस्टिनोमोई’ ( Astynomoi ) बताते हैं।
  • नगर प्रशासन का विवरण इंडिका में मिलता है। इसके अनुसार नगर प्रशासन हेतु ३० सदस्यों का एक समूह अर्थात् नगर परिषद ( Municipal Board ) था जिसे ५ – ५ सदस्यों की ६ समितियों में विभाजित किया गया था। नगर के मध्य चन्द्रगुप्त मौर्य का विशाल राजप्रासाद स्थित था। मेगस्थनीज के अनुसार भव्यता और शान-शौकत में सूसा तथा एकबतना के राजमहल भी उसकी तुलना नहीं कर सकते थे।
  • मेगस्थनीज ने जिले के अधिकारी के लिये ‘एग्रोनोमोई’ ( Agronomoi ) नाम का प्रयोग किया है। वह सड़क निर्माण और भू-राजस्व एकत्रित करनेवाला अधिकारी था।
  • इसमें सैन्य प्रशासन का वर्णन मिलता है। इसके अनुसार ३० सदस्यों का एक समूह था जिसको ५ – ५ सदस्यों की ६ समितियों में विभाजित किया गया था।
  • मेगस्थनीज के अनुसार मौर्यकाल में भू-राजस्व की मात्रा उपज की /थी। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि कौटिल्य ने इसे /बताया है। इसलिये भूराजस्व की मात्रा /से /माना जाता है।
  • मेगस्थनीज ने उस राजमार्ग का विवरण दिया है जिसे चन्द्रगुप्त मौर्य ने निर्मित कराया था। यह राजमार्ग बंगाल के सोनारगाँव को सिंध से जोड़ता था। इसी को उत्तरापथ कहा जाता था। मध्यकाल में इसको शेरशाह सूर ने पक्की सड़कछाप रूप दिया तक इसको ‘सूर मार्ग’ या ‘सड़क-ए-आजम’ नाम दिया गया। आधुनिक काल में गवर्नर जनरल ऑकलैण्ड ने इसका पुनर्निर्माण कराया और ग्रांड ट्रंक रोड ( Grand Trunk – GT road ) नाम दिया।
  • मेगस्थनीज बताते हैं कि भारत में अनेक सोने की खानें हैं। वह एक ऐसी सुवर्ण खान का उल्लेख करते हैं जो कश्मीर के दर्दिस्तान में स्थित थी। उनके अनुसार इसमें सोना निकालने वाली लाल रंग की चींटियाँ होती थीं।
  • मेगस्थनीज के विवरण से ज्ञात होता है कि मौर्य युग में शान्ति तथा समृद्धि व्याप्त थी जनता पूर्णरूप से आत्म-निर्भर थी तथा भूमि बड़ी उर्वर थी।
  • लोग नैतिक दृष्टि से उत्कृष्ट थे तथा सादगी का जीवन व्यतीत करते थे।
  • भारतीय साहसी, वीर तथा सत्यवादी होते थे।
  • भारतीयों की वेषभूषा सादी होती थी।
  • गेहूँ तथा जौ प्रमुख खाद्यान थे।
  • मेगस्थनीज ने ब्राह्मण साधुओं की प्रशंसा की है।
  • उसके अनुसार भारतीय यूनानी देवता डियोनिसियन तथा हेराक्लीज की पूजा करते थे। वस्तुतः इससे शिव तथा कृष्ण की पूजा से तात्पर्य है।
  • मेगस्थनीज के विवरण से मौर्य सम्राट की कर्मठता तथा कार्य कुशलता की सूचना मिलती है। वह लिखता है कि राजा सदा प्रजा के आवेदनों को सुनता रहता था।
  • दण्ड विधान कठोर थे। अपराध बहुत कम होते थे जबकि सामान्यतः लोग घरों तथा सम्पत्ति की रखवाली नहीं करते थे।
  • मेगस्थनीज के विवरण से मौर्ययुगीन भारत में व्यापार व्यवसाय के भी काफी विकसित दशा में होने का संकेत मिलता है। उसने व्यापारियों के एक बड़े वर्ग का उल्लेख किया है जिसका समाज में अलग संगठन था।

मेगस्थनीज के कुछ भ्रामक विवरण

किसी भी विदेशी लेखक के वर्णन को आँख मूँदकर स्वीकार नहीं कर लेना चाहिए। इसका कारण यह है कि वे यहाँ की सामाजिक और धार्मिक दशा को सही ढंग से समझ पाने में प्रायः ट्रुटि करने की सम्भावना बनी रहती है और यह स्वाभाविक भी है। इसलिये इसका प्रयोग करने के लिये आवश्यक है कि इसको अन्य तात्कालिक विवरणों से तुलनात्मक समीक्षा करने के उपरान्त ही स्वीकार या अस्वीकार करना चाहिए।

मेगस्थनीज के कुछ भ्रामक विवरण निम्न हैं —

  • सात जातियाँ : मेगस्थनीज के अनुसार भारत में ७ जातियाँ थीं। इसका क्रम था – दार्शनिक, कृषक, अहीर, शिल्पी, सैनिक, निरीक्षक एवं सभासद। आगे वे हमें बताते हैं कि किसान की संख्या सर्वाधिक थी, उसके बाद सैनिकों की संख्या थी, जबकि पार्षदों की संख्या सबसे कम थी। परन्तु हम जानते हैं कि भारत में इस तरह का सामाजिक विभाजन कभी भी नहीं रहा है।
  • दास प्रथा : मेगस्थनीज के अनुसार भारत में ‘दास-प्रथा’ नहीं थी। इस भ्रमात्मक विवरण का कारण सम्भवतया यह हो सकता है कि युनान में दासों के साथ अमानवीय व कठोर व्यवहार किया जाता था जबकि भारत में मृदु। इसलिये वह यहाँ की दास प्रथा को पहचान ही न पाये हों। उन्हीं के समकालीन कौटिल्य कृत अर्थशास्त्र में ९ प्रकार के दासों का विवरण प्रस्तुत करते हैं।
  • अकाल : मेगस्थनीज के अनुसार भारत में अकाल नहीं पड़ते हैं। परन्तु जैन साहित्य हमें चन्द्रगुप्त मौर्य के समय पाटिलपुत्र में १२ वर्षीय अकाल का विवरण देता है। साथ ही सोहगौरा और महास्थान अभिलेख के साथ-साथ अशोक के अभिलेखों से अकाल के सम्बन्ध में सूचना मिलती है।
  • लिपि : मेगस्थनीज के अनुसार भारतीयों को लिपि का ज्ञान नहीं था। परन्तु हम जानते हैं कि मौर्यकाल से पहले ही वैदिक साहित्य, सूत्र साहित्य, बौद्ध धर्म के दो पिटकों का संकलन हो चुका था। साथ ही अन्य मौर्यकाल से पहले ही लिपि के अभिलेखीय साक्ष्य भी उपलब्ध हैं जिसका उदाहरण हमें पिपरहवा अस्थि कलश मंजूषा ( ४८३ ई०पू० ) पर अंकित लेख है।

निष्कर्ष

यह सत्य है कि मेगस्थनीज का विवरण पूर्णतया प्रामाणिक नहीं माना जा सकता है। एक विदेशी तथा भारतीय भाषा, रीति-रिवाज एवं परम्पराओं को न समझ सकने के कारण उसने यत्र-तत्र अनर्गल बातें लिख डाली हैं परन्तु केवल इसी आधार पर हम उसे पूर्णरूपेण से झूठा नहीं मान सकते हैं।

मेगस्थनीज कृत इंडिका के विवरण का ऐतिहासिक मूल्य है जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती और न ही स्वस्थ्य ऐतिहासिक पुनर्निर्माण की प्रक्रिया है।

इस प्रकार मेगस्थनीज के विवरण के आधार पर चन्द्रगुप्त मौर्य के समय की राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक दशा पर कुछ प्रकाश पड़ता है।

मौर्य इतिहास के स्रोत ( Sources for the History of the Mauryas )

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