बिन्दुसार मौर्य ‘अमित्रघात’ ( २९८ ई०पू० – २७२ ई०पू )

भूमिका

चन्द्रगुप्त मौर्य के पश्चात् उनके पुत्र बिन्दुसार मौर्य साम्राज्य की गद्दी पर बैठे। बिन्दुसार के जीवन तथा उपलब्धियों के विषय मे हमारा ज्ञान अत्यल्प है। उसकी महानता इस तथ्य में निहित है कि उसने अपने पिता से जिस विशाल साम्राज्य को उत्तराधिकार में प्राप्त किया था उसे अक्षुण्ण बनाये रखा।

सम्राट बिन्दुसार की उपलब्धियाँ

संक्षिप्त परिचय

नाम : बिन्दुसार मौर्य ‘अमित्रघात’ [ Bindusara Maurya ‘Amitraghata’ ]

अन्य नाम : अमित्रोकेडीज, सिंहसेन, अमित्रघात, भद्रसार

पिता : चन्द्रगुप्त मौर्य

माता : दुर्धरा

पत्नी : धर्मा ( सुभद्रांगी, पासारिका )

पुत्र : किंवदंतियों के अनुसार १०१ पुत्र। सुशीम ( सुमन ), अशोक

धर्म : आजीवक

शासनकाल : २९८ ई०पू० से २७३ ई०पू० तक

जैन परम्पराओं में बिन्दुसार की माता का नाम ‘दुर्धरा’ मिलता है। यूनानी लेखक ने उसे ‘अमित्रोकेडीज’ कहा है जिसका संस्कृत रूपान्तर ‘अमित्रघात’ (शत्रुओं को नष्ट करने वाला) होता है। यह बिन्दुसार की उपाधि थी। जैन ग्रन्थ उसे ‘सिंहासन’ कहते हैं।

राजनीतिक उपलब्धियाँ

इन उपाधियों से स्पष्ट कि वह कोई दुर्बल अथवा विलासी शासक नहीं था। परन्तु अपनी किन विजयों के उपलक्ष्य में उसने उन उपाधियों को ग्रहण किया था, यह निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है।

बौद्ध ग्रंथ ‘आर्यमंजुश्रीकल्प’, जैन ग्रन्थों और तिब्बती इतिहासकार तारानाथ से ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल के बाद भी बिन्दुसार ‘अमित्रघात’ के शासनकाल के आरम्भिक दौर में कुछ वर्षों तक आचार्य चाणक्य प्रधानमंत्री बने रहे थे। तिब्बती इतिहासकार तारानाथ ने बिन्दुसार की उपलब्धियों का इस प्रकार विवरण दिया है — ‘चाणक्य ने १६ राज्यों के राजाओं और सामंतों का नाश किया और बिन्दुसार को पूर्वी समुद्र से पश्चिमी समुद्रपर्यंत भू-भाग का आधीश बनाया।’*

  • “Chanakya, one of his ( Bindusara’s ) great lords, procured the destruction of the nobles and kings of sixteen towns and made the king master of all the territory between the eastern and western seas.” — Lama Taranath.*

यह वर्णन कहाँ तक सत्य है यह निश्चित रूप से कह सकना कठिन है। इस कथन से ऐसा लगता है कि सम्राट बिन्दुसार मौर्य के समय कुछ प्रदेशों में विद्रोह हुये और उसने उन्हें दबा दिया गया।

दिव्यावदान तक्षशिला में होने वाले विद्रोह का वर्णन करता है जिसको शान्त करने के लिये बिन्दुसार ने अपने पुत्र अशोक को भेजा था। अशोक ने उदारतापूर्ण नीति का अनुसरण करते हुए वहाँ शान्ति और व्यवस्था स्थापित किया था।

सम्भव है इसी प्रकार के कुछ अन्य उपद्रव पूर्वी तथा पश्चिमी प्रदेशों में हुये हों और बिन्दुसार ने सैनिक शक्ति द्वारा उन्हें शान्त कर दिया हो। कुछ विद्वानों का कहना है कि तारानाथ के विवरण से यह ज्ञात होता है कि चाणक्य और बिन्दुसार ने दक्षिण में राज्य विस्तार किया; परन्तु इस मत से अधिकांश विद्वान असहमत हैं।

तारानाथ ने यह भी बताया है कि बिन्दुसार के समय खस और नेपाल में भी विद्रोह हुए जिसे राजकुमार अशोक ने शान्त करके इन प्रांतों पर अधिकार किया था।

वैदेशिक सम्बन्ध

बिन्दुसार ‘अमित्रघात’ के समय में भी भारत का पश्चिमी यूनानी राज्यों के साथ मैत्री सम्बन्ध कायम ही न रहा अपितु उसमें और प्रगाढ़ता देखने को मिलता है —

  • स्ट्रैबो के अनुसार सीरिया के राजा एन्टियोकस (अन्तियोकस) प्रथम ने डाइमेकस या डायमेकस नामक अपना एक राजदूत बिन्दुसार की राज्य सभा में भेजा था। यह मेगस्थनीज के स्थान पर आया था।
  • प्लिनी हमें बताते हैं कि मिस्र के राजा टालमी द्वितीय फिलाडेल्फस (२८५-२४७ ईसा पूर्व) ने डाइनोसियस नामक एक राजदूत मौर्य राजसभा में भेजा था। परन्तु यह स्पष्टतः पता नहीं है कि यह राजदूत बिन्दुसार के समय आया था अथवा उसके पुत्र अशोक के समय, क्योंकि मिस्री नरेश इन दोनों मौर्य सम्राटों का समकालीन था।
  • एथेनियस नामक एक अन्य यूनानी लेखक ने बिन्दुसार तथा सीरिया के राजा एन्टियोकस प्रथम के बीच एक मैत्रीपूर्ण पत्र-व्यवहार का विवरण दिया है जिसमें भारतीय शासक ने सीरियाई नरेश से तीन वस्तुओं की माँग की थी — (१) मीठी / मधुर मदिरा (२) सूखी अन्जीर तथा (३) एक दार्शनिक (सोफिस्ट)। सीरियाई सम्राट ने प्रथम दो वस्तुएँ – भिजवा दीं परन्तु तीसरी वस्तु अर्थात् दार्शनिक के सम्बन्ध में यह कहला भेजा कि यूनानी कानूनों के अनुसार दार्शनिकों का विक्रय नहीं किया जा सकता। इस विवरण से पता चलता है कि बिन्दुसार के समय में भारत का पश्चिमी एशिया के साथ व्यापारिक सम्बन्ध था। इससे बिन्दुसार की दार्शनिक रुचि का भी कुछ संकेत मिलता है

अन्य कार्य

प्रशासन के क्षेत्र में बिन्दुसार ने अपने पिता की व्यवस्था का ही अनुगमन किया। अपने साम्राज्य को उसने प्रान्तों में विभाजित किया तथा प्रत्येक प्रान्त में ‘कुमार’ (उपराजा) नियुक्त किये। प्रशासनिक कार्यों के लिये अनेक महामात्रों की भी नियुक्ति की गयी। दिव्यावदान के अनुसार अवन्ति राष्ट्र का उपराजा अशोक था।

बिन्दुसार की सभा में ५०० सदस्यों वाली एक मन्त्रिपरिषद भी थी जिसके प्रधान खल्लाटक थे। वह कौटिल्य के पश्चात् हुए होंगे। इसके अतिरिक्त राधागुप्त और सुबन्धु नामक मंत्रियों नाम मिलते हैं। आगे चलकर राधागुप्त सम्राट अशोक के समय में प्रधानमंत्री बनने वाले थे।

बिन्दुसार के समय कुछ विद्रोह को छोड़कर अन्य किसी प्रकार के उपद्रव के प्रमाण नहीं मिलते हैं। तक्षशिला के विद्रोह से ज्ञात होता है कि यह विद्रोह अत्याचारी अमात्यों व अधिकारियों के कारण हुआ था।

धर्मिक रुचि

सामान्य जन-जीवन बहुत सुखी था। अपने पिता की भाँति बिन्दुसार की भी धार्मिक मामलों में गहरी रुचि थी। वे आजीवक सम्प्रदाय से अत्यन्त प्रभावित थे और संरक्षण प्रदान किया। परन्तु इसका यह कदापि अर्थ नहीं है कि सम्राट बिन्दुसार असहिष्णु थे। सभी धर्मों का वे समान रूप से आदर-सम्मान करते थे।

थेरावाद परम्परा के अनुसार बिन्दुसार ब्राह्मण धर्म का अनुयायी थे। दिव्यावदान से पता चलता है कि उसकी राज्यसभा में आजीवक सम्प्रदाय का एक ज्योतिषी निवास करता था। बौद्ध ग्रंथ दिव्यावदान के अनुसार सम्राट बिन्दुसार आजीवक सम्प्रदाय के ‘पिंगलवत्स’ से गहरे सम्बन्ध थे। बिन्दुसार को ‘आजीवक सम्प्रदाय’ के मानने वाले थे

महावंश के अनुसार सम्राट बिन्दुसार ने ६०,००० ब्राह्मणों को सम्मानित किया। वह दार्शनिक विषयों में भी रुचि लेते थे।

बिन्दुसार की मृत्यु

सम्राट बिन्दुसार के शासन काल की अन्य बातें हमें ज्ञात नहीं हैं। सम्भवतः उसने २५ वर्षों तक राज्य किया और उनकी मृत्यु २७३ ईसा पूर्व के लगभग हुई। उनके बाद सम्राट अशोक सम्राट बने।

मूल्यांकन

सम्राट बिन्दुसार के शासन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि अपने पिता से प्राप्त विशाल साम्राज्य को अक्षुण्ण बनाये रखा और अपने उत्तराधिकारी सम्राट अशोक को सौंपा। बिन्दुसार की धार्मिक सहिष्णुता, शासन-प्रशासन इत्यादि के आधार पर ही सम्राट अशोक के समय भारतवर्ष ने उस पराकाष्ठा को प्राप्त किया जो परवर्ती साम्राज्यों के लिये प्रेरणा और ईर्ष्या का कारण बना रहा।

मौर्य इतिहास के स्रोत ( Sources for the History of the Mauryas )

मौर्य राजवंश की उत्पत्ति या मौर्य किस वर्ण या जाति के थे?

चन्द्रगुप्त मौर्य ( ३२२/३२१ — २९८ ई०पू० ) : जीवन व कार्य

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