प्राचीन भारतीय इतिहास

प्राग्मौर्यकाल – समाज और संस्कृति ( ६०० ई०पू० से ३२१ ई०पू० )

भूमिका प्राग्मौर्यकाल ( The Pre-Mauryan Age ) गंगाघाटी में सामाजिक तथा आर्थिक परिवर्तनों की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रहा है। इस काल की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का अध्ययन हम ब्राह्मण तथा ब्राह्मणेतर साहित्य के अतिरिक्त विभिन्न स्थलों के उत्खनन से प्राप्त किये गये पुरातात्त्विक अवशेषों के आधार पर भी करते हैं। इस काल के भारतीय जीवन […]

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भारत पर सिकन्दर का आक्रमण, कारण और प्रभाव

भूमिका हखामनी आक्रमण के पश्चात् पश्चिमोत्तर भारत एक दूसरे यूनानी आक्रमण का शिकार हुआ। यह यूरोपीय विजेता सिकन्दर के नेतृत्व में होने वाला मकदूनियाई आक्रमण था जो पहले की अपेक्षा कहीं अधिक भयावह सिद्ध हुआ। सिकन्दर मेसीडोन के क्षत्रप फिलिप द्वितीय (३५९-३३६ ईसा पूर्व) का पुत्र था। पिता की मृत्यु के पश्चात् २० वर्ष की

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पारसी आक्रमण (हखामनी आक्रमण), कारण और प्रभाव – छठीं शताब्दी ई०पू०

भूमिका भारतवर्ष पर सबसे पहले ‘ईरान’ के शासक ‘साइरस द्वितीय’ ने आक्रमण किया। परन्तु साइरस द्वितीय का आक्रमण असफल रहा। इसके बाद डेरियस या दारा प्रथम का आक्रमण हुआ जिसने पश्चिमोत्तर भारत के कुछ भाग और निचली सिंधु घाटी को अधिकृत कर लिया था। हखामनी (Achaemenes) नामक व्यक्ति द्वारा स्थापित इस राजवंश के अभियान को

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नंद वंश (३४४ से ३२४/२३ ई०पू०)

भूमिका यद्यपि नंद वंश ( नन्द वंश ) की स्थापना महानंदिन ने की तथापि इस वंश का वास्तविक संस्थापक महापद्मनंद था। इस नंद वंशी के शासक जैन धर्मावलम्बी थे। ये जाति से निम्न थे। नंद वंश ने ३४४ ई०पू० से ३२४/३२३ ई०पू० तक मगध साम्राज्य पर शासन किया। इसका अन्तिम शासक धनानंद था जिसे आचार्य

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शैशुनाग वंश या शिशुनाग वंश

भूमिका हर्यंक वंश के बाद शैशुनाग वंश या शिशुनाग वंश ने मगध पर शासन किया। इस राजवंश ने ४१२ ईसा पूर्व से ३४४ ईसा पूर्व ( लगभग ६८ वर्ष ) तक शासन किया। इस वंश में शिशुनाग और कालाशोक जैसे शासक हुए। शिशुनाग शैशुनाग वंश या शिशुनाग वंश की स्थापना ‘शिशुनाग’ ने की और वह

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हर्यंक वंश या पितृहंता वंश

भूमिका हर्यंक वंश के शासक बिम्बिसार के सिंहासनारोहण से मगध के उत्कर्ष का इतिहास प्रारम्भ होता है और यह मौर्य सम्राट अशोक द्वारा कलिंग विजय के साथ अपनी पूर्णता को प्राप्त करता है। ईसा पूर्व छठी शताब्दी से लेकर चन्द्रगुप्त मौर्य के सिंहासनारोहण से पूर्व तीन राजवंशों ने मगध के उत्थान में योगदान दिया :

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मगध का प्राचीन इतिहास या मगध का पहला ऐतिहासिक राजवंश

भूमिका ‘मगध का प्राचीन इतिहास’ छठी शताब्दी ई०पू० के पहले बहुत स्पष्ट नहीं है। पूर्व वैदिक काल में गंगा नदी के पूर्व के भू-भाग से आर्यों परिचित नहीं थे। उत्तर वैदिक काल में आर्यों का प्रसार पूर्व की ओर हुआ। मगध, अंग इत्यादि के विवरण उत्तर वैदिक साहित्यों में मिलने लगता है परन्तु ये क्षेत्र

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मगध का उदय : कारण

भूमिका मगध का उदय प्राचीन भारतीय इतिहास की एक प्रमुख घटना है। बिहार प्रान्त के पटना तथा गया जनपदों की भूमि में स्थित मगध प्राचीन भारत का एक महत्त्वपूर्ण राज्य रहा है। महाभारतकाल में यहाँ का राजा ‘जरासंध’ था। बौद्ध साहित्यों में इसकी गणना सोलह महाजनपदों में की गयी है। सोलह महाजनपदों में से चार

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बुद्धकालीन गणराज्य

भूमिका प्रारम्भ में अधिकांश इतिहासकारों का यह विचार था कि प्राचीन भारत में केवल राजतन्त्र ही थे। परन्तु कालान्तर में यह तथ्य प्रकाश में आया कि प्राचीन भारत में राजतन्त्रों के साथ-साथ गण अथवा संघ राज्यों का भी अस्तित्व रहा है। सबसे पहले १९०३ में रिज डेविड्स ने साम्राज्यवादी दृष्टिकोण को चुनौती देने के लिये

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महाजनपद काल

भूमिका भारतवर्ष के ‘सांस्कृतिक इतिहास’ का प्रारम्भ अति प्राचीन काल में हुआ परन्तु उसके राजनीतिक इतिहास का प्रारम्भ अपेक्षाकृत बहुत बाद में हुआ। राजनीतिक इतिहास का मुख्य आधार सुनिश्चित तिथिक्रम (Chronology) होता है। इस दृष्टि से भारतवर्ष के राजनीतिक इतिहास का प्रारम्भ हम सातवी शताब्दी ई० पू० के मध्य ( ≈ ६५० ई० पू० )

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