नंद वंश (३४४ से ३२४/२३ ई०पू०)

भूमिका

यद्यपि नंद वंश ( नन्द वंश ) की स्थापना महानंदिन ने की तथापि इस वंश का वास्तविक संस्थापक महापद्मनंद था। इस नंद वंशी के शासक जैन धर्मावलम्बी थे। ये जाति से निम्न थे। नंद वंश ने ३४४ ई०पू० से ३२४/३२३ ई०पू० तक मगध साम्राज्य पर शासन किया। इसका अन्तिम शासक धनानंद था जिसे आचार्य चाणक्य की सहायता से चन्द्रगुप्त मौर्य ने हटाकर मौर्य वंश की स्थापना की।

नंद वंश की पहचान

जिस व्यक्ति ने शैशुनाग वंश का अन्त कर नन्द वंश की स्थापना की वह निम्न वर्ण से सम्बन्धित था। उसका नाम विभिन्न ग्रन्थों में भिन्न-भिन्न दिया गया है।

  • पुराण उसे ‘महापद्म’ कहते हैं।
  • महाबोधिवंश उसे ‘उग्रसेन’ कहता है।

भारतीय तथा विदेशी दोनों ही साक्ष्य नन्दों को शूद्र अथवा निम्न जातीय उत्पत्ति का स्पष्ट संकेत करते हैं।

  • पुराणों के अनुसार ‘महापद्मनन्द’ शैशुनाग वंश के अन्तिम राजा महानन्दिन् की ‘शूद्रा स्त्री के गर्भ से उत्पन्न’ (शूद्रागर्भोद्भव) हुआ था।
  • विष्णु पुराण में कहा गया है कि ‘महानन्दी की शूद्रा से उत्पन्न महापद्म अत्यन्त लोभी तथा बलवान एवं दूसरे परशुराम के समान सभी क्षत्रियों का विनाश करने वाला होगा।*

महानन्दीनस्त तश्शूद्रागर्भोदभवो अतिलुब्धो अतिबलो महापद्मनामा नन्दः परशुरामिवापरो अखिल क्षत्रान्तकारी भविष्यति। — विष्णुपुराण (४/२४/२०)।*

  • जैन ग्रन्थ परिशिष्टपर्वन के अनुसार वह नापित पिता और ‘वेश्या माता’ का पुत्र था।
  • आवश्यक सूत्र उसे ‘नापितदास’ (नाई का दास) कहता है।
  • महावंश टीका में नन्दों को ‘अज्ञात कुल’ का बताया गया है जो डाकुओं के गिरोह का मुखिया था। उसने अवसर पाकर मगध पर बलपूर्वक अधिकार जमा लिया।

जैन मत की पुष्टि विदेशी विवरणों से भी हो जाती है। यूनानी लेखक कर्टियस (Curtius) सिकन्दर के समकालीन मगध के नन्द सम्राट अग्रमीज (यह संस्कृत के उग्रसेन अर्थात् ‘उग्रसेन का पुत्र’ का रूपान्तर है) के विषय में लिखते हुए बताता है कि ‘उसका पिता जाति का नाई था। वह अपनी सुन्दरता के कारण रानी का प्रेम पात्र बन गया तथा उसके प्रभाव से राजा का विश्वास प्राप्त कर उसके अत्यन्त निकट पहुँच गया। उसने छल से राजा की हत्या कर दी तथा राजकुमारों के संरक्षण के बहाने कार्य करते हुए उसने राजगद्दी हथिया ली। अन्ततः उसने राजकुमारों की भी हत्या कर दी तथा वर्तमान राजा का पिता हुआ।*

His father was in fact a barber scarcely staving off hunger by his daily earnings, but who, from his being not uncomely in person, had gained the affections of the queen, and was by her influence, advanced to too near a place in the confidence of the reigning monarch. Afterwards he treacherously murdered his sovereign and then under the pretence of acting as guardian to royal children, usurped the supreme authority, and having put the young princes to death, begot the present king.

-Invasion of India : J.W. McCrindle*

यहाँ कर्टियस ने जिस राजा की चर्चा को है वह नंद वंश का संस्थापक महापद्मनन्द ही था।

महाबोधिवंश में कालाशोक के १० पुत्रों का उल्लेख हुआ है। सम्भव है वे सभी अवयस्क रहे हो तथा महापद्मनन्द उसका संरक्षक रहा हो।

डियोडोरस (Diodorus) इससे कुछ भिन्न विवरण देता है उसके अनुसार धननन्द का नाई पिता सुन्दर स्वरूप का होने के कारण रानी का प्रेम-पात्र बन गया। ‘रानी ने अपने वृद्ध पति की हत्या कर दी तथा अपने प्रेमी को राजा बनाया। वर्तमान शासक उसी का उत्तराधिकारी था।’

इस प्रकार जहाँ कर्टियस अन्तिम शैशुनाग राजा का हत्यारा प्रथम नन्द शासक को बताता है वहाँ डियोडोरस उसकी रानी पर हत्या का लांछन लगाता है।

महाबोधिवंश में महापद्मनन्द का नाम ‘उग्रसेन’ मिलता है। उसका पुत्र धननन्द सिकन्दर का समकालीन था। इस प्रकार नन्द वंश शूद्र अथवा निम्न वर्ण से सम्बन्धित था। पुराणों के विवरण से स्पष्ट है कि इस वंश का संस्थापक क्षत्रिय पिता (महानन्दी) तथा शूदा माता की सन्तान था। मनुस्मृति में इस प्रकार से उत्पन्न सन्तान को ‘अपसद’ अर्थात् निकृष्ट बताया गया है।

नन्द वंश में कुल ९ राजा हुए और इसी कारण उन्हें ‘नवनन्द‘ कहा जाता है। महाबोधिवंश में उनके नाम इस प्रकार मिलते हैं — १. उग्रसेन, २. पण्डुक, ३. पण्डुगति, ४. भूतपाल, ५. राष्ट्रपाल, ६. गोविषाणक, ७. दशसिद्धक, ८. कैवर्त और ९. धन। इसमें प्रथम अर्थात् उग्रसेन को ही पुराणों में महापद्म कहा गया है। शेष आठ उसी के पुत्र थे।

महापद्मनन्द की उपलब्धियाँ

महापद्मनन्द अभी तक मगध के सिंहासन पर बैठने वाले राजाओं में सर्वाधिक शक्तिशाली सिद्ध हुआ। उसकी विजयों के विषय में हमें पुराणोंसे विस्तृत सूचना मिलती है। उसके पास अतुल सम्पत्ति तथा असंख्य सेना थी। वह ‘कलि का अंश’, ‘सभी क्षत्रियों का नाश करने वाला’ (सर्वक्षत्रान्तक), ‘दूसरे परशुराम का अवतार’ था जिसने अपने समय के सभी प्रमुख राजवंशों की विजय की। उसने एकछत्र शासन की स्थापना किया तथा ‘एकराट्’ की उपाधि ग्रहण की।*

महानन्दी सुतश्चापिशूद्राय कलिकांशजः।

उत्पस्यते महापद्मो सर्वक्षत्रान्तको नृपः॥

एकराट् स महापद्म एकछत्रो भविष्यति।

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स एकछत्रं पृथ्वी अनुलंघितशासनः।

स्थास्यति महापद्मो द्वितीय इव भार्गवः॥*

Dynasties of The Kali Age — Pargiter.

महापद्मनन्द द्वारा उन्मूलित कुछ राजवंशों के नाम इस प्रकार मिलते है —

  • इक्ष्वाकु — इस वंश के लोग कोशल में शासन करते थे। वर्तमान अवध का क्षेत्र इस राज्य के अन्तर्गत था। महापद्मनन्द द्वारा कोशल विजय की पुष्टि सोमदेवकृत ‘कथासरित्सागर’ से भी होती है। तदनुसार अयोध्या के समीप नन्दों का एक सैनिक शिविर था।
  • पांचाल — इस राजवंश के लोग वर्तमान रुहेलखण्ड (बरेली-बदायूँ फर्रुखाबाद क्षेत्र) में शासन करते थे। ऐसा लगता है कि महापद्म के पहले उनका मगध से कोई संघर्ष नहीं हुआ था।
  • काशेय — इससे तात्पर्य काशी के वंशजों से है। बिम्बिसार के समय से ही काशी मगध का एक प्रान्त था। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि जिस समय शिशुनाग ने गिरिव्रज को अपनी राजधानी बनाई, उसने अपने पुत्र को बनारस का उपराजा नियुक्त किया था। ऐसा लगता है कि इसी वंश के उत्तराधिकारी की हत्या कर महपद्मनन्द ने काशी को प्राप्त किया।
  • हैहय — इस राजवंश के लोग नर्मदा नदी के एक भाग पर शासन करते थे। उसको राजधानी माहिष्मती थी।
  • कलिंग — यह राजवंश ओडिशा प्रान्त में शासन करता था। खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख से पता चलता है कि किसी नन्द राजा ने कलिंग के एक भाग को जीता था।
  • अश्मक — इस वंश के लोग आन्ध्र प्रदेश की गोदावरी सरिता के तट पर शासन करते थे। आन्ध्र प्रदेश के निजामाबाद के समीप ‘नवनन्द देहरा’ नामक एक नगर स्थित है। कुछ विद्वानों के अनुसार वह इस प्रदेश में नन्दों के आधिपत्य का सूचक है। परन्तु इस विषय में हम निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कह सकते।
  • कुरु — मेरठ, दिल्ली तथा थानेश्वर के भू-भाग पर कुरु राजवंश का शासन था। इसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ में थी।
  • मैथिल — मैथिल लोग मिथिला के निवासी थे। मिथिला की पहचान नेपाल की सीमा में स्थित वर्तमान जनकपुर से की गयी है।
  • शूरसेन — आधुनिक ब्रजमण्डल की भूमि पर शूरसेन राजवंश का शासन था। उसकी राजधानी मथुरा में थी।
  • वीतिहोत्र — पुराणों के अनुसार वीतिहोत्र लोग अवन्ति के प्रद्योतों तथा नर्मदा तटवर्ती हैहयों से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित थे। सम्भवतः उनका राज्य इन्हीं दोनों के बीच स्थित रहा होगा।

पुराणों में उपर्युक्त सभी राज्यों के शासकों को समकालीन बताया गया है तथा विभिन्न राजवंशों के शासन काल के विषय में भी सूचना मिलती है। तदनुसार ईक्ष्वाकु ने चौबीस वर्ष, पांचाल ने सत्ताइस वर्ष, काशी ने चौबीस वर्ष, हैहय ने अठाइस वर्ष, कलिंग ने बत्तीस वर्ष, अश्मक ने पच्चीस वर्ष, कुरु ने छत्तीस वर्ष, मैथिल ने अठाइस वर्ष, शूरसेन ने तेइस वर्ष तथा वीतिहोत्र ने बीस वर्ष तक शासन किया।*

ऐक्ष्वाकवश्चतुर्विंशत्पांचालाः सप्तविंशतिः।

काशेयास्तु चतुर्विंशदष्टार्विंशति हैहयाः॥

कालिंगाश्चैव द्वात्रिंशत् अश्मकाः पंचविंशतिः।

कुरवश्चापि षट्त्रिंशत् अष्टाविंशति मैथिलाः॥

शूरसेनास्त्रयोविंशत् वीतिहोत्राश्चविंशतिः।

ऐते सर्वे भविष्यन्ति एककालं महीक्षितः॥*

मत्स्य पुराण ( २७२/१३-१७)

इस प्रकार अपनी विजयों के फलस्वरूप महापद्मनन्द ने मगध को एक विशाल साम्राज्य में परिणत कर दिया। भारतीय इतिहास में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई जिसकी सीमायें गंगाघाटी के मैदानों का अतिक्रमण कर गयीविन्ध्यपर्वत के दक्षिण में विजय वैजयन्ती फहराने वाला पहला मगध का शासक था

खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख से भी उसकी कलिंग विजय सूचित होती है। इसके अनुसार नन्द राजा जिनासन की एक प्रतिमा उठा ले गया तथा उसने कलिंग में एक नहर ‘तनसुलि’ का निर्माण करवाया था।*

पंचमे च दानी वसे नंदराज तिवससत ओघाटितं ….( ६ठीं पंक्ति )

** **

नंदराजनीतं च कलिंग जिनं सनिवेस …. ( १२वीं पंक्ति )॥*

हाथीगुम्फा अभिलेख।

मैसूर के १२वीं शती के लेखों में भी नन्दों द्वारा कुन्तल जीते जाने का विवरण सुरक्षित है। क्लासिकल लेखकों के विवरण से ज्ञात होता है कि ‘अग्रमीज’ का राज्य पश्चिम में व्यास नदी तक फैला था। यह भू-भाग महापद्मनन्द द्वारा ही जीता गया होगा क्योंकि अग्रमीज को किसी भी विजय का श्रेय नहीं प्रदान किया गया है। उसकी विजयों के साथ ही क्षत्रियों का राजनीतिक प्रभुत्व समाप्त हुआ। इस विशाल साम्राज्य में एकतन्त्रात्मक शासन व्यवस्था की स्थापना की गयी।

पुराण महापद्मनन्द के शासन की अवधि ८८ वर्ष बताते है जो भ्रामक प्रतीत होता है। सम्भवतः पुराणों में २८ वर्ष को भूलवश ८८ लिख दिया गया है। इस तरह निःसंदेह उत्तर भारत का प्रथम महान ऐतिहासिक सम्राट महापद्मनन्द था।

महापद्मनन्द के उत्तराधिकारी तथा नन्द सत्ता का विनाश

यद्यपि पुराणों तथा बौद्ध ग्रन्थों में महापद्मनन्द के उत्तराधिकारियों की संख्या आठ मिलती है परन्तु उनके शासन काल के विषय में हमारा ज्ञान बहुत कम अथवा धुंधला सा है।

नन्द वंश का अन्तिम राजा धननन्द था जो सिकन्दर का समकालीन था। उसे यूनानी लेखकों ने ‘अग्रमीज’ (उग्रसेन का पुत्र) कहा है। यूनानी लेखकों के अनुसार उसके पास असीम सेना तथा अतुल सम्पत्ति थी। कर्टियस के अनुसार उसके पास २०,००० अश्वारोही, २,००,००० पैदल, २,००० रथ तथा ३,००० हाथी थे। जेनोफोन उसे ‘बहुत धनाढ्य व्यक्ति’ (very wealthy man) बताता है। संस्कृत, तमिल तथा सिंहली ग्रन्थों से भी उसकी अतुल सम्पत्ति की सूचना मिलती है। भद्दशाल या भद्रशाल उसका सेनापति था।

उसका साम्राज्य बहुत विशाल था जो उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी तक तथा पश्चिम में सिन्धु नदी से लेकर पूर्व में मगध तक फैला हुआ था पूर्वी दक्षिणापथ में कलिंग भी इसके अन्तर्गत था।

धननन्द एक लोभी शासक था जिसे धन संग्रह का व्यसन था। उसके धन तथा बलपूर्वक कर वसूल करने की बौद्ध अनुश्रुति टर्नर ने इस प्रकार प्रस्तुत की है— ‘सबसे छोटा भाई घननन्द कहलाता था क्योंकि उसे धन बटोरने का व्यसन था। उसने ८० करोड़ धनराशि गंगा के भीतर एक पर्वत गुफा में छिपा कर रखी थी। एक सुरंग बनवाकर उसने वह धन वहाँ गड़वा दिया। वस्तुओं के अतिरिक्त उसने पशुओं के चमड़े, वृक्षों की गोंद तथा खानों की पत्थरों के ऊपर भी कर लगाकर अधिकाधिक धन संचित किया।*

  • महावंश, भूमिका – पृ० – ३९ *

एक तमिल परम्परा में इसका समर्थन करते हुए बताया गया है कि ‘नन्द राजा के पास अतुल सम्पत्ति थी जिसको पाटलि (पाटलिपुत्र) में उसने संचित किया तथा फिर गंगा की धारा में उसे छिपा दिया।*

  • The Beginnings of South Indian History. (p. 89) — Aiyangar*

इसी प्रकार कथासरित्सागर से सूचना मिलती है कि नन्दों के पास ११ करोड़ स्वर्ण मुद्रायें थीं।

किन्तु अपनी असीम शक्ति तथा सम्पत्ति के बावजूद भी वह जनता का विश्वास नहीं प्राप्त कर सका। उसके राज्य की प्रजा उससे घृणा करती थी। उसने अपने शासन काल में जनमत की घोर उपेक्षा की तथा अपने समय के प्रतिष्ठित आचार्य चाणक्य को अपमानित किया था। वह छोटी-छोटी वस्तुओं के ऊपर भारी-भारी कर लगाकर जनता से बलपूर्वक धन वसूल करता था। इसका फल यह हुआ कि जनता नन्दों के शासन के विरुद्ध हो गयी थी। चतुर्दिक् घृणा एवं असन्तोष का वातावरण व्याप्त हो गया। इस असन्तोष का लाभ उठाकर चाणक्य एवं चन्द्रगुप्त मौर्य ने धननन्द की हत्या कर उसके वंश का अन्त किया।

नंद शासन का महत्त्व

नन्द राजाओं का शासन काल भारतीय इतिहास के पृष्ठों में अपना एक अलग महत्त्व रखता है। यह भारत के सामाजिक-राजनैतिक आन्दोलन का एक महत्वपूर्ण पहलू है।*

  • Age of the Nandas and the Mauryas. — Nilkanth Shashtri.*

सामाजिक दृष्टि से इसे ‘निम्न वर्ग’ के उत्कर्ष का प्रतीक माना जा सकता है। उसका राजनीतिक महत्त्व इस तथ्य में निहित है कि इस वंश के राजाओं ने उत्तर भारत में सर्वप्रथम एकछत्र शासन की स्थापना की। उन्होंने एक ऐसी सेना तैयार की थी जिसका उपयोग परवर्ती मगध राजाओं ने विदेशी आक्रमणकारियों को रोकने तथा भारतीय सीमा में अपने राज्य का विस्तार करने में किया।*

  • Age of the Nandas and the Mauryas. Nilkanth Shastri.*

मगध का उत्कर्ष लगभग उसी समय प्रारम्भ हुआ था जब हखामनी वंश के नेतृत्व में ईरान का नेतृत्व प्रारम्भ हो रहा था। ६ठीं शताब्दी ईसा पूर्व में पश्चिमोत्तर में ईरानी आक्रमण हुआ और चौथी शताब्दी ई०पू० में सिकन्दर के नेतृत्व में भारत पर आक्रमण किया परन्तु यह नंद वंश की सैन्य शक्ति ही थी कि जिससे भयभीत होकर सिकन्दर की सेना ने व्यास नदी से आगे प्रयाण करने से मना कर दिया। बाध्य होकर सिकन्दर को व्यास नदी से वापस लौटना पड़ा।

नन्द राजाओं के समय में मगध राजनीतिक दृष्टि से अत्यन्त शक्तिशाली तथा आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त समृद्धिशाली साम्राज्य बन गया था। नन्दों की अतुल सम्पत्ति को देखते हुए यह अनुमान करना स्वाभाविक है कि हिमालय पार के देशों के साथ उनका व्यापारिक सम्बन्ध था। साइबेरिया की ओर से वे स्वर्ण मैगाते थे।

जेनोफोन की साइरोपेडिया से पता चलता है कि भारत का एक शक्तिशाली राजा पश्चिमी एशियाई देशों के झगड़ों को मध्यस्थता करने की इच्छा रखता था। इस भारतीय शासक को ‘अत्यन्त धनी व्यक्ति’ कहा गया है जिसका संकेत नन्दवंश के शासक धननन्द की ओर ही है।

सातवीं शती के चीनी यात्री हुएनसांग ने भी नन्दों के अतुल सम्पत्ति की कहानी सुनी थी। उसके अनुसार पाटलिपुत्र में पाँच स्तूप थे जो नन्द राजा के सात बहुमूल्य पदार्थों द्वारा संचित कोषागारों का प्रतिनिधित्व करते थे।

मगध की आर्थिक समृद्धि ने राजधानी पाटलिपुत्र को शिक्षा एवं साहित्य का प्रमुख केन्द्र बना दिया। व्याकरणाचार्य पाणिनि महापद्मनन्द के मित्र थे और उन्होंने पाटलिपुत्र में ही रहकर शिक्षा पायी थी। वर्ष, उपवर्ष, वररुचि, कात्यायन जैसे विद्वान् भी नन्द काल में ही उत्पन्न हुए थे।

नन्द शासक जैनमत के पोषक थे तथा उन्होंने अपने शासन में कई जैन मंत्रियों को नियुक्त किया था। इनमें प्रथम मंत्री ‘कल्पक’ था जिसकी सहायता से महापद्मनन्द ने समस्त क्षत्रियों का विनाश कर डाला था। धननन्द के जैन अमात्य शाकटाल तथा स्थूलभद्र थे। मुद्राराक्षस से भी नन्दों का जैन मतानुयायी होना सूचित होता है। इस प्रकार नन्द राजाओं के काल में मगध साम्राज्य राजनीतिक तथा सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से प्रगति के पथ पर अग्रसर हुआ।

मगध का उदय : कारण

मगध का प्राचीन इतिहास या मगध का पहला ऐतिहासिक राजवंश

हर्यंक वंश या पितृहंता वंश

शैशुनाग वंश या शिशुनाग वंश

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