मगध का प्राचीन इतिहास या मगध का पहला ऐतिहासिक राजवंश

भूमिका

‘मगध का प्राचीन इतिहास’ छठी शताब्दी ई०पू० के पहले बहुत स्पष्ट नहीं है। पूर्व वैदिक काल में गंगा नदी के पूर्व के भू-भाग से आर्यों परिचित नहीं थे। उत्तर वैदिक काल में आर्यों का प्रसार पूर्व की ओर हुआ। मगध, अंग इत्यादि के विवरण उत्तर वैदिक साहित्यों में मिलने लगता है परन्तु ये क्षेत्र आर्य सभ्यता से बाहर थे। महाभारत काल में यहाँ के शासक जरासंध का उल्लेख मिलता है। कुल मिलाकर ६ठीं शताब्दी ईसा पूर्व पहले मगध का इतिहास अस्पष्ट है।

छठीं शताब्दी से पूर्व मगध का धुँधला इतिहास

मगध का उल्लेख पहली बार अथर्ववेद में मिलता है। ऋग्वेद में यद्यपि मगध का उल्लेख नहीं मिलता, तथापि कीकट (किरात) नामक जाति और इसके शासक प्रमगंद का उल्लेख मिलता है। अस्पष्ट रूप से इसकी (कीकट) पहचान मगध से की गयी है।
मागध और व्रात्यों का उल्लेख वैदिक साहित्य में उपेक्षा और अवहेलना की दृष्टि से किया गया है। अथर्वसंहिता के व्रात्यभाग में ब्राह्मण-सीमा के बाहर रहनेवाले व्रात्य को पुंश्चली या वेश्या और मगध से संबद्ध कहा गया है। वेदों में मगध के ब्राह्मणों (ब्रह्मबंधु) को निम्न श्रेणी का माना गया है; क्योंकि उनके संस्कार ब्राह्मण-विधियों के अनुसार नहीं हुए थे।
वैदिक साहित्य से मगध के इतिहास की स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती। इसमें प्रमगंद के अतिरिक्त मगध के अन्य किसी शासक का उल्लेख नहीं हुआ है। मगध के प्राचीन इतिहास की रूपरेखा महाभारत तथा पुराणों में मिलती है। इन ग्रंथों के अनुसार मगध के सबसे प्राचीन राजवंश का संस्थापक बृहद्रथ था। बृहद्रथ जरासंध का पिता एवं वसु चैद्य-उपरिचर का पुत्र था। मगध की आरम्भिक राजधानी वसुमती या गिरिव्रज की स्थापना का श्रेय वसु को ही था।
बृहद्रथ का पुत्र जरासंध एक पराक्रमी शासक था, जिसने अनेक राजाओं को पराजित किया। अंततोगत्वा उसे श्रीकृष्ण के निर्देश पर भीम के हाथों पराजित होकर मरना पड़ा। रिपुंजय इस वंश (बृहद्रथ) का अंतिम शासक था। वह एक कमजोर और अयोग्य राजा था। अतः उसके मंत्री पुलिक ने उसकी हत्या करवाकर अपने पुत्र को गद्दी पर बिठाया। इसी के साथ मगध में एक नये राजवंश का उदय हुआ।
जैनग्रंथों में राजगृह के दो शासकों— समुद्रविजय तथा गया का भी उल्लेख मिलता है, परंतु उनकी वंशावली स्पष्ट नहीं है।

हर्यंक या शैशुनाग राजवंश

मगध का प्रथम ऐतिहासिक राजवंश कौन था? – हर्यंक या शैशुनाग

मगध साम्राज्य पर शासन करने वाले प्रथम राजवंश के विषय में पुराणों तथा बौद्ध ग्रन्थों में अलग-अलग विवरण मिलता है।

पुराणों के अनुसार मगध पर सर्वप्रथम बार्हद्रथ राजवंश का शासन था। इसी वंश का राजा जरासंघ था जिसने गिरिब्रज को अपनी राजधानी बनायी थी। तत्पश्चात् वहाँ प्रद्योत वंश का शासन स्थापित हुआ। प्रद्योत वंश का अन्त करके शिशुनाग ने अपने वंश की स्थापना की। शैशुनाग वंश के बाद नन्द वंश ने शासन किया।

पुराणों के अनुसार

राजा का नाम राज्य काल
१.    शिशुनाग ४० वर्ष
२.    काकवर्ण २६ वर्ष
३.    क्षेमधर्मन् ३६ वर्ष
४.    क्षिमजित् या क्षत्रौजस २४ वर्ष
५.    बिम्बिसार २८ वर्ष
६.    अजातशत्रु २७ वर्ष
७.    दर्शक २४ वर्ष
८.    उदायिन् ३३ वर्ष
९.    नन्दिवर्ध्दन ४० वर्ष
१०. महानन्दिन् ४३ वर्ष
११. महापद्म और उसके ८ पुत्र १०० वर्ष

( कुछ इतिहासकारों के अनुसार ४० वर्ष )

बौद्ध ग्रन्थ के लेखक बार्हद्रथ वंश का कोई भी उल्लेख नहीं करते हैं। प्रद्योत तथा उसके वंश को अवन्ति से सम्बन्धित करते हैं, बिम्बिसार तथा उसके उत्तराधिकारियों को शिशुनाग का पूर्वगामी बताते हैं और अन्त में नन्दों को रखते हैं।

बौद्ध साहित्य के अनुसार

राजवंश राजा का नाम शासनकाल
हर्यंक वंश

( ५४४ – ४१२ ई०पू० )

१.    बिम्बिसार ५२ वर्ष (५४४-४९२ ई०पू०)
२.    अजातशत्रु ३२ वर्ष (≈४९२-४६० ई०पू०)
३.    उदायिन् और उसके उत्तराधिकारी ४८ वर्ष (≈४६०-४१२ ई०पू०)
शैशुनाग वंश

( ४१२ – ३४४ ई०पू० )

१.    शिशुनाग १८ वर्ष (≈४१२-३९४ ई०पू०)
२.    काकवर्ण २८ वर्ष (३९४-३६६ ई०पू०)
३.    काकवर्ण के १० पुत्र २२ वर्ष (३६६-३४४ ई०पू०)
नन्द वंश

( ३४४ – ३२४/२३ ई०पू० )

१.    उग्रसेन महानन्द और उसके ८ पुत्र २२ वर्ष (३४४-३२३ ई०पू०)

पुराणों तथा बौद्ध ग्रन्थों में वर्णित मगध के राजाओं के क्रम की आलोचनात्मक समीक्षा करने के पश्चात् बौद्ध ग्रन्थों का क्रम ही अधिक तर्कसंगत प्रतीत होता है। इनके अनुसार मगध का प्रथम शासक बिम्बिसार था जो हर्यक वंश से संबंधित था। शैशुनाग वंश हर्यंक वंश का परवर्ती था। यह मानने के लिये निम्नलिखित कारण है —

  • शिशुनाग का पुत्र कालाशोक अथवा काकवर्ण था। उसके समय में वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति हुई थी। वैशाली को सर्वप्रथम अजातशत्रु ने जीत कर मगध में मिला लिया था। इससे स्पष्ट है कि कालाशोक अजातशत्रु के बाद राजा बना था। कुछ बौद्ध ग्रन्थों में संगीति का स्थल पाटलिपुत्र दिया गया है। पुराणों के अनुसार इस नगर को स्थापना अजातशत्रु के पुत्र उदायिन् ने की थी। इससे भी हर्यंक कुल शैशुनाग कुल का पूर्वगामी सिद्ध होता है।
  • पुराणों के अनुसार अवन्ति के प्रद्योत वंश का विनाश शिशुनाग ने किया था। प्रद्योत बिम्बिसार का समकालीन था। उसके उत्तराधिकारियों का विनाश शिशुनाग द्वारा किया गया। यह तभी सम्भव है जब हम शिशुनाग को विम्बिसार का परवर्ती मानें।
  • पुराणों से ज्ञात होता है कि शिशुनाग ने अपने पुत्र को वाराणसी का उपराजा बनाया था। बौद्ध साक्ष्यों के अनुसार वाराणसी पर मगध का अधिकार अंशतः बिम्बिसार के समय में और पूर्णतः अजातशत्रु के समय में हो पाया था। शिशुनाग के काल में तो काशी मगध का अभिन्न अंग बन चुका था। इससे भी हर्यंक वंश शैशुनाग वंश का पूर्वगामी सिद्ध होता है।

निष्कर्ष

इस तरह पुराण और बौद्ध ग्रंथों के समालोचनात्मक अध्यनोपरांत हम कह सकते हैं कि पुराणों में भ्रमवश ही शिशुनाग को मगध का प्रथम शासक बताया गया है। बौद्ध साहित्यों में वर्णित मगध की राजवंशावली सत्यता के अधिक नजदीक है।

छठीं शताब्दी ईशा पूर्व से ‘मगध का प्राचीन इतिहास’ स्पष्ट होने लगता है। इसकी शुरुआत ५४४ ई०पू० में हर्यंक वंशी बिम्बिसार के गद्दी पर बैठने से शुरू होता है। हर्यंक वंश के बाद शैशुनाग वंश और नन्द वंश ने शासन किया।

द्वितीय नगरीय क्रांति

महाजनपद काल

बुद्धकालीन गणराज्य

मगध का उदय : कारण

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