प्राचीन भारतीय इतिहास

अशोक के अभिलेख

भूमिका मौर्य सम्राट अशोक ‘प्रियदर्शी’ का इतिहास हमें मुख्यतः उनके अभिलेखों से ज्ञात होता है। उसके अभी तक ४७ से भी अधिक स्थलों से अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं जो भारतीय उप-महाद्वीप के एक कोने से दूसरे कोने तक बिखरे पड़े हैं। जहाँ एक ओर ये अभिलेख उसकी साम्राज्य-सीमा के निर्धारण में सहायक हैं, वहीं […]

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अशोक शासक के रूप में

भूमिका सम्राट अशोक शासक के रूप में कैसे थे इसका मूल्यांकन हम उनके द्वारा प्रशासनिक सुधारों और लोककल्याणकारी कृत्यों के माध्यम से जाँच-परख सकते हैं। प्रश्न यह उठता है कि क्या अशोक के धम्म न अशोक के शासकीय कर्त्तव्यों के निर्वहन में व्यवधान डाला या उसे और सही दिशा में प्रेरित-उत्साहित किया? शासन संगठन का

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अशोक का मूल्यांकन या इतिहास में अशोक का स्थान

भूमिका अशोक न केवल भारतीय इतिहास के अपितु विश्व इतिहास के महानतम सम्राटों में से एक है। वह एक महान् विजेता, कुशल प्रशासक एवं सफल धार्मिक नेता थे। चाहे जिस दृष्टि से सम्राट अशोक की उपलब्धियों का मूल्यांकन किया जाय, वह सर्वथा योग्य सिद्ध होते हैं। उसमें “चन्द्रगुप्त मौर्य जैसी शक्ति, समुद्रगुप्त जैसी बहुमुखी प्रतिभा

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अशोक की परराष्ट्र नीति

भूमिका अशोक की परराष्ट्र नीति को उसकी धम्म नीति ने प्रभावित किया तथा अशोक ने अपने पड़ोसियों के साथ शान्ति एवं सह-अस्तित्व के सिद्धान्तों के आधार पर अपने सम्बन्ध स्थापित किये। अशोक विदेशी राज्यों के साथ सम्बन्धों के महत्त्व से भली-भाँति परिचित थे। साम्राज्य के पश्चिमी तथा दक्षिणी सीमा पर स्थित राज्यों के साथ उसने

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अशोक का साम्राज्य विस्तार

भूमिका यद्यपि अशोक ने कश्मीर, खस, नेपाल और कलिंग-विजय के अतिरिक्त किसी सैन्याभिमान में भाग नहीं लिया था। इसमें भी राज्याभिषेक के बाद कलिंग अभियान सम्राट अशोक की एकमात्र विजय थी। तथापि अशोक प्रियदर्शी के अभिलेखीय प्रमाणों से साम्राज्य का जो विस्तार उभरकर आता है वह भारतीय इतिहास की सबसे विशाल साम्राज्य अकाट्य रूप से

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अशोक का धम्म

भूमिका अशोक का धम्म ही वह तत्व है जो इतिहास में उसे सभी शासकों से अलग श्रेणी में लाकर खड़ा देता है। अपनी प्रजा के नैतिक उत्थान के लिये इतना प्रयास? इतनी कर्मठता? यहाँ तक की जीवमात्र लिये करुणा भाव। धम्म पर सर्वांगीण विचार करने से पहले हम सभी पहलुओं को जान लेते हैं, यथा

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कलिंग युद्ध : कारण और परिणाम (२६१ ई०पू०)

भूमिका अपने राज्याभिषेक के बाद अशोक ने अपने पिता एवं पितामह की दिग्विजय की नीति का अनुसरण किया। इस समय कलिंग का राज्य मगध साम्राज्य की प्रभुसत्ता को चुनौती दे रहा था। कलिंग युद्ध सम्राट अशोक के राज्याभिषेक के ८वें वर्ष हुआ था। इसका विवरण अशोक के १३वें बृहद् शिला प्रज्ञापन में मिलता है। [

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अशोक ‘प्रियदर्शी’ (२७३-२३२ ई० पू०)

भूमिका बिन्दुसार की मृत्यु के पश्चात् उनके सुयोग्य और सुपात्र पुत्र अशोक ‘प्रियदर्शी’ विशाल मौर्य साम्राज्य की गद्दी पर बैठे। अशोक ‘प्रियदर्शी’ विश्व इतिहास के उन महानतम् सम्राटों में अपना सर्वोपरि स्थान रखते हैं जिन्होंने अपने युग पर अपने व्यक्तित्व की छाप लगा दी और भावी पीढ़ियाँ जिनका नाम अत्यन्त श्रद्धा एवं कृतज्ञता के साथ

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बिन्दुसार मौर्य ‘अमित्रघात’ ( २९८ ई०पू० – २७२ ई०पू )

भूमिका चन्द्रगुप्त मौर्य के पश्चात् उनके पुत्र बिन्दुसार मौर्य साम्राज्य की गद्दी पर बैठे। बिन्दुसार के जीवन तथा उपलब्धियों के विषय मे हमारा ज्ञान अत्यल्प है। उसकी महानता इस तथ्य में निहित है कि उसने अपने पिता से जिस विशाल साम्राज्य को उत्तराधिकार में प्राप्त किया था उसे अक्षुण्ण बनाये रखा। सम्राट बिन्दुसार की उपलब्धियाँ

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मेगस्थनीज और उनकी इंडिका ( Megasthenes and His Indika )

भूमिका मेगस्थनीज ( Megasthenes) यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर के राजदूत के रूप में पाटलिपुत्र आये और लगभग ५ या ६ वर्षों ( ३०४ ई०पू० से २९९ ई०पू० ) तक यहाँ रहे थे। इसके पूर्व मेगस्थनीज आरकोसिया के क्षेत्र के राजसभा में सेल्युकस ( Seleucus ) के राजदूत रह चुके थे। उसने चंद्रगुप्त मौर्य के विषय

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