प्राचीन भारतीय इतिहास

चोल वंश या चोल राज्य : संगमकाल (The Cholas or The Chola’s Kingdom : The Sangam Age)

भूमिका संगम युगीन राज्यों में सर्वाधिक शक्तिशाली चोल राज्य था और साथ ही संगमकाल के तीन प्रमुख राज्यों में से सर्वप्रथम चोलों का अभ्युदय हुआ। चोल राज्य का अभ्युदय कावेरी नदी के डेल्टा और आस-पास के क्षेत्रों पर हुआ। कांची का क्षेत्र भी चोल राज्य का भाग था। और स्पष्ट रूप से कहें तो चोल […]

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किल्लिवलवान (Killivalavan)

भूमिका हमारे पास किल्लिवलवान और उसके शासनकाल के सम्बन्ध में कोई निश्चित विवरण नहीं है। उसके सम्बन्ध में हमें पुरनानुरू (Purananuru) में बिखरे हुए अथवा अपूर्ण कविताओं (fragmentary poems) में मिलता विवरण प्राप्त होते हैं। पुरनानुरू एत्तुथोकै (अष्ट संग्रह) का भाग है। संक्षिप्त विवरण नाम — किल्लिवलवान या किलिवलवान (Killivalavan) राजधानी — उरैयूर राजवंश —

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नालनकिल्ली या नालंकिल्ली (Nalankilli)

भूमिका नालनकिल्ली करिकाल का पुत्र और उत्तराधिकारी था। करिकाल के बाद का चोल इतिहास बहुत उलझा हुआ है। नालनकिल्लि द्वारा चोलों के एक अन्य शाखा जो उरैयूर मे शासन करती है से एक लम्बा गृहयुद्ध करने का विवरण मिलता है जिसमें वह अन्ततः सफल हुआ। संक्षिप्त परिचय नाम — नालंकिल्ली या नलंकिल्लि या नालनकिल्ली (Nalankilli)

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तोंडैमान इलांडिरैयान (Tondaiman Ilandiraiyan)

भूमिका करिकाल चोल (≈१९० ई०) के समकालीन कांची से शासन करने वाले तोंडैमान इलांडिरैयान का हमें उल्लेख मिलता है। उसका इतिहास मिथकों से आच्छादित है। संक्षिप्त परिचय नाम — तोंडैमान इलांडिरैयान या तोंडैमान इलांदिरैयान या तोण्डैमान इलन्दिरैयन या तोंडाइमन इलैंडिरायन (Tondaiman Ilandiraiyan), इलमतिरायण Ilamtiraiyan करिकाल के समकालीन कांची से शासन स्वयं कवि थे रुद्रनकन्नार कृत

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करिकाल (Karikala)

भूमिका संगम काल का सबसे महत्त्वपूर्ण शासक करिकाल (Karikal) है। प्रारम्भिक चोल शासकों में ही नहीं अपितु वह संगमकालीन शासकों में भी सबसे महान माना जाता है। राजेंद्र चोल प्रथम की थिरुवलंगडु प्लेटों (Thiruvalangadu plates) में मध्यकालीन साम्राज्यवादी चोलों ने करिकाल को अपने पूर्वजों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया है। संक्षिप्त परिचय

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संगम साहित्य का ऐतिहासिक महत्त्व

भूमिका ऐतिहासिक युग के प्रारम्भ में दक्षिण भारत का क्रमबद्ध इतिहास हमें जिस साहित्य से ज्ञात होता है उसे ‘संगम साहित्य’ कहते हैं। इसके पहले का कोई महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रन्थ हमें दक्षिण भारत से प्राप्त नहीं होता है। सुदूर दक्षिण के प्रारम्भिक इतिहास का मुख्य साधन संगम साहित्य ही है। संगम का अर्थ ‘संगम’ शब्द

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तृतीय संगम या तृतीय तमिल संगम

भूमिका ८वीं शताब्दी में इरैयनार अगप्पोरुल (Iraiyanar Agappaorul) के भाष्य की भूमिका में हमें तीन संगमों का विवरण मिलता है। इसके अनुसार ये तीनों संगम ९,९९० वर्ष तक चला। इन तीनों संगमों में ८,५९८ कवियों ने भाग लिया। इसे कुल १९७ पाण्ड्य शासकों का संरक्षण प्राप्त हुआ। इन तीन संगमों में से तृतीय संगम (तृतीय

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द्वितीय संगम या द्वितीय तमिल संगम

भूमिका ८वीं शताब्दी में इरैयनार अगप्पोरुल (Iraiyanar Agappaorul) के भाष्य की भूमिका में हमें तीन संगमों का विवरण प्राप्त होता है। इसके अनुसार ये तीनों संगम ९,९९० वर्ष तक चला, जिसमें ८,५९८ कवियों ने भाग लिया और इसे १९७ पाण्ड्य शासकों का संरक्षण प्राप्त हुआ। इन तीन संगमों में से द्वितीय संगम (द्वितीय तमिल संगम)

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प्रथम संगम या प्रथम तमिल संगम

भूमिका आठवीं शताब्दी में इरैयनार अगप्पोरुल (Iraiyanar Agappaorul) के भाष्य की भूमिका में तीन संगमों का विवरण प्राप्त होता है। इसके अनुसार तीनों संगम ९,९९० वर्ष तक चला, जिसमें ८,५९८ कवियों ने भाग लिया और इसे १९७ पाण्ड्य शासकों का संरक्षण प्राप्त हुआ। इन तीन संगमों में से प्रथम संगम (प्रथम तमिल संगम) का संक्षिप्त

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संगमयुग की तिथि या संगम साहित्य का रचनाकाल

भूमिका मौर्योत्तरकाल में सुदूर दक्षिण में कृष्णा और तुंगभद्रा नदी के दक्षिण में जिस सभ्यता और संस्कृति के हमें दिग्दर्शन होते हैं वह जहाँ एक ओर उत्तर भारतीय संस्कृति से भिन्न थे वहीं वे आर्य संस्कृति के तत्त्वों के लिए ग्रहणशील भी बने हुए थे। परन्तु संगमयुग की तिथि और संगम साहित्य के रचनाकाल के

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