प्राचीन भारतीय इतिहास

आचार्य चाणक्य

भूमिका आचार्य चाणक्य भारतीय इतिहास के उन व्यक्तियों में से हैं जिनका प्रभाव किसी काल विशेष तक सीमित न होकर कालातीत है। चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन निर्माण में आचार्य चाणक्य का सर्वप्रमुख हाथ रहा है। वह इतिहास में विष्णुगुप्त और कौटिल्य इन दो नामों से भी जाने जाते हैं।‘चाणक्य नीति’ वर्तमान में भी प्रासंगिक हैं। […]

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चन्द्रगुप्त मौर्य ( ३२२/३२१ — २९८ ई०पू० ) : जीवन व कार्य

भूमिका मौर्य साम्राज्य के संस्थापक इतिहास में चन्द्रगुप्त मौर्य के नाम से विख्यात है। चन्द्रगुप्त मौर्य भारत के उन महानतम् सम्राटों में से है जिन्होंने अपने व्यक्तित्व तथा कृतित्व से इतिहास के पृष्ठों में क्रान्तिकारी परिवर्तन उत्पन्न किया है।१  Chandra Gupta’s rise to greatness is indeed a romance of history. — Age of Imperial१ चन्द्रगुप्त

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मौर्य राजवंश की उत्पत्ति या मौर्य किस वर्ण या जाति के थे?

भूमिका भारतीय इतिहास के अनेक महान् व्यक्तियों के समान चन्द्रगुप्त मौर्य का वंश भी अंधकारपूर्ण है। मौर्य राजवंश की उत्पत्ति के विषय में ब्राह्मण, बौद्ध तथा जैन ग्रन्थों में परस्पर विरोधी विवरण मिलते हैं। फलस्वरूप उनकी जाति या वर्ण का निर्धारण भारतीय इतिहास की एक जटिल समस्या है। मौर्य राजवंश की उत्पत्ति : तीन मत

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मौर्य इतिहास के स्रोत ( Sources for the History of the Mauryas )

भूमिका मौर्य इतिहास के स्रोत साहित्य और पुरातत्त्व दोनों हैं। साहित्य में स्वदेशी और विदेशी विद्वानों व इतिहासकारों की रचनाओं को सम्मिलित किया जाता है। इस तरह मौर्य राजवंश के तीन प्रकार के स्रोत हो जाते हैं। मौर्य राजवंश और तत्कालीन समाज व संस्कृति के इतिहास जानने के लिये हमें तीनों ही साधनों से पर्याप्त

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प्राग्मौर्यकाल – समाज और संस्कृति ( ६०० ई०पू० से ३२१ ई०पू० )

भूमिका प्राग्मौर्यकाल ( The Pre-Mauryan Age ) गंगाघाटी में सामाजिक तथा आर्थिक परिवर्तनों की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रहा है। इस काल की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का अध्ययन हम ब्राह्मण तथा ब्राह्मणेतर साहित्य के अतिरिक्त विभिन्न स्थलों के उत्खनन से प्राप्त किये गये पुरातात्त्विक अवशेषों के आधार पर भी करते हैं। इस काल के भारतीय जीवन

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भारत पर सिकन्दर का आक्रमण, कारण और प्रभाव

भूमिका हखामनी आक्रमण के पश्चात् पश्चिमोत्तर भारत एक दूसरे यूनानी आक्रमण का शिकार हुआ। यह यूरोपीय विजेता सिकन्दर के नेतृत्व में होने वाला मकदूनियाई आक्रमण था जो पहले की अपेक्षा कहीं अधिक भयावह सिद्ध हुआ। सिकन्दर मेसीडोन के क्षत्रप फिलिप द्वितीय (३५९-३३६ ईसा पूर्व) का पुत्र था। पिता की मृत्यु के पश्चात् २० वर्ष की

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पारसी आक्रमण (हखामनी आक्रमण), कारण और प्रभाव – छठीं शताब्दी ई०पू०

भूमिका भारतवर्ष पर सबसे पहले ‘ईरान’ के शासक ‘साइरस द्वितीय’ ने आक्रमण किया। परन्तु साइरस द्वितीय का आक्रमण असफल रहा। इसके बाद डेरियस या दारा प्रथम का आक्रमण हुआ जिसने पश्चिमोत्तर भारत के कुछ भाग और निचली सिंधु घाटी को अधिकृत कर लिया था। हखामनी (Achaemenes) नामक व्यक्ति द्वारा स्थापित इस राजवंश के अभियान को

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नंद वंश (३४४ से ३२४/२३ ई०पू०)

भूमिका यद्यपि नंद वंश ( नन्द वंश ) की स्थापना महानंदिन ने की तथापि इस वंश का वास्तविक संस्थापक महापद्मनंद था। इस नंद वंशी के शासक जैन धर्मावलम्बी थे। ये जाति से निम्न थे। नंद वंश ने ३४४ ई०पू० से ३२४/३२३ ई०पू० तक मगध साम्राज्य पर शासन किया। इसका अन्तिम शासक धनानंद था जिसे आचार्य

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शैशुनाग वंश या शिशुनाग वंश

भूमिका हर्यंक वंश के बाद शैशुनाग वंश या शिशुनाग वंश ने मगध पर शासन किया। इस राजवंश ने ४१२ ईसा पूर्व से ३४४ ईसा पूर्व ( लगभग ६८ वर्ष ) तक शासन किया। इस वंश में शिशुनाग और कालाशोक जैसे शासक हुए। शिशुनाग शैशुनाग वंश या शिशुनाग वंश की स्थापना ‘शिशुनाग’ ने की और वह

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हर्यंक वंश या पितृहंता वंश

भूमिका हर्यंक वंश के शासक बिम्बिसार के सिंहासनारोहण से मगध के उत्कर्ष का इतिहास प्रारम्भ होता है और यह मौर्य सम्राट अशोक द्वारा कलिंग विजय के साथ अपनी पूर्णता को प्राप्त करता है। ईसा पूर्व छठी शताब्दी से लेकर चन्द्रगुप्त मौर्य के सिंहासनारोहण से पूर्व तीन राजवंशों ने मगध के उत्थान में योगदान दिया :

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