प्राचीन भारतीय इतिहास

मध्य पुरापाषाणकाल ( Middle Palaeolithic Age )

भूमिका मध्य पुरापाषाणकाल ( Middle Palaeolithic Age ) का समय वैज्ञानिक काल-निर्धारण के आधार पर १,५०,००० ई०पू० से ३५,००० ई०पू० के बीच बताया गया है। उपकरण प्रौद्योगिकी में पूर्व पुरापाषाणकाल की अपेक्षा अवश्य विकास हुआ परन्तु आरम्भिक मानव अभी भी शिकारी व खाद्य संग्राहक ही था। अपने पूर्ववर्ती चरण से इसके अन्तर का आधार है : प्रयुक्त […]

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आरम्भिक मानव ( The Earliest People )

भूमिका आरम्भिक मानव के उद्विकास की यात्रा मोटेतौर पर लगभग वर्तमान से २० लाख वर्ष पूर्व प्रारम्भ होती है। यह वही समय है जब पृथ्वी की जलवायु अत्यधिक ठंडी हो गयी। पृथ्वी के एक बड़े क्षेत्र पर हिम-आवरण फैल गया। इसे हिमयुग ( Ice Age ) या अत्यंतनूतन युग ( Pleistocene Epoch ) कहा जाता है।

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पूर्व पुरापाषाणकाल ( Lower Palaeolithic Age )

भूमिका पूर्व पुरापाषाणकाल या निम्न पूर्व पुरापाषाणकाल ( Early or Lower Palaeolithic Age ) सम्पूर्ण रूप से अत्यंतनूतन युग ( हिम युग ) के अंतर्गत आता है। अफ्रीका में यह लगभग २० लाख वर्ष पहले शुरू हुआ जबकि भारतीय उप-महाद्वीप में यह लगभग ६ लाख वर्ष पुराना निर्धारित किया गया है। यद्यपि महाराष्ट्र के पुणे

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पुरापाषाणकाल : अत्यंतनूतन युग व विभाजन का आधार

भूमिका पुरापाषाणकाल ( Palaeolithic Age ) के स्थल भारतीय उप-महाद्वीप के विभिन्न भागों में व्यापक रूप से पाये जाते हैं। पुरापाषाणकाल हिमयुग ( Pleistocene Epoch ) से साम्यता रखता है। दूसरे शब्दों में जब लगभग १०,००० ई०पू० जलवायु में परिवर्तन हुआ और हिमयुग समाप्त हुआ तब मानव के रहन-सहन में भी परिवर्तन आया और पुरापाषाणकाल

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उपकरण प्ररूप : पाषाणकाल

भूमिका आदिमानव की सृजनात्मकता की अभिव्यक्ति प्रस्तर औजारों के रूप में सामने आता है। मानव ने प्रस्तर को कैसे तराशकर उपकरणों का रूप दिया और इसको उपयोगी कैसे बनाया? इनके निर्माण में कौन सी तकनीकी का प्रयोग किया? किन शिलाखण्डों को चुना? जैसे प्रश्न इन उपकरण प्ररूप ( Tool Types ) के अध्ययन से मिलते

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पाषाणकाल : काल विभाजन

भूमिका वास्तव में पाषाणकाल या प्रस्तर युग ( Stone Age ) मानव इतिहास का वह समय है जिसमें उसने अपने उपयोग के लिए प्रस्तर उपकरणों का प्रयोग किया, यथा – प्रस्तर उपकरणों ( Stone Tools ) का उपयोग करना, प्राकृतिक पर्वतीय गुफाओं में निवास आदि। जैसे ही धातु के उपयोग की जानकारी मानव को हुई

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विविधता में एकता (Unity in Diversity)

भूमिका विविधता में एकता (Unity in Diversity) भारतवर्ष की मौलिक विशेषता है। भारत एक विशाल देश है जहाँ प्राकृतिक व सामाजिक स्तर की अनेक विषमतायें दृष्टिगोचर होती हैं। एक ओर उत्तुंग शिखर है तो दूसरी ओर समतल मैदान है, एक ओर अत्यन्त उर्वर प्रदेश तो दूसरी ओर अनुर्वर रेगिस्तान है। यहाँ सभी प्रकार की जलवायु

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भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ

भूमिका भारतीय संस्कृति की कुछ ऐसी विशेषताएँ है जो विश्व की अन्य संस्कृतियों में दृष्टिगत नहीं होतीं। अपने विशिष्ट तत्वों के कारण ही भारतीय संस्कृति ने विश्व के देशों में अपने महत्त्व को बनाये रखा है। इनमें कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं – प्राचीनता निरन्तरता और चिरस्थायिता आध्यात्मिकता ग्रहणशीलता समन्वयवादिता धार्मिक सहिष्णुता सर्वांगीणता सार्वभौमिकता प्राचीनता

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नृजाति और प्रजाति संकल्पना

भूमिका भारतीय सभ्यता व संस्कृति के अध्ययन के लिए नृजाति और प्रजाति की संकल्पना का सूक्ष्म अवगाहन आवश्यक हो जाता है। क्योंकि विभेदकारी शक्तियाँ भारतीय एकता व अखंडता को कमजोर करने के लिए सदैव क्रियाशील रही है। अतः नृजाति और प्रजाति की संकल्पना के पीछे छुपे कुत्सित प्रयास को समझना आवश्यक है। आदिकाल से ही

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मानव उद्विकास ( Human Evolution )

भूमिका मानव उद्विकास ( Human Evolution ) मुख्य रूप से मैदानी रहन-सहन के प्रति एक प्रकार से अनुकूलन की प्रक्रिया है। जिसमें मानव को कई चरणों से गुजरना पड़ा। यह अनुकूलन प्रक्रिया लाखों वर्षों तक चलती रही और यह अब भी अनवरत जारी है। अफ्रीका महाद्वीप को छोड़कर अन्यत्र मानव उद्विकास की प्रक्रिया उलझी हुई

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