प्राचीन भारतीय इतिहास

पुरापाषाणकाल : अत्यंतनूतन युग व विभाजन का आधार

भूमिका पुरापाषाणकाल ( Palaeolithic Age ) के स्थल भारतीय उप-महाद्वीप के विभिन्न भागों में व्यापक रूप से पाये जाते हैं। पुरापाषाणकाल हिमयुग ( Pleistocene Epoch ) से साम्यता रखता है। दूसरे शब्दों में जब लगभग १०,००० ई०पू० जलवायु में परिवर्तन हुआ और हिमयुग समाप्त हुआ तब मानव के रहन-सहन में भी परिवर्तन आया और पुरापाषाणकाल …

पुरापाषाणकाल : अत्यंतनूतन युग व विभाजन का आधार Read More »

उपकरण प्ररूप : पाषाणकाल

भूमिका आदिमानव की सृजनात्मकता की अभिव्यक्ति प्रस्तर औजारों के रूप में सामने आता है। मानव ने प्रस्तर को कैसे तराशकर उपकरणों का रूप दिया और इसको उपयोगी कैसे बनाया? इनके निर्माण में कौन सी तकनीकी का प्रयोग किया? किन शिलाखण्डों को चुना? जैसे प्रश्न इन उपकरण प्ररूप ( Tool Types ) के अध्ययन से मिलते …

उपकरण प्ररूप : पाषाणकाल Read More »

पाषाणकाल : काल विभाजन

भूमिका वास्तव में पाषाणकाल या प्रस्तर युग ( Stone Age ) मानव इतिहास का वह समय है जिसमें उसने अपने उपयोग के लिए प्रस्तर उपकरणों का प्रयोग किया, यथा – प्रस्तर उपकरणों ( Stone Tools ) का उपयोग करना, प्राकृतिक पर्वतीय गुफाओं में निवास आदि। जैसे ही धातु के उपयोग की जानकारी मानव को हुई …

पाषाणकाल : काल विभाजन Read More »

विविधता में एकता (Unity in Diversity)

भूमिका विविधता में एकता (Unity in Diversity) भारतवर्ष की मौलिक विशेषता है। भारत एक विशाल देश है जहाँ प्राकृतिक व सामाजिक स्तर की अनेक विषमतायें दृष्टिगोचर होती हैं। एक ओर उत्तुंग शिखर है तो दूसरी ओर समतल मैदान है, एक ओर अत्यन्त उर्वर प्रदेश तो दूसरी ओर अनुर्वर रेगिस्तान है। यहाँ सभी प्रकार की जलवायु …

विविधता में एकता (Unity in Diversity) Read More »

भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ

भूमिका भारतीय संस्कृति की कुछ ऐसी विशेषताएँ है जो विश्व की अन्य संस्कृतियों में दृष्टिगत नहीं होतीं। अपने विशिष्ट तत्वों के कारण ही भारतीय संस्कृति ने विश्व के देशों में अपने महत्त्व को बनाये रखा है। इनमें कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं – प्राचीनता निरन्तरता और चिरस्थायिता आध्यात्मिकता ग्रहणशीलता समन्वयवादिता धार्मिक सहिष्णुता सर्वांगीणता सार्वभौमिकता प्राचीनता …

भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ Read More »

नृजाति और प्रजाति संकल्पना

भूमिका भारतीय सभ्यता व संस्कृति के अध्ययन के लिए नृजाति और प्रजाति की संकल्पना का सूक्ष्म अवगाहन आवश्यक हो जाता है। क्योंकि विभेदकारी शक्तियाँ भारतीय एकता व अखंडता को कमजोर करने के लिए सदैव क्रियाशील रही है। अतः नृजाति और प्रजाति की संकल्पना के पीछे छुपे कुत्सित प्रयास को समझना आवश्यक है। आदिकाल से ही …

नृजाति और प्रजाति संकल्पना Read More »

मानव उद्विकास ( Human Evolution )

भूमिका मानव उद्विकास ( Human Evolution ) मुख्य रूप से मैदानी रहन-सहन के प्रति एक प्रकार से अनुकूलन की प्रक्रिया है। जिसमें मानव को कई चरणों से गुजरना पड़ा। यह अनुकूलन प्रक्रिया लाखों वर्षों तक चलती रही और यह अब भी अनवरत जारी है। अफ्रीका महाद्वीप को छोड़कर अन्यत्र मानव उद्विकास की प्रक्रिया उलझी हुई …

मानव उद्विकास ( Human Evolution ) Read More »

भारतीय सभ्यता और संस्कृति के स्रोत । प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत

भूमिका सभ्यता और संस्कृति को प्रायः समानार्थी रूप में प्रयुक्त कर दिया जाता है। परन्तु इसमें भेद है। सभ्यता ( सभ्य + तल् + टाप् ) का शाब्दिक अर्थ है सभ्य होने का भाव या नम्रता और शिष्टता। सभ्यता का सम्बन्ध सामाजिकता से है और इसके अन्तर्गत कुछ विधि-निषेधों का पालन किया जाता है। आँग्ल …

भारतीय सभ्यता और संस्कृति के स्रोत । प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत Read More »

भारतवर्ष का नामकरण

भूमिका हमारे देश भारत का नाम ऋग्वैदिक जन ‘भरत’ के नाम पर भारतवर्ष पड़ा है। यद्यपि भारतीय संविधान के अनुच्छेद – १ में इसे ‘भारत अर्थात् इंडिया’ कहा गया है। भारतवर्ष शब्द के प्रयोग का अभिलेखीय साक्ष्य सर्वप्रथम खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख में मिलता है। यहाँ पर यह शब्द गंगा घाटी या उत्तरी भारत के संदर्भ में …

भारतवर्ष का नामकरण Read More »

हड़प्पा सभ्यता या सिन्धु घाटी सभ्यता

 हड़प्पा सभ्यता या सिन्धु घाटी सभ्यता भूमिका कांस्य युगीन सभ्यता के अन्तर्गत हड़प्पा सभ्यता आती है। जब ताँबे में टिन को मिलाकर कांस्य नामक मिश्रधातु का प्रयोग मानव ने किया। कांस्य सभ्यता सामान्यतः नगरीय सभ्यता कहलाती है। भारतीय उप-महाद्वीप में प्रथम नगरीकरण इसी समय हुआ। हड़प्पा सभ्यता ‘आद्य इतिहास’ के अन्तर्गत आता है। इसे इस …

हड़प्पा सभ्यता या सिन्धु घाटी सभ्यता Read More »