प्राचीन भारतीय इतिहास

उदियन चेरन आदन (Uthiyan Cheralathan)

भूमिका उपलब्ध साहित्यिक स्रोतों के अनुसार उदियन चेरन आदन का प्रारम्भिक ऐतिहासिक दक्षिण भारत के सबसे पुराना ज्ञात चेर शासक था। संगमकाल का इतिहास बहुत ही उलझा हुआ है| उदियन जेरल के संबंध में भी यही तथ्य उभरकर आता है| एक तो उसे करिकाल का समकालीन बताया गया है और उसने वेण्णि के युद्ध में […]

उदियन चेरन आदन (Uthiyan Cheralathan) Read More »

चेर राज्य या चेर राजवंश : संगमकाल (The Chera Kingdom or The Chera Dynasty : The Sangam Age)

भूमिका संगमयुगीन तीन अभिषिक्त राज्यों में चेर राज्य भी था। यह आधुनिक केरल प्रान्त में स्थित था। इसके अन्तर्गत कोयम्बटूर का कुछ भाग तथा सलेम (प्राचीन कोंगू जनपद) भी सम्मिलित थे। संगमकालीन कवियों ने चेरों की प्राचीनता महाभारत के युद्ध से जोड़ने का प्रयास किया है जोकि काल्पनिक है। रोमनों ने अपने हितों की रक्षा

चेर राज्य या चेर राजवंश : संगमकाल (The Chera Kingdom or The Chera Dynasty : The Sangam Age) Read More »

पाण्ड्य राजवंश या पाण्ड्य राज्य : संगमकाल (The Pandya Dynasty or Pandya Kinds: The Sangam Age)

भूमिका संगमकालीन तीन अभिषिक्त शासकों में पाण्ड्य भी थे। तीनों संगमों के संरक्षक पाण्ड्य ही थे। इसका उल्लेख हमें मेगस्थनीज और अशोक के अभिलेखों में भी मिलता है। संगम साहित्य में पाण्ड्य राजाओं का जो विवरण प्राप्त होता है वह अत्यन्त भ्रामक है तथा उसके आधार पर हम उनके इतिहास का क्रमबद्ध विवरण नहीं जान

पाण्ड्य राजवंश या पाण्ड्य राज्य : संगमकाल (The Pandya Dynasty or Pandya Kinds: The Sangam Age) Read More »

चोल वंश या चोल राज्य : संगमकाल (The Cholas or The Chola’s Kingdom : The Sangam Age)

भूमिका संगम युगीन राज्यों में सर्वाधिक शक्तिशाली चोल राज्य था और साथ ही संगमकाल के तीन प्रमुख राज्यों में से सर्वप्रथम चोलों का अभ्युदय हुआ। चोल राज्य का अभ्युदय कावेरी नदी के डेल्टा और आस-पास के क्षेत्रों पर हुआ। कांची का क्षेत्र भी चोल राज्य का भाग था। और स्पष्ट रूप से कहें तो चोल

चोल वंश या चोल राज्य : संगमकाल (The Cholas or The Chola’s Kingdom : The Sangam Age) Read More »

किल्लिवलवान (Killivalavan)

भूमिका हमारे पास किल्लिवलवान और उसके शासनकाल के सम्बन्ध में कोई निश्चित विवरण नहीं है। उसके सम्बन्ध में हमें पुरनानुरू (Purananuru) में बिखरे हुए अथवा अपूर्ण कविताओं (fragmentary poems) में मिलता विवरण प्राप्त होते हैं। पुरनानुरू एत्तुथोकै (अष्ट संग्रह) का भाग है। संक्षिप्त विवरण नाम — किल्लिवलवान या किलिवलवान (Killivalavan) राजधानी — उरैयूर राजवंश —

किल्लिवलवान (Killivalavan) Read More »

नालनकिल्ली या नालंकिल्ली (Nalankilli)

भूमिका नालनकिल्ली करिकाल का पुत्र और उत्तराधिकारी था। करिकाल के बाद का चोल इतिहास बहुत उलझा हुआ है। नालनकिल्लि द्वारा चोलों के एक अन्य शाखा जो उरैयूर मे शासन करती है से एक लम्बा गृहयुद्ध करने का विवरण मिलता है जिसमें वह अन्ततः सफल हुआ। संक्षिप्त परिचय नाम — नालंकिल्ली या नलंकिल्लि या नालनकिल्ली (Nalankilli)

नालनकिल्ली या नालंकिल्ली (Nalankilli) Read More »

तोंडैमान इलांडिरैयान (Tondaiman Ilandiraiyan)

भूमिका करिकाल चोल (≈१९० ई०) के समकालीन कांची से शासन करने वाले तोंडैमान इलांडिरैयान का हमें उल्लेख मिलता है। उसका इतिहास मिथकों से आच्छादित है। संक्षिप्त परिचय नाम — तोंडैमान इलांडिरैयान या तोंडैमान इलांदिरैयान या तोण्डैमान इलन्दिरैयन या तोंडाइमन इलैंडिरायन (Tondaiman Ilandiraiyan), इलमतिरायण Ilamtiraiyan करिकाल के समकालीन कांची से शासन स्वयं कवि थे रुद्रनकन्नार कृत

तोंडैमान इलांडिरैयान (Tondaiman Ilandiraiyan) Read More »

करिकाल (Karikala)

भूमिका संगम काल का सबसे महत्त्वपूर्ण शासक करिकाल (Karikal) है। प्रारम्भिक चोल शासकों में ही नहीं अपितु वह संगमकालीन शासकों में भी सबसे महान माना जाता है। राजेंद्र चोल प्रथम की थिरुवलंगडु प्लेटों (Thiruvalangadu plates) में मध्यकालीन साम्राज्यवादी चोलों ने करिकाल को अपने पूर्वजों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया है। संक्षिप्त परिचय

करिकाल (Karikala) Read More »

संगम साहित्य का ऐतिहासिक महत्त्व

भूमिका ऐतिहासिक युग के प्रारम्भ में दक्षिण भारत का क्रमबद्ध इतिहास हमें जिस साहित्य से ज्ञात होता है उसे ‘संगम साहित्य’ कहते हैं। इसके पहले का कोई महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रन्थ हमें दक्षिण भारत से प्राप्त नहीं होता है। सुदूर दक्षिण के प्रारम्भिक इतिहास का मुख्य साधन संगम साहित्य ही है। संगम का अर्थ ‘संगम’ शब्द

संगम साहित्य का ऐतिहासिक महत्त्व Read More »

तृतीय संगम या तृतीय तमिल संगम

भूमिका ८वीं शताब्दी में इरैयनार अगप्पोरुल (Iraiyanar Agappaorul) के भाष्य की भूमिका में हमें तीन संगमों का विवरण मिलता है। इसके अनुसार ये तीनों संगम ९,९९० वर्ष तक चला। इन तीनों संगमों में ८,५९८ कवियों ने भाग लिया। इसे कुल १९७ पाण्ड्य शासकों का संरक्षण प्राप्त हुआ। इन तीन संगमों में से तृतीय संगम (तृतीय

तृतीय संगम या तृतीय तमिल संगम Read More »

Index
Scroll to Top