बौद्ध संगीतियाँ

बौद्ध संगीतियाँ बौद्ध धर्म की विकास-यात्रा में ४ बौद्ध संगीतियों / महासभाओं का महत्वपूर्ण स्थान है :— प्रथम बौद्ध संगीति  स्थान – सप्तपर्णि गुफा, राजगृह समय – ४८३ ई०पू० शासनकाल – अजातशत्रु  अध्यक्ष – महाकस्सप उद्देश्य – बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन करना था।  महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के तत्काल बाद यह संगीति आयोजित की गयी।  […]

बौद्ध संगीतियाँ Read More »

बौद्ध संघ

 भूमिका बौद्ध संघ का बौद्ध धर्म में महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह बौद्ध त्रिरत्नों ( बुद्ध, धम्म और संघ ) में शामिल है। ऋषिपत्तन में अपना प्रथम उपदेश ( धर्मचक्रप्रवर्तन ) देने के बाद बुद्ध ने पाँच ब्राह्मण शिष्यों के साथ बौद्ध संघ की स्थापना की थी। बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में संघ ने महती भूमिका का निर्वहन

बौद्ध संघ Read More »

बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार

बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार परिचय बोधगया में ज्ञानोदय बाद महात्मा बुद्ध ने प्राप्त ज्ञान को लोगों तक पहुँचाने का निर्णय लिया। इसके लिए वे जीवनपर्यंत प्रयासरत रहे। बुद्ध वर्षा ऋतु में विभिन्न नगरों में विश्राम करते और शेष आठ माह एक स्थान से दूसरे स्थान भ्रमण करके अपने मत का प्रचार करते।   धर्मचक्रप्रवर्तन गया

बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार Read More »

महात्मा बुद्ध के उपदेश और शिक्षायें

महात्मा बुद्ध के उपदेश और शिक्षायें परिचय ज्ञान प्राप्ति के बाद महात्मा बुद्ध ने अपने मत के प्रचार का निश्चय किया। ज्ञान की प्राप्ति से लेकर जीवन के अंतिम समय तक वो अपने मत के प्रचार-प्रसार में लगे रहे।   धर्मचक्रप्रवर्तन ज्ञान को पा लेने के बाद महात्मा बुद्ध गया से ऋषिपत्तन / मृगदाव (

महात्मा बुद्ध के उपदेश और शिक्षायें Read More »

बौद्ध दर्शन

बौद्ध दर्शन    परिचय बुद्ध अनेक पेचीदे दार्शनिक प्रश्नों पर मौन रहे; जैसे — यह संसार नित्य और शाश्वत है अथवा नहीं। बुद्ध की मान्यता थी कि किसी रोग के कारण के बारे में जानने या वाद-विवाद में समय व्यतीत करने से उत्तम है कि उसके निदान का प्रयास तुरंत किया जाय। इस सम्बन्ध में

बौद्ध दर्शन Read More »

गौतम बुद्ध

गौतम बुद्ध  भूमिका ई०पू० छठवीं शताब्दी के नास्तिक सम्प्रदाय के आचार्यों में गौतम बुद्ध का नाम सूर्य के समान देदीप्यमान है। जिस धर्म का उन्होंने प्रवर्तन किया वह कालान्तर में एक अन्तर्राष्ट्रीय धर्म बन गया।  यदि विश्व के ऊपर उनके मरणोत्तर प्रभावों के आधार पर उनका मूल्यांकन किया जाय तो वे भारत में जन्म लेने

गौतम बुद्ध Read More »

भारतीय दर्शन – एक सामान्य परिचय

परिचय भारतीय दर्शन के तत्त्व हमें वैदिक ऋषियों की काल्पनिक उड़ानों में अपनी विशिष्टता के साथ बीजरूप में दृष्टिगोचर होते हैं, जो आगे चलकर शंकर के अद्वैत वेदांत में चरमोत्कर्ष को प्राप्त हुआ। हमारे ऋषिगण सत्य की खोज में बराबर प्रयत्नशील रहे, जिसके फलस्वरूप कई दार्शनिक सम्प्रदायों की उत्पत्ति हुई, जिन्होंने जीव और जगत् को

भारतीय दर्शन – एक सामान्य परिचय Read More »

सांख्य दर्शन

सांख्य दर्शन   परिचय सांख्य दर्शन सभी प्राचीन दर्शनों में सबसे प्राचीन है। इसके प्रवर्तक महर्षि कपिल हैं। इसकी सबसे प्राचीन और प्रामाणिक ग्रंथ ‘सांख्यकारिका’ है जिसकी रचना ईश्वरकृष्ण ने की थी। विद्वान गोविन्द चन्द्र पाण्डेय ने इसकी उत्पत्ति अवैदिक श्रमण विचारधारा से माना है।  सांख्य के दो अर्थ हैं — संख्या और सम्यक् ज्ञान। इसमें २५

सांख्य दर्शन Read More »

जैन धर्म की देन

भूमिका जैन धर्म की देन प्रमुख रूप से निम्नवत् है :— साहित्य और कला के क्षेत्र में  सामाजिक देन धर्म और दर्शन के क्षेत्र में  राजनीतिक प्रभाव अन्य भाषा और साहित्य  जैन मतावलंबियों ने विभिन्न समयों में लोकभाषाओं के माध्यम से अपने मत का प्रचार-प्रसार किया। प्राकृत, अपभ्रंश, कन्नड़, तमिल, तेलुगु आदि क्षेत्रिय भाषाओं में

जैन धर्म की देन Read More »

बौद्ध धर्म के सम्प्रदाय

परिचय प्रथम शताब्दी ईसवी तक बौद्ध मतानुयायियों की संख्या बहुत बढ़ गयी थी। अनेकानेक लोग नवीन विचारों एवं भावनाओं के साथ प्रविष्ट हो रहे थे। ऐसे में भिक्षुओं का एक समूह समयानुकूल परिवर्तन की माँग करने लगा और दूसरा समूह किसी भी सुधार या परिवर्तन के विरुद्ध थे। दूसरे शब्दों में कुछ लोग समयानुकूल परिमार्जन

बौद्ध धर्म के सम्प्रदाय Read More »

Scroll to Top