मीमांसा दर्शन

परिचय मीमांसा दर्शन के प्रणेता महर्षि जैमिनि हैं। यह छः आस्तिक दर्शनों में से एक है। यह विचारधारा न सिर्फ वेदों की प्रामाणिकता को स्वीकार करती है, बल्कि वेदों पर आधारित भी है। मीमांसा शब्द का शब्दकोशीय अर्थ है – गंभीर मनन और विचार। आँग्ल भाषा में इसका अर्थ है – investigation, consideration. अर्थात् किसी विषय […]

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वैशेषिक दर्शन

वैशेषिक दर्शन परिचय वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक महर्षि कणाद हैं। उनकी कृत ‘वैशेषिक-सूत्र’ इस दर्शन का मूल प्रामाणिक ग्रन्थ है। महर्षि कणाद के अन्य नाम हैं — कणभुक, उलूक और काश्यप। प्रशस्तपाद कृत ‘पदार्थधर्मसंग्रह’ वैशेषिक सूत्र पर टीका है। उदयन और श्रीधर इसके अन्य टीकाकार हैं। यह दर्शन ‘विशेष’ नामक पदार्थ पर बल देते हुए

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न्याय दर्शन

न्याय दर्शन   परिचय न्याय दर्शन के प्रवर्तक ऋषि गौतम ( अक्षपाद ) हैं। इसका मूल ग्रंथ गौतमकृत ‘न्यायसूत्र’ है, जिसपर वात्स्यायन ने ‘न्यायभाष्य’ नामक टीका लिखी है। न्याय दर्शन से सम्बंधित कुछ अन्य दार्शनिक हैं — उद्योतकर, वाचस्पति, उदयन, जयन्त आदि।  इसका वैशेषिक दर्शन के साथ सम्बन्ध है, इसलिए इसे ‘न्याय-वैशेषिक’ भी कहते हैं।  न्याय

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प्रतीत्यसमुत्पाद

प्रतीत्यसमुत्पाद प्रतीत्यसमुत्पाद बुद्ध के उपदेशों का सार और उनकी शिक्षाओं का आधार-स्तम्भ है। यह द्वितीय और तृतीय आर्य सत्यों में निहित है जोकि दुःख का कारण और उसके निरोध को बताते हैं। दुःख संसार है और दुःख निरोध निर्वाण है। यह दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सापेक्षवादी दृष्टि से देखें तो प्रतीत्यसमुत्पाद

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बौद्ध और जैन धर्म क्या वैदिक धर्म का सुधारवादी रूप है?

बौद्ध और जैन धर्म क्या वैदिक धर्म का सुधारवादी रूप है? कुछ विद्वानों का विचार है कि जैन तथा बौद्ध — ये दोनों ही धर्म वैदिक धर्म के सुधारवादी स्वरूप थे तथा इस प्रकार उसमें कोई नवीनता नहीं थी। परन्तु कुछ विद्वानों का विचार इसके विपरीत है। सत्य तो यह है कि दोनों ही मतों

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गौतम बुद्ध और महावीर स्वामी : तुलना

गौतम बुद्ध और महावीर स्वामी : तुलना समानता दोनों अनीश्वरवादी हैं। दोनों ने वैदिक कर्मकाण्डों और वेदों की अपौरुषेयता के विरोधी हैं। अहिंसा और सदाचार पर दोनों ने बल दिया है। बुद्ध और महावीर दोनों ने कर्मवाद, पुनर्जन्म एवं मोक्ष में विश्वास करते थे। दोनों विचारकों ने अपने-२ मतों के प्रचार के लिए भिक्षु संघों

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बौद्ध धर्म की देन

बौद्ध धर्म की देन बौद्ध धर्म का भारतीय सभ्यता और संस्कृति में योगदान बहुआयामी है :— बौद्ध धर्म ने एक सरल और आडण्बरहीन धर्म प्रदान किया। यह राजा-रंक, ऊँच-नीच आदि भेदभावों से परे सर्वजन सुलभ था। अहिंसा, सहिष्णुता जैसे नैतिक आदर्श को फलीभूत किया। अशोक, कनिष्क, गुप्तवंशीय शासक, हर्षवर्धन आदि में भारतीय राजाओं में धार्मिक

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बौद्ध धर्म का उत्थान और पतन

परिचय महात्मा बुद्ध ने जिस धर्म का प्रवर्तन किया वह उनके जीवनकाल में ही उत्तरी भारत का एक लोकप्रिय धर्म बन गया। सम्राट अशोक ने इसे उठाकर अंतरराष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया। बौद्धधर्म का उत्थान और पतन विस्मयकारी है। लगभग सातवीं शताब्दी तक बौद्ध धर्म की निरन्तर प्रगति होती रही तत्पश्चात् उसका क्रमिक ह्रास की शुरुआत

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बोधिसत्व

बोधिसत्व महायान का आदर्श बोधिसत्व है। बोधिसत्व ऐसे व्यक्ति हैं जो निर्वाण प्राप्त कर चुके हैं परन्तु अन्य लोगों के निर्वाण में सहायता करने के लिए आते। बोधिसत्व मानव या पशु किसी भी रूप में हो सकते हैं। कुछ बोधिसत्व निम्न हैं :— अवलोकितेश्वर – ये प्रधान बोधिसत्व हैं। इनका एक अन्य नाम पद्मपाणि भी है। पद्मपाणि

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कुछ प्रमुख बौद्ध विद्वान एवं दार्शनिक

बौद्ध विद्वान एवं दार्शनिक बौद्ध धर्म में बहुत सारे विद्वान और दार्शनिकों का आविर्भाव हुआ जिन्होंने धर्म और दर्शन के विकास में योगदान दिया। इनमें से कुछ प्रमुख बौद्ध विद्वान एवं दार्शनिक निम्न हैं :— अश्वघोष ये कनिष्क के समकालीन एक प्रतिभासम्पन्न कवि, नाटककार, संगीतकार, विद्वान और तर्कशास्त्री थे। अश्वघोष ने बुद्धचरित, सौन्दरानन्द और शारिपुत्र-प्रकरण की

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