महाकाव्य युगीन धार्मिक दशा
कर्मकाण्डीय और ज्ञानमार्गीय धर्मों के सामंजस्य से महाकाव्यों ने एक लोकधर्म का विकास किया जो सर्वजन सुलभ था। इसमें वैदिक और अवैदिक विश्वासों का समावेश दिखता है।
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कर्मकाण्डीय और ज्ञानमार्गीय धर्मों के सामंजस्य से महाकाव्यों ने एक लोकधर्म का विकास किया जो सर्वजन सुलभ था। इसमें वैदिक और अवैदिक विश्वासों का समावेश दिखता है।
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इस लेख में हड़प्पा / सैंधव काल की धार्मिक विशेषताओं का संक्षिप्त विवेचन का प्रयास किया गया है।
हड़प्पा-कालीन धार्मिक दशा Read More »
धर्म का भारतीय सभ्यता और संस्कृति में विशेष स्थान है। धर्म का इतिहास उतना ही पुरातन है जितना कि मानव सभ्यता का।
शिव से सम्बंधित धर्म को “शैव धर्म” और उनकी इष्ट मानकर पूजा करनेवाले “शैव” कहलाये। इस घर्म की प्राचीनता प्रागैतिहासिक काल तक जाती है। वर्तमान में ब्रह्मा और विष्णु के साथ शिव त्रिदेवों में सम्मिलित हैं। इनसे सम्बंधित व्रत महाशिवरात्रि और सोमवार है। तीसरे वर्ष मलमास लगता है। शिव में आर्य और आर्येत्तर तत्वों का समामेलन मिलता है। शिव की पूजा भारत में आसेतुहिमालय तक होती है।
वैष्णव धर्म में विष्णु के १० अवतारों में श्रीराम और श्रीकृष्ण सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। इसमें अवतारवाद का विशेष महत्व है। सज्जनों की रक्षा , दुर्जनों का विनाश करने और धर्म की स्थापना के लिए भगवान समय समय पर अवतार लेते हैं।
वैष्णव ( भागवत् ) धर्म Read More »
वैदिक धर्म की अपेक्षा पौराणिक धर्म सरल और लोकप्रिय था। इसमें भेदभावरहित सभी को मोक्ष का अधिकार था। इसमें भक्ति को अधिक महत्व दिया गया है।
इस लेख में प्राचीन भारत के प्रमुख कवि , नाटककार और लेखकों के साथ-साथ उनकी रचनाओं का संक्षिप्त विवरण देने का प्रयास किया गया है ।
संस्कृत साहित्य के प्रमुख कवि तथा ग्रन्थ Read More »
भारत का प्राचीन साहित्य बहुत विशाल है । इस लेख में मैंने कुछ रचनाओं को साररूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है जिनका साहित्यिक , सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व है । इसमें हमने ब्राह्मण साहित्य ( वैदिक साहित्य , वेदांग , धर्मशास्त्र , पुराण , महाकाव्य ) , बौद्ध साहित्य और जैन साहित्य को शामिल किया है ।
प्राचीन भारतीय साहित्य Read More »
शिक्षा मनुष्य के सर्वांगीण विकास का साधन है। शिक्षा का उद्देश्य मात्र पुस्तकीय ज्ञान नहीं है बल्कि उसके संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास करना है शिक्षा के द्वारा व्यक्ति उत्तम आजीविका प्राप्त करता है परन्तु इसे मात्र आजीविका का साधन मानना अभीष्ट नहीं है ।शिक्षा को मात्र आजीविका का साधन माननेवालों की आलोचना की गयी है शिक्षा आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है (यावज्जीवमधीते विप्रः)। प्राचीन काल से ही भारत में शिक्षा व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास का माध्यम है ।
प्राचीन भारतीय शिक्षा व्यवस्था कैसी थी ? Read More »