दक्षिण-पूर्व एशिया और भारत : सभ्यता और संस्कृति

दक्षिण-पूर्व एशिया और भारत भूमिका दक्षिण-पूर्व एशिया और भारत की सभ्यता और संस्कृति से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों पर भारतीय संस्कृति का प्रभाव प्रत्येक क्षेत्र में दृष्टिगोचर होता है। यह प्रभाव शासन व्यवस्था, समाज, भाषा और साहित्य, धर्म एवं कला आदि क्षेत्रों पर वर्तमान में भी देखा जा सकता है। शासन व्यवस्था […]

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भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के सम्बन्ध

भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के सम्बन्ध परिचय भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के सम्बन्ध अति विशेष हैं। यहाँ से भारत के व्यापारिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध प्राचीनकाल से ही रहे हैं। यह उल्लेखनीय है कि कुछ उत्साही भारतीयों ने यहाँ जाकर राज्यों की स्थापना भी की थी। भौगोलिक दृष्टि से यह भारत से पूर्व, न्यू गिनी के

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भारत और मध्य एशिया

भारत और मध्य एशिया भूमिका भारत और मध्य एशिया का सम्पर्क प्राचीनकाल से ही था। भारत का बाहरी दुनिया से सम्पर्क के साक्ष्य हड़प्पा सभ्यता से ही मिलने लगते हैं। इस सभ्यता के लोगों के व्यापारिक सम्पर्क समकालीन सभ्यताओं से थे; यथा – मेसोपोटामिया। शनैः शनैः भारत और विश्व के अन्यान्य भागों में सभ्यता का विकास

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भारत-चीन सम्बन्ध

भारत-चीन सम्बन्ध भूमिका चीन का नामकरण चिन वंश ( १२१ ई॰ पू॰ – २२० ई॰ ) के नाम पर हुआ है। भारत-चीन सम्बन्ध के नियमित सम्पर्क की शुरुआत लगभग द्वितीय शताब्दी ई॰पू॰ से मानी जाती है। सम्पर्क मार्ग भारत और चीन के मध्य प्रारम्भिक नियमित व्यापारिक सम्पर्क के तीन मार्ग थे :— मध्य एशिया का

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भारत और रोम सम्बन्ध

भूमिका मौर्योत्तर काल में ‘भारत और रोम सम्बन्ध’ एक प्रमुख घटना के रूप में उभरकर आती है। इसी समय भारतीय उपमहाद्वीप में ‘कुषाण-शक-सातवाहनों’ के साम्राज्यों का उदय हुआ। सुदूर दक्षिण में ‘संगम युग’ के राज्य प्रकाश में आये। पश्चिम में इसी समय शक्तिशाली ‘रोमन साम्राज्य’ का आविर्भाव हुआ। भारत और रोम के मध्य ‘पार्थियाई साम्राज्य’ तो पूर्व में ‘चीनी साम्राज्य’ था। इन सभी के मध्य व्यापारिक

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प्राचीन भारत में ‘प्रौद्योगिकी का विकास’

भूमिका भारत में ‘प्रौद्योगिकी का विकास’ मानव सभ्यता के साथ विकास-यात्रा का अभिन्न अंग है। इसकी शुरुआत प्रस्तर काल से हो जाती है। प्रस्तर प्रौद्योगिकी के बाद ‘धातु प्रौद्योगिकी के विकास का युग आता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अंतर्सम्बन्ध विज्ञान और प्रौद्योगिकी को प्रायः हम एक ही साँस में एक पदबंध में बोल जाते

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ज्योतिष और खगोल विद्या का प्राचीन भारत में विकास

भूमिका ‘ज्योतिष और खगोल विद्या’ का विकास साथ-साथ हुआ। वेदों को समझने के लिए जिन छः वेदांगों की रचना हुई उसमें से अन्तिम ज्योतिष है। प्राचीन ज्योतिर्विद्या का ‘उद्देश्य’ समय-समय पर होने वाले यज्ञों का मुहूर्त और काल निर्धारण करना था। यहाँ तक कहा गया है कि :— “यो ज्योतिषं वेद स वेद यज्ञं।” (

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भारत का पश्चिमी देशों से सम्पर्क

भारत और पाश्चात्य विश्व के साथ सम्बन्ध भूमिका भारत का पश्चिमी देशों से सम्बंध मुख्यतया व्यापारिक रहा है। इन सम्बन्धों की प्राचीनता प्रागैतिहासिक युग तक जाती है। इन सम्बन्धों के साक्ष्य पुरातात्विक और साहित्यिक दोनों तरह के मिलते हैं। सैंधव लोगों के पाश्चात्य सभ्यता से सम्पर्क वर्तमान ईराक के दजला-फरात नदी घाटी में मेसोपोटामिया सभ्यता

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चिकित्सा शास्त्र

चिकित्सा शास्त्र भूमिका चिकित्सा शास्त्र के क्षेत्र में प्राचीन भारतीयों की उपलब्धियाँ उल्लेखनीय रहीं हैं। इसका इतिहास वैदिक काल तक जाता है। वैदिक काल में चिकित्सा शास्त्र का विकास ऋग्वेद में ‘आश्विन कुमारों’ को कुशल वैद्य कहा गया है जो अपनी औषधियों से रोगों के निदान में निपुण थे। अथर्ववेद में आयुर्वेद के सिद्धान्त और

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भारत में गणित का विकास

भूमिका गणित ‘अमूर्त विज्ञान’ है। यह विज्ञान और तकनीकी का मेरूदण्ड है। लगथ मुनि कृति ‘वेदांग ज्योतिष’ में गणित के महत्व को इस तरह रेखांकित किया गया है : “यथा शिखा मयुराणाम् नागानाम् मणयो यथा। तद्वत् वेदांग शास्त्राणाम् गणितम् मूर्धनिस्थितम्॥” ( अर्थात् सभी वेदांग शास्त्रों के शीर्ष पर गणित उसी प्रकार सुशोभित है जैसे मयूर

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