भारत-चीन सम्बन्ध

भारत-चीन सम्बन्ध भूमिका चीन का नामकरण चिन वंश ( १२१ ई॰ पू॰ – २२० ई॰ ) के नाम पर हुआ है। भारत-चीन सम्बन्ध के नियमित सम्पर्क की शुरुआत लगभग द्वितीय शताब्दी ई॰पू॰ से मानी जाती है। सम्पर्क मार्ग भारत और चीन के मध्य प्रारम्भिक नियमित व्यापारिक सम्पर्क के तीन मार्ग थे :— मध्य एशिया का […]

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भारत और रोम सम्बन्ध

भूमिका मौर्योत्तर काल में ‘भारत और रोम सम्बन्ध’ एक प्रमुख घटना के रूप में उभरकर आती है। इसी समय भारतीय उपमहाद्वीप में ‘कुषाण-शक-सातवाहनों’ के साम्राज्यों का उदय हुआ। सुदूर दक्षिण में ‘संगम युग’ के राज्य प्रकाश में आये। पश्चिम में इसी समय शक्तिशाली ‘रोमन साम्राज्य’ का आविर्भाव हुआ। भारत और रोम के मध्य ‘पार्थियाई साम्राज्य’ तो पूर्व में ‘चीनी साम्राज्य’ था। इन सभी के मध्य व्यापारिक

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प्राचीन भारत में ‘प्रौद्योगिकी का विकास’

भूमिका भारत में ‘प्रौद्योगिकी का विकास’ मानव सभ्यता के साथ विकास-यात्रा का अभिन्न अंग है। इसकी शुरुआत प्रस्तर काल से हो जाती है। प्रस्तर प्रौद्योगिकी के बाद ‘धातु प्रौद्योगिकी के विकास का युग आता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अंतर्सम्बन्ध विज्ञान और प्रौद्योगिकी को प्रायः हम एक ही साँस में एक पदबंध में बोल जाते

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ज्योतिष और खगोल विद्या का प्राचीन भारत में विकास

भूमिका ‘ज्योतिष और खगोल विद्या’ का विकास साथ-साथ हुआ। वेदों को समझने के लिए जिन छः वेदांगों की रचना हुई उसमें से अन्तिम ज्योतिष है। प्राचीन ज्योतिर्विद्या का ‘उद्देश्य’ समय-समय पर होने वाले यज्ञों का मुहूर्त और काल निर्धारण करना था। यहाँ तक कहा गया है कि :— “यो ज्योतिषं वेद स वेद यज्ञं।” (

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भारत का पश्चिमी देशों से सम्पर्क

भारत और पाश्चात्य विश्व के साथ सम्बन्ध भूमिका भारत का पश्चिमी देशों से सम्बंध मुख्यतया व्यापारिक रहा है। इन सम्बन्धों की प्राचीनता प्रागैतिहासिक युग तक जाती है। इन सम्बन्धों के साक्ष्य पुरातात्विक और साहित्यिक दोनों तरह के मिलते हैं। सैंधव लोगों के पाश्चात्य सभ्यता से सम्पर्क वर्तमान ईराक के दजला-फरात नदी घाटी में मेसोपोटामिया सभ्यता

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चिकित्सा शास्त्र

चिकित्सा शास्त्र भूमिका चिकित्सा शास्त्र के क्षेत्र में प्राचीन भारतीयों की उपलब्धियाँ उल्लेखनीय रहीं हैं। इसका इतिहास वैदिक काल तक जाता है। वैदिक काल में चिकित्सा शास्त्र का विकास ऋग्वेद में ‘आश्विन कुमारों’ को कुशल वैद्य कहा गया है जो अपनी औषधियों से रोगों के निदान में निपुण थे। अथर्ववेद में आयुर्वेद के सिद्धान्त और

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भारत में गणित का विकास

भूमिका गणित ‘अमूर्त विज्ञान’ है। यह विज्ञान और तकनीकी का मेरूदण्ड है। लगथ मुनि कृति ‘वेदांग ज्योतिष’ में गणित के महत्व को इस तरह रेखांकित किया गया है : “यथा शिखा मयुराणाम् नागानाम् मणयो यथा। तद्वत् वेदांग शास्त्राणाम् गणितम् मूर्धनिस्थितम्॥” ( अर्थात् सभी वेदांग शास्त्रों के शीर्ष पर गणित उसी प्रकार सुशोभित है जैसे मयूर

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प्राचीन भारत में विज्ञान का विकास

विज्ञान   भूमिका हमें ‘प्रागैतिहासिक काल’ से ही भारतीयों की वैज्ञानिक बुद्धि का परिचय मिलने लगता है। वस्तुतः ‘प्रस्तरकालीन मानव’ ही विज्ञान की कुछ शाखाओं — प्राणि-शास्त्र, वनस्पति-शास्त्र, ऋतु-शास्त्र आदि का जनक है। उदाहरणार्थ — पशुओं के चित्र बनाने के लिए मानव ने उनके शरीरिक संरचना की जानकारी प्राप्त की। खाद्य-अखाद्य पदार्थों की जानकारी प्राप्त की।

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भक्ति आन्दोलन

भक्ति आन्दोलन का उद्भव भूमिका ऐतिहासिक दृष्टि से भक्ति-आन्दोलन के विकास को ‘दो चरणों’ में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम चरण के अन्तर्गत दक्षिण भारत में भक्ति के आरम्भिक प्रादुर्भाव से लेकर १३वीं शताब्दी तक के काल को रखा जा सकता है दूसरे चरण में १३वीं से १६वीं शताब्दी तक के काल को रख

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सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — ५

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — ५     अनेगोंडी कर्नाटक के कोप्पल जनपद में तुंगभद्रा नदी के उत्तरी तट पर स्थित है। हरिहर प्रथम ने इसे ही विजयनगर की प्रथम राजधानी बनायी थी। तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी तट पर हंपी स्थित था। तालीकोटा के युद्धोपरांत ( १५६५ ई॰ ) दक्कन के ४ मुस्लिम सल्तनत सेनाओं

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