प्राचीन भारतीय इतिहास

अश्व और आर्य बहस ( THE HORSE AND THE ARYAN DEBATE )

भूमिका अश्व और आर्य बहस थमने का नाम ही नहीं ले रही है। सिंधु-सरस्वती सभ्यता में घोड़े की उपस्थिति या अनुपस्थिति विगत एक सदी से विवाद का विषय रही है, विशेष रूप से आर्य-आक्रमण-सिद्धांत के सन्दर्भ में। इस सम्बन्ध में अक्सर यह तर्क दिया जाता है : ऋग्वेद में २१५ बार अश्व शब्द का प्रयोग […]

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वेद और पुरातत्त्व

भूमिका वेद और पुरातत्त्व का मिलान करते हुए अध्ययन करना एक स्वस्थ्य परम्परा है। भारतीयों पर पाश्चात्य विद्वानों का आरोप रहा है कि भारतीय साहित्य चाहे वे धार्मिक हो या लौकिक उनमें ऐतिहासिक दृष्टि का अभाव है। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि पुरातात्त्विक साक्ष्यों के आलोक में भारतीय साहित्यिक रचनाओं को जाँचा

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वैदिक भूगोल

भूमिका वैदिक भूगोल से तात्पर्य है कि वेदों से हमें किस भारतीय भूमि की जानकारी प्राप्त होती है। उसमें किन-किन नदियों, पर्वतों, जलस्रोतों का विवरण मिलता है। हम वेदों में उल्लिखित भौगोलिक क्षेत्रों की पहचान वर्तमान में किन नदी, पहाड़ों व भू-भाग से करते हैं। दूसरे शब्दों में वैदिक साहित्य से हमें किस भारत का आभास

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वेदों का रचनाकाल क्या है?

भूमिका वेद मानव सभ्यता और संस्कृति की अमूल्य थाती हैं। वेदों से सम्बन्धित कई समस्याओं में से एक प्रश्न यह भी है कि वेदों का रचनाकाल क्या है? या वैदिक साहित्य की रचना कब हुई? इस पर विद्वानों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये हैं। उन्हीं विचारों और जहाँ तक सम्भव हो पुरातत्व की सहायता से

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वेदों के रचयिता कौन हैं?

भूमिका वेद भारतीयों की ही नहीं मानव सभ्यता व संस्कृति की प्राचीनतम् उपलब्ध साहित्य है। प्रश्न यह उठता है कि वेदों के रचयिता कौन हैं? अथवा वैदिक साहित्य के रचयिता कौन है? यद्यपि भारतीय परम्परा में वेदों को नित्य और अपौरुषेय माना गया है। परन्तु वैदिक संस्कृति व सभ्यता से पूर्व इस प्रश्न पर विचार

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वैदिक साहित्य क्या है?

भूमिका वेद किसी व्यक्ति विशेष द्वारा रचित कोई धार्मिक कृति नहीं है और न ही ये किसी समय विशेष की कृतित्व है अपितु वैदिक साहित्य कई शताब्दियों तक विकसित और समृद्ध होता रहा और पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक रूप से हस्तांतरित होता रहा है। इससे पूर्व की हम वैदिक काल और संस्कृति के विषय में विषद् चर्चा

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महापाषाण संस्कृति ( Megalithic Culture )

भूमिका नवपाषाण युग की समाप्ति के पश्चात् दक्षिण में जिस संस्कृति का उदय हुआ, उसे वृहत्पाषाण अथवा महापाषाण संस्कृति (Megalithic Culture) कहा जाता है। इस संस्कृति के लोग अपने मृतकों के अवशेषों को सुरक्षित रखने के लिये बड़े-बड़े पत्थरों का प्रयोग करते थे। वृहत्पाषाण को अंग्रेजी में मेगालिथ (Megalith) कहा जाता है। यह यूनानी भाषा

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उत्तरी कृष्ण मार्जित मृद्भाण्ड (Northern Black Polished Ware, NBPW)

भूमिका ये मिट्टी के पात्र ईसा पूर्व छठी शताब्दी अथवा बुद्ध काल के विशिष्ट मृद्भाण्ड हैं जिन्हें सामान्यतः उत्तरी कृष्ण मार्जित मृद्भाण्ड अथवा काली पॉलिश के बर्तन कहा जाता है। इन मृद्भाण्डों से द्वितीय नगरीकरण के प्रारम्भ की सूचना मिलती है। संक्षेप में इन्हें एन० बी० पी० डब्ल्यू० ( NBPW – Northern Black Polished Ware

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कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड ( Black and Red Ware – BRW )

भूमिका कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड के समय और स्थान दोनों में बहुत व्यापकता है। इसको काले और लाल मृदभाण्ड और नील-लोहित मृदभाण्ड ( अथर्ववेद ) भी कहा जाता है। इसको संक्षिप्त रूप से BRW ( Black & Red Ware ) कहा जाता है। काले और लाल मृदभाण्ड को सर्वप्रथम सर मार्टीमर व्हीलर द्वारा अरिकामेडु ( १९४५

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चित्रित धूसर मृद्भाण्ड ( Painted Grey Ware – PGW )

भूमिका चित्रित धूसर मृद्भाण्ड ( Painted Grey Ware ) नाम से ही विदित है कि इस पात्र परम्परा के पात्र प्रधानतः धूसर अथवा स्लेटी रंग के हैं जिन पर काले रंग में चित्रण किया गया है। कहीं-कहीं काले अथवा चाकलेटी रंग के बर्तन भी मिलते हैं। इस पात्र परम्परा का सम्बन्ध लोहे से है। चित्रित

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