सूत्र काल

भूमिका उत्तर-वैदिक काल के अन्त तक वैदिक साहित्य अत्यन्त व्यापक एवं जटिल हो चुका था। अतः एक व्यक्ति के लिये सम्पूर्ण वैदिक साहित्य को कण्ठस्थ करना दुष्कर होता जा रहा था। इसलिये वैदिक साहित्य को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये उसे संक्षिप्त करने की आवश्यकता महसूस हुई। इसी आवश्यकता की पूर्ति हेतु सूत्र साहित्य का […]

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उत्तर वैदिक काल

भूमिका उत्तर वैदिक काल १,००० ई० पू० से ५०० ई० पू० तक माना गया है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं — कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था, कबायली संरचना में दरार का पड़ना और वर्ण व्यवस्था का जन्म तथा क्षेत्रीय राज्यों का उदय। इसका तकनीकी आधार लौह धातु का प्रयोग जो ऋग्वैदिक काल से इसको पृथक करती है। ऋग्वैदिक

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ऋग्वैदिक काल या पूर्व-वैदिक काल

भूमिका सैन्धव सभ्यता के पश्चात् भारत में जिस नवीन सभ्यता का विकास हुआ उसको वैदिक संस्कृति या आर्य संस्कृति के नाम से जाना जाता है। वैदिक संस्कृति के पहले चरण को ऋग्वैदिक काल या पूर्व-वैदिक काल कहते हैं। भारतीय इतिहास एक प्रकार से आर्यों का इतिहास है। आर्यों का प्रारम्भिक इतिहास हमें मुख्यतः वेदों से

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वैदिक संस्कृति के स्रोत

भूमिका वैदिक संस्कृति के स्रोत के रूप में मुख्यतः वैदिक साहित्य और गौणतः पुरातात्त्विक साक्ष्य भूमिका निभाते हैं। वैदिक सभ्यता का समय १,५०० से लेकर ५०० ई० पू० तक फैला हुआ है। वैदिक काल को सुविधा के लिए दो भागों में विभाजित करके अध्ययन किया जाता है :- (क) ऋग्वैदिक अथवा पूर्व-वैदिक काल (Early Vedic

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आर्य संस्कृति की पहचान

भूमिका आर्य संस्कृति की पहचान के सम्बन्ध में तुलनात्मक भाषा का बहुत महत्त्व है। फ्लोरेंस ( इटली ) के एक व्यापारी फिलिप्पो सस्सेत्ती ( Filippo Sassestti ) गोवा में सन् १५८३ से १५८८ ई० तक यानी पाँच वर्ष तक रहे। उन्होंने यहाँ पर संस्कृत भाषा का अध्ययन किया और पाया कि संस्कृत भाषा और यूरोपीय

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आर्यों का मूल निवास स्थान कहाँ था?

भूमिका आर्यों का मूल निवास स्थान क्या था? या आर्य मूलतः किस प्रदेश के निवासी थे? वे भारतीय उप-महाद्वीप में बाहर से आये या यहीं के मूल निवासी थे? इत्यादि … ये अत्यन्त विवादग्रस्त प्रश्न हैं। यहाँ कुछ प्रमुख मतों का संक्षेप में उल्लेख किया जायेगा। इन मतों को हम दो भागों में बाँटकर सूक्ष्मता

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आर्य कौन हैं?

भूमिका वैदिक संस्कृति के वाहक आर्य हैं। परन्तु वास्तव में ये आर्य कौन हैं? यह बहुत ही विवाद का प्रश्न रहा है। औपनिवेशिक दौर में पाश्चात्य विद्वानों ने आर्यों को आक्रांता कहकर प्राजातीय वैभिन्यता का ठप्पा लगाकर भारतीय समाज को विभाजित करने का प्रयास किया। स्वतंत्रता के बाद भी वर्तमान में राजनीतिक हितों के लिए

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अश्व और आर्य बहस ( THE HORSE AND THE ARYAN DEBATE )

भूमिका अश्व और आर्य बहस थमने का नाम ही नहीं ले रही है। सिंधु-सरस्वती सभ्यता में घोड़े की उपस्थिति या अनुपस्थिति विगत एक सदी से विवाद का विषय रही है, विशेष रूप से आर्य-आक्रमण-सिद्धांत के सन्दर्भ में। इस सम्बन्ध में अक्सर यह तर्क दिया जाता है : ऋग्वेद में २१५ बार अश्व शब्द का प्रयोग

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वेद और पुरातत्त्व

भूमिका वेद और पुरातत्त्व का मिलान करते हुए अध्ययन करना एक स्वस्थ्य परम्परा है। भारतीयों पर पाश्चात्य विद्वानों का आरोप रहा है कि भारतीय साहित्य चाहे वे धार्मिक हो या लौकिक उनमें ऐतिहासिक दृष्टि का अभाव है। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि पुरातात्त्विक साक्ष्यों के आलोक में भारतीय साहित्यिक रचनाओं को जाँचा

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वैदिक भूगोल

भूमिका वैदिक भूगोल से तात्पर्य है कि वेदों से हमें किस भारतीय भूमि की जानकारी प्राप्त होती है। उसमें किन-किन नदियों, पर्वतों, जलस्रोतों का विवरण मिलता है। हम वेदों में उल्लिखित भौगोलिक क्षेत्रों की पहचान वर्तमान में किन नदी, पहाड़ों व भू-भाग से करते हैं। दूसरे शब्दों में वैदिक साहित्य से हमें किस भारत का आभास

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