भारत और तिब्बत सम्पर्क

भूमिका तिब्बत उत्तर में कुललुन एवं दक्षिण में हिमालय पर्वत शृंखला से घिरा एक पठारी क्षेत्र है। वर्तमान में यह चीन का स्वायत्त क्षेत्र है। इसका उल्लेख महाभारत और कालिदास कृत रघुवंश में ‘त्रिविष्टप’ नाम से मिलता है। तिब्बत के साथ भारत का सम्पर्क बौद्ध धर्म के माध्यम से हुआ। तिब्बत में भारतीय सभ्यता और […]

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विक्रमशिला विश्वविद्यालय

संस्थापक पालवंशी शासक ‘धर्मपाल’ ( ७७० – ८१० ई॰ )। स्थान पथरघाट पहाड़ी, भागलपुर जनपद; बिहार। समय इसकी स्थापना आठवीं शताब्दी में हुई। यह आठवीं से १२वीं शताब्दी के अंत तक अस्तित्व में रहा। प्रसिद्ध विद्वान दीपंकर श्रीज्ञान ‘अतीश’, अभयांकर गुप्त, ज्ञानपाद, वैरोचन, रक्षित, जेतारी, शान्ति, रत्नाकर, मित्र, ज्ञानश्री, तथागत, रत्नवज्र आदि। पतन तुर्की आततायी

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बलभी विश्वविद्यालय

भूमिका  बलभी विश्वविद्यालय ( वल्लभी विश्वविद्यालय ) की स्थापना गुप्तशासन के सैन्याधिकारी भट्टार्क ( मैत्रक वंश ) द्वारा की गयी थी। यह गुजरात के भावनगर जिले के ‘वल’ नामक स्थान पर स्थित था। यह हीनयान बौद्ध धर्म की शिक्षा का केंद्र था। इसका समयकाल ५वीं शताब्दी से १२वीं शताब्दी तक था। बलभी गुप्त शासन के पतन के

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नालंदा विश्वविद्यालय

भूमिका नालंदा विश्वविद्यालय ( महाविहार ) की स्थापना ५वीं शताब्दी में कुमारगुप्त-प्रथम के शासनकाल में हुई थी। नालंदा वर्तमान समय का “बड़गाँव” है जो पटना शहर से लगभग ९५ किमी दक्षिण-पूर्व में स्थित है। वर्तमान में यह बिहार राज्य का एक जनपद भी है – नालंदा ( बिहार शरीफ )। इसका समयकाल ५वीं शताब्दी से १२ वीं

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तक्षशिला विश्वविद्यालय

भूमिका तक्षशिला विश्वविद्यालय वर्तमान पाकिस्तान के रावलपिंडी जनपद में स्थित था। महाजनपद काल में तक्षशिला गंधार राज्य की राजधानी थी। तक्षशिला विश्वविद्यालय का समयकाल  ६ठवीं शताब्दी ईसा पूर्व से ७वीं शताब्दी ईस्वी तक माना जाता है। तक्षशिला का इतिहास रामायण के अनुसार श्रीराम के भाई भरत ने इस क्षेत्र को गंधर्वों से विजित किया था। गंधर्व

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हड़प्पा सभ्यता या सिन्धु घाटी सभ्यता

 हड़प्पा सभ्यता या सिन्धु घाटी सभ्यता भूमिका कांस्य युगीन सभ्यता के अन्तर्गत हड़प्पा सभ्यता आती है। जब ताँबे में टिन को मिलाकर कांस्य नामक मिश्रधातु का प्रयोग मानव ने किया। कांस्य सभ्यता सामान्यतः नगरीय सभ्यता कहलाती है। भारतीय उप-महाद्वीप में प्रथम नगरीकरण इसी समय हुआ। हड़प्पा सभ्यता ‘आद्य इतिहास’ के अन्तर्गत आता है। इसे इस

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भारतीय इतिहास की भौगोलिक पृष्ठभूमि या भारतीय इतिहास पर भूगोल का प्रभाव

भूमिका इतिहास की दो आंखें होती हैं – एक कालक्रम और दूसरी भूगोल। अर्थात् इतिहास के निर्धारण में समय और स्थान दो महत्वपूर्ण कारक हैं। भूगोल ऐतिहासिक घटनाओं को निर्धारित करता है। भारतीय इतिहास भी इसका अपवाद नहीं है। इसलिए ‘भारतीय इतिहास की भौगोलिक पृष्ठभूमि’ का अध्ययन अनिवार्य हो जाता है। भारतीय उप-महाद्वीप का क्षेत्रफल

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दक्षिण-पूर्व एशिया और भारत : सभ्यता और संस्कृति

दक्षिण-पूर्व एशिया और भारत भूमिका दक्षिण-पूर्व एशिया और भारत की सभ्यता और संस्कृति से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों पर भारतीय संस्कृति का प्रभाव प्रत्येक क्षेत्र में दृष्टिगोचर होता है। यह प्रभाव शासन व्यवस्था, समाज, भाषा और साहित्य, धर्म एवं कला आदि क्षेत्रों पर वर्तमान में भी देखा जा सकता है। शासन व्यवस्था

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भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के सम्बन्ध

भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के सम्बन्ध परिचय भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के सम्बन्ध अति विशेष हैं। यहाँ से भारत के व्यापारिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध प्राचीनकाल से ही रहे हैं। यह उल्लेखनीय है कि कुछ उत्साही भारतीयों ने यहाँ जाकर राज्यों की स्थापना भी की थी। भौगोलिक दृष्टि से यह भारत से पूर्व, न्यू गिनी के

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भारत और मध्य एशिया

भारत और मध्य एशिया भूमिका भारत और मध्य एशिया का सम्पर्क प्राचीनकाल से ही था। भारत का बाहरी दुनिया से सम्पर्क के साक्ष्य हड़प्पा सभ्यता से ही मिलने लगते हैं। इस सभ्यता के लोगों के व्यापारिक सम्पर्क समकालीन सभ्यताओं से थे; यथा – मेसोपोटामिया। शनैः शनैः भारत और विश्व के अन्यान्य भागों में सभ्यता का विकास

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