अमरावती – प्राचीन बौद्ध स्थल

परिचय अमरावती शब्द का अर्थ है – स्वर्ग। इस नाम के कई स्थान हैं – एक, महाराष्ट्र का अमरावती जनपद है; द्वितीय, अभी हाल में विभाजित आंध्रप्रदेश की राजधानी का अमरावती नाम से नवनिर्माण चल रहा और तृतीय, प्राचीन अमरावती स्थल। हम यहाँ पर प्राचीन अमरावती की बात कर रहे हैं। अमरावती का इतिहास अमरावती …

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अरिकामेडु या पुडुके

परिचय अरिकामेडु ( Arikamedu ) के पुरावशेष भारत-रोम के व्यापारिक सम्बन्ध पर प्रकाश डालते हैं। यह संघ शासित राज्य पुदुचेरी ( पाण्डिचेरी ) से लगभग ३ किलोमीटर दक्षिण में जिंजी नदी के तट पर स्थित दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध पुरास्थल है। ‘पेरीप्लस ऑफ इरिथ्रियन सी’ में इसका नाम ‘पोडुके या पुडुके’ ( Podouke ) मिलता …

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परिवार या कुटुम्ब ( Family ) का उद्भव और विकास

प्रस्तावना परिवार एक पुरातन सामाजिक संस्था है।  सम्भवतः कुटुम्ब जितनी ‘नैसर्गिक’ अन्य कोई सामाजिक संस्था नहीं है। प्रचीन से लेकर अर्वाचीन संसार की सभी सभ्यताओं में कुटुम्ब का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है और रहेगा। इस संस्था का कोई अतिक्रमण नहीं कर सकता है। यह सामाजिक जीवन की मूलभूत ईकाई है। व्यक्ति और सामाजिक संस्थाएँ एक …

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जाति-प्रथा का उद्भव और विकास

भूमिका जाति-प्रथा भारतीय समाज की ऐसी विशेषता है जो अन्यत्र इस प्रकार नहीं पायी जाती है। मजे की बात तो यह है यह हिन्दू समाज की विशेषता तो है ही साथ ही इससे मुस्लिम और ईसाई समाज भी अप्रभावित नहीं रहा है। जिस कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था की आधारशिला वैदिक काल में पड़ी थी कालान्तर …

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भारतीय धर्म और दर्शन में ईश्वर की अवधारणा या ईश्वर-विचार ( The concept of God in Indian Religion and Philosophy )

परिचय भारतीय दर्शन पर धर्म की अमिट छाप है इसलिए ईश्वर का महत्वपूर्ण स्थान है। सामान्यतः ईश्वर में विश्वास को धर्म कहा जाता है। धर्म-प्रभावित भारतीय दर्शन में ईश्वर की चर्चा पर्याप्त रूप से मिलती है। चाहे वे ईश्वरवादी दर्शन हों या अनीश्वरवादी अपनी-अपनी बातों को प्रमाणित करने हेतु वे अनेकानेक युक्तियों का प्रयोग करते …

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भारतीय दर्शनों की सामान्य विशेषताएँ

भूमिका भारतीय दर्शनों को सामान्यतः दो वर्गों में रखा गया है — आस्तिक और नास्तिक। चार्वाक, बौद्ध और जैन दर्शन को छोड़कर शेष छः दर्शन आस्तिक वर्ग में रखे गये हैं। इन दर्शनों में परस्पर विभिन्नताएँ होते हुए भी सर्व-निष्ठता पायी जाती है। कुछ सिद्धान्तों की प्रामाणिकता को सभी मान्यता देते हैं। एक जैसी भौगोलिक …

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भारतीय सभ्यता और संस्कृति के स्रोत । प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत

भूमिका सभ्यता और संस्कृति को प्रायः समानार्थी रूप में प्रयुक्त कर दिया जाता है। परन्तु इसमें भेद है। सभ्यता ( सभ्य + तल् + टाप् ) का शाब्दिक अर्थ है सभ्य होने का भाव या नम्रता और शिष्टता। सभ्यता का सम्बन्ध सामाजिकता से है और इसके अन्तर्गत कुछ विधि-निषेधों का पालन किया जाता है। आँग्ल …

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भारतीय संस्कार व्यवस्था

भूमिका ’संस्कार’ शब्द का अर्थ है – परिष्कार, पवित्रता या शुद्धता। भारतीय चिंतकों ने संस्कारों की व्यवस्था शरीर को परिष्कृत या संस्कारित करने के उद्देश्य से की है जिससे वह वैयक्तिक और सामाजिक रूप से योग्य बन सके। शबर मुनि के शब्दों में — ‘संस्कार वह क्रिया है जिसके संपन्न होने पर कोई वस्तु किसी …

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भारतीय पुरुषार्थ व्यवस्था और उसकी सामाजिक उपादेयता एवं महत्त्व

भूमिका ‘पुरुषैर्थ्यते इति पुरुषार्थः’ अर्थात् ‘पुरुषार्थ’ का तात्पर्य पुरुष के लिए जो अर्थपूर्ण है, अभीष्ट है, उसको प्राप्त करने के लिए प्रयास करना ही पुरुषार्थ है। एक विवेकशील मनुष्य इन्हीं उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहता है। इनकी संख्या चार है अतः इन्हें ‘पुरुषार्थचतुष्ट्य’ कहा गया है। पुरुषार्थ दो शब्दों से मिलकर बना है …

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आश्रम व्यवस्था

भूमिका आश्रम शब्द की व्युत्पत्ति ‘श्रम’ धातु से हुई है जिसका अर्थ है – ‘परिश्रम अथवा प्रयास करना।’ अतः आश्रम वह स्थान है जहाँ पर प्रयास किया जाये। ‘इस प्रकार आश्रम व्यवस्था से अभिप्राय एक ऐसी व्यवस्था से है जिसमें व्यक्ति की जीवनयात्रा में कुछ सोपान या चरण निर्धारित किये गये हैं, जहाँ वह एक …

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