भारत में लोहे की प्राचीनता

भूमिका भारतीय सन्दर्भ में लोहे की प्राचीनता द्वितीय सहस्राब्दी तक ले जाया जा सकता है परंतु यह आम प्रयोग में १००० ई०पू० के आसपास से प्रारम्भ माना जाता है। भारतीय उप-महाद्वीप में लोहे के प्रयोग के स्वतंत्र प्रयोग के कई क्षेत्र हैं; जैसे गंगा घाटी, पश्चिमोत्तर, मध्य व दक्षिण भारत। मानव द्वारा लोहे के प्रयोग […]

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गैरिक मृद्भाण्ड संस्कृति ( Ochre Coloured Pottery Culture )

भूमिका हड़प्पा की परिपक्व सभ्यता के उत्तरकाल में, गंगा के मैदान के ऊपरी भागों में एक ऐसी संस्कृति फल-फूल रही थी, जो अपने चमकीले लाल लेप वाले और काले रंग से चित्रित मृद्भांडों के लिए पहचानी जाती है। इसको गैरिक मृद्भाण्ड संस्कृति या गेरुवर्णी मृद्भाण्ड संस्कृति  ( Ochre Coloured Pottery Culture – OCP Culture )

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ताम्र संचय संस्कृति

खोज ताम्र संचय संस्कृति ( Copper Hoards Culture ) की जानकारी तब मिली जब १८२२ ई० में बिठूर ( कानपुर ) से ताँबे के काँटेदार बरछे ( Copper Harpoon ) मिले। अब तक लगभग एक हजार ताँबे की वस्तुएँ भारत के विभिन्न भागों में लगभग ९० पुरास्थलों से प्राप्त की जा चुकी हैं। चूँकि ये

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ताम्रपाषाण संस्कृतियाँ ( Chalcolithic Cultures )

भूमिका इसका नाम ताम्रपाषाण संस्कृति इसलिए कहते हैं क्योंकि मानव ने इस चरण में पाषाण व ताँबे का प्रयोग एक साथ किया अर्थात् ताँबे और पत्थर के उपयोग की अवस्था ( the copper-stone phase )। ताम्रपाषाण को अँग्रेजी में Chalcolithic कहा जाता है; यह दो यूनानी ( Greek ) शब्दों से मिलकर बना है  :-

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नवपाषाणकाल ( Neolithic Age )

भूमिका नवपाषाणकाल की अर्थव्यवस्था का आधारभूत तत्त्व खाद्य-उत्पादन और पशुपालन की जानकारी से है। इसका तकनीकी आधार पाषाण उपकरण हैं। ये उपकरण दो तरह के हैं – एक; टंकित ( Pecked ), घर्षित ( ground ) और पॉलिशदार ( Polished ) एवं दूसरे; छोटे, अपखंडित ( chipped ) उपकरण। वस्तुतः पहली श्रेणी के उपकरण नवपाषाणकाल

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मध्यपाषाणकाल ( Mesolithic Age )

भूमिका मध्यपाषाणकाल का समय १०,००० ई०पू० से ४,००० ई०पू० के बीच निर्धारित किया गया है। इस काल की विशेषता सूक्ष्म या लघुपाषाण उपकरण हैं। वर्तमान से लगभग १२,००० वर्ष पहले अर्थात् आद्यपूर्व ( Befrore Present – B.P. ) या १०,००० ई०पू० के आसपास हिमयुग ( ice age ) समाप्त हो गया और वर्तमान नूतनतम युग

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उत्तर पुरापाषाणकाल ( Upper or Late Palaeolithic Age )

भूमिका उच्च पूर्व पाषाणकाल या उत्तर पुरापाषाणकाल ( Upper or Late Palaeolithic Age ) हिमयुग ( Ice Age / Pleistocene Epoch ) के अंतिम चरण का द्योतक है। भारत में ५६६ उच्च पूर्वपाषाणयुगीन स्थल पाये गये हैं। हिमयुग के अंतिम चरण में तुलनात्मक रूप से जलवायु गर्म हो गयी थी और आर्द्रता भी अपेक्षाकृत कम

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मध्य पुरापाषाणकाल ( Middle Palaeolithic Age )

भूमिका मध्य पुरापाषाणकाल ( Middle Palaeolithic Age ) का समय वैज्ञानिक काल-निर्धारण के आधार पर १,५०,००० ई०पू० से ३५,००० ई०पू० के बीच बताया गया है। उपकरण प्रौद्योगिकी में पूर्व पुरापाषाणकाल की अपेक्षा अवश्य विकास हुआ परन्तु आरम्भिक मानव अभी भी शिकारी व खाद्य संग्राहक ही था। अपने पूर्ववर्ती चरण से इसके अन्तर का आधार है : प्रयुक्त

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आरम्भिक मानव ( The Earliest People )

भूमिका आरम्भिक मानव के उद्विकास की यात्रा मोटेतौर पर लगभग वर्तमान से २० लाख वर्ष पूर्व प्रारम्भ होती है। यह वही समय है जब पृथ्वी की जलवायु अत्यधिक ठंडी हो गयी। पृथ्वी के एक बड़े क्षेत्र पर हिम-आवरण फैल गया। इसे हिमयुग ( Ice Age ) या अत्यंतनूतन युग ( Pleistocene Epoch ) कहा जाता है।

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पूर्व पुरापाषाणकाल ( Lower Palaeolithic Age )

भूमिका पूर्व पुरापाषाणकाल या निम्न पूर्व पुरापाषाणकाल ( Early or Lower Palaeolithic Age ) सम्पूर्ण रूप से अत्यंतनूतन युग ( हिम युग ) के अंतर्गत आता है। अफ्रीका में यह लगभग २० लाख वर्ष पहले शुरू हुआ जबकि भारतीय उप-महाद्वीप में यह लगभग ६ लाख वर्ष पुराना निर्धारित किया गया है। यद्यपि महाराष्ट्र के पुणे

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