यवन प्रभाव या यवन सम्पर्क का भारत पर प्रभाव

भूमिका

जब दो भिन्न संस्कृति व सभ्यता परस्पर सम्पर्क में आती हैं तो वे परस्पर क्रिया-प्रतिक्रिया द्वारा प्रभावित होती भी हैं और करती थी हैं। यह प्रक्रिया मानव इतिहास में अनवरत चलती रहती है। इस दृष्टि से भारतीयों पर यवन प्रभाव का अध्ययन महत्त्वपूर्ण है।

हेलेनिस्टिक सभ्यता

हेलेनिस्टिक सभ्यता क्या है? (What is Hellenistic Civilisation?)

यूनानी सभ्यता ‘हेलेनिक’ सभ्यता के नाम से भी जानी जाती है। ऐसा इसलिये है क्योंकि यूनानी अपने देश को ‘हेलास’ (Hellas) और अपने-आपको ‘हेलेनिज’ (Hellenes) कहते थे। अतः उनकी सभ्यता ‘हेलेनिक सभ्यता’ (Hellenic Civilisation) कहलायी।

‘हेलेनिक सभ्यता’ से भिन्न ‘हेलेनिस्टिक सभ्यता’ (Hellenistic Civilisation) का भी विकास हुआ। सिकंदर के विजय अभियानों ने यूनान में एक नये युग का प्रारम्भ किया। उसके समय में यूनानी साम्राज्य एशिया माइनर, सीरिया, मिस्र, बेबीलोन, ईरान, बैक्ट्रिया, से लेकर व्यास नदी तक फैल गया। उसने साम्राज्य के विभिन्न स्थलों पर नगरों की स्थापना की, छावनियाँ स्थापित की। जिसका परिणाम यह हुआ कि यूनानी इन स्थलों पर बस गये तथा उन्होंने वहाँ यूनानी संस्कृति का प्रसार किया।

इस संस्कृति का मूल तत्त्व तो यूनानी था परन्तु स्थानीय तत्त्वों के समावेश से एक भिन्न प्रकार की संस्कृति की विकसित हुई जिसे ‘हेलेनिस्टिक सभ्यता’ (Hellenistic Civilisation) के नाम से जाना जाता है।

मौर्य साम्राज्य के उद्भव से पश्चिमोत्तर से यूनानी प्रभाव जाता रहा इसलिये ‘हेलेनिस्टिक सभ्यता’ (Hellenistic Civilisation) का कोई विशेष प्रभाव मौर्यकाल में हमें नहीं दिखायी देता है।

परन्तु मौर्योत्तर काल में पश्चिमोत्तर भारत पर किसी न किसी रूप में यूनानियों की सत्ता लगभग दो शताब्दियों तक बनी रही। इसी दौरान भारतीय सभ्यता पर यूनानी सभ्यता का प्रभाव पड़ा। इस नवीन संस्कृति (हेलेनिज्म) के प्रभाव का अध्ययन भारतीय सन्दर्भ में करना समीचीन है।

यवन प्रभाव : विवाद

एक दूसरा विवाद यह है कि हेलिनिस्टिक सभ्यता से भारतीय सभ्यता व संस्कृति प्रभावित हुई अथवा अप्रभावित रही?

इस संदर्भ में इतिहासकारों के दो वर्ग बन गये :

  • एक, वे इतिहासकार जिनका मानना है कि भारत पर यूनानी सभ्यता का प्रभाव नहीं पड़ा। इसमें प्रमुख हैं – विंसेट स्मिथ, टॉर्न आदि।
  • दो, वे इतिहासकार जो भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर यूनानी सभ्यता के प्रभाव को मानते हैं। इनमें प्रमुख हैं – जे० एन० बनर्जी, वुडकॉक इत्यादि।

पहला मत : भारतीय सभ्यता पर यूनानी सभ्यता का प्रभाव नहीं पड़ा

  • प्रमुख विद्वान : विंसेट स्मिथ, टॉर्न आदि।
  • पहले मतानुसार भारतीय-यूनानी (Indo-Greeks) आक्रमणकारी भारत के कुछ हिस्सों पर थोड़े समय के लिये ही अपना अधिकार रख सके। अतः उनके भारत-आक्रमण का कोई भी स्थायी राजनीतिक या सांस्कृतिक प्रभाव नहीं पड़ा।
  • इन विद्वानों की यह भी मान्यता है कि भारतीय इन यवन आक्रमणकारियों से विजेता के रूप में अवश्य प्रभावित एवं भयभीत हुए, परन्तु उन्हें भारतीयों ने न तो ‘संस्कृति का दूत’ ही समझा और न ही उनकी संस्कृति को अनुकरणीय माना।
  • इन विद्वानों के अनुसार, इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि “यवन-शासकों के सिक्कों पर जहाँ एक ओर ग्रीक कथाएँ अंकित है वहाँ दूसरी ओर बढ़ती हुई संख्या में भारतीय कथाओं की संख्या यह प्रदर्शित करती है कि यूनानी भाषा भारत के लोगों की समझ में नहीं आती थी।”

दूसरा मत : भारतीय सभ्यता को यूनानी सभ्यता ने प्रभावित किया

  • प्रमुख विद्वान : जे० एन० बनर्जी, वुडकॉक इत्यादि।
  • इन विद्वानों ने पहले वर्ग के विद्वानों के मतों की आलोचना करते हुए उन्हें एकांगी बताया है।
  • वस्तुतः जे० एन० बनर्जी, वुडकॉक जैसे अनेक विद्वान भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति पर हेलेनिस्टिक सभ्यता के प्रभाव को स्वीकार करते हैं।
  • जे० एन० बनर्जी महोदय तो ‘द्वितीय यूनानी आक्रमण’ को सिकंदर के आक्रमण से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण मानते हैं।’ (“This second Greek conquest was more important for India than that of Alexander, because the cultural contact between the Greeks and the Indians reacted upon each other for nearly two centuries which resulted in the rounding of their edges; and a new people called the Indo-Greeks came into being.”)

वस्तुतः, भारत और बैक्ट्रिया के संपर्क ने दोनों की सभ्यता एवं संस्कृति को प्रभावित किया।

हेलेनिस्टिक सभ्यता ने भारतीय समाज, धर्म और कला को प्रभावित किया।

यूनानी सम्पर्क का भारत पर प्रभाव

यवन प्रभाव (हेलिनिस्टिक सभ्यता)

भारतीय संस्कृति एवं समाज पर हेलेनिस्टिक सभ्यता का प्रभाव (Influence of the Hellenistic Civilisation on Indian Culture and Society)

बैक्ट्रियाई-यवनों का पश्चिमोत्तर भारत पर शासन सिकन्दर की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ। इस समय भारत तथा यूनान के सांस्कृतिक सम्पर्क बहुत अधिक बढ़ गये। एक ओर जहाँ यूनानी भारतीय धर्म से प्रभावित हुये वहीं दूसरी ओर भारतीयों ने कला, विज्ञान, मुद्रा, ज्योतिष आदि के क्षेत्र में यूनानी संस्कृति से बहुत कुछ सीखा।

  • यूनानियों पर भारतीय प्रभाव
    • यवन शासक मेनाण्डर नागसेन के प्रभाव से बौद्ध हो गया तथा वह अर्हत् पद पर पहुँच गया।
    • हेलियोडोरस ने भागवत धर्म ग्रहण कर लिया तथा विष्णु मन्दिर के सामने (विदिशा में) विष्णुध्वज की स्थापना की।
    • मेरिड्रक (यूनानी पदाधिकारी) ने स्वात घाटी में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया। बुद्ध के अवशेषों की पूजा वहाँ प्रारम्भ हुई।
    • थियोडोरस ने जनकल्याण हेतु एक तालाब खुदवाया था।
    • तपस्या और योग को यूनानियों ने सम्भवतः भारतीयों से सीखा।
    • इसी प्रकार कुछ अन्य यवनों ने भी भारतीय धर्म, रहन-सहन आदि अपना लिया था।
  • भारतीयों पर यूनानी प्रभाव : दूसरी ओर भारतीय भी यूनानी प्रभाव से अछूते न रहे। कला के क्षेत्र में स्पष्टतः यूनानी प्रभाव देखा जा सकता है।
    • कला
      • गन्धार कला शैली की नींव इसी युग में पड़ी थी। इसमें भारतीय विषयों को यूनानी ढंग से व्यक्त किया गया। यद्यपि इसका पूर्ण विकास कुषाणकाल में हुआ।
      • गन्धार मूर्तिकला में भगवान बुद्ध की मूर्तियाँ यूनानी देवता ‘अपोलो’ से प्रभावित हैं।
      • अनेक नगरों के बसने से स्थापत्य कला पर भी यूनानी प्रभाव पड़ा।
    • मुद्रा
      • साँचे में ढली मुद्राओं के निर्माण की विधि (Die Systems Coinage) भारतीयों ने यूनानियों से ही ग्रहण की।
      • यूनानी प्रभाव से भारतीय मुद्रायें सुडौल, लेखयुक्त तथा कलात्मक होने लगीं। कुणिन्द तथा औदुम्बर गणराज्यों के सिक्के यवन नरेश अपोलोडोटस के सिक्कों के अनुकरण पर ढाले गये हैं।
      • इण्डो-ग्रीक्र शासकों ने ही सर्वप्रथम अपने सिक्कों पर लेख उत्कीर्ण करवाया था।
      • मुद्रा पर राजा का चित्र अंकित करने की प्रथा भारत में यूनानियों ने प्रारम्भ की।
      • यूनानियों ने भारत में सर्वप्रथम स्वर्ण मुद्राओं का प्रचलन किया। इससे पहले भारत में चाँदी व ताँबे के सिक्के चलते थे।
      • पूर्व मध्य काल के लेखों में सिक्के के लिये द्रम्म और दाम शब्द आया है। यह यूनानी भाषा के ‘द्रख्म’ से लिया गया है।
    • ज्योतिष
      • ज्योतिष के क्षेत्र में भारत ने यूनान से सर्वाधिक प्रेरणा ली।
      • बृहत्संहिता में कहा गया है कि “यवन बर्बर हैं, पर ज्योतिष का जन्म उनसे हुआ है, अतः वे ऋषियों की भाँति सम्मान योग्य हैं।”

“म्लेच्छा हि यवनास्तेषु सम्यक् शास्त्रमिदं स्थितम्।

ऋषिदत्तेऽपि पूज्यन्ते किं पुनर्देववद् द्विजैः॥” —बृहत्संहिता

      • भारतीय ग्रन्थों में ज्योतिष के पाँच सिद्धान्तों का विवरण मिलता है :

§  पैतामह,

§  वशिष्ट,

§  सूर्य,

§  पोलिश और

§  रोमक।

      • वाराहमिहिर (पंचसिद्धान्तिका) इनमें अन्तिम दो का उदय यवन-सम्पर्क से बताते हैं।

§  पोलिश सिद्धान्त सिकन्दरिया के पाल की खोजों पर आधारित लगता है।

§  रोमक के सम्बन्ध में वाराहमिहिर ने जिन नक्षत्रों के नाम गिनाये है वे यूनान से लिये गये प्रतीत होते हैं।

§  पोलिश (पौलस) सिद्धांत के आधार पर भारतीय त्रिकोणमिति (ग्रीक त्रगोनोमेत्री) का विकास हुआ।

      • अनेक ज्योतिष सम्बन्धित शब्दों का प्रयोग संस्कृत में होने लगा। भारतीय राशिचक्र के संस्कृत नाम ग्रीक मूल या उनसे अनुवादित हैं; यथा – क्रिय (क्रियोस, मेष), तावुरि (तौरस, वृषभ), लेय (लियो, सिंह) आदि।
      • वाराहमिहिर के ‘होरा’ विषयक ज्ञान, जिसका सम्बन्ध कुण्डलियों से है, के ऊपर यूनानी खगोलशास्त्र का प्रभाव स्पष्टतः दिखायी देता है। सम्भवतः इस विद्या का जन्म बेबीलोन में हुआ था और यहाँ से यह यूनान एवं अन्य देशों में पहुँची।
      • भारतीय ज्योतिष में प्रचलित अनेक शब्द; यथा — केन्द्र, हारिज, लिप्त, द्रक्कन आदि यूनानी भाषा से ही लिये गये प्रतीत होते हैं।
      • सप्ताह में ७ दिनों में विभाजन, कैलेंडर का ज्ञान, ग्रहों का नामकरण भारतीयों ने यूनान के आधार पर किया गया।
      • टार्न के अनुसार भारतीयों ने ज्योतिष के क्षेत्र में यूनानियों से निम्नलिखित बातें सीखीं :

§  निश्चित तिथि से काल-गणना की प्रथा,

§  सम्वतों का प्रयोग तथा

§  सप्ताह का सात दिनों में विभाजन आदि

      • ग्रहों की गतिविधियों के आधार पर भविष्यवाणी करने की प्रथा भी यूनानी ‘फलित ज्योतिष’ से प्रभावित थी।
    • चिकित्सा
      • इसी तरह यूनानी चिकित्सक हिप्पोक्रेटिज तथा भारतीय चिकित्साशास्त्री चरक के सिद्धान्तों में अनेक समानतायें दिखायी देती हैं। दोनों के ग्रन्थों में चिकित्सा शास्त्र के विद्यार्थी के लिये जो प्रतिज्ञा बतायी गयी है वह एक समान है।
    • दर्शन
      • दर्शन के क्षेत्र में भी भारतीयों तथा यूनानियों में अनेक समानतायें हैं।
    • नाटक
      • बेवर जैसे कुछ विद्वान् भारतीय नाटकों का उद्भव भी यूनानी नाटकों से ही बताते हैं।
      • वस्तुतः भारतीय नाटकों का उद्भव ‘नट’ (नृत्य) में ढूँढा जाना चाहिए। नृत्य में प्रयुक्त मुद्रायें ही नाटकों में प्रयुक्त होती थी। भारतीय नाटकों को कहीं से कोई प्रेरणा प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं थी। इसका मूल यम-यमी संवाद (ऋग्वेद) में देखा जा सकता है।
      • संस्कृत के ‘सुखांत नाटकों’ पर यूनानी प्रभाव बताया गया है। इस दृष्टि में शूद्रक कृत ‘मृच्छकटिक’ को यूनानी सुखांत नाटकों से प्रभावित बताया गया है।
      • कुछ विद्वान् ‘मृच्छकटिक’ की तुलना ‘न्यू एटिक कामेडी’ (New Attic Comedy) से करते हैं। परन्तु यह ठीक नहीं है।
      • संस्कृत नाटकों में पर्दे के लिये ‘यवनिका’ शब्द आया है जो यूनानी भाषा से लिया गया प्रतीत होता है।
  • व्यापार
    • भारत और यूनान में व्यापारिक सम्पर्क भी बढ़े। यवन सम्पर्क के कारण भारतीय व्यापार का विकास हुआ।
    • ‘पेरिप्लस ऑफ दी एरिथ्रीयन सी’ का रचयिता एक यूनानी ही था जो भारत का विदेशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध प्रमाणित करता है।
  • अन्य प्रभाव
    • संस्कृत शब्दकोश में स्याही, कलम, फलक आदि के लिये जो शब्द मिलते हैं वे यूनानी भाषा से लिये गये प्रतीत होते हैं।
    • यवनों को ‘सर्वज्ञ यवन’ कहकर सम्मानित किया गया है।
    • यवन चिकित्सक और अभियंताओं (इंजीनियरों) की भारत में प्रतिष्ठा थी।
    • व्यूह रचना के विशेषज्ञ और युद्ध-मशीनों के निर्माता के रूप में उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था।
    • बृहत्कथामंजरी में यवनों को दक्ष शिल्पी कहा गया है।
    • उड़ाकू यंत्रचालित घोड़ों के निर्माता के रूप में यवनों का उल्लेख मिलता है।
    • यवनों ने यूनानी आधार पर भारत में कई नगरों की स्थापना की, जिससे भारतीयों ने कई बातें सीखीं।

निष्कर्ष

परन्तु इतना तो स्पष्ट है कि संस्कृति के मूल तत्त्व सर्वथा अप्रभावित एवं अपरिवर्तित ही रहे तथा यवन भारतीयों पर कोई गहरा प्रभाव नहीं छोड़ सके। भारतीय सभ्यता पर यवन-संस्कृति के प्रभावों को अतिरंजित करने के लिये पर्याप्त आधार नहीं है।

हिन्द-यवन या भारतीय-यूनानी या इंडो-बैक्ट्रियन(The Indo-Greeks or Indo-Bactrians)

शुंग राजवंश (The Shunga Dynasty)

सातवाहन राजवंश (The Satavahana Dynasty)

विदेशी आक्रमण का प्रभाव या मध्य एशिया से सम्पर्क का प्रभाव (२०० ई०पू० – ३०० ई०)

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