भूमिका
वेद किसी व्यक्ति विशेष द्वारा रचित कोई धार्मिक कृति नहीं है और न ही ये किसी समय विशेष की कृतित्व है अपितु वैदिक साहित्य कई शताब्दियों तक विकसित और समृद्ध होता रहा और पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक रूप से हस्तांतरित होता रहा है।
इससे पूर्व की हम वैदिक काल और संस्कृति के विषय में विषद् चर्चा करने से पूर्व हमें यह जान लेना आवश्यक कि :-
- वैदिक साहित्य क्या है?
- वैदिक साहित्य का सरल वर्गीकरण कैसे किया गया है?
- क्या वेदों पर भाष्य, टीका व अनुवाद उपलब्ध है और यदि है तो उनमें से कुछ प्रमुख कौन-कौन से हैं?
वैदिक साहित्य क्या है?
वैदिक साहित्य का आशय उस विपुल साहित्य से है, जिसके अंतर्गत चारों वेद – ऋक्, साम, यजुर एवं अथर्व की संहिताएँ अर्थात् मंत्र खंड ही नहीं अपितु गद्य एवं दार्शनिक खंड अर्थात् विभिन्न ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद भी आते हैं।
प्रत्येक वेद के साथ ही उसके ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक एवं उपनिषद् वर्गीकृत हैं। उदाहरणार्थ, ऋग्वेद के ब्राह्मणों में ऐतरेय एवं कौषीतकी, यजुर्वेद के साथ शतपथ ब्राह्मण, साम के साथ पंचविश और अथर्व के साथ गोपथ ब्राह्मण के नाम जुड़े रहते हैं। ठीक इसी प्रकार ऐतरेय आरण्यक व तैत्तिरीय आरण्यक क्रमशः ऋग्वेद तथा यजुर्वेद से और बृहदारण्यक एवं छान्दोग्य उपनिषद् क्रमशः यजुर्वेद एवं सामवेद से सम्बंधित हैं।
यह सम्पूर्ण संहिता-इतर साहित्य केवल गद्य में ही नहीं है अपितु पद्य मिश्रित भी है। ब्राह्मण ग्रंथों में विधि एवं अर्थवाद के माध्यम से संहिताओं की व्यवस्था की गयी है, जो गहन वाद-विवाद का परिणाम है। शाखाओं के विभाजन के अनुसार इनका भी वर्गीकरण संहिता-विशेष से इनके सम्बन्ध के आधार पर कर दिया गया, जैसे – ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ होतृ के लिए, यजुर्वेद के ब्राह्मणों का प्रयोग अध्वर्यु तथा सामवेद से सम्बंधित उद्गातृ के लिए हैं।
यद्यपि इन ग्रंथों का आरम्भ संहिताओं के कर्मकाण्डीय अंशों के परिशिष्ट के रूप में हुआ किंतु कालांतर में ये स्वतंत्र हो गये। इनमें से अधिकांश की यदि पुनर्रचना नहीं भी हुई हो, तो भी कम-से-कम क्षेपक तो जोड़े ही गये हैं।
ब्राह्मण ग्रंथों के समान विभिन्न आरण्यकों में भी दर्शन-सम्बन्धी गूढ़ एवं रहस्यमय विषयों की चर्चा है। उपनिषदों का प्रमुख प्रतिपाद्य विषय आत्मन्-ब्रह्मन् के विश्लेषण द्वारा अद्वैतवाद का निरूपण तथा अन्य वैदिक ग्रंथों के विपरीत कर्मकांड का खण्डन करता है।
ब्राह्मणों एवं आरण्यकों की तुलना में उपनिषदों की एक विशेषता यह भी है कि इनमें कुछ विशिष्ट व्यक्तियों की भूमिका एवं योगदान के स्पष्ट उल्लेख हैं और अनेक प्रसिद्ध आचार्यों को खूब महत्ता दी गयी है, जैसे – याज्ञवल्क्य, उद्दालक आरुणि, श्वेतकेतु आदि।
यों तो कभी-कभी सूत्र ग्रंथों को भी वैदिक साहित्य में सम्मिलित कर लिया जाता है, जैसा कि भारतीय विद्या भवन द्वारा प्रकाशित हिस्ट्री एंड कल्चर ऑफ़ दि इंडियन पीपुल शृंखला के प्रथम खंड अर्थात् वैदिक एज* में दृष्टव्य है। परन्तु चूँकि हमारा विचार है कि इन ग्रंथों को ईसा पूर्व छठी शताब्दी से पूर्व का बताना दुष्कर है, अतः इन्हें वैदिक साहित्य की सीमा से बाहर रखना ही उचित होगा। इसी प्रकार वेदाध्ययन की दृष्टि से परम्परा द्वारा अभिन्न अंग माने जाने वाले शिक्षा, व्याकरण, कल्प, निरुक्त, छंद एवं ज्योतिष रूपी छह वेदांग भी अत्यंत परवर्ती होने के कारण वैदिक साहित्य नहीं माने गये हैं।
- The History And Culture Of The Indian People – Volume – 1 : The Vedic Age*
वैदिक साहित्य का वर्गीकरण
वेद एवं उससे सम्बन्धित ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद् |
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वेद | ब्राह्मण | आरण्यक | उपनिषद् |
ऋग्वेद | ऐतरेय
कौशीतकी |
ऐतरेय
कौशीतकी |
ऐतरेय
कौशीतकी |
यजुर्वेद | तैत्तिरीय
शतपथ |
वृहदारण्यक
तैत्तिरीय शतपथ |
वृहदारण्यक
तैत्तिरीय कठ ईश श्वेताश्वतर मैत्रायण महानारायण |
सामवेद | ताण्ड्य
जैमिनीय |
जैमिनीय
छान्दोग्य |
जैमिनीय
छान्दोग्य |
अथर्ववेद | गोपथ | × | मुण्डक
माण्डूक्य प्रश्न |
वेदों पर लिखे गये भाष्य व अनुवाद
परमार काल में उव्वट ने, चोलकालीन में वेंकटमाधव ने और विजयनगर काल में सायण ने वेदों पर भाष्य लिखा। मुगलकाल में दाराशिकोहकाशी के संस्कृति विद्वानों की सहायता से ५२ उपनिषदों का संस्कृति से फारसी भाषा में अनुवाद किया और इसको ‘सिर्र-ए-अकबर’ ( The Great Secret ) नाम दिया।
मैक्समूलर ने वेदों का अनुवाद अंग्रेजी भाषा में –‘Sacred Book Of East’ के नाम से किया।
निष्कर्ष
सार संक्षेप है कि वैदिक साहित्य वह है जिसमें ४ वेद और उन चारों से सम्बन्धित ब्राह्मण, आरण्यक व उपनिषद् सम्मिलित हैं। इसमें वेदांग और सूत्र साहित्य नहीं आते हैं।