चम्पा ( मालिनी )

भूमिका

चम्पा अंग महाजनपद की राजधानी थी। चम्पा की पहचान वर्तमान भागलपुर जनपद में गंगा और चंपा नदी के संगम पर स्थिति चंपापुरी या चंपानगरी से की जाती है। अंग महाजनपद बिहार प्रांत के वर्तमान भागलपुर और मुंगेर जनपद की भूमि पर स्थित था। महाभारत और पुराणों में चम्पा का एक नाम मालिनी भी मिलता है। अंग महाजनपद की राजधानी चम्पा के अन्य नाम भी मिलते हैं; यथा – चम्पापुरी, चम्पा मलिनी, कला मलिनी आदि नामों से जाना जाता था।

जनरल कनिंघम के अनुसार भागलपुर के समीपस्थ ग्राम चम्पानगर और चम्पापुर प्राचीन चम्पा के स्थान पर बसे हैं।

चम्पापुर के पास कर्णगढ़ की पहाड़ी भागलपुर के निकट है, जिससे महाभारत के प्रसिद्ध योद्धा अंगराज कर्ण से चम्पा का सम्बन्ध प्रकट होता है। यहाँ का निकटतम् रेलवे स्टेशन नावनगर, भागलपुर से २ मील (लगभग ३.२ किलोमीटर) है। चम्पा नगरी इसी नाम की नदी और गंगा के संगम पर स्थित थी

चम्पा
चम्पा (मालिनी)

सामरिक और व्यापारिक महत्त्व

चम्पा की स्थिति सामरिक और व्यापारिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण थी। यह बिहार के मैदानी क्षेत्र का अन्तिम सिरा और बिहार-झारखंड के कैमूर पहाड़ी का मिलन स्थल है।

प्राचीन समय में यह नगरी रेशमी वस्त्र, हाथीदाँत, शीशे के शिल्प आदि सामान के लिये बहुत प्रसिद्ध थी। गंगा नदी के तट पर स्थित होने के कारण चंपा नगरी आर्थिक व्यापारिक केन्द्रों से जुड़ी हुई थी।

जातक कथाओं में चम्पा नगरी की श्री समृद्धि तथा यहाँ के संपन्न व्यापारियों का अनेक स्थानों पर उल्लेख है। चम्पा में कौशेय या रेशम का सुंदर कपड़ा बुना जाता था, जिसका दूर-दूर तक भारत से बाहर दक्षिण-पूर्व एशिया के अनेक देशों तक व्यापार होता था। यह बात उल्लेखनीय है कि रेशमी कपड़े की बुनाई की यह परंपरा वर्तमान भागलपुर में अभी तक चल रही है।

चम्पा के व्यापारियों ने हिन्द-चीन पहुँचकर वर्तमान अनाम के प्रदेश में चम्पा नामक भारतीय उपनिवेश स्थापित किया था।

गंगा नदी के तट पर स्थित होने के कारण यहाँ से एक ओर भारत के पृष्ठप्रदेशों से जुड़ा हुआ था वहीं पूर्व में ताम्रलिप्ति बंदरगाह के माध्यम से पूर्व एशिया और श्रीलंका तक व्यापारी पहुँचते थे। हमें ज्ञात है कि अशोक के पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा यहीं (ताम्रलिप्ति) से श्रीलंका गये थे। स्वयं सम्राट अशोक उन्हें भेंजने के लिये ताम्रलिप्ति तक आये थे।

इस तरह स्पष्ट है कि चम्पा को मगध के आधिपत्य में लाने का कारण सामरिक के साथ-साथ व्यापारिक कारण भी थे।

बुद्धकालीन ६ महानगरों में से एक

बुद्धकाल में चम्पा की गणना भारत के छः महानगरों* में की गयी है।

  • महापरिनिर्वाण सूत्र के अनुसार छः महानगर थे – चम्पा, राजगृह, श्रावस्ती, साकेत, वाराणसी और कौशाम्बी।

दीघनिकाय के अनुसार चम्पा के नगर निर्माण की योजना प्रसिद्ध वास्तुकार महागोविन्द ने प्रस्तुत की थी। यह व्यापार-वाणिज्य का प्रसिद्ध केन्द्र था।

मगध से संघर्ष

साम्राज्यवादी संघर्ष में अंग ने मगध से प्रतिस्पर्धा की। सर्वप्रथम तो अंग के शासक ब्रह्मदत्त ने मगध के राजा भट्टिय को हराया और उसके राज्य के कुछ भू-भाग को अधिकृत कर लिया। विदुरपंडित जातक के अनुसार मगध की राजधानी राजगृह पर अंग का अधिकार था। परन्तु बाद में मगध राज ‘बिम्बिसार’ ने अंग पर आक्रमण करके ब्रह्मदत्त को पराजित करके मार डाला। अंग अब पूर्णतया मगध के अधीन आ गया। बिम्बिसार ने अपने पुत्र अजातशत्रु को अंग का उपराजा नियुक्त किया। जैन साहित्य में चम्पा का ‘कुणिक’ अजातशत्रु की राजधानी के रूप में भी वर्णन मिलता है।

साहित्यों में चम्पा का विवरण

अथर्ववेद में अंग महाजनपद को अपवित्र माना गया है। वहीं दूसरी ओर महाभारत में अंग (चम्पा) को एक तीर्थ स्थल के रूप में वर्णित किया गया है। महाभारत के कर्ण पर्व में अंग को एक ऐसे प्रदेश के रूप में जाना जाता था, जहाँ पत्नी और बच्चों को बेचा जाता था

महाभारत ग्रंथ के अनुसार अंग राजवंश के संस्थापक राजकुमार अंग थे, जबकि रामायण के अनुसार यह वह स्थान है, जहाँ कामदेव ने अपने अंग को काटा था।

महाभारत के शान्तिपर्व के अनुसार जरासंध ने कर्ण को चंपा या मालिनी का राजा मान लिया था — ‘प्रीत्या बदौ स कर्णाय मालिनी नगरमथ, श्रंगेषु नरशार्दल स राजऽऽसोत् सपत्नजित्। पालयामास चम्पा च कर्ण: परबलार्दनः।’

महाभारत के सभापर्व* में भीमसेन की पूर्व दिशा की दिग्विजय के प्रसंग में मगध के नगर गिरिव्रज के पश्चात् मोदागिरि या मुंगेर पूर्व जिस स्थान पर भीम ने कर्ण को पराजित किया था वह निश्चयपूर्वक यही जान पड़ता है — ‘स कर्णं युधि निर्जित्य वशेकृत्वा च भारत। ततो विजिग्ये बलवान् राज्ञः पर्वतासिनः॥*

विष्णुपुराण से ज्ञात होता है कि पृथुलाक्ष के पुत्र चंप ने इस नगरी को बसाया था — ‘ततश्चंपोयश्चम्पा निवेशयामास।’

वायुपुराण, हरिवंशपुराण, और मत्स्यपुराण के अनुसार भी चम्पा का दूसरा नाम मालिनी था। चंपा को चंपपुरी भी कहा गया है — ‘चंपस्य तु पुरी चंपा या मालिन्यभवत् पुरा।’ इससे यह भी सूचित होता है कि चंपा का पहला नाम मालिनी था और चंप नामक राजा ने उसे चंपा नाम दिया था।

प्राचीन कथाओं से सूचित होता है कि इस नगरी के चतुर्दिक चंपक वृक्षों की मालाकर पंक्तियाँ थीं। इस कारण इसे चंपामालिनी या केवमालिनी कहते थे। जातक कथाओं में इस नगरी का नाम कालचंपा भी मिलता है।

महाभारत, वनपर्व (३०८, २६) से सूचित होता है कि चंपा गंगा के तट पर बसी थी —’चर्मण्वत्याश्च यमुनां ततो गंगा जगाम ह, गंगाया सूत विषयं चंपामनुनयौ पुरीम्।’ दीघनिकाय के वर्णन के अनुसार चम्पा अंगदेश में स्थित थी।

महाजनक जातक के अनुसार चंपा मिथिला से ६० कोस दूर थी। इस जातक में चंपा के नगर द्वार तथा प्राचीर का वर्णन है, जिसकी जैन ग्रंथों से भी पुष्टि होती है । औपपातिक सूत्र में नगर के परकोटे, अनेक द्वारों, उद्यानों, प्रासादों आदि के बारे में निश्चित निर्देश मिलते हैं।

जैन ग्रंथ विविधतीर्थकल्प में इस नगरी की जैन तीर्थों में गणना की गयी है। इस ग्रंथ के अनुसार १२वें तीर्थंकर वासुपूज्य का जन्म चम्पा में हुआ था। इस नगरी के शासक करकंडु ने कुंड नामक सरोवर में पार्श्वनाथ की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की थी।

जैन ग्रंथ उत्तराध्ययन सूत्र में चम्पा के धनी व्यापारी पालित का उल्लेख मिलता है, जो महावीर स्वामी का शिष्य था।

महावीर स्वामी ने भी इस नगर में निवास किया था। महावीर स्वामी ने वर्षा काल में यहाँ तीन रातें बितायीं थीं।

कुणिक (अजातशत्रु) ने अपने पिता बिम्बिसार की मृत्यु के पश्चात् राजगृह छोड़कर यहाँ अपनी राजधानी बनायी थी।

जैन ग्रंथ औपपातिक-सूत्र में इस नगरी का सुंदर वर्णन है और नगरी में पुष्यभद्र की विश्रामशाला, वहाँ के उद्यान में अशोक वृक्षों की विद्यमानता और कुणिक (अजातशत्रु) और उसकी महारानी धारिणी का चम्पा से सम्बन्ध इत्यादि बातों का उल्लेख है। इसी ग्रंथ में तीर्थंकर महावीर का चंपा में शमवशरण* करने और कुणिक की चंपा की यात्रा का भी वर्णन है। चंपा के कुछ शासनाधिकारियों; यथा – गणनायक, दंडनायक और तालबर के नाम भी इस सूत्र में दिये गये हैं।

  • शमवशरण का अर्थ है ‘सबको शरण’। जैन मत में इसका अभिप्राय ‘जहाँ सबको ज्ञान पाने का अधिकार’ से है।*

चंपा से शुंगकालीन मूर्तियाँ भी मिली हैं।

फाह्यान ने चंपा की यात्रा की थी तथा इसके वैभव का उल्लेख किया है। ह्वेन त्सांग (युवान च्वांग) ने चंपा को ‘चेनपो’ नाम से वर्णित किया है। ईसा पूर्व ५वीं सदी में भागलपुर को ‘चंपावती’ के नाम से जाना जाता था।

दशकुमारचरित* में भी चम्पा का उल्लेख है, जिससे ज्ञात होता है कि यह नगरी ७वीं शती ई० या उसके बाद तक भी प्रसिद्ध थी।

  • दशकुमारचरित की रचना दण्डी ने की थी। दण्डी पल्लव नरेश नरसिंह वर्मन् द्वितीय ( ७००-७२८ ई० ) की राजसभा में रहते थे।*

कौशाम्बी

महाजनपद काल

हर्यंक वंश या पितृहंता वंश

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