भूमिका
आरम्भिक मानव के उद्विकास की यात्रा मोटेतौर पर लगभग वर्तमान से २० लाख वर्ष पूर्व प्रारम्भ होती है। यह वही समय है जब पृथ्वी की जलवायु अत्यधिक ठंडी हो गयी। पृथ्वी के एक बड़े क्षेत्र पर हिम-आवरण फैल गया। इसे हिमयुग ( Ice Age ) या अत्यंतनूतन युग ( Pleistocene Epoch ) कहा जाता है। इसमें कई अंत्यन्त ठंडे व कम ठंडे चरण गुजरे। इसको भूवैज्ञानिकों ने हिमकाल व अंतर्हिमकाल की संज्ञा दी है। इस जलवायुगत उतार-चढ़ाव ने मानव विकास को गहरे से प्रभावित किया। मानव ने स्वयं को इन विपरीत परिस्थितियों के अनुकूलन के प्रयास में कई तकनीकी विकास किये।
आरम्भिक मानव : आखेटक व खाद्य-संग्राहक
आरम्भिक मानव को आखेटक और खाद्य-संग्राहक क्यों कहते हैं?
आरम्भिक मानव ( earliest People ) को आखेटक और खाद्य-संग्राहक ( Hunters and Food-Gatherers ) या आखेटक-खाद्य संग्राहक ( Hunter-Gatherers ) भी कहते हैं। यह शब्द मुख्यतः दो क्रिया-कलापों का समुच्चय है —
- एक, आखेट या शिकार करना और
- द्वितीय, खाद्य पदार्थों का संग्रहण।
अतः नाम से ही स्पष्ट है कि आदि मानव अपने भोजन के लिए शिकार करता था जिसमें जंगली जानवर, मछलियाँ, पक्षी आदि शामिल थे। साथ ही फल-फूल, कंदमूल इत्यादि को इकट्ठा करके वह अपनी क्षुधी को शान्त करता था।
इस प्रक्रिया में मानव कई विषम परिस्थितियों का सामना करता था। कई शिकार ऐसे थे जो बहुत तेज दौड़ते, तो कई मानव का ही शिकार कर डालते थे। मछली पकड़ना बड़ी एकाग्रता का कार्य था। इसलिए किसी भी शिकार के लिए जागरूकता, फुर्ती व विवेकशीलता अनिवार्य थी। कई बार शिकार के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती थी। जिसका ज्ञान हमें भीमबेटका जैसी गुफा-चित्रों से होता है।
आज हम यह जानते हैं कि क्या खाना है और क्या नहीं। यह ज्ञान मानव के विकासात्मक ज्ञान का हिस्सा होते हुए हम तक पीढ़ी-दर-पीढ़ी पहुँचा है। अतीत में कई बार ऐसा हुआ होगा कि आरम्भिक मानव ने किसी विषैले खाद्य पदार्थ को खा लिया हो। इसलिए खाद्य-अखाद्य ( edible-inedible ) की खोज आरम्भिक मानवों की हमारे लिए अनुपम देन है।
साथ ही मानव ने जलवायु व मौसम की जानकारी प्राप्त की होगी; क्योंकि :-
- कौन सा फल-फूल, कंदमूल इत्यादि किस मौसम में और किस जलवायु क्षेत्र में मिलेगा यह ज्ञान आवश्यक होगा।
- पशु-पक्षियों के शिकार के लिए भी मौसम व जलवायु का ज्ञान होना आवश्यक था क्योंकि शिकार के लिए आवश्यक था कि वे कब और कहाँ पाये जायेंगे इसकी जानकारी आरम्भिक मानव ने अर्जित की होगी।
आरम्भिक मानव : घुमंतू जन-जीवन
आखेटक और खाद्य-संग्राहक समुदाय के लोग एक स्थान से दूसरे स्थान के लिये निरन्तर प्रवास करते रहते थे। प्रश्न उठता है कि आरम्भिक मानव घुमन्तू जीवन ( nomadic life ) क्यों व्यतीत करता था?
इसके मुख्यतः निम्न कारण थे :-
- पहला कारण, आदि मानव के एक स्थान पर निरंतर रहने से उस स्थान पर शिकार व खाद्य पदार्थों का अभाव होने लगता था। क्योंकि निरंतर उपभोग से पौधों, फलों और जानवरों की कमी होने लगती थी या अभाव हो जाता था। इसलिए और भोजन की खोज में आरम्भिक मानवों को दूसरे स्थानों पर जाना पड़ता था।
- दूसरा कारण, जानवर अपने शिकार के लिए और फिर हिरण व मवेशी अपने चारे के खोज में एक स्थल से दूसरे स्थल पर जाया करते हैं। इसीलिए, इन जानवरों के शिकारी भी इनके पीछे-पीछे एक स्थान से दूसरे स्थान को जाया करते थे।
- तीसरा कारण, पेड़ों-पौधों में फल-फूल मौसम के अनुसार आते हैं, साथ ही जलवायु विशेष में वनस्पति विशेष पायी जाती है। इसीलिए लोग उनकी तलाश में उपयुक्त मौसम के अनुसार एक स्थल से दूसरे स्थल पर घूमते रहते थे।
- चौथा कारण, जल की आवश्यकता। यद्यपि कई जलस्रोत कभी नहीं सूखते थे। परन्तु कई ऐसे भी थे कि मौसम के अनुसार उनमें जल की मात्रा घटती, बढ़ती या सूख जाया करती थी। इसलिए जलस्रोतों की तलाश में भी आरम्भिक मानव को एक स्थल से दूसरे स्थल पर जाना पड़ता था।
आरम्भिक मानव : आवास स्थल का चुनाव
यह बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि आरम्भिक मानव ( Earliest People ) के लिए कुछ सामग्रियों की विशेष आवश्यकता थी –
- जलस्रोत – नदी, तालाब आदि।
- खाद्य सामग्री की प्रचुर उपलब्धता
- उपकरण निर्माण हेतु कच्ची सामग्री
अतः जहाँ पर ये एक साथ उपलब्ध हो जाते वह आरम्भिक मानव के लिए आकर्षण के केंद्र होते थे। जैसे – सोहन घाटी, बेलन घाटी, नर्मदा घाटी, कोर्तलयार नदी घाटी इत्यादि।
आरम्भिक मानव की गतिविधियों से जुड़े स्थल को पुरातत्ववेत्ताओं ने निम्न भागों में वर्गीकृत किया है :-
- आवास स्थल ( Habitation sites ) — आरम्भिक मानव ( Earliest human ) जहाँ रहता था उसको आवास स्थल ( Habitation ) कहते हैं। ये स्थल प्राकृतिक शैलाश्रय हो सकते हैं या खुले आकाश।
- कारखाना स्थल ( Factory sites ) — ऐसे स्थल जहाँ पर प्रस्तर उपकरण बनाने के लिए कच्ची सामग्री ( raw material ) उपलब्ध हो।
- आवास-कारखाना स्थल ( Habitation-cum-Factory sites ) — ऐसे स्थल जो आवास स्थल तो हो ही और साथ ही वहाँ पर औजार बनाने हेतु पर्याप्त कच्ची सामग्री भी उपलब्ध हो।
- अन्य स्थल, जैसे शिकार स्थल।
आवास स्थल ( Habitation sites ) के रूप में हम भीमबेटका ( रायसेन जनपद, मध्य प्रदेश ) का उदाहरण ले सकते हैं। यहाँ प्राकृतिक गुफाएँ ( Natural Caves ) पायी गयी हैं जो आरम्भिक मानव के लिए शैलाश्रय ( rock shelters ) का काम करती थीं। ये गुफाएँ मानव को विपरीत जलवायु ( बारिश, सर्दी, गर्मी ) परिस्थितियों में आश्रय देती थीं। ऐसे प्राकृतिक शैलाश्रय विंध्य श्रेणी, दक्कन व सुदूर दक्षिण में पाये गये हैं।
पुरास्थल
पुरास्थल या पुरातात्त्विक स्थल ( Archaeological sites ) उस स्थान को कहते हैं जहाँ से वस्तुओं के अवशेष प्राप्त होते हैं। ये अवशेष औजार ( tools ), बर्तन ( pots ) या भवनों ( buildings ) के भग्नावशेष इत्यादि के रूप में हो सकते हैं। ये अवशेष मानव द्वारा बनायी गयी अथवा उपयोग में ली गयी सामग्री होती है जिसे वे अपने पीछे छोड़ गये होते हैं।
ये स्थल व सामग्री धरती की सतह पर, उसके नीचे और कभी-कभी पानी के अन्दर तक में पाये जाते हैं। इसके उदाहरण विभिन्न पाषाणकालीन स्थल, धातुकाल के स्थल और ऐतिहासिक स्थल आते हैं। इन पुरास्थलों के अध्ययन से हमारे पूर्वजों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
आरम्भिक मानव की जानकारी कैसे मिली?
पुरातत्त्वविदों ( Archaeologists ) को आरम्भिक मानवों या आखेटक-खाद्य संग्राहकों की जानकारी कैसे मिली?
इस सम्बन्ध में हमें जानकारी ऐसे मिली कि पुरातत्त्वशास्त्रियों को आरम्भिक मानवों द्वारा प्रयुक्त की गयी ऐसी वस्तुएँ मिली जो उनके सम्बन्ध में लोगों को जिज्ञासु बना दिया। ऐसी वस्तुओं में मुख्य रूप से पत्थर के औजार ( Stone Tools ) शामिल हैं। बहुत सम्भव है कि आदि मानव ने प्रस्तर के साथ-साथ लकड़ी, अस्थि आदि के उपकरणों का भी प्रयोग किया हो परन्तु समय के प्रवाह में वे नष्ट हो गये हों। इनमें से पत्थर के औजार विश्व के सभी भू-भागो में मिले हैं।
विद्वानों ने इस दिशा में अनुसंधान प्रारम्भ किया। तब आरम्भिक मानव के सम्बन्ध में एक विस्तृत जानकारी उपलब्ध हुई। प्रस्तर उपकरणों, प्रकृतिक शैलाश्रयों से चित्रकारियाँ, उपकरण निर्माण की तकनीक व प्रयुक्त कच्ची साम्राग्री बहुत कुछ कहती है।
परन्तु अभी भी बहुत सारे प्रश्न अनुत्तरित हैं जिनका उत्तर पाना शेष है।
औजार निर्माण
पत्थर के औजार ( Stone Tools ) संभवतः दो अलग-अलग तकनीकों का उपयोग करके बनाए गए थे : –
- एक, पत्थर पर पत्थर की सहायता से ( with the help of stone on stone ) :- बाटिकाश्म ( pebble ) जिसका कि उपकरण बनाया जाना था उसको एक हाथ में पकड़कर एक दूसरे प्रस्तर का हथौड़े की तरह चोट करके शल्क ( flakes ) निकालकर अपेक्षित उपकरण तैयार किया जाता था। जिस बाटिकाश्म से शल्क निकाला जाता था उसको क्रोड ( core ) कहते थे और उससे जो टुकड़े निकाले जाते थे उसको शल्क ( flakes )।
- दो, दबाव शल्कन ( Pressure Flaking ) : यहाँ बाटिकाश्म ( pebble ) या क्रोड ( core ) को एक दृढ़ सतह पर रखा गया था। एक दूसरे पत्थर का हथौड़े के रूप में उपयोग किया जाता था। यहाँ पर एक अन्य प्रस्तर खण्ड या अस्थि का उपयोग छेनी की तरह किया जाता था। इस छेनी पर हथौड़ा प्रस्तर से प्रहार करके शल्क निकालकर मनोवांछित औजार का निर्माण किया जाता था।