प्राचीन भारतीय शिक्षा और साहित्य

पदिनेनकीलकनक्कु (Padinenkilkanakku) : अष्टादश लघु शिक्षाप्रद कविताएँ (The Eighteen Minor Didactic Poems)

भूमिका ‘पदिनेनकीलकनक्कु’ या ‘पदिनेनकीलकणक्कु’ अष्टादश लघु शिक्षाप्रद कविताएँ (The Eighteen Minor Didactic Poems) हैं, अर्थात् यह १८ लघु कविताओं का संग्रह है जो सभी उपदेशात्मक (Didactic) हैं। संक्षिप्त परिचय नाम — ‘पदिनेनकीलकनक्कु’ या ‘पदिनेनकीलकणक्कु’ या पतिनेनकीलकणक्कु (Padinenkilkanakku or Patinenkilkanakku) यह १८ लघु कविताओं का संग्रह है। अष्टादश कविताओं की रचना सामान्यतः एक कवि द्वारा की […]

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पत्तुपात्तु या दस-गीत (Pattuppattu : The Ten Idylls)

भूमिका पत्तुपात्तु में दस कविताओं का संग्रह है। इनमें दो नक्कीरर, दो रुद्रनकन्ननार तथा बाद के छः पद क्रमशः मरुथनार (Maruthanar), कन्नियार (Kanniar), नथ्थाथानार (Naththathanar), नप्पूथनार (Napputhanar), कपिलर (Kapilar) और कौसिकनार (Kousikanar) नामक कवियों द्वारा रचित हैं। इन दस कविताओं में से पाँचवें (मदुरैक्काँची) को छोड़कर बाकी सभी विभिन्न राजाओं को समर्पित हैं; जैसे— करिकाल-चोल,

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एत्तुथोकै या अष्टसंग्रह (Ettuthokai or The Eight Collections)

भूमिका एत्तुथोकै की रचना पहले से चली आ रही तमिल कविता परंपरा का ही अगला चरण था। तोलकाप्पियम् में अंतिम रूप से निर्धारित काव्य-रूढ़ियाँ तमिल संकलनों की प्रारंभिक कविताओं में लगभग अपनी पूर्णता को प्राप्त हो चुकी थीं। फिरभी एत्तुथोकै की शैली लोक साहित्य (folk literature) के बहुत करीब है, न कि दरबारी संस्कृत की

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तोलकाप्पियम् (Tolkappiyam) – तोल्काप्पियर 

भूमिका चूँकि तोलकाप्पियम् एक व्याकरण सम्बन्धी ग्रन्थ है, इसलिए स्पष्ट है कि इससे पहले सदियों तक साहित्यिक गतिविधियाँ हुई होगी। इसकी रचना ऋषि अगस्त्य के शिष्य तोल्काप्पियर ने की है। तोलकाप्पियम एक यौगिक शब्द है— जिसमें तोल का अर्थ है—प्राचीन, पुराना काप्पियम का अर्थ है— पुस्तक, पाठ, कविता, काव्य इस तरह तोल्काप्पियम का अर्थ है—

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जीवक चिन्तामणि (Jivaka Chintamani)

भूमिका जीवक चिन्तामणि संगमकाल के बहुत बाद की रचना है। इसकी रचना का श्रेय जैन भिक्षु तिरुत्तक्कदेवर को दिया जाता है। उपलब्ध तीन महाकाव्यों में से यह तृतीय महाकाव्य है। संक्षिप्त परिचय नाम — जीवक चिन्तामणि (Jivaka Chintamani) कवि — तिरुत्तक्कदेवर (Tiruttakkadevar) जैन धर्म से सम्बन्धित इसे ‘विग्रह का महाकाव्य’ या ‘विग्रह की पुस्तक’ कहा

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मणिमेकलै (मणि-युक्त कंगन) / Manimekalai

भूमिका मणिमेकलै का अर्थ है— मणियुक्त कंगन या मणियों की मेखला। यह शिलप्पादिकारम् की कथा को आगे बढ़ाती है। यह एक “प्रेम-विरोधी कहानी” (Anti-Love-Story) है। यह अपने अपनी पूर्ववर्ती शिल्पादिकारम् की तरह स्वाभाविक नहीं लगती वरन् धर्म की दार्शनिक व्याख्याओं और अन्य धर्मों के खंडन व अपने धर्म के मंडन से बोझिल है। इसके रचनाकार

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शिलप्पदिकारम् (नूपुर की कहानी) / Shilappadikaram (The Ankle Bracelet)

भूमिका सिलप्पदिकारम् / शिलप्पदिकारम् (Silappadikaram / Shilappadikaram) एक अद्वितीय रचना है। दुर्भाग्यवंश इसके लेखक तथा समय के विषय में कुछ निश्चित नहीं है। एक मान्यता के अनुसार इसकी रचना चेरवंश के राजा सेनगुट्टुवन के भाई इलांगो आदिगन ने की थी। परन्तु ए० एल० बाशम इसपर संदेह व्यक्त करते हैं। कहा जाता है कि — अपने

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अर्थशास्त्र : आचार्य चाणक्य (कौटिल्य) की रचना

भूमिका अर्थशास्त्र हिन्दू राजशासन या राजव्यवस्था की प्राचीनतम् रचना है। इसकी रचना चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु और मंत्री आचार्य चाणक्य ने की थी। इसमें १५ अधिकरण, १८० प्रकरण और ६,००० श्लोक हैं। अर्थशास्त्र ( १५ / १ ) में इसको इस तरह परिभाषित किया गया है – “मनुष्यों की वृत्ति को अर्थ कहते हैं। मनुष्यों

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विक्रमशिला विश्वविद्यालय

संस्थापक पालवंशी शासक ‘धर्मपाल’ ( ७७० – ८१० ई॰ )। स्थान पथरघाट पहाड़ी, भागलपुर जनपद; बिहार। समय इसकी स्थापना आठवीं शताब्दी में हुई। यह आठवीं से १२वीं शताब्दी के अंत तक अस्तित्व में रहा। प्रसिद्ध विद्वान दीपंकर श्रीज्ञान ‘अतीश’, अभयांकर गुप्त, ज्ञानपाद, वैरोचन, रक्षित, जेतारी, शान्ति, रत्नाकर, मित्र, ज्ञानश्री, तथागत, रत्नवज्र आदि। पतन तुर्की आततायी

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बलभी विश्वविद्यालय

भूमिका  बलभी विश्वविद्यालय ( वल्लभी विश्वविद्यालय ) की स्थापना गुप्तशासन के सैन्याधिकारी भट्टार्क ( मैत्रक वंश ) द्वारा की गयी थी। यह गुजरात के भावनगर जिले के ‘वल’ नामक स्थान पर स्थित था। यह हीनयान बौद्ध धर्म की शिक्षा का केंद्र था। इसका समयकाल ५वीं शताब्दी से १२वीं शताब्दी तक था। बलभी गुप्त शासन के पतन के

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