भूमिका
हमारे देश का नाम ऋग्वैदिक जन ‘भरत’ के नाम पर भारतवर्ष पड़ा है। यद्यपि भारतीय संविधान के अनुच्छेद – १ में इसे ‘भारत अर्थात् इंडिया’ कहा गया है।
भारतवर्ष शब्द के प्रयोग का अभिलेखीय साक्ष्य सर्वप्रथम कलिंग नरेश खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख में मिलता है। यहाँ पर यह शब्द गंगा घाटी या उत्तरी भारत के सन्दर्भ में प्रयुक्त हुआ है। हाथीगुम्फा अभिलेख में प्राकृत भाषा में ‘भरधवस’ ( भारतवर्ष ) प्रयोग किया गया है।
भारतीय साहित्यों में नामकरण
ऋग्वैदिक संस्कृति का केन्द्र भारतीय उप-महाद्वीप के पश्चिमोत्तर में सात नदियों से घिरा सिंधु नदी घाटी थी। ऋग्वेद में सात नदियों से सिंचित क्षेत्र को ‘सप्तसैंधव’ क्षेत्र कहा गया है। उत्तर-वैदिक काल में आर्य संस्कृति का प्रसार गंगा घाटी में होने लगा।
एक प्रदेश के रूप में भारत का प्रथम सुनिश्चित विवरण पाणिनि कृत अष्टाध्यायी ( वैदिकोत्तर काल या सूत्रकाल ) में पाया जाता है। इस समय कंबोज से लेकर मगध तक २२ जनपदों में से ‘भारत’ एक जनपद था। बाद में बौद्ध साहित्यों में सप्त-सिंधु के अनुरूप ‘सात भारत प्रदेशों’ ( सप्त भरतों ) का विवरण प्राप्त होता है।
मनुस्मृति ( द्वितीय शताब्दी ई॰पू॰ ) में ब्रह्मावर्त, ब्रह्मर्षि, मध्यदेश और आर्यावर्त का उल्लेख मिलता है :
- ब्रह्मावर्त – सरस्वती और दृशद्वती नदी के बीच का क्षेत्र।
- ब्रह्मर्षि – गंगा और यमुना के बीच का क्षेत्र।
- मध्यदेश – मध्य भारत या विंध्याचल क्षेत्र।
- आर्यावर्त – सम्पूर्ण उत्तरी भारत के लिए प्रयुक्त अर्थात् नर्मदा के उत्तर का क्षेत्र।
विष्णु पुराण में उल्लिखित है :
‘उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद् भारतम् नाम भारती यत्र संसति॥’
( अर्थात् समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में भारत देश स्थित है और वहाँ की संतानें ‘भारती’ हैं। )
भारतीय साहित्यों में इसे ‘जम्बूद्वीप’ का दक्षिणी भाग बताया गया है। सम्राट अशोक के अभिलेखों में जम्बूद्वीप शब्द का प्रयोग मिलता है, जहाँ पर इसे ‘जम्बूदीपसि’ लिखा गया है; उदाहरणार्थ- रूपनाथ लघु शिलालेख; सासाराम लघु शिलालेख; ब्रह्मगिरि का लघु शिलालेख। वर्तमान में भी जब हिन्दू धर्म में कोई धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है तो पंडित जी जो संकल्प बोलते हैं उसमें भी जम्बूद्वीप, भारतवर्ष, आर्यावर्त आदि नाम आते हैं :
‘… जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्ते …’
भारतवर्ष का अर्थ है – भरतों की भूमि। ऋग्वेद में भारत शब्द का प्रयोग एक जन के रूप में मिलता है। परन्तु महाभारत और गुप्तोत्तर काल के संस्कृत साहित्यों में भारतवर्ष की चर्चा मिलती है। हम जानते हैं कि महाभारत और पुराणों का अंतिम संकलन गुप्तकाल में हुआ। पुराणों में तो भारतवर्ष की एक सुनिश्चित परिभाषा तक दी हुई है।
भारतवर्ष नाम किसके नाम पर पड़ा?
इस सम्बन्ध में कई मत हैं –
- ऋग्वैदिक जन ‘भरत’ के नाम पर हमारे देश का नाम भारत वर्ष पड़ा। ऋग्वेद में दशराज्ञ युद्ध के विजेता सुदास का वर्णन है वह त्रित्सु कुल का भरतवंशी शासक था। भरत, शकुन्तला और दुष्यन्त के पुत्र थे। इसी वंश में कुरु, पुरु जैसे महान शासक हुए इसीलिए इस वंश को कुरुवंश, पुरवंश और भरतवंश कहा गया। महाभारत, भरतवंश की ही गाथा है। इन्हीं इतिहास प्रसिद्ध भरत के नाम पर हमारे देश के नाम भारतवर्ष पड़ा। यह मत सर्वाधिक स्वीकार्य है।
- दूसरे मत के अनुसार जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के दो पुत्र थे। एक, भरत और दूसरे, बाहुबली। इन्हीं भरत के नाम हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा।
- एक अन्य मतानुसार श्रीराम के वनवास जाने के बाद उनके छोटे भाई भरत ने १४ वर्षों तक राज्य सम्भाला और उनके नाम पर हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा।
विदेशियों द्वारा दिये गये नाम
भारतीयों के सम्पर्क में जब विदेशी लोग आये तो उन्होंने भी भारत को अपनी-अपनी भाषा में नाम दिये।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि ईरानी में हिन्दू, यूनानी में इण्डोस, हिब्रू में होड्डू, लैटिन में इण्डस और चीनी में तिएन-चू या चुआंतू या यिन-तू ये सभी के सभी शब्द सिंधु ( नदी ) शब्द से व्युत्पन्न हुए हैं।
- सबसे पहले हखामनियों ( पारसी या ईरानी ) ने सिन्धु नदी के आसपास के क्षेत्र को ‘हिंदु’ कहा। इसका उल्लेख पारसी साम्राज्य के २३वें प्रांत ( क्षत्रपी ) के रूप में हुआ था।
- हिन्दू शब्द का उल्लेख पाँचवीं-छठी शताब्दी ई॰पू॰ के हखामनी साम्राज्य में पाये गये शिलालेखों में मिलता है।
- हिंदु शब्द की व्यूत्पत्ति संस्कृत के सिंधु शब्द से हुई है।
- ईरानी भाषा में ‘स’ ध्वनि ‘ह’ के रूप में उच्चारित होता है। इसीलिए सिंधु का हिंदु और बाद में हिन्दू हो गया।
- ईरानी शिलालेखों में हिन्दू की चर्चा सिंधु नदी से सिंचित क्षेत्र रूप में की गयी है।
- हखामनी अभिलेखों में प्रयुक्त हिन्दू शब्द का तात्पर्य एक ‘प्रादेशिक इकाई’ से था। इसका सम्बन्ध धर्म और समुदाय से नहीं था।
- यूनानी इतिहासकार ‘हेरोडोटस’ ने हखामनी साम्राज्य के २३वें प्रांत के लिए ‘इण्डोस’ ( Indos ) शब्द का प्रयोग किया है। तो रोमनों ने लातिनी भाषा में इसे ‘इण्डस’ (Indus ) कहा।
- बाद में यूनानी और रोमन विद्वान इस शब्द का प्रयोग पूरे भारतीय उप-महाद्वीप के लिए करने लगे।
- ईसा की प्रथम शताब्दी में चीन में बौद्ध धर्म का प्रवेश हुआ और उन्होंने भारत के लिए ‘तिएन-चू’ या ‘चुआंतू’ ( Tien-Chu or Chuantu ) शब्द का प्रयोग किया।
- सातवीं शताब्दी में आये हुएनसांग ने भारत के लिए ‘यिन-तू’ ( Yin-Tu ) शब्द का प्रयोग किया है और तबसे चीनियों में भारत के लिए ‘तीन-तू’ शब्द का प्रयोग ही प्रचलित हो गया।
- सातवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आने वाले चीनी यात्री इत्सिंग के अनुसार ‘हिन्दू शब्द का प्रयोग केवल उत्तरी जनजातियों द्वारा किया जाता है जबकि स्वयं भारत के लोग इसे नहीं जानते।’
इसी इण्डोस और इण्डस शब्द से बाद में ‘इण्डिया’ शब्द बना। दूसरी ओर हिन्दू में ‘स्तान’ जोड़कर ‘हिन्दुस्तान’ शब्द बना। भारत के लिए पश्चिमी देश इण्डिया, तो अरब देशों, ईरान और स्वयं भारत में हिन्दुस्तान शब्द का प्रयोग धड़ल्ले से किया जाता है।
विवाद
जब भारतीय संविधान का निर्माण हो रहा था तब देश के दो नामों पर लेकर विवाद पैदा हो गया :
- एक, भारत
- द्वितीय, इंडिया ( India )
कुछ लोग भारत नाम के पक्ष में थे तो कुछ इंडिया नाम के पक्ष में। दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क थे। भारत नाम के पक्षधरों का कहना था कि यह पुरातन नाम है और भारतीय संस्कृतिक अस्मिता व भावना का द्योतक है। यह भौगोलिक इकाई नहीं वरना सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है। दूसरी ओर इंडिया नाम के पक्षधरों का कहना था कि विदेशी लोग इस नाम से पहचानते हैं इसलिए यह नाम ही ठीक है। अंततः समझौते स्वरूप दोनों नामों को स्वीकार करके संविधान में स्थान दिया गया।
वर्तमान में भारत और इंडिया नाम पुनः विवाद में है। इसका कारण है — जी-२० ( G-20 ) की बैठक में आये नेताओं को राष्ट्रपति महोदया द्वारा जो निमंत्रण पत्र निर्गत किया गया है वह आंग्ल भाषा में होते हुए भी ‘India’ की जगह ‘Bharat’ शब्द का प्रयोग किया गया है – निर्गत पत्र में प्रयुक्त पद है : “The President of Bharat”। अब तक की परिपाटी यह रही है कि अंग्रेजी में ‘India’ का जबकि हिन्दी में ‘भारत’ नाम लिखा जाता रहा है।
उपसंहार
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि भारतवर्ष नाम, इण्डिया नाम की तरह मात्र भौगोलिक अभिव्यक्ति न होकर एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक अभिव्यक्ति है।
पुराणों में भारतवर्ष को कुछ इस तरह परिभाषित किया गया है –
- ‘वह देश जो समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में है। जहाँ सात प्रमुख पर्वत शृंखलाएँ है। जहाँ भरत के वंशज रहते हैं। जिसके पूर्व में किरात और पश्चिम में यवन रहते हैं।’
प्राचीनकाल से ही एक भारतवासी से यह अपेक्षाकृत जाती थी कि वह भारतभूमि को एक भूमि का टुकड़ा न माने अपितु जीवनदायिनी माता के समान उसका सम्मान करे। इसीलिए एक भारतीय मातृभूमि के प्रति अपनी भावना कुछ इस तरह व्यक्त करता है — ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।’
प्राचीन भारतीय साहित्यों में भारतभूमि को ‘देवनिर्मित स्थानम्’ बताया गया है जहाँ देवता भी स्वर्ग को छोड़कर जन्म लेने के लिए तरसते हैं।
एक भारतीय के नित्य प्रार्थना में सात पवित्र नदियाँ १ और सात पवित्र पुरियाँ २ सम्मिलित होती हैं जोकि पूरे भारतवर्ष में फैली हैं।
‘गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वती ।
नर्मदे सिंधु कावेरि जलेऽस्मिन् संनिंधिं कुरु ॥’ १
‘अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवंतिकाः ।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः ॥’ २
भारतीय इतिहास की भौगोलिक पृष्ठभूमि या भारतीय इतिहास पर भूगोल का प्रभाव