जैन संगीति या सभा
महावीर स्वामी की शिक्षाओं को संकलित करने के लिए जैन सभाओं का आयोजन किया गया ः–
आधार प्रथम जैन संगीति द्वितीय जैन संगीति तृतीय जैन संगीति
समय चतुर्थ शताब्दी ई०पू० ३१३ ई॰ ४५३ ई॰
शासनकाल मौर्यकाल गुप्तकाल गुप्तकाल
स्थान पाटलिपुत्र मथुरा, उ॰प्र॰ बलभी ( वल्लभी ), गुजरात
अध्यक्ष स्थूलभद्र आर्य स्कन्दिल देवऋद्धिगण या क्षमाश्रवण
प्रथम जैन संगीति में १२ अंगों का संकलन किया गया। इस संगीति की सबसे बड़ी घटना थी कि जैन धर्म दो सम्प्रदायों में बंट गया। भद्रबाहु के नेतृत्व में जिन लोगों ने इस सभा का बहिष्कार किया और महावीर स्वामी की पूर्व निर्धारित विधि–विधानों पर चलते रहे वो दिगम्बर कहे गये। जबकि बदलती परिस्थितियों के अनुसार नियमों में बदलाव के पक्षधरों ने स्थूलभद्र के नेतृत्व में इस सभा में भाग लिया और जो कुछ निर्धारित किया वह श्वेताम्बर सम्प्रदाय का मूल सिद्धांत बन गया।
द्वितीय जैन सभा मथुरा में हुई। इस जैन संगीति पर विवाद है और कुछ जैन विद्वानों ने इसे मान्यता नहीं दी।
तृतीय जैन संगीति बलभी में हुई और इसमें जैन धर्म और साहित्यों को अंतिम रूप दिया गया जोकि आज तक विद्यमान है।
जैन धर्म के सिद्धांत या शिक्षाएँ
जैन तीर्थंकर और उनसे सम्बंधित स्थान
जैन धर्म के विभिन्न उप-सम्प्रद्राय