जैन संगीति या सभा

परिचय

महावीर स्वामी की शिक्षाओं को संकलित करने और धर्म विषयक विधि-निषेधों के निर्धारण करने के लिए समय-समय पर जैन संगीति या सभाओं ( councils ) का आयोजन किया गया :– 

प्रथम जैन संगीति या सभा

  • समय – ३०० ई० पू०
  • शासनकाल – चन्द्रगुप्त मौर्य
  • स्थान – पाटलिपुत्र
  • अध्यक्ष – स्थूलभद्र
  • कार्य – जैन धर्म के १२ अंगों का सम्पादन किया गया।
  • विवाद – जैन धर्म दो सम्प्रदायों में बँट गया —
    • एक, दिगम्बर
    • द्वितीय, श्वेताम्बर

प्रथम जैन सभा में १२ अंगों का संकलन किया गया। इस संगीति की सबसे बड़ी घटना थी कि जैन धर्म दो सम्प्रदायों में बंट गया।

भद्रबाहु के नेतृत्व में उनके अनुयायियों ने इस महासभा का बहिष्कार किया। जिन लोगों ने इस सभा का बहिष्कार किया और महावीर स्वामी की पूर्व निर्धारित विधिविधानों पर चलते रहे वो दिगम्बर कहे गये।

जबकि बदलती परिस्थितियों के अनुसार नियमों में बदलाव के पक्षधरों ने स्थूलभद्र के नेतृत्व में इस सभा में भाग लिया। पाटलिपुत्र महासभा में परिस्थितियों को ध्यान में रखकर कुछ बदलाव किये गये। जो कुछ इस सभा में निर्धारित किया वह श्वेताम्बर सम्प्रदाय का मूल सिद्धांत बन गया।

द्वितीय जैन संगीति या सभा

  • समय – ३१३ ई०
  • शासनकाल – गुप्तकाल
  • स्थान – मथुरा
  • अध्यक्ष – आर्य स्कंदिल
  • विवाद – इस महासभा पर विवाद है और कुछ जैन विद्वानों ने इसे मान्यता ही नहीं दी।

द्वितीय जैन सभा मथुरा में हुई। मथुरा जैन संगीति पर विवाद है और कुछ जैन विद्वानों ने इसे मान्यता नहीं देते हैं। 

तृतीय जैन संगीति या सभा

  • समय – ४५३ ई० या ५१३ ई०
  • शासनकाल – गुप्तकाल
  • स्थान – वल्लभी या बलभी, गुजरात
  • अध्यक्ष – देवर्षि क्षमाश्रवण
  • कार्य – जैन साहित्य का अंतिम संकलन जो आज तक विद्यमान है।

तृतीय जैन सभा बलभी में हुई और इसमें जैन धर्म और साहित्यों को अंतिम रूप दिया गया जोकि आज तक विद्यमान है। इस समय तक संस्कृति को जैन धर्म की भाषा के रूप में अपना लिया गया था। वलभी सभा में धर्म की व्यवस्था को और स्पष्ट किया गया। जो नियम-विनियम इस सभा में निर्धारित किये गये वे आज तक चले आ रहे हैं।

जैन संगीतियाँ या सभाएँ 

आधार

प्रथम जैन संगीति द्वितीय जैन संगीति तृतीय जैन संगीति
समय ३०० ई० पू० ३१३ ई० ४५३ ई० या ५१३ ई०
शासनकाल चन्द्रगुप्त मौर्य गुप्तकाल गुप्तकाल
स्थान पाटलिपुत्र मथुरा वल्लभी ( बलभी ), गुजरात
अध्यक्ष स्थूलभद्र आर्य स्कन्दिल देवऋद्धिश्रवण ( क्षमाश्रवण )
महत्त्व जैन धर्म दो सम्प्रदायों में बँट गया – एक, दिगम्बर; और द्वितीय, श्वेताम्बर। यह सभा विवादित रही। कुछ जैन विद्वान इसको मान्यता नहीं देते हैं। इस सभा में जैन धर्म-साहित्यों का अंतिम संकलन किया गया जो आज तक उपलब्ध है।

विवाद

जैन संगीति ( सभा ) की संख्या और समय को लेकर विवाद है।

बताया गया है कि पाटलिपुत्र की प्रथम जैन सभा ( ३०० ई०पू० ) के बाद विवादों को सुलझाने के लिये एक सभा आयोजित की गयी। इस सभा को महावीर स्वामी की मृत्यु के ८४० वर्षों के बाद आयोजित किया गया। महावीर स्वामी की मृत्यु के सम्बन्ध में हमें दो तिथियाँ मिलती हैं –

  • एक, ५२७ ई०पू०
  • द्वितीय, ४६८ ई०पू०

प्रथम तिथि से गणना करने पर द्वितीय संगीति का समय ३१३ ई० ( ८४० – ५२७ ) आता है; जबकि दूसरी तिथि से गणना करने पर ३७२ ई० आता है। जो भी माने मोटेतौर पर इसे गुप्तकाल मान सकते हैं क्योंकि गुप्त सम्वत् की शुरुआत ३१९ ई० में हुई थी।

यह सभा मथुरा में आयोजित की गयी थी। बताया गया है कि इस सभा में आपसी विवाद समाप्त न हो सका और जैन दो भागों में दो स्थानों पर एकत्रित हुए।

  • आर्य स्कंदिल के नेतृत्व में मथुरा में
  • नागार्जुन सूरी के नेतृत्व में वल्लभी में

इन्हीं विवादों के चलते इतिहासकार इसको द्वितीय सभा या संगीति की मान्यता नहीं देते हैं

इस दृष्टिकोण से देखा जाये तो बलभी में आयोजित तृतीय संगीति ( ५१३ ई० ) को द्वितीय कहा जा सकता है। और अगर मथुरा संगीति को मान्यता दें तो यह तृतीय संगीति होगी। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है की बलभी संगीति की भी दो तिथियाँ मिलती है- एक, ४५३ ई० और दूसरी, ५१३ ई०

 

जैन-धर्म के सिद्धांत या शिक्षाएँ

 

जैन तीर्थंकर और उनसे सम्बंधित स्थान

 

जैन-धर्म की देन

 

जैन-धर्म के विभिन्न उप-सम्प्रद्राय

 

जैन धर्म का प्रचार

 

जैन दर्शन

 

महावीर स्वामी

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