विज्ञान और प्रौद्योगिकी

प्राचीन भारत में ‘प्रौद्योगिकी का विकास’

भूमिका भारत में ‘प्रौद्योगिकी का विकास’ मानव सभ्यता के साथ विकास-यात्रा का अभिन्न अंग है। इसकी शुरुआत प्रस्तर काल से हो जाती है। प्रस्तर प्रौद्योगिकी के बाद ‘धातु प्रौद्योगिकी के विकास का युग आता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अंतर्सम्बन्ध विज्ञान और प्रौद्योगिकी को प्रायः हम एक ही साँस में एक पदबंध में बोल जाते […]

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ज्योतिष और खगोल विद्या का प्राचीन भारत में विकास

भूमिका ‘ज्योतिष और खगोल विद्या’ का विकास साथ-साथ हुआ। वेदों को समझने के लिए जिन छः वेदांगों की रचना हुई उसमें से अन्तिम ज्योतिष है। प्राचीन ज्योतिर्विद्या का ‘उद्देश्य’ समय-समय पर होने वाले यज्ञों का मुहूर्त और काल निर्धारण करना था। यहाँ तक कहा गया है कि :— “यो ज्योतिषं वेद स वेद यज्ञं।” (

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चिकित्सा शास्त्र

चिकित्सा शास्त्र भूमिका चिकित्सा शास्त्र के क्षेत्र में प्राचीन भारतीयों की उपलब्धियाँ उल्लेखनीय रहीं हैं। इसका इतिहास वैदिक काल तक जाता है। वैदिक काल में चिकित्सा शास्त्र का विकास ऋग्वेद में ‘आश्विन कुमारों’ को कुशल वैद्य कहा गया है जो अपनी औषधियों से रोगों के निदान में निपुण थे। अथर्ववेद में आयुर्वेद के सिद्धान्त और

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भारत में गणित का विकास

भूमिका गणित ‘अमूर्त विज्ञान’ है। यह विज्ञान और तकनीकी का मेरूदण्ड है। लगथ मुनि कृति ‘वेदांग ज्योतिष’ में गणित के महत्व को इस तरह रेखांकित किया गया है : “यथा शिखा मयुराणाम् नागानाम् मणयो यथा। तद्वत् वेदांग शास्त्राणाम् गणितम् मूर्धनिस्थितम्॥” ( अर्थात् सभी वेदांग शास्त्रों के शीर्ष पर गणित उसी प्रकार सुशोभित है जैसे मयूर

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प्राचीन भारत में विज्ञान का विकास

विज्ञान   भूमिका हमें ‘प्रागैतिहासिक काल’ से ही भारतीयों की वैज्ञानिक बुद्धि का परिचय मिलने लगता है। वस्तुतः ‘प्रस्तरकालीन मानव’ ही विज्ञान की कुछ शाखाओं — प्राणि-शास्त्र, वनस्पति-शास्त्र, ऋतु-शास्त्र आदि का जनक है। उदाहरणार्थ — पशुओं के चित्र बनाने के लिए मानव ने उनके शरीरिक संरचना की जानकारी प्राप्त की। खाद्य-अखाद्य पदार्थों की जानकारी प्राप्त की।

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