सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — १

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — १

 

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल का मानचित्रण भाग - १
सांस्कृतिक-ऐतिहासिक स्थल – १

 

अमरावती

अमरावती वर्तमान आन्ध्र प्रदेश की प्रस्तावित राजधानी है। यह गुन्टूर जिले में कृष्णा नदी के तट पर स्थित है। इसको सातवाहन नरेश शातकर्णि प्रथम ने अपनी राजधानी बनायी थी। बाद में यह इक्ष्वाकुओं की भी राजधानी रही। यहाँ से सातवाहन युगीन बौद्ध स्तूप के अवशेष मिलते हैं। यह प्रसिद्ध सांस्कृतिक और आर्थिक केन्द्र था।

अरिकामेडु

यह पांडिचेरी से ३ किलोमीटर दक्षिण में जिंजी नदी के तट पर स्थित है। अरिकामेडु से मौर्योत्तरकालीन भारत-रोम के व्यापारिक सम्बन्धों के साक्ष्य मिलता है। यहाँ से ‘रोमन बस्ती’ के अवशेष मिलते हैं। यहाँ से रोमन उत्पत्ति का तीन प्रकार के मृद्भाण्ड ( एरेटाइन, एम्फोरे और चक्रांकित ), रोमन पात्र, मिट्टी के दीपक, काँच के कटोरे, मनके, रत्न मिलते हैं। एक मनके के ऊपर रोमन सम्राट ऑगस्टस ( ई॰पू॰ २७ – १४ ई॰ ) का चित्र मिला है।

एरण ( एरकिण )

एरण सागर, मध्य प्रदेश में हैं। यहाँ से प्राप्त समुद्रगुप्त के अभिलेख में एरण को उसका ‘भोगनगर’ कहा गया है। यहाँ से रामगुप्त की ताँबे के सिक्के मिले हैं जो उसकी ऐतिहासिकता प्रामाणित करते हैं। यहीं से मिला भानुगुप्तकालीन ( ५१० ई॰ ) अभिलेख सतीप्रथा का प्रथम अभिलेखीय साक्ष्य है। यही के वाराह प्रतिमा पर हूण नरेश तोरमाण का लेख अंकित है।

एलिफैंटा

मुम्बई के पास में कोई १०-११ किलोमीटर स्थित एलिफैंटा नामक द्वीप है। इसका प्राचीन नाम ‘पुरी’ था। यहाँ से हाथी की विशाल मूर्ति के कारण पुर्तगालियों ने इसे एलिफैंटा नाम दिया। यहाँ से हिन्दू मूर्तियाँ मिलती हैं जिसमें से ‘त्रिमूर्ति’ ( शिवजी ) सबसे प्रसिद्ध है।

एलोरा

एलोरा औरंगाबाद, महाराष्ट्र में स्थित है। यहाँ की गुफाएँ बौद्ध, हिन्दू और जैन धर्म से सम्बद्ध हैं। यहाँ के प्रसिद्ध मंदिरों में रावण की खाईं, रामेश्वर, दशावतार और कैलाश मंदिर आदि हैं। कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट शासक कृष्ण-प्रथम ( ७५६ – ७७३ ई॰ ) के शासनकाल में निर्मित हुआ।

ऐहोल ( अइहोले )

यह बागलकोट, कर्नाटक में स्थित है। यहाँ से चालुक्य नरेश पुलकेशिन् द्वितीय का रविकीर्ति विरचित ऐहोल अभिलेख( ६३४ ई॰ ) मिलता है। ऐहोल को ‘मंदिरों का नगर’ कहा गया है क्योंकि यहाँ से ७० मंदिरों के अवशेष मिलते हैं। इन मंदिरों में प्रमुख हैं :— लाढ़ खाँ मंदिर, दुर्गा मंदिर, रविकीर्ति निर्मित मेगुती या जिनेंद्र मंदिर आदि।

कोणार्क

कोणार्क, पुरी जनपद के ओडिशा राज्य में स्थित है। यह ‘सूर्य मंदिर’ के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर को ‘काला पगोडा’ कहा जाता है। इसका निर्माण गंगवंशी नरेश नरसिंह प्रथम ( १२३८ – ६४ ई॰ ) ने करवाया था। यह मंदिर नागर शैली में है।

कौशाम्बी

कौशाम्बी यमुना नदी के तट पर स्थित है। हस्तिनापुर के गंगा नदी में बह जाने के कारण जनमेजय के वंशज निचक्षु ने इसे बसाया था ( विष्णु पुराण )। इसका प्राचीन नाम ‘कोसम’ है। यह वत्स महाजनपद की राजधानी थी। बुद्ध के समय यहाँ का शासक उदयन था। बुद्ध ने यहाँ अपने उपदेश दिये थे। यहाँ से धोषिताराम के विहार के अवशेष मिले हैं। यहाँ पर अशोक ने स्तूप और स्तम्भ स्थापित करवाया था। ई॰पू॰ १२वीं शताब्दी से गुप्तकाल तक यहाँ बसावट थी। हुएनसांग ने इसे वीरान पाया था। यहाँ से मित्रवंशी राजाओं के सिक्के, कुषाण शासकों के सिक्के और हूण नरेश तोरमाण की मुहर मिलती है। यह प्रसिद्ध प्रशासनिक, धार्मिक, आर्थिक व सांस्कृतिक केन्द्र था।

ताम्रलिप्ति ( तामलुक )

वर्तमान में यह पश्चिमी बंगाल के पश्चिमी मेदिनीपुर ( तामुलुक ) जनपद में स्थित प्राचीन पत्तन है। यह उत्तरापथ पर स्थित पूर्वी व्यापारिक व पत्तन नगर है। धर्मोपदेशक महेन्द्र और संघमित्रा यहीं से श्रीलंका गये थे और सम्राट अशोक स्वयं उन्हें यहाँ तक भेजने आये थे। इसी पत्तन से लोग श्रीलंका, स्वर्ण द्वीप और चीन आदि देशों को जाया करते थे। फाह्यियान, हुएनसांग और इत्सिंग ने इसका उल्लेख किया है।

दायमाबाद

दैमाबाद ( दायमाबाद ) अहमदाबाद, महाराष्ट्र में स्थित है। यह प्रवरा नदी के तट पर है। यह मूलतः ताम्र-पाषाणिक स्थल है। यहाँ पर सबसे प्रथम ( निचले ) स्तर पर कुछ विद्वान ‘सैंधव सभ्यता’ का प्रभाव देखते हैं। यहाँ से दूसरे स्तर से ‘अहाड़ संस्कृति’ , तीसरे स्तर से ‘मालवा संस्कृति’ और चौथे स्तर से ‘जोरवे संस्कृति’ के साक्ष्य मिले हैं।

देवगढ़

देवगढ़ ललितपुर, उ॰प्र॰ में स्थित है। यहाँ से गुप्तकालीन भगवान विष्णु का ‘दशावतार मंदिर’ खंडित अवस्था में मिला है। यह शिखरयुक्त मंदिर का प्रथम उदाहरण है। इस मंदिर का शिखर अब नष्ट हो चुका है। यहाँ पर गुप्तकाल से पूर्व मध्ययुग तक मंदिरों व मूर्तियों का निर्माण होता रहा। यहाँ से ३१ जैन मंदिर भी मिलते हैं। प्रमुख मंदिर हैं :— गोमतेश्वर, भरत, चक्रेश्वरी, पद्मावती, ज्वालामालिनी, पंच परमेष्ठी आदि।

नवदाटोली

नवदाटोली मध्य प्रदेश के खरगोन जनपद में नर्मदा नदी के बायें तट पर स्थित है। यह मालवा संस्कृति से सम्बद्ध एक ताम्र-पाषाणिक स्थल है।

नालंदा

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। यहाँ पर हर्षवर्धन ने ताम्रविहार बनवाया और १०० ग्राम निर्वाह हेतु दान दिया। जावा-सुमात्रा के शासक बालपुत्रदेव ने एक मठ बनवाया और देवपाल से अनुरोध करके ५ ग्राम दान में दिलवाया। यहाँ पर धर्मगंज नामक विशाल पुस्तकालय था। हुएनसांग और इत्सिंग इसकी प्रशंसा करते हैं। इसे मु॰ बिन बख्तियार खिलजी ने १२०३ ई॰ में नष्ट कर दिया था।

नासिक

नासिक गोदावरी तट पर स्थित है। इसका प्राचीन नाम ‘गोवर्धन’ है। यहाँ पर बौद्धधर्म से सम्बंधित शक-सातवाहन युग में १७ गुफाओं ( १६ विहार और १ चैत्य ) का निर्माण हुआ। यह एक ताम्र-पाषाणिक स्थल भी है।

पिपरहवा

पिपरहवा ( पिपरिया ) नेपाल की सीमा से लगा हुआ सिद्धार्थनगर जनपद, उत्तर प्रदेश में स्थित है। यहाँ पर बौद्ध स्तूप मिला है और यह आठ में से एक वह मौलिक स्तूप है जिसका निर्माण बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद बुद्ध की अस्थि मंजूषा पर किया गया था। इस अस्थि मंजूषा पर ब्राह्मी लिपि में प्राप्त लेख से पता चलता है कि इसका निर्माण शाक्यों ने करवाया था।

कुछ विद्वान इसकी पहचान पिप्पलिवन के मोरिय ( मौर्यों ) गणराज्य की राजधानी से करते हैं।

बुर्जहोम

बुर्जहोम कश्मीर के उत्तर में स्थित एक नवपाषाणकालीन पुरास्थल है। यहाँ से गर्तावास और मनुष्य के साथ पालतू श्वान के शवाधान के साक्ष्य मिले हैं।

बैराट ( भाब्रू )

भाब्रू ( बैराट ) वर्तमान में जयपुर, राजस्थान में स्थित है। महाजनपद काल में यह ‘विराट नगर’ के नाम से जाना जाता था। विराट नगर मत्स्य महाजनपद की राजधानी थी। महाभारत के अनुसार पाण्डवों ने यही अज्ञातवास के एक वर्ष बिताये थे। अशोक का यहाँ से लघु शिलालेख मिलता है। इस शिलालेख में वह त्रिरत्नों के प्रति आदर व्यक्त करता है। यह अशोक के बौद्ध होने का अभिलेखीय प्रमाण है।

बनावली

बनावली हिसार, हरियाणा में स्थित है। यहाँ से प्राक् हड़प्पा, विकसित हड़प्पा और उत्तर हड़प्पा संस्कृति के अवशेष मिलते हैं। यहाँ से सैंधव कालीन नगर नियोजन, मिट्टी का हल, अग्निबेदियाँ आदि के साक्ष्य मिले हैं।

बोधगया

गया या बोधगया बिहार में स्थित है। यह हिन्दुओं और बौद्धों दोनों का तीर्थस्थल है। हिन्दू यहाँ पिण्डदान करते हैं तो बुद्ध को यहाँ संबोधि मिली थी। महर्षि ‘गय’ के नाम पर इसे गया ( महाभारत और अश्वधोष कृत बुद्धचरित के अनुसार ) तो बुद्ध के नाम पर इसे बोधगया कहा गया। सम्राट अशोक ने यहाँ की यात्रा की और स्तूप बनवाया। समुद्रगुप्त के समय सिंहल नरेश मेघवर्ण ने यहाँ पर विहार बनवाया था। फाह्यियान, हुएनसांग और इत्सिंग तीनों ने यहाँ की यात्री थी।

मथुरा

यह यमुना नदी के तट पर स्थित है। मथुरा श्रीकृष्ण की जन्मस्थली है। ‘मधु’ नामक दैत्य ने इसे मधुपुर नाम से बसाया था ( रामायण )। मथुरा शूरसेन महाजनपद की राजधानी थी। कुषाणकाल में यहाँ पर ‘मथुरा कला’ का विकास हुआ। यहाँ पर विम कडफिसेस और कनिष्क की भग्न मूर्ति ( सिररहित ) मिली है। यहाँ से गुप्तकालीन बुद्ध की मूर्तियाँ मिलती हैं।

महाबलीपुरम् ( मामल्लपुरम् )

महाबलीपुरम् चेन्नई के दक्षिण में स्थित है। पल्लवकाल में यहाँ मण्डप और एकाश्मक मंदिरों ( रथों ) का निर्माण करवाया गया। यहाँ पर १० मण्डप हैं। एकाश्मक रथों को ‘सप्त पगोडा’ कहा जाता है यद्यपि इनकी संख्या ८ है। यह एक प्रसिद्ध पत्तन नगर भी था।

मास्की

मास्की रायचूर, कर्नाटक में स्थित है। यह नवपाषाणकालीन, ताम्रपाषाणकालीन, बृहत्पाषाणकालीन और ऐतिहासिक काल का स्थल है। यहाँ से अशोक के लघु शिलालेख मिला है जिसपर अशोक का व्यक्तिगत नाम मिलता है।

राजगृह ( राजगीर )

बिहार के नालंदा जनपद में स्थित यह मगध महाजनपद की प्रारम्भिक राजधानी थी। इसका प्राचीन नाम ‘गिरिव्रज’ था। इसके संस्थापक हर्यंक वंशी नरेश ‘बिम्बिसार’ और वास्तुकार ‘महागोविन्द’ थे। सामरिक दृष्टि से ५ पहाड़ियों से आवृत्त यह तत्कालीन परिस्थितियों में अजेय थी। राजगृह के सप्तपर्णि गुफा में ई॰पू॰ ४८३ प्रथम बौद्ध संगीति हुई थी। महाभारतकालीन मगधराज जरासंध की राजधानी भी यह रह चुकी थी।

रोपड़

सतलुज नदी के बायें तट पर स्थित पंजाब का आधुनिक रूपनगर ही सैंधव कालीन रोपड़ है। यहाँ की खुदाई में संस्कृति के छः स्तर मिलते हैं इसमें से प्रथम स्तर ही हड़प्पा संस्कृति से संबंधित है। यहाँ से मनुष्य के साथ पालतू श्वान का शवाधान मिला है।

लौरियानन्दनगढ़

यह बिहार राज्य के पश्चिमी चम्पारण ज़िले में स्थित है। यहाँ से अशोक का सिंह शीर्ष स्तम्भ मिला है। बुद्धकालीन गणराज्य अलकप्प के बुलियों की यहाँ राजधानी थी।

विक्रमशिला

विक्रमशिला विश्वविद्यालय के ध्वंसावशेष भागलपुर जनपद, बिहार के पथरघाट पहाड़ी पर मिलते हैं। इसकी स्थापना धर्मपाल ( ७७५ – ८०० ई॰ ) ने की थी। तुर्की आक्रांता मु॰ बिन बख्तियार खिलजी ने इसे १२०३ ई॰ में ध्वस्त कर दिया था।

विदिशा ( बेसनगर / भिलसा )

मध्य प्रदेश में स्थित यह शुंग साम्राज्य के पश्चिमी भाग की राजधानी थी। यहाँ से हेलियोडोरस द्वारा स्थापित भागवत् धर्म को समर्पित ‘गरुड़-स्तम्भ’ मिलता है। यह ब्राह्मण और भागवत् धर्म से सम्बद्ध प्रथम प्रस्तर स्मारक है। यह पाटलिपुत्र से उज्जयिनी जाने वाले प्राचीन मार्ग पर स्थित था।

संकिसा ( सांकाश्य )

संकिसा उत्तर प्रदेश के एटा जनपद का आधुनिक बसंतपुर है। यह महाजनपदकालीन पूर्वी पंचाल के अन्तर्गत आता था। यह बौद्ध धर्मस्थल है क्योंकि बुद्ध स्वर्ग से यही उतरे थे ( पालि साहित्य )। अशोक ने यहाँ एक स्तम्भ स्थापित करवाया था जिसका उल्लेख हुएनसांग करता है।

जैन तीर्थंकर विमलनाथ को यहाँ ज्ञान मिलने के कारण उनका भी यह तीर्थस्थल है।

सोपारा ( शूर्पारक )

सोपारा ( वर्तमान नाला-सोपारा ) कोंकण तट पर, पालघर जनपद, महाराष्ट्र में स्थित है। यहाँ से अशोक का बृहद् शिला प्रज्ञापन मिला है। मौर्योत्तरकाल में पत्तन के रूप में इसका महत्त्व बढ़ गया। इस पत्तन और व्यापारिक स्थल की मंडी कल्यान थी। पेरीप्लस ऑफ द इरिथ्रियन सी से भृगुकच्छ और सोपारा के व्यापारिक होड़ का उल्लेख मिलता है। यहाँ से श्रावस्ती तक मार्ग जाता है।

इसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है।

हस्तिनापुर

हस्तिनापुर मेरठ, उत्तर प्रदेश में है। यह महाभारतकालीन कौरवों की राजधानी थी। विष्णु पुराण से पता चलता है कि हस्तिनापुर के गंगा नदी में बह जाने के बाद निचक्षु ( जनमेजय के वंशज ) ने अपनी राजधानी कौशाम्बी में स्थानांतरित कर दी। हस्तिनापुर की खुदाई में ५ संस्कृतियों के अवशेष मिलते हैं :—

  • गैरिक मृद्भाण्ड संस्कृति ( १२०० ई॰पू॰ से पहले )
  • चित्रित धूसर मृद्भाण्ड संस्कृति
  • उत्तरी काली चमकीली मृद्भाण्ड संस्कृति
  • उत्तर उत्तरी काली चमकीली मृद्भाण्ड संस्कृति ( ई॰पू॰ २०० से ३०० ई॰ तक )
  • मध्यकालीन संस्कृति, इस स्तर से बल्बन का सिक्का मिला है।

यहाँ से १५०० ई॰ के बाद आवासीय साक्ष्य नहीं मिलते हैं।

इसका सम्बन्ध कई जैन तीर्थंकरों से है :— शान्ति, कन्तु, अमरनाथ आदि।

 

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — २

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