बौद्ध धर्म के अन्य प्रमुख उपसम्प्रदाय

बौद्ध धर्म के अन्य प्रमुख उपसम्प्रदाय

 

वज्रयान

ईसा की पाँचवीं या छठवीं शताब्दी से बौद्ध धर्म के ऊपर तंत्र-मंत्रों का प्रभाव बढ़ने लगा जिसके फलस्वरूप वज्रयान नामक नये सम्प्रदाय का जन्म हुआ। इस विचाधारा में मंत्रों और तांत्रिक क्रियाओं द्वारा मोक्ष प्राप्त प्राप्ति का मार्ग प्रस्तुत किया गया।

वज्रयान विचारधारा में ‘वज्र’ को एक अलौकिक तत्व के रूप में मानते हैं। इसका तादात्म्य ‘धर्म’ से किया गया है। इसकी प्राप्ति के लिए भिक्षा और तपादि के स्थान पर मत्स्य, मैथुनादि के सेवन पर बल दिया गया।

वज्रयानियों के क्रियाकलाप शाक्त मतावलम्बियों से मिलते-जुलते हैं। इसमें बुद्ध की अनेक पत्नियों की कल्पना की गयी। जिसमें ‘तारा’, ‘चक्रेश्वरी’ आदि देवियाँ प्रमुख हैं। इसमें यह कहा गया कि रूप, शब्द, स्पर्श आदि भोगों द्वारा बुद्ध के पूजा का विधान दिया गया और ‘रागचर्या’ को सर्वोत्तम बताया गया।

वज्रयान का सबसे अधिक विकास आठवीं शताब्दी में हुआ। इसके सिद्धान्त ‘मंजुश्रीमूलकल्प’ और ‘गुह्यसमाज’ नामक ग्रंथों में मिलते हैं। गुह्यसमाज के रचयिता असंग को माना जाता है।

वज्रयान का मुख्य प्रभाव क्षेत्र पूर्वी भारत ( बंगाल और बिहार ) था।

वज्रयान ने भारत से बौद्ध धर्म के पतन का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

 

कालचक्रयान

दसवीं शताब्दी इसवी में कालचक्रयान का विकास वज्रयान उपसम्प्रदाय से हुआ। मंजुश्री को इसका प्रवर्तक माना जाता है। 

इसमें श्रीकालचक्र को सर्वोच्च देवता माना गया है। इस उपसम्प्रदाय में मानव शरीर को ब्रह्माण्ड का प्रतीक माना गया है।

कालचक्रतन्त्र और विमलप्रभाटीका इस सम्प्रदाय के दो प्रमुख ग्रंथ हैं।

 

सहजयान

बंगाल में इस उपसम्प्रदाय की स्थापना दसवीं शताब्दी में हुई। 

इसमें वज्रयान, कालचक्रयान आदि की रूढ़िवादियों का विरोध किया गया। 

इसमें मूलतः चर्यापदों या भक्तिगीतों पर जोर दिया गया है।

Leave a Reply

Index
Scroll to Top
%d bloggers like this: