पौराणिक धर्म
पौराणिक धर्म में हमें वैदिक, अवैदिक और जन-सामान्य के धार्मिक विश्वासों का सामंजस्य मिलता है। पुराणों का उद्देश्य वैदिक धर्म को जन-सामान्य तक सरल ढंग से पहुँचाना था।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश को क्रमशः सर्जक, पालक और संहारक के रूप में प्रतिष्ठित किया गया।
विष्णु के विभिन्न अवतारों की कल्पना की गयी जिसमें से १० अवतार सर्वमान्य किये गये और उसमें से भी श्रीराम और श्रीकृष्ण सर्वाधिक लोकप्रिय हुए।
भक्ति का पूर्ण विकास पौराणिक काल में हुआ। मूर्तिपूजा का प्रचलन हुआ। देवता को पुरुष या नारी रूप मानकर पुष्प, धूप, नैवेद्य आदि के द्वारा उनकी पूजा की जाने लगी। जटिल वैदिक धर्म को सरलता प्रदान करके सर्वसुलभ बनाया गया। पुराणों ने जनसाधारणको विश्वास दिलाया कि मुक्ति सबके लिए सम्भव है और यह ईश्वर की कृपा से सम्भव है। यह कृपा ईश्वर अपने भक्तों पर करता है। भक्ति के लिए गुरु के निर्देशन को स्वीकार किया गया।
अवैदिक विचारधारा के प्रभावस्वरूप पौराणिक धर्म में अनेक देवियों ( दुर्गा, काली, चामुण्डा आदि ) की पूजा की पूजा का प्रचलन हुआ।
इसकाल में अनेकानेक बाह्याचारों का प्रचलन हुआ; यथा — व्रत, दान, तीर्थयात्रा, ब्राह्मणों को भोजन कराना, शरीर पर भस्म लगाना, तिलक लगाना आदि धार्मिक जीवन के अंग बन गये। व्रत से शरीर व आत्मा की शुद्धि करके मोक्ष की बात कही गयी। विभिन्न देवों से संबंधित विभिन्न व्रत का विधान किया गया। वर्णाश्रम धर्म के पालन पर बल दिया गया।
इन पौराणिक देवताओं के आधार पर हिन्दू धर्म में विभिन्न स्वतंत्र धार्मिक सम्प्रदायों का विकास हुआ; जैसे — विष्णु से वैष्णव, शिव से शैव, शक्ति उपासना से शाक्त आदि सम्प्रदायों का विकास हुआ। कालांतर में इनमें भी उपसम्प्रदाय बन गये।
हिन्दू धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय :—