भूमिका
अवंति या अवन्ति ( Avanti ) मालवा के पठार पर बसा हुआ महाजनपद काल में १६ महाजनपदों में से एक था। वर्तमान में यह मध्यप्रदेश के अंतर्गत आता है। बुद्धकाल में यहाँ का राजा प्रद्योत था।
अवंति : भौगोलिक स्थिति
अवंति भारतीय उप-महाद्वीप के मालवा क्षेत्र पर स्थित था। वर्तमान में यह मध्यप्रदेश में पड़ता है। मालवा से यमुना की सहायक चंबल, सिंद, बेतवा जैसी नदियाँ जल बहाकर ले जाती है तो दक्षिण में इसकी सीमा मोटे तौरपर विंध्य व सतपुड़ा बनाती है।
अवन्ति के दो भाग थे-
- उत्तरी अवन्ति जिसकी राजधानी उज्जयिनी थी।
- दक्षिणी अवन्ति जिसकी राजधानी माहिष्मती ( महिष्मती ) थी।
उत्तरी और दक्षिणी अवंति के बीच में वेत्रवती नदी बहती थी।
उज्जैयिनी ही वर्तमान उज्जैन है जो कि क्षिप्रा नदी के तट पर बसी है।
माहिष्मती ( महिष्मती ) की पहचान खरगोन जनपद के महेश्वर ( माहेश्वर ) नामक स्थान से की गयी है जो कि नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। दक्षिणी अवंति को अनूप जनपद भी कहा गया है।
अवंति का इतिहास
अवंति ( मालवा के पठार ) का इतिहास प्रागैतिहासिक काल तक जाता है। यहाँ पर भीमबेटका व आदमगढ़ जैसे पाषाणकालीन स्थल मानवीय सांस्कृतिक गतिविधियों पर प्रकाश डालते हैं। यहीं पर कायथा, मालवा जैसी ताम्रपाषाणिक संस्कृति फली-फूली। महाजनपदकाल में मालवा के पठार पर अवंति महाजनपद का विकास हुआ।
बुद्धकाल तक भारतीय उप-महाद्वीप पर १६ महाजनपदों का विकास हो चुका था। इन सोलह महाजनपदों में अधिकतर राजतंत्र और कुछ गणतंत्र थे। इन्हीं १६ महाजनपदों में से एक था अवंति महाजनपद जहाँ राजतंत्रात्मक शासन व्यवस्था थी।
महात्मा बुद्ध के समय में यहाँ प्रद्योत का शासन था। वह पुलिक का पुत्र था। विष्णु पुराण से ज्ञात होता है कि पुलिक बार्हद्रथ वंश के अन्तिम राजा रिपुंजय का अमात्य था। उसने अपने स्वामी को हटाकर अपने पुत्र को राजा बनाया। उसके इस कार्य का अनुमोदन समस्त क्षत्रियों ने बिना किसी विरोध के किया और प्रद्योत को राजा स्वीकार कर लिया। उसकी कठोर सैनिक नीतियों के कारण महावग्ग जातक में उसे ‘चण्ड प्रयोत‘ कहा गया है। वह एक महत्वाकांक्षी शासक था। उसके समय में सम्पूर्ण मालवा तथा पूर्व एवं दक्षिण के कुछ प्रदेश अवन्ति राज्य के अधीन हो गये थे।
बिम्बिसार के समय में मगध के साथ प्रद्योत के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण थे। ज्ञात होता है कि एक बार जब प्रद्योत पाण्डुरोग से ग्रसित हो गया तो बिम्बिसार ने अपने राजवैद्य जीवक को उसके उपचार के लिये भेजा था।
किन्तु अजातशत्रु के समय में दोनों राज्यों का मैत्री सम्बन्ध जाता रहा। मज्झिमनिकाय से पता चलता है कि प्रद्योत के आक्रमण के भय से मगध नरेश अजातशत्रु अपनी राजधानी का दुर्गीकरण करवा रहा था। किन्तु दोनों राजाओं के बीच कोई प्रत्यक्ष संघर्ष नहीं हो पाया। पुराणों में कहा गया है कि ‘वह पड़ोसी राजाओं को अपने अधीन रखेगा तथा अच्छी नीति का नहीं होगा। वह नरोत्तम २३ वर्षों तक राज्य करेगा।१
स वै प्रणत सामन्तो ( श्रीमन्तो ) भविष्यो नयवर्जितः।
त्रयोबिंशत समा राजा भविता स नरोत्तमः॥ १
The Purana Text of the Dynasties of the Kali Age – F. E. Pargiter.
प्रद्योत बाद में अपने बौद्ध पुरोहित महाकच्चायन के प्रभाव में बौद्ध बन गया था। अवन्ति बौद्ध धर्म का प्रमुख केन्द्र बन गया। वहाँ अनेक प्रसिद्ध भिक्षु तथा भिक्षुणियाँ निवास करते थे।
प्रद्योत के बाद उसका पुत्र पालक अवन्ति का राजा हुआ। परिशिष्टापर्वन् से पता चलता है कि पालक ने वत्स राज्य पर आक्रमण कर उसकी राजधानी कौशाम्बी पर अधिकार कर लिया था। संभवतः उसने अपने पुत्र विशाखयूप को कौशाम्बी का उपराजा बनाया था। पालक ने २४ वर्षों तक राज्य किया। उसके बाद विशाखयूप, अजक तथा नन्दिवर्धन बारी-बारी से राजा हुए जिन्होंने क्रमश: ५०, २१ और २० वर्षों तक राज्य किया। इन सबका अन्त शिशुनाग से किया।
अवंति का पड़ोसी राज्य वत्स था जहाँ का शासक उदयन था। दोनों साम्राज्यवादी थे अतः संघर्ष अवश्यंभावी था। एक बार शिकार पर निकले उदयन को अवंतिराज चण्डप्रद्योत के सैनिकों ने बंदी बना लिया। कारागृह में प्रद्योत की कन्या वासवदत्ता से उसे प्रेम हो गया और वह वासवदत्ता की सहायता से स्वयं को मुक्त तो किया ही साथ ही वासवदत्ता को भी साथ लेकर अपनी राजधानी लौटा। बाद में प्रद्योत ने दोनों के विवाह को मान्यता देकर दोनों संघर्षरत राज्यों में मैत्री स्थापित की। भास कृत ‘स्वप्नवासवदत्ता’ नामक नाटक के कथानक का आधार यही प्रसंग है।
अवंति का गांधारराज पुक्कुसाति ( पुष्करसारिन् ) से भी संघर्ष हुआ। पुष्करसारिन् ने अवंति पर आक्रमण करके प्रद्योत को पराजित किया था।
इस राज्य का मगध के साथ लम्बा संघर्ष चला तथा शिशुनाग ने इसे जीत कर मगध में मिला लिया था। मौर्य काल में अवन्ति मगध साम्राज्य का पश्चिमी प्रान्त था।
गुप्त काल के पूर्व यहाँ शकों का राज्य स्थापित हुआ। चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य ने शकों से छीनकर इसे पुनः अपने अधिकार में कर लिया था। गुप्तकाल में चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के समय उज्जैयिनी मगध साम्राज्य की द्वितीय राजधानी बनी। इसी राजसभा में नवरत्न रहते थे जिसमें सर्वप्रमुख महाकवि कालिदास थे।
राजपूत युग में यहाँ परमार राजाओं का शासन था।
अवंति : सांस्कृतिक व आर्थिक केन्द्र
राजनैतिक, सांस्कृतिक व आर्थिक दृष्टियों से उज्जैयिनी प्राचीन भारत का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण नगर था।
आर्थिक दृष्टि से भी यह राज्य अत्यन्त समृद्ध था। यहाँ का लौह उद्योग विकसित अवस्था में था। अतः यह अनुमान करना स्वाभाविक ही है कि प्रद्योत के पास उत्तम कोटि के लोहे के अस्त्र-शस्त्र रहे होंगे। इस कारण यह राज्य सैनिक दृष्टि से अत्यन्त शक्तिशाली हो गया। जिनके बल पर उसने मगध की साम्राज्यवादी नीति का दीर्घकाल तक प्रतिरोध किया था।
मालवा का पठार पर्याप्त उपजाऊ है। जिससे कि यहाँ पर प्रागैतिहासिक काल से लेकर आधुनिक काल तक संस्कृतियों की समृद्धि परम्परा विद्यमान रही है।
ऐतिहासिक काल में मालवा के उपजाऊ भू-प्रदेश पर अधिकार करने के लिए संघर्ष होते रहे हैं।
उज्जैन अपने महाकाल ज्योतिर्लिंग के लिए प्रसिद्ध है। इसको महाकाल की नगरी भी कहा जाता है।
अवन्ति सांस्कृतिक एवं व्यापारिक महत्त्व का स्थान था। बुद्ध काल में यह बौद्ध धर्म का प्रमुख केन्द्र था जहाँ कई प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु निवास करते थे।
गुप्तकाल में यह शैवधर्म का भी केन्द्र बना जहाँ स्थित महाकाल का मन्दिर पूरे देश में प्रसिद्ध था।
हर्षकालीन चौनी यात्री हुएनसांग तथा लेखक बाणभट्ट ने उज्जैयिनी नगर की प्रसिद्धि का वर्णन किया है। वही अनेक भव्य भवन, मन्दिर, विहार आदि विद्यमान थे। बाणभट्ट ने उज्जैयिनी नगर को तीनों लोकों में श्रेष्ठ नगर बताया है।
उज्जैयिनी का नगर शिप्रा नदी के तट पर स्थित होने के कारण व्यापार वाणिज्य के लिये भी महत्वपूर्ण था यहाँ से दो प्रसिद्ध व्यापारिक मार्ग होकर गुजरते थे।
- पहला कौशाम्बी से भड़ौच तथा
- दूसरा प्रतिष्ठान से पाटलिपुत्र जाता था।
दोनों ही मार्गों का मिलन स्थल अवन्ति में ही था। इस दृष्टि से इस स्थान का व्यापारिक महत्त्व बहुत अधिक बढ़ गया।