अनूप जनपद

भूमिका

अनूप जनपद प्राचीन काल में अवन्ति महाजनपद का दक्षिणी भाग था। यह मध्य प्रदेश के खरगौन जनपद में महेश्वर व उसके आसपास भूभाग से मिलकर बनता था। यह नर्मदा नदी के तट पर बसा हुआ था। अनूप जनपद में ही माहिष्मती बसी थी जिसकी पहचान वर्तमान महेश्वर ( खरगोन ) से की जाती है।

अनूप क्षेत्र को वर्तमान में निमाड भी कहा जाता है। आजकल निमाड पूर्वी निमाड ( खरगोन ) और पश्चिमी निमाड ( खंडवा ) के नाम से जाना जाता है।

अनूप जनपद
अनूप

अनूप : पहचान

महाजनपदकाल और बुद्धकाल में यह अवन्ति महाजनपद का भाग था। अवन्ति महाजनपद के दो भाग थे —

  • एक, उत्तरी अवन्ति। इसकी राजधानी उज्जयिनी थी। उज्जयिनी की पहचान वर्तमान उज्जैन से की जाती है जो कि क्षिप्रा नदी के तट पर बसी है।
  • दूसरी, दक्षिणी अवन्ति। इसकी राजधानी माहिष्मती थी। दक्षिणी अवन्ति को अनूप जनपद कहा जाता था। माहिष्मती की पहचान वर्तमान महेश्वर ( Maheshwar ) से की गयी है। महेश्वर मध्य प्रदेश के खरगौन जनपद में नर्मदा नदी के तट पर बसा है। कभी-कभी इसको माहिष्मती के नाम से भी अभिहित किया जाता था।

अभिलेखीय उल्लेख

मौर्योत्तर काल ( शक – सातवाहन युग ) में यह एक प्रसिद्ध नगर था जिसपर अधिकार करने के लिये शकों व सातवाहनों में संघर्ष होने के ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं। वाशिष्ठीपुत्र पुलुमावि के नासिक गुहालेख( प्राकृत भाषा ) से ज्ञात होता है कि यह गौतमीपुत्र शातकर्णि के साम्राज्य का अंग था।

मदर-पवत सम-सारस असिक-असक-मुलक-सुरठ कुकुरापरांत-अनुप-विदभ-आकरावंति- राजस विझछवत-परिचात-सय्ह-कण्हगिरि-मच-सिरिटन-मलय-महिद-

( हिन्दी अर्थ :- मन्दर पर्वत के समान बलवान, असिक, अश्मक, मूलक, सुराष्ट्र, कुकुर, अपरान्त, अनूप, विदर्भ, आकर, अवन्ति देशों के राजा, विन्ध्य, क्षवत्‌, पारियात्र, सह्य, कृष्णगिरि, मत्स्य, सिरिटन, मलय, महेन्द्र, )

( द्वितीय पंक्ति : वाशिष्ठीपुत्र पुलुमावि के नासिक गुहालेख )

जूनागढ़ अभिलेख के अनुसार शकक्षत्रप रुद्रदामन ने इस स्थान को विजित करके शक साम्राज्य का अंग बना लिया था।

जनपदानां स्वीर्य्यर्जितानामनुरक्त-सर्व्व-प्रकृतीनां पूर्व्वापराकर-वन्त्यनूपनीवृदानर्त्त-सुराष्ट्र-श्व[भ्र-मरु-कच्छ-सिन्धु-सौवी]र-कुकुरापरांत-निषादादीनां समग्राणां त्प्रभावाद्य [थावत्प्राप्रधर्मार्थ] -काम-विषयाणां विषयाणां पतिना सर्व्वक्षत्राविष्कृत-

( हिन्दी अर्थ :- तथा जनपद से युक्त अपने पराक्रम से प्राप्त प्रजानुरागयुक्त, पूर्व तथा पश्चिम आकर तथा अवन्ति, अनूप, नीवृत, आनर्त, सूराष्ट्र, श्वभ्र, मरु, कच्छ, सिन्धु, सौवीर, कुकुर, अपरान्त, निषाद आदि समस्त को अपने प्रभाव के कारण यथोचित प्राप्त धर्म, अर्थ और कर्म विषयों के स्वामी, समस्त क्षत्रियों में प्रमुख- )

( ११वीं पंक्ति : रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख )

निष्कर्ष

इस तरह अनूप को मोटे तौर पर हम नर्मदा घाटी को मान सकते हैं। इसके उपजाऊ स्वरूप के कारण इसपर अधिकार करने के लिये राजनीतिक शक्तियाँ इतिहास के प्रत्येक कालखण्ड में प्रयासरत रहतीं थीं।

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — ४

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