चाणक्य और मैकियावेली

भूमिका आचार्य चाणक्य ( लगभग ३७० ई० पू० – २८३ ई० पू० ) की तुलना अक्सर आधुनिक काल के इटली मैकियावेली ( १४६९ – १५२७ ई० ) से की जाती है। आचार्य चाणक्य की कृति अर्थशास्त्र और मैकियावेली की कृति प्रिंस के विवरणों के आधार पर यह तुलना होती है। मैकियावेली का पूरा नाम ‘निकोलो […]

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अर्थशास्त्र : आचार्य चाणक्य (कौटिल्य) की रचना

भूमिका अर्थशास्त्र हिन्दू राजशासन या राजव्यवस्था की प्राचीनतम् रचना है। इसकी रचना चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु और मंत्री आचार्य चाणक्य ने की थी। इसमें १५ अधिकरण, १८० प्रकरण और ६,००० श्लोक हैं। अर्थशास्त्र ( १५ / १ ) में इसको इस तरह परिभाषित किया गया है – “मनुष्यों की वृत्ति को अर्थ कहते हैं। मनुष्यों

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आचार्य चाणक्य

भूमिका आचार्य चाणक्य भारतीय इतिहास के उन व्यक्तियों में से हैं जिनका प्रभाव किसी काल विशेष तक सीमित न होकर कालातीत है। चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन निर्माण में आचार्य चाणक्य का सर्वप्रमुख हाथ रहा है। वह इतिहास में विष्णुगुप्त और कौटिल्य इन दो नामों से भी जाने जाते हैं।‘चाणक्य नीति’ वर्तमान में भी प्रासंगिक हैं।

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चन्द्रगुप्त मौर्य ( ३२२/३२१ — २९८ ई०पू० ) : जीवन व कार्य

भूमिका मौर्य साम्राज्य के संस्थापक इतिहास में चन्द्रगुप्त मौर्य के नाम से विख्यात है। चन्द्रगुप्त मौर्य भारत के उन महानतम् सम्राटों में से है जिन्होंने अपने व्यक्तित्व तथा कृतित्व से इतिहास के पृष्ठों में क्रान्तिकारी परिवर्तन उत्पन्न किया है।१  Chandra Gupta’s rise to greatness is indeed a romance of history. — Age of Imperial१ चन्द्रगुप्त

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मौर्य राजवंश की उत्पत्ति या मौर्य किस वर्ण या जाति के थे?

भूमिका भारतीय इतिहास के अनेक महान् व्यक्तियों के समान चन्द्रगुप्त मौर्य का वंश भी अंधकारपूर्ण है। मौर्य राजवंश की उत्पत्ति के विषय में ब्राह्मण, बौद्ध तथा जैन ग्रन्थों में परस्पर विरोधी विवरण मिलते हैं। फलस्वरूप उनकी जाति या वर्ण का निर्धारण भारतीय इतिहास की एक जटिल समस्या है। मौर्य राजवंश की उत्पत्ति : तीन मत

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मौर्य इतिहास के स्रोत ( Sources for the History of the Mauryas )

भूमिका मौर्य इतिहास के स्रोत साहित्य और पुरातत्त्व दोनों हैं। साहित्य में स्वदेशी और विदेशी विद्वानों व इतिहासकारों की रचनाओं को सम्मिलित किया जाता है। इस तरह मौर्य राजवंश के तीन प्रकार के स्रोत हो जाते हैं। मौर्य राजवंश और तत्कालीन समाज व संस्कृति के इतिहास जानने के लिये हमें तीनों ही साधनों से पर्याप्त

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प्राग्मौर्यकाल – समाज और संस्कृति ( ६०० ई०पू० से ३२१ ई०पू० )

भूमिका प्राग्मौर्यकाल ( The Pre-Mauryan Age ) गंगाघाटी में सामाजिक तथा आर्थिक परिवर्तनों की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रहा है। इस काल की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का अध्ययन हम ब्राह्मण तथा ब्राह्मणेतर साहित्य के अतिरिक्त विभिन्न स्थलों के उत्खनन से प्राप्त किये गये पुरातात्त्विक अवशेषों के आधार पर भी करते हैं। इस काल के भारतीय जीवन

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वाराणसी ( काशी )

भूमिका वाराणसी भारतीय उप-महाद्वीप पर सबसे पुरातन ऐसी नगरी है जहाँ मानव आवास अपनी निरन्तरता बनाये हुए हैं। महाजनपद काल में वाराणसी काशी महाजनपद की राजधानी थी। बौद्ध साहित्यों में वर्णित छठी शताब्दी ई० पू० के छः महानगरों में से वाराणसी भी एक थी। यह पुरातन समय से ही धार्मिक, सांस्कृतिक, शिक्षा और आर्थिक गतिविधियों

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साकेत

भूमिका साकेत अयोध्या ( उत्तर प्रदेश ) का एक उपनगर था। इसकी स्थापना का विवरण हमें रामायण में मिलता है। इसकी स्थापना बौद्धकाल से पहले या निकट पूर्व बौद्धकाल में बना हुआ नगर था। बौद्ध ग्रंथ ‘महापरिनिर्वाण सूत्र’ में इसकी गणना छठीं शताब्दी ई० पू० के छः महानगरों में की गयी है।सामान्य लोक अनुश्रुति में

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श्रावस्ती ( सहेत-महेत)

भूमिका श्रावस्ती कोसल महाजनपद की राजधानी थी। बौद्ध ग्रंथ ‘महपरिनिर्वाणसूत्र’ के अनुसार यह छठीं शताब्दी ई०पू० की प्रसिद्ध छः महानगरों में से एक थी। श्रावस्ती की पहचान उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जनपद के ‘सहेत-महेत’ से की गयी है। यहाँ पर इसके ध्वंसावशेष प्राप्त होते हैं। श्रावस्ती राप्ती नदी ( अचिरावती नदी ) के दायें तट

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