शक या सीथियन (The Shakas or the Scythians)

भूमिका मौर्योत्तर काल में यवनों के बाद पश्चिमोत्तर भारत से दूसरे आक्रमणकारी शक थे। शकों ने यवनों से अधिक विस्तृत भारतीय भूभाग पर अपना आधिपत्य स्थापित किया। शकों (Shaka) को सीथियन (Scythian) भी कहते हैं। इतिहास के साधन शकों के प्रारम्भिक इतिहास की जानकारी के लिये हमें मुख्यरूप से ‘चीनी-स्रोतों’ पर निर्भर रहना पड़ता है। […]

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यवन प्रभाव या यवन सम्पर्क का भारत पर प्रभाव

भूमिका जब दो भिन्न संस्कृति व सभ्यता परस्पर सम्पर्क में आती हैं तो वे परस्पर क्रिया-प्रतिक्रिया द्वारा प्रभावित होती भी हैं और करती थी हैं। यह प्रक्रिया मानव इतिहास में अनवरत चलती रहती है। इस दृष्टि से भारतीयों पर यवन प्रभाव का अध्ययन महत्त्वपूर्ण है। हेलेनिस्टिक सभ्यता हेलेनिस्टिक सभ्यता क्या है? (What is Hellenistic Civilisation?)

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हिन्द-यवन या भारतीय-यूनानी या इंडो-बैक्ट्रियन(The Indo-Greeks or Indo-Bactrians)

भूमिका मौर्योत्तर काल में पश्चिमोत्तर में विदेशी आक्रमण का जो दौर प्रारम्भ हुआ उसमें सबसे पहले आक्रमणकारी युनानी थे। इन युनानी आक्रमणकारियों को इतिहास में विभिन्न नामों से जाना जाता है; यथा — यूनानी, यवन, हिन्द-यवन, भारतीय-यूनानी, हिन्द-यूनानी, इंडो-ग्रीक (Indo-Greeks), बैक्ट्रियन-ग्रीक (Bactrian-Greeks), इंडो-बैक्ट्रियन (Indo-Bactrians) इत्यादि। सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्युकस निकेटर को परास्त करके भारत

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कलिंग नरेश खारवेल या कलिंग का चेदि राजवंश

भूमिका मौर्य सम्राट अशोक ने भीषण युद्ध के पश्चात् कलिंग को जीतकर (२६१ ई०पू०) अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया था। सम्राट अशोक के देहावसान के बाद मौर्य साम्राज्य का विघटन प्रारम्भ हो गया। इस विघटन क्रम में पश्चिमोत्तर भारत, दक्षिण भारत व कलिंग मौर्य साम्राज्य से अलग होने वाले प्रारम्भिक क्षेत्र थे। मौर्य साम्राज्य

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सातवाहनयुगीन संस्कृति

भूमिका लगभग तीन शताब्दियों तक दक्षिणापथ की राजनीति में सातवाहन राजवंश की सत्ता किसी न किसी रूप में बनी रही। उनके शासनकाल में राजनीतिक तथा सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से दक्षिणी भारत की महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई। यह प्रगति जहाँ एक ओर निरंतरता की संवाहक थी वहीं कुछ परिवर्तन ऐसे हए जो परवर्ती काल में समाज

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सातवाहनकालीन भौतिक संस्कृति के तत्त्व

भूमिका सातवाहन काल में दकन की भौतिक संस्कृति में स्थानीय और उत्तर भारतीय तत्त्वों दोनों का सम्मिश्रण देखने को मिलता है। लोहे का प्रयोग दकन के महापाषाण संस्कृति के निर्माता लोहे का प्रयोग और कृषि कार्य दोनों से भलीभाँति परिचित थे। यद्यपि लगभग २०० ई०पू० के पहले हम लौह निर्मित कुछ फावड़े मिलते हैं, तथापि,

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सातवाहन राजवंश (The Satavahana Dynasty)

भूमिका सातवाहन शासनकाल का भारतीय इतिहास में विशेष स्थान है। प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में विन्ध्यपर्वत के दक्षिण में दो राजनीतिक शक्तियाँ प्रबल हुईं – १. ऊपरी दकन के सातवाहन राजवंश। २. कलिंग के चेदि राजवंश। इनमें से चेदि राजवंश की शक्ति अल्पकालीन थी परन्तु सातवाहन राजवंश का शासनकाल लगभग उतार-चढ़ाव के रूप में किसी

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शुंगकालीन संस्कृति

भूमिका मौर्यों के बाद मगध की सत्ता शुंगों के हाथ में आयी। शुंग राजाओं का शासन-काल भारतीय इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। उन्होंने बिखरते मगध साम्राज्य के केन्द्रीय भाग की विदेशियों से रक्षा की तथा मध्य भारत में शान्ति और सुव्यवस्था की स्थापना करके विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्ति को कुछ समय तक रोके रखा।

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कण्व राजवंश (The Kanva Dynasty)

भूमिका मगध के पुनः सत्ता का परिवर्तन हुआ। इस बार एक ब्राह्मण शासक की हत्या करके दूसरे ब्राह्मण ने सत्ता का अपहरण किया था। इसलिये जो मौर्यों पर आक्षेप करके पुष्यमित्र शुंग के कृत्य को सही ठहराने का प्रयास किया जाता रहा है वही तर्क इस संदर्भ में व्यर्थ सिद्ध हो गया। सत्य तो यह

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शुंग राजवंश (The Shunga Dynasty)

भूमिका जिस महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति ने १८४ ईसा पूर्व में अन्तिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या की वह इतिहास में ‘पुष्यमित्र’ के नाम से जाना जाता है। उसने जिस नवीन राजवंश की स्थापना की वह ‘शुंग’ नाम से जाना जाता है। संस्थापक पुष्यमित्र शुंग वर्ण ब्राह्मण राजधानी पाटलिपुत्र भाषा प्राकृत अंतिम शासक वसुदेव शुंग समय १८४

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