राजगृह ( राजगीर )

भूमिका बिहार राज्य के नालन्दा जनपद में वर्तमान राजगीर नामक स्थान ही राजगृह है। यहाँ मगध महाजनपद की प्रारम्भिक राजधानी थी। इसका नाम गिरिब्रज भी मिलता है। राजगृह चतुर्दिक् पहाड़ियों से घिरा हुआ था। महाभारत काल में राजगृह एक तीर्थ माना जाता था। नामकरण प्राचीन काल में राजगीर को एक से अधिक नामों से जाना जाता […]

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चम्पा ( मालिनी )

भूमिका चम्पा अंग महाजनपद की राजधानी थी। चम्पा की पहचान वर्तमान भागलपुर जनपद में गंगा और चंपा नदी के संगम पर स्थिति चंपापुरी या चंपानगरी से की जाती है। अंग महाजनपद बिहार प्रांत के वर्तमान भागलपुर और मुंगेर जनपद की भूमि पर स्थित था। महाभारत और पुराणों में चम्पा का एक नाम मालिनी भी मिलता

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वैशाली

भूमिका बिहार प्रान्त के वैशाली जनपद में स्थित आधुनिक बसाढ़ ( Basarh ) नामक स्थान ही प्राचीन काल का वैशाली नगर था। रामायण में इसे ‘विशाला’ कहा गया है। यह ध्यान देने की बात है कि मुजफ्फरनगर जनपद में स्थिति कोल्हुआ ( Kolhua ) से भी वैशाली के अवशेष मिलते हैं। कोल्हुआ के पास ही

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हस्तिनापुर

भूमिका महाभारत काल का प्रसिद्ध नगर ‘हस्तिनापुर’ मेरठ से २२ मील ( ≈ ३५ किलोमीटर ) उत्तर-पूर्व में गंगा नदी की प्राचीन धारा के तट पर बसा हुआ था। महाभारत काल में यहाँ कौरवों की राजधानी थी। महाभारत युद्ध के बाद इस नगर का गौरव समाप्त हो गया तथा अन्तोगत्वा यह गंगा नदी के प्रवाह

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कौशाम्बी

भूमिका कौशाम्बी पालि साहित्यों में उल्लिखित छठीं शताब्दी ई०पू० का छः प्रसिद्ध नगरों में से एक था। यह वत्स महाजनपद की राजधानी थी। इसकी पहचान उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी जनपद के मंझनपुर तहसील में स्थित कोसम नामक स्थान से की गयी है। यह नगरी प्रयागराज जनपद मुख्यालय से दक्षिण-पश्चिम में लगभग ३३ मील ( ≈

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भारत पर सिकन्दर का आक्रमण, कारण और प्रभाव

भूमिका हखामनी आक्रमण के पश्चात् पश्चिमोत्तर भारत एक दूसरे यूनानी आक्रमण का शिकार हुआ। यह यूरोपीय विजेता सिकन्दर के नेतृत्व में होने वाला मकदूनियाई आक्रमण था जो पहले की अपेक्षा कहीं अधिक भयावह सिद्ध हुआ। सिकन्दर मेसीडोन के क्षत्रप फिलिप द्वितीय (३५९-३३६ ईसा पूर्व) का पुत्र था। पिता की मृत्यु के पश्चात् २० वर्ष की

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पारसी आक्रमण (हखामनी आक्रमण), कारण और प्रभाव – छठीं शताब्दी ई०पू०

भूमिका भारतवर्ष पर सबसे पहले ‘ईरान’ के शासक ‘साइरस द्वितीय’ ने आक्रमण किया। परन्तु साइरस द्वितीय का आक्रमण असफल रहा। इसके बाद डेरियस या दारा प्रथम का आक्रमण हुआ जिसने पश्चिमोत्तर भारत के कुछ भाग और निचली सिंधु घाटी को अधिकृत कर लिया था। हखामनी (Achaemenes) नामक व्यक्ति द्वारा स्थापित इस राजवंश के अभियान को

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नंद वंश (३४४ से ३२४/२३ ई०पू०)

भूमिका यद्यपि नंद वंश ( नन्द वंश ) की स्थापना महानंदिन ने की तथापि इस वंश का वास्तविक संस्थापक महापद्मनंद था। इस नंद वंशी के शासक जैन धर्मावलम्बी थे। ये जाति से निम्न थे। नंद वंश ने ३४४ ई०पू० से ३२४/३२३ ई०पू० तक मगध साम्राज्य पर शासन किया। इसका अन्तिम शासक धनानंद था जिसे आचार्य

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शैशुनाग वंश या शिशुनाग वंश

भूमिका हर्यंक वंश के बाद शैशुनाग वंश या शिशुनाग वंश ने मगध पर शासन किया। इस राजवंश ने ४१२ ईसा पूर्व से ३४४ ईसा पूर्व ( लगभग ६८ वर्ष ) तक शासन किया। इस वंश में शिशुनाग और कालाशोक जैसे शासक हुए। शिशुनाग शैशुनाग वंश या शिशुनाग वंश की स्थापना ‘शिशुनाग’ ने की और वह

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हर्यंक वंश या पितृहंता वंश

भूमिका हर्यंक वंश के शासक बिम्बिसार के सिंहासनारोहण से मगध के उत्कर्ष का इतिहास प्रारम्भ होता है और यह मौर्य सम्राट अशोक द्वारा कलिंग विजय के साथ अपनी पूर्णता को प्राप्त करता है। ईसा पूर्व छठी शताब्दी से लेकर चन्द्रगुप्त मौर्य के सिंहासनारोहण से पूर्व तीन राजवंशों ने मगध के उत्थान में योगदान दिया :

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