बौद्ध धर्म के सम्प्रदाय

परिचय प्रथम शताब्दी ईसवी तक बौद्ध मतानुयायियों की संख्या बहुत बढ़ गयी थी। अनेकानेक लोग नवीन विचारों एवं भावनाओं के साथ प्रविष्ट हो रहे थे। ऐसे में भिक्षुओं का एक समूह समयानुकूल परिवर्तन की माँग करने लगा और दूसरा समूह किसी भी सुधार या परिवर्तन के विरुद्ध थे। दूसरे शब्दों में कुछ लोग समयानुकूल परिमार्जन […]

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बौद्ध धर्म के सफलता का कारण

परिचय तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक जीवन में बौद्ध धर्म की अनेक संदर्भों में उपादेयता थी। बौद्ध धर्म की सफलता में अनेक कारकों का योगदान था। जिस वैदिक समाज ने उत्पादन में लौह तकनीक के प्रयोग तथा प्रसार में महती भूमिका का निर्वहन किया था, उसी समाज की अनेक प्राचीन मान्यताएँ आर्थिक–और सामाजिक प्रगति

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जैन धर्म के विभिन्न उप-सम्प्रद्राय

जैन धर्म के विभिन्न उप-सम्प्रद्राय   चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में मगध में १२ वर्षीय अकाल पड़ा था। इस समय भद्रबाहु के नेतृत्व में जैन धर्म का एक समुदाय दक्षिण भारत चला गया। जबकि स्थूलभद्र अपने अनुयायियों के साथ मगध में ही रहे। दक्षिण से जब भद्रबाहु का अपने अनुयायियों के साथ उत्तरी भारत (

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जैन धर्म का प्रचार

जैन धर्म का प्रचार जैन संघ जैन संघ महावीर स्वामी के पहले से अस्तित्व में था। महावीर स्वामी ने पावा में ११ ब्राह्मणों को दीक्षित किया जो उनके पहले अनुयायी बने। महावीर ने अपने सारे अनुयायियों को ११ गणों ( समूहों ) में विभक्त किया और प्रत्येक समूह का गणधर ( प्रमुख ) इन्हीं ११

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जैन धर्म के सिद्धांत या शिक्षाएँ

जैन धर्म की शिक्षाएँ जैन धर्म में संसार को दुःख-मूलक माना गया है। मनुष्य जरा ( वृद्धावस्था ) और मृत्यु से ग्रस्त है। मानव को सांसारिक तृष्णाएँ घेरे रहती हैं। संसार का त्याग एवं संन्यास ही मानव को सच्चे सुख की ओर ले जाता है। संसार नित्य है जोकि अनादि काल से विद्यमान है और

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महावीर स्वामी

महावीर स्वामी सामान्य परिचय इनका जन्म ५९९ ई०पू० अथवा ५४० ई०पू० वैशाली के निकट कुण्डग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम सिद्धार्थ ( श्रेयाम्स, यसाम्स ) था जोकि ज्ञातृक क्षत्रियों के संघ के प्रमुख थे। यह संघ वज्जि संघ का अंग था। इनकी माता त्रिशला ( विदेहदत्ता, प्रियकारिणी ) वैशाली के लिच्छवि कुल के

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जैन धर्म

जैन धर्म जैन धर्म के अन्य नाम भी मिलते हैं :— निर्ग्रंथ, श्वेतपट, कुरूचक, यापनीय आदि। गौतम बुद्ध के समकालीन आविर्भूत होने वाले अरूढ़िवादी सम्प्रदायों में महावीर का नाम सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। बौद्ध साहित्य में इन्हें निगंठनाथपुत्त कहा गया है। बुद्ध के बाद भारतीय नास्तिक आचार्यों में महावीर सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। महावीर जैन धर्म के

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सूर्य-पूजा

सूर्य-पूजा उद्भव और विकास   सूर्य-पूजा की प्राचीनता प्रागैतिहासिक काल तक जाती है। सम्भवतः सूर्य प्रकृति के उन शक्तियों में से एक है जिसे सर्वप्रथम देवत्व प्रदान किया गया। विश्व की अनेक प्राचीन सभ्यताओं में सूर्य-पूजा का प्रचलन था ( मिश्र, पारसी सभ्यता आदि )।   प्रागैतिहासिक संस्कृतियों से कुछ प्रतीकात्मक मांगलिक चिह्न ( स्वास्तिक,

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नास्तिक सम्प्रदायों का उद्भव और विकास

नास्तिक सम्प्रदायों का उद्भव और विकास   ईसा पूर्व छठीं शताब्दी में उत्तरी भारत के मध्य गंगा घाटी में अनेक धार्मिक सम्प्रदायों का उद्भव हुआ। बौद्ध ग्रंथ ‘ब्रह्मजाल सूत्र’ में इनकी संख्या ६२ बतायी गयी है जबकि जैन ग्रंथ ‘सूत्रकृतांग’ में यह संख्या ३६८ बतायी गयी है। वैश्विक स्तर पर भी यह समय बौद्धिक रूप

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