भूमिका
श्रीगुप्त का पुत्र और उत्तराधिकारी घटोत्कच था। इसने सम्भवतः ३०० से ३१९-२० ई० तक राज्य किया। इसके शासनकाल की किसी भी घटना की जानकारी नहीं मिलती। इसने भी “महाराज” की उपाधि धारण की। प्रयाग प्रशस्ति में इन्हें “महाराज श्री घटोत्कच” () कहा गया है।
संक्षिप्त परिचय

घटोत्कच — द्वितीय गुप्त शासक | |
नाम | घटोत्कच |
पिता | श्रीगुप्त |
पुत्र | चंद्रगुप्त प्रथम |
शासनकाल | ३०० से ३१९-२० ईसवी |
स्रोत | उसके उत्तराधिकारियों के अभिलेख; जैसे— प्रयाग प्रशस्ति भीतरी अभिलेख स्कंदगुप्त का सुपिया स्तम्भ-लेख |
पूर्ववर्ती शासक | श्रीगुप्त |
उत्तराधिकारी | चंद्रगुप्त प्रथम |
विवाद | प्रथम या द्वितीय शासक
कुछ इतिहासकार घटोत्कच को ही गुप्त राजवंश का संस्थापक और आदिराज मानते हैं। इस सम्बन्ध में ये तथ्य रखे जाते हैं—
- प्रभावती गुप्त के पूना ताम्र-अभिलेख में भी घटोत्कच को ही गुप्तों का आदिराज या संस्थापक कहा गया है।
- स्कन्दगुप्त के सुपिया (रीवा) के लेख में भी गुप्तों की वंशावली घटोत्कच के समय से ही प्रारम्भ होती है।
इस आधार पर कुछ विद्वानों का सुझाव है कि वस्तुतः घटोत्कच ही इस वंश का संस्थापक था तथा गुप्त या श्रीगुप्त कोई आदि पूर्वज रहा होगा जिसके नाम का आविष्कार गुप्तवंश की उत्पत्ति बताने के लिये कर लिया गया होगा।
समालोचना
परन्तु इस प्रकार का निष्कर्ष तर्कसंगत नहीं है। गुप्त लेखों में इस वंश का प्रथम शासक श्रीगुप्त की ही कहा गया है। उदाहरणार्थ—
- समुद्रगुप्त का नालन्दा ताम्रलेख
- समुद्रगुप्त का प्रयाग प्रशस्ति
- कुमारगुप्त ( प्रथम ) का बिलसड़ स्तम्भलेख
- स्कंदगुप्त का भीतरी स्तम्भलेख
इतिहासकारों ने जिस आधार पर घटोत्कच को पहला शासक बताया है, उसका विश्लेषण हम निम्न आधार पर कर सकते हैं—
- एक, प्रभावती गुप्त और स्कंदगुप्त दोनों समुद्रगुप्त के परवर्ती हैं।
- द्वितीय, जहाँ स्कंदगुप्त के सुपिया लेख में वंशावली घटोत्कच से प्रारम्भ होती है, वहीं उसीके भीतरी स्तम्भ लेख में वंशावली श्रीगुप्त से प्रारम्भ होती है।
ऐसा प्रतीत होता है कि यद्यपि गुप्तवंश की स्थापना श्रीगुप्त ने की थी किन्तु उसके समय में यह वंश महत्त्वपूर्ण स्थिति में नहीं था। घटोत्कच के काल में ही सर्वप्रथम गुप्तों ने गंगा घाटी में राजनीतिक महत्त्व प्राप्त की होगी। अल्तेकर तथा आर० जी० बसाक का विचार है कि उसी (घटोत्कच) के काल में गुप्तों का लिच्छवियों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किया गया होगा।
सम्भवतः इसी कारण कुछ लेखों में घटोत्कच को ही गुप्तवंश का आदि राजा कहा गया है। उसका (घटोत्कच) भी कोई लेख अथवा सिक्के नहीं मिलते।
कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि श्रीगुप्त ही गुप्त-राजवंश के आदिराज अथवा प्रथम शासक थे।
साक्ष्य
घटोत्कच के कोई लेख अथवा सिक्के नहीं मिलते और जो मिले हैं उनपर विद्वान असहमत हैं—
- बसाढ़ से मिली एक मुद्रा पर ‘श्रीघटोत्कच गुप्तस्य’ लिखा मिला है। स्मिथ इसे गुप्त राजा की मुहर मानते हैं, परंतु यह मुहर संभवतः किसी परवर्ती शासक की है।
- घटोत्कच के नाम का एक सोने का सिक्का भी मिला है जिसे एलन बाद के राजा की मानते हैं।
उपलब्धियाँ
- घटोत्कच की किसी भी उपलब्धि के विषय में हमें पता नहीं है।
- गोयल के अनुसार गुप्त-लिच्छवि सम्बन्ध इसी समय आरंभ हुआ।
- घटोत्कच के नाम के पूर्व ‘महाराज’ की उपाधि को देखकर अधिकांश विद्वानों ने उनकी स्वतन्त्र स्थिति में संदेह व्यक्त किया है तथा उन्हें सामन्त शासक बताया है।
- काशी प्रसाद जायसवाल का विचार है कि गुप्तों के पूर्व मगध पर लिच्छवियों का शासन था तथा प्रारम्भिक गुप्त नरेश उन्हीं के सामन्त थे।
- सुधाकर चट्टोपाध्याय के मतानुसार मगध पर तीसरी शती में मुरुण्डों का शासन था और महाराज गुप्त (श्रीगुप्त) तथा घटोत्कच उन्हीं के सामन्त थे।
- फ्लीट एवं बनर्जी की धारणा है कि वे शकों के सामन्त थे जो तृतीय शताब्दी में मगध के शासक थे।
- सर्वप्रथम चन्द्रगुप्त प्रथम ने ही गुप्तवंश को शकों की अधीनता से मुक्त किया था।
FAQ
क्या श्रीगुप्त और घटोत्कच स्वतंत्र शासक थे?
(Was Shri Gupta and Ghatotkacha independent rulers?)
(Was Shri Gupta and Ghatotkacha independent rulers?)
विविध मत-मतान्तरों के बीच यह निश्चित रूप से बता सकना कठिन है कि प्रारम्भिक गुप्त नरेश किस सार्वभौम शक्ति की अधीनता स्वीकार करते थे। पुनश्च यह निश्चित नहीं कि वे सामन्त रहे ही हों। प्राचीन भारत में कई स्वतन्त्र राजवंशों; जैसे—लिच्छवि, मघ, भारशिव, वाकाटक आदि के शासक भी केवल ‘महाराज’ की उपाधि ही ग्रहण करते थे।
‘महाराजाधिराज’ की उपाधि का प्रयोग सर्वप्रथम चन्द्रगुप्त प्रथम ने ही किया। ऐसा प्रतीत होता है कि शकों में प्रयुक्त क्षत्रप तथा महाक्षत्रप की उपाधियों के अनुकरण पर ही उसने ऐसा किया था। बाद के भारतीय शासकों ने इस परम्परा का अनुकरण किया तथा ‘महाराज’ की उपाधि सामन्त स्थिति की सूचक बन गयी।
वास्तविकता जो भी हो, इतना स्पष्ट है कि महाराज गुप्त तथा घटोत्कच अत्यन्त साधारण शासक थे जिनका राज्य सम्भवतः मगध के आस-पास ही सीमित था। इन दोनों राजाओं ने ३१९-३२० ईसवी के लगभग तक राज्य किया।
वैशाली मुहर पर अंकित घटोत्कचगुप्त और तुमैन अभिलेख का घटोत्कच क्या गुप्त राजवंश का द्वितीय शासक था?
(Was Ghatotkachagupta, inscribed on the Vaishali seal, and the Ghatotkacha mentioned in the Tumen inscription, the second ruler of the Gupta dynasty?)
(Was Ghatotkachagupta, inscribed on the Vaishali seal, and the Ghatotkacha mentioned in the Tumen inscription, the second ruler of the Gupta dynasty?)
- घटोत्कच को वैशाली में पायी गयी कुछ मुहरों पर अंकित घटोत्कचगुप्त के साथ भ्रमित नहीं होना चाहिए१, क्योंकि वैशाली उस समय गुप्त साम्राज्य का हिस्सा नहीं था।
- The Gupta Empire, p. 12; R. K. Mookerji१
- घटोत्कचगुप्त ने उन मुहरों को प्रांत (भुक्ति) के मुख्य अधिकारी के रूप में अपनी क्षमता में जारी किया था जिसका मुख्यालय चंद्रगुप्त द्वितीय के साम्राज्य में वैशाली में था।
- घटोत्कचगुप्त राजवंश का वंशज हो सकता है, जैसा कि उसके नाम के साथ जोड़े गये उपसर्ग श्री से संकेत मिलता है, लेकिन उसे महाराज नहीं कहा गया है।
- मुहरों पर उसे कुमारामात्य कहा गया है।
- सम्भवतया घटोत्कचगुप्त राजकुमार ‘महाराज गोविंदा गुप्त’ की सेवा में रहने वाला मंत्री था। ‘महाराज गोविंदा गुप्त’ सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय की रानी ‘महादेवी ध्रुवस्वामी’ का पुत्र था, और वैशाली में वायसराय के रूप में कार्यरत था, लेकिन गुप्त राजवंश सिंहासन पर अपने पिता का उत्तराधिकारी नहीं बना।
- यह संभव है कि घटोत्कचगुप्त वही व्यक्ति हो है जिसका उल्लेख वर्ष ११६ (४३५ ई०) के मध्य भारत के तुमैन अभिलेख में एरण के राज्यपाल के रूप में किया गया है।
- अतएव हम कह सकते हैं कि वैशाली मुहर पर अंकित घटोत्कचगुप्त और तुमैन अभिलेख का घटोत्कच सम्भवतया एक हो सकते हैं। परंतु वैशाली मुहर पर अंकित घटोत्कचगुप्त और तुमैन अभिलेख का घटोत्कच गुप्त राजवंश का द्वितीय शासक से तादात्म्य नहीं स्थापित किया जा सकता है।
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