शाक्त-धर्म की तान्त्रिक विचारधारा

शाक्त-धर्म की तान्त्रिक विचारधारा   परिचय पूर्व-मध्यकाल तक आते-आते शाक्त-धर्म पर तान्त्रिक विचारधारा का व्यापक प्रभाव पड़ा। मात्र शाक्त सम्प्रदाय ही नहीं अपितु तत्कालीन सभी धर्मों और मत-मतान्तरों पर तन्त्रवाद का प्रभाव स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है; यथा — वैष्णव, शैव, बौद्ध और जैन धर्म आदि। जैन धर्म में ‘सचिवा देवी’ की उपासना शाक्त […]

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शाक्तधर्म : सिद्धान्त और आचार

शाक्तधर्म : सिद्धान्त और आचार शाक्तधर्म के सिद्धान्त त्रिपुरा रहस्य, मालिनी विजय, महानिर्वाण, डाकार्णव, कुलार्णव आदि ताँन्त्रिक ग्रन्थों में उल्लिखित है। शाक्त धर्मानुयायियों की विशेषताएँ निम्न हैं :— मातृदेवी को आदिशक्ति मानकर आराधना की जाती है। यही आदि शक्ति सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार करती है। शक्ति को शिव का क्रियाशील रूप माना गया

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शाक्त धर्म

शाक्त धर्म   उद्भव और विकास शक्ति को इष्टदेव मानकर पूजा करने वालों का समुदाय ‘शाक्त सम्प्रदाय’ कहलाता है। शक्ति–उपासना के उद्भव में वैदिक और अवैदिक दोनों प्रवृत्तियों का योगदान है। शाक्त और शैव धर्म का घनिष्ठ सम्बन्ध है। शाक्त धर्म की प्राचीनता प्रागैतिहासिक काल तक जाती है। लोहदा नाला, उत्तर प्रदेश से पूर्व–पुरापाषाण काल

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जैन संगीति या सभा

परिचय महावीर स्वामी की शिक्षाओं को संकलित करने और धर्म विषयक विधि-निषेधों के निर्धारण करने के लिए समय-समय पर जैन संगीति या सभाओं ( councils ) का आयोजन किया गया :–  प्रथम जैन संगीति या सभा समय – ३०० ई० पू० शासनकाल – चन्द्रगुप्त मौर्य स्थान – पाटलिपुत्र अध्यक्ष – स्थूलभद्र कार्य – जैन धर्म के १२ अंगों का सम्पादन

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जैन दर्शन

भूमिका जैन दर्शन अनीश्वरवादी है परन्तु अनात्मवादी नहीं है अर्थात् जैन दर्शन में ईश्वर की मान्यता नहीं है जबकि आत्माएँ अनन्त हैं। महावीर कर्मवाद और पुनर्जन्म विश्वास रखते हैं। जैन मत दार्शनिक दृष्टि से वस्तुतः ‘वस्तुवादी’ और ‘बहुसत्तावदी’ हैं। अर्थात् जितने प्रकार के द्रव्य हम देखते हैं वे सभी सत्य हैं। संसार में दो प्रकार के

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महाकाव्य युगीन धार्मिक दशा

कर्मकाण्डीय और ज्ञानमार्गीय धर्मों के सामंजस्य से महाकाव्यों ने एक लोकधर्म का विकास किया जो सर्वजन सुलभ था। इसमें वैदिक और अवैदिक विश्वासों का समावेश दिखता है।

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शैव धर्म

शिव से सम्बंधित धर्म को “शैव धर्म” और उनकी इष्ट मानकर पूजा करनेवाले “शैव” कहलाये। इस घर्म की प्राचीनता प्रागैतिहासिक काल तक जाती है। वर्तमान में ब्रह्मा और विष्णु के साथ शिव त्रिदेवों में सम्मिलित हैं। इनसे सम्बंधित व्रत महाशिवरात्रि और सोमवार है। तीसरे वर्ष मलमास लगता है। शिव में आर्य और आर्येत्तर तत्वों का समामेलन मिलता है। शिव की पूजा भारत में आसेतुहिमालय तक होती है।

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