भारत का पश्चिमी देशों से सम्पर्क

भारत और पाश्चात्य विश्व के साथ सम्बन्ध भूमिका भारत का पश्चिमी देशों से सम्बंध मुख्यतया व्यापारिक रहा है। इन सम्बन्धों की प्राचीनता प्रागैतिहासिक युग तक जाती है। इन सम्बन्धों के साक्ष्य पुरातात्विक और साहित्यिक दोनों तरह के मिलते हैं। सैंधव लोगों के पाश्चात्य सभ्यता से सम्पर्क वर्तमान ईराक के दजला-फरात नदी घाटी में मेसोपोटामिया सभ्यता […]

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चिकित्सा शास्त्र

चिकित्सा शास्त्र भूमिका चिकित्सा शास्त्र के क्षेत्र में प्राचीन भारतीयों की उपलब्धियाँ उल्लेखनीय रहीं हैं। इसका इतिहास वैदिक काल तक जाता है। वैदिक काल में चिकित्सा शास्त्र का विकास ऋग्वेद में ‘आश्विन कुमारों’ को कुशल वैद्य कहा गया है जो अपनी औषधियों से रोगों के निदान में निपुण थे। अथर्ववेद में आयुर्वेद के सिद्धान्त और

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भारत में गणित का विकास

भूमिका गणित ‘अमूर्त विज्ञान’ है। यह विज्ञान और तकनीकी का मेरूदण्ड है। लगथ मुनि कृति ‘वेदांग ज्योतिष’ में गणित के महत्व को इस तरह रेखांकित किया गया है : “यथा शिखा मयुराणाम् नागानाम् मणयो यथा। तद्वत् वेदांग शास्त्राणाम् गणितम् मूर्धनिस्थितम्॥” ( अर्थात् सभी वेदांग शास्त्रों के शीर्ष पर गणित उसी प्रकार सुशोभित है जैसे मयूर

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प्राचीन भारत में विज्ञान का विकास

विज्ञान   भूमिका हमें ‘प्रागैतिहासिक काल’ से ही भारतीयों की वैज्ञानिक बुद्धि का परिचय मिलने लगता है। वस्तुतः ‘प्रस्तरकालीन मानव’ ही विज्ञान की कुछ शाखाओं — प्राणि-शास्त्र, वनस्पति-शास्त्र, ऋतु-शास्त्र आदि का जनक है। उदाहरणार्थ — पशुओं के चित्र बनाने के लिए मानव ने उनके शरीरिक संरचना की जानकारी प्राप्त की। खाद्य-अखाद्य पदार्थों की जानकारी प्राप्त की।

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भक्ति आन्दोलन

भक्ति आन्दोलन का उद्भव भूमिका ऐतिहासिक दृष्टि से भक्ति-आन्दोलन के विकास को ‘दो चरणों’ में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम चरण के अन्तर्गत दक्षिण भारत में भक्ति के आरम्भिक प्रादुर्भाव से लेकर १३वीं शताब्दी तक के काल को रखा जा सकता है दूसरे चरण में १३वीं से १६वीं शताब्दी तक के काल को रख

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सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — ५

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — ५     अनेगोंडी कर्नाटक के कोप्पल जनपद में तुंगभद्रा नदी के उत्तरी तट पर स्थित है। हरिहर प्रथम ने इसे ही विजयनगर की प्रथम राजधानी बनायी थी। तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी तट पर हंपी स्थित था। तालीकोटा के युद्धोपरांत ( १५६५ ई॰ ) दक्कन के ४ मुस्लिम सल्तनत सेनाओं

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सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — ४

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — ४   अजमेर ( अजयमेरु ) वर्तमान में अजमेर राजस्थान में स्थित एक सांस्कृतिक और प्रशासनिक स्थल है। इसकी स्थापना चाह्मान वंशी शासक ‘अजयराज’ ने की थी। इन्हीं के नाम पर इसका नाम अजयमेरु या अजमेर पड़ा है। यह सूफी संत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के दरगाह के लिए भी प्रसिद्ध

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सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — ३

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — ३   अखनूर अखनूर वर्तमान केन्द्र शासित प्रांत जम्मू और कश्मीर में स्थित एक जनपद है। सैंधव युगीन माण्डा नामक स्थान यहीं पर स्थित था। माण्डा सैंधव सभ्यता का सबसे उत्तरी स्थल है। यहाँ से प्राक्, विकसित और उत्तरकालीन हड़प्पा अवशेष मिले हैं। उदयगिरि-खण्डगिरि ओडिशा के खोर्धा जनपद में भुवनेश्वर

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सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — २

सांस्कृतिक-ऐतिहासिक स्थल भाग – २   अफसढ़ ( अफसाढ़ ) अफसढ़ बिहार के नवादा जनपद में है। यहाँ से उत्तर गुप्त वंश के ८वें शासक आदित्यसेन का अभिलेख मिला है। इसमें परवर्ती गुप्त के प्रथम शासक कृष्णगुप्त से लेकर आदित्यसेन तक की वंशावली की जानकारी और इसमें उनके मौखरियों से सम्बंध की जानकारी मिलती है।

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वल्लभाचार्य का शुद्धाद्वैतवाद

परिचय शंकर के अद्वैतवाद का भक्ति-मार्ग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। भक्ति के लिए आराधक ( भक्त ) और आराध्य में द्वैत आवश्यक है जबकि शंकर के अनुसार पारमार्थिक दृष्टि से दोनों एक ही हैं। शंकर व्यावहारिक स्तर पर भक्ति को स्वीकार करते हैं परन्तु ज्ञान-मार्ग के सहायक के रूप में। शंकर का स्पष्ट मत है

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