प्राचीन भारतीय इतिहास

महाजनपद काल

भूमिका भारतवर्ष के ‘सांस्कृतिक इतिहास’ का प्रारम्भ अति प्राचीन काल में हुआ परन्तु उसके राजनीतिक इतिहास का प्रारम्भ अपेक्षाकृत बहुत बाद में हुआ। राजनीतिक इतिहास का मुख्य आधार सुनिश्चित तिथिक्रम (Chronology) होता है। इस दृष्टि से भारतवर्ष के राजनीतिक इतिहास का प्रारम्भ हम सातवी शताब्दी ई० पू० के मध्य ( ≈ ६५० ई० पू० ) […]

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द्वितीय नगरीय क्रांति

भूमिका भारतवर्ष में प्रथम नगरीय क्रांति सैन्धव सभ्यता थी। हड़प्पा सभ्यता के पतन के बाद लगभग १,००० वर्षोंपरांत वैदिक युग की समाप्ति के बाद गंगा घाटी में छठी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास ‘द्वितीय नगरीय क्रांति’ हुई। इस नगरीय क्रांति का तकनीकी आधार ‘लौह धातु’ का निरंतर बढ़ता प्रयोग था। तृतीय नगरीय क्रांति मध्यकाल में

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महाकाव्य काल

भूमिका महाकाव्य काल से तात्पर्य रामायण और महाभारत के समय से है। भारतीय लोक-जीवन में इन दोनों ही ग्रन्थों का अत्यन्त आदरपूर्ण स्थान है। रामायण हमारा आदि-काव्य है जिसकी रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी। महाभारत की रचना वेदव्यास ने की थी। यद्यपि इसके घटनाक्रम का सम्बन्ध बहुत पहले हो चुका था और इन दोनों

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सूत्र काल

भूमिका उत्तर-वैदिक काल के अन्त तक वैदिक साहित्य अत्यन्त व्यापक एवं जटिल हो चुका था। अतः एक व्यक्ति के लिये सम्पूर्ण वैदिक साहित्य को कण्ठस्थ करना दुष्कर होता जा रहा था। इसलिये वैदिक साहित्य को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये उसे संक्षिप्त करने की आवश्यकता महसूस हुई। इसी आवश्यकता की पूर्ति हेतु सूत्र साहित्य का

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उत्तर वैदिक काल

भूमिका उत्तर वैदिक काल १,००० ई० पू० से ५०० ई० पू० तक माना गया है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं — कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था, कबायली संरचना में दरार का पड़ना और वर्ण व्यवस्था का जन्म तथा क्षेत्रीय राज्यों का उदय। इसका तकनीकी आधार लौह धातु का प्रयोग जो ऋग्वैदिक काल से इसको पृथक करती है। ऋग्वैदिक

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ऋग्वैदिक काल या पूर्व-वैदिक काल

भूमिका सैन्धव सभ्यता के पश्चात् भारत में जिस नवीन सभ्यता का विकास हुआ उसको वैदिक संस्कृति या आर्य संस्कृति के नाम से जाना जाता है। वैदिक संस्कृति के पहले चरण को ऋग्वैदिक काल या पूर्व-वैदिक काल कहते हैं। भारतीय इतिहास एक प्रकार से आर्यों का इतिहास है। आर्यों का प्रारम्भिक इतिहास हमें मुख्यतः वेदों से

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वैदिक संस्कृति के स्रोत

भूमिका वैदिक संस्कृति के स्रोत के रूप में मुख्यतः वैदिक साहित्य और गौणतः पुरातात्त्विक साक्ष्य भूमिका निभाते हैं। वैदिक सभ्यता का समय १,५०० से लेकर ५०० ई० पू० तक फैला हुआ है। वैदिक काल को सुविधा के लिए दो भागों में विभाजित करके अध्ययन किया जाता है :- (क) ऋग्वैदिक अथवा पूर्व-वैदिक काल (Early Vedic

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आर्य संस्कृति की पहचान

भूमिका आर्य संस्कृति की पहचान के सम्बन्ध में तुलनात्मक भाषा का बहुत महत्त्व है। फ्लोरेंस ( इटली ) के एक व्यापारी फिलिप्पो सस्सेत्ती ( Filippo Sassestti ) गोवा में सन् १५८३ से १५८८ ई० तक यानी पाँच वर्ष तक रहे। उन्होंने यहाँ पर संस्कृत भाषा का अध्ययन किया और पाया कि संस्कृत भाषा और यूरोपीय

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आर्यों का मूल निवास स्थान कहाँ था?

भूमिका आर्यों का मूल निवास स्थान क्या था? या आर्य मूलतः किस प्रदेश के निवासी थे? वे भारतीय उप-महाद्वीप में बाहर से आये या यहीं के मूल निवासी थे? इत्यादि … ये अत्यन्त विवादग्रस्त प्रश्न हैं। यहाँ कुछ प्रमुख मतों का संक्षेप में उल्लेख किया जायेगा। इन मतों को हम दो भागों में बाँटकर सूक्ष्मता

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आर्य कौन हैं?

भूमिका वैदिक संस्कृति के वाहक आर्य हैं। परन्तु वास्तव में ये आर्य कौन हैं? यह बहुत ही विवाद का प्रश्न रहा है। औपनिवेशिक दौर में पाश्चात्य विद्वानों ने आर्यों को आक्रांता कहकर प्राजातीय वैभिन्यता का ठप्पा लगाकर भारतीय समाज को विभाजित करने का प्रयास किया। स्वतंत्रता के बाद भी वर्तमान में राजनीतिक हितों के लिए

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