धर्म और दर्शन

भारतीय दर्शन – एक सामान्य परिचय

परिचय भारतीय दर्शन के तत्त्व हमें वैदिक ऋषियों की काल्पनिक उड़ानों में अपनी विशिष्टता के साथ बीजरूप में दृष्टिगोचर होते हैं, जो आगे चलकर शंकर के अद्वैत वेदांत में चरमोत्कर्ष को प्राप्त हुआ। हमारे ऋषिगण सत्य की खोज में बराबर प्रयत्नशील रहे, जिसके फलस्वरूप कई दार्शनिक सम्प्रदायों की उत्पत्ति हुई, जिन्होंने जीव और जगत् को […]

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सांख्य दर्शन

सांख्य दर्शन   परिचय सांख्य दर्शन सभी प्राचीन दर्शनों में सबसे प्राचीन है। इसके प्रवर्तक महर्षि कपिल हैं। इसकी सबसे प्राचीन और प्रामाणिक ग्रंथ ‘सांख्यकारिका’ है जिसकी रचना ईश्वरकृष्ण ने की थी। विद्वान गोविन्द चन्द्र पाण्डेय ने इसकी उत्पत्ति अवैदिक श्रमण विचारधारा से माना है।  सांख्य के दो अर्थ हैं — संख्या और सम्यक् ज्ञान। इसमें २५

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जैन धर्म की देन

भूमिका जैन धर्म की देन प्रमुख रूप से निम्नवत् है :— साहित्य और कला के क्षेत्र में  सामाजिक देन धर्म और दर्शन के क्षेत्र में  राजनीतिक प्रभाव अन्य भाषा और साहित्य  जैन मतावलंबियों ने विभिन्न समयों में लोकभाषाओं के माध्यम से अपने मत का प्रचार-प्रसार किया। प्राकृत, अपभ्रंश, कन्नड़, तमिल, तेलुगु आदि क्षेत्रिय भाषाओं में

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बौद्ध धर्म के सम्प्रदाय

परिचय प्रथम शताब्दी ईसवी तक बौद्ध मतानुयायियों की संख्या बहुत बढ़ गयी थी। अनेकानेक लोग नवीन विचारों एवं भावनाओं के साथ प्रविष्ट हो रहे थे। ऐसे में भिक्षुओं का एक समूह समयानुकूल परिवर्तन की माँग करने लगा और दूसरा समूह किसी भी सुधार या परिवर्तन के विरुद्ध थे। दूसरे शब्दों में कुछ लोग समयानुकूल परिमार्जन

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बौद्ध धर्म के सफलता का कारण

परिचय तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक जीवन में बौद्ध धर्म की अनेक संदर्भों में उपादेयता थी। बौद्ध धर्म की सफलता में अनेक कारकों का योगदान था। जिस वैदिक समाज ने उत्पादन में लौह तकनीक के प्रयोग तथा प्रसार में महती भूमिका का निर्वहन किया था, उसी समाज की अनेक प्राचीन मान्यताएँ आर्थिक–और सामाजिक प्रगति

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जैन धर्म के विभिन्न उप-सम्प्रद्राय

जैन धर्म के विभिन्न उप-सम्प्रद्राय   चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में मगध में १२ वर्षीय अकाल पड़ा था। इस समय भद्रबाहु के नेतृत्व में जैन धर्म का एक समुदाय दक्षिण भारत चला गया। जबकि स्थूलभद्र अपने अनुयायियों के साथ मगध में ही रहे। दक्षिण से जब भद्रबाहु का अपने अनुयायियों के साथ उत्तरी भारत (

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जैन धर्म का प्रचार

जैन धर्म का प्रचार जैन संघ जैन संघ महावीर स्वामी के पहले से अस्तित्व में था। महावीर स्वामी ने पावा में ११ ब्राह्मणों को दीक्षित किया जो उनके पहले अनुयायी बने। महावीर ने अपने सारे अनुयायियों को ११ गणों ( समूहों ) में विभक्त किया और प्रत्येक समूह का गणधर ( प्रमुख ) इन्हीं ११

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जैन धर्म के सिद्धांत या शिक्षाएँ

जैन धर्म की शिक्षाएँ जैन धर्म में संसार को दुःख-मूलक माना गया है। मनुष्य जरा ( वृद्धावस्था ) और मृत्यु से ग्रस्त है। मानव को सांसारिक तृष्णाएँ घेरे रहती हैं। संसार का त्याग एवं संन्यास ही मानव को सच्चे सुख की ओर ले जाता है। संसार नित्य है जोकि अनादि काल से विद्यमान है और

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महावीर स्वामी

महावीर स्वामी सामान्य परिचय इनका जन्म ५९९ ई०पू० अथवा ५४० ई०पू० वैशाली के निकट कुण्डग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम सिद्धार्थ ( श्रेयाम्स, यसाम्स ) था जोकि ज्ञातृक क्षत्रियों के संघ के प्रमुख थे। यह संघ वज्जि संघ का अंग था। इनकी माता त्रिशला ( विदेहदत्ता, प्रियकारिणी ) वैशाली के लिच्छवि कुल के

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